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करवा चौथ का क्रेज और बढ़ा, गांवों में भी महिलाओं ने रखा व्रत

गाजीपुर। वैसे तो गाजीपुर में सुहाग का पर्व कारवा चौथ को लेकर कुछ साल पहले तक वर्ग विशेष में ही उत्साह दिखता रहा है लेकिन इस बार इसका क्रेज ग्रामीण इलाकों में भी देखने को मिला। रविवार को व्रती महिलाएं सोलह श्रृंगार कर करवा चौथ का कथा श्रवण का लाभ लिया और चलनी से चांद का दीदार कर अपना व्रत तोड़ा। उन घरों में ज्यादा ही उत्साह रहा जहां नवविवाहिता जोड़े थे। 

सुहागिनों को अपने पतियों से उपहार भी मिले। बाजार में भी इस पर्व को लेकर चहल-पहल रही। जेवर खासकर सुहाग की निशानी बिछुए की सबजे ज्यादा बिक्री हुई। व्रती महिलाएं एक दिन पहले ही इस व्रत की तैयारी में जुट गई थीं। ग्रामीण इलाकों में करवा चौथ के बढ़ते क्रेज को टीवी सीरियल से जोड़ा जा रहा है। अब तक गाजीपुर में सुहाग के प्रतीक पर्व के रूप में तीज का महत्व रहा है लेकिन नई पीढ़ी की युवतियां तीज की जगह करवा चौथ मना रही हैं।

क्यों मनता है करवा चौथ
करवाचौथ पर सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चंद्रमा की पूजा की जाती है। चंद्रमा के साथ-साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्रीगणेश और कार्तिकेय की पूजा भी होती है। एक किवदंति के अनुसार जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तो पतिव्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया। यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग दिया। 

वो अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगीं। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए, उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त कोई और वर मांग लो। सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था। 

अंत में अपने वचन में बंधने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके और सत्यवान के जीवन को सावित्री को सौंप दिया। कहा जाता है कि तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्यागकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं। द्रौपदी द्वारा भी करवाचौथ का व्रत रखने की कहानी प्रचलित है। कहते हैं कि जब अर्जुन नीलगिरी की पहाड़ियों में घोर तपस्या लिए गए हुए थे तो बाकी चारों पांडवों को पीछे से अनेक गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। 

द्रौपदी ने श्रीकृष्ण से मिलकर अपना दुख बताया। और अपने पतियों के मान-सम्मान की रक्षा के लिए कोई उपाय पूछा। श्रीकृष्ण भगवान ने द्रोपदी को करवाचौथ व्रत रखने की सलाह दी थी, जिसे करने से अर्जुन भी सकुशल लौट आए और बाकी पांडवों के सम्मान की भी रक्षा हो सकी थी।
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