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गाजीपुर: अपनी ‘नतिनी’ का एडमिशन कराने शाह फैज स्कूल खुद पहुंचे मनोज सिन्हा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर जिस महिला को ईश्वर जन्म से दिव्यांग बना दें। ऊपर से पति उसकी जान लेने पर आमादा हो जाए। उससे अभागन और शायद कोई हो। कुछ ऐसी ही कहानी रिंकू यादव की भी है लेकिन कहते हैं ईश्वर जिसके साथ बेदर्दी दिखाते हैं तो उसके लिए हमदर्दी की राह भी बनाते हैं। शायद यही वजह है कि रिंकू के दुखी जीवन में एक नई उम्मीद जग गई है। उसकी मदद में कोई सामान्य नहीं बल्कि देश के संचार एवं रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा खुद आगे आए हैं। 

रिंकू अब उनको अपना पिता मानने लगी है और उसकी पांच साल की मासूम बेटी रोहानिका(लाडो) अपनी मां के इस नए पिता को नाना कहने लगी है। श्री सिन्हा चाहते हैं कि उनकी यह नातिन खूब पढ़े। आगे बढ़े। शायद यही वजह रही कि रविवार की सुबह प्रोटोकॉल की अनदेखी कर शहर के जाने-माने अंग्रेजी स्कूल शाहफैज में वह खुद पहुंचे। लाडो का एडमिशन कराने के लिए खुद कीमत जमा कर फार्म खरीदे। लगे हाथ उसकी फीस के लिए अपने बैंक एकाउंट से स्कूल के एकाउंट में 21 हजार रुपये ट्रांसफर भी कर दिए। स्कूल में श्री सिन्हा के आने से पहले लाडो अपनी मां के साथ वहां पहुंच गई थी। जैसे ही श्री सिन्हा को आते देखी। वह नाना आ गए…नाना आ गए, कहते हुए खुशी में उछलने लगी। 
नाना भी उसे निराश नहीं किए। अपने साथ लाए स्कूल बैग, कॉपी-किताब तथा ज्ञानवर्धक खिलौने भेंट किए। यह सब पाकर खुशी में लाडो के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। मौके पर मौजूद स्कूल परिवार सहित अन्य सभी श्री सिन्हा के इस नेक काम को सराह रहा था। संचार एवं रेल राज्यमंत्री चाहते हैं कि रिंकू स्वरोजगार करे। साथ ही अपनी जैसी दुखियारी महिलाओं को भी रोजगार मुहैया कराए। इसके लिए वह भुतहियाटांड में उसके प्लाट पर सेनेटरी नेपकिन(स्वच्छता पैड) की छोटी फैक्ट्री स्थापित कराने की तैयारी में हैं। वह यह भी चाहते हैं कि रिंकू उस फैक्ट्री में अपनी जैसी दुखियारी अन्य महिलाओं को भी रोजगार दे। वैसे मनोज सिन्हा के करीबियों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। पहले से ही मनोज सिन्हा असहायों, जरूरतमंदों की यथा संभव मदद करते आ रहे हैं। आज भी कई गरीब परिवारों के बच्चें हैं जिनकी पढ़ाई का खर्च वह उठा रहे हैं।

आखिर कौन है रिंकू यादव
शहर के आमघाट की रहने वाली रिंकू यादव(25) के दोनों पांव जन्म से ही अक्षम हैं। बावजूद रिंकू में हौसला है। वह स्नातक तक पढ़ाई की। उसके बाद सेंट मेरी स्कूल में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी शुरू की। उसी बीच उसकी शादी दस दिसंबर 2012 को दुल्लहपुर क्षेत्र के रेहटी-मालीपुर के उदयप्रताप यादव से हुई। रिंकू एक पुत्री की मां भी बन गई। पति खाड़ी के किसी देश में काम करता था। 

रिंकू शादी के बाद अपने सुखद भविष्य की कल्पना में डूबी रहती। वह अपने देवर को भी खाड़ी देश भेजने के लिए अपनी कमाई का 80 हजार रुपये दी। फिर शहर में भुतहिया टांड़ के पास अपने परिचित का रिहायशी प्लाट खरीदी। इसके लिए वह ब्याज पर पांच लाख रुपये उधार ली। यही प्लाट उसके जीवन की दिशा बदल दी। खाड़ी देश से लौटने पर पति प्लाट को बेचने के लिए उस पर बेजा दबाव बनाने लगा। 

पति-पत्नी में दूरियां बढ़ने  लगीं। एक दिन पति हैवान बन गया और धारदार हथियार से उसके गले पर प्रहार किया। संयोग रहा कि रिंकू की चित्कार पर आसपास के लोग मौके पर तत्काल पहुंच गए। लंबे इलाज के बाद रिंकू ठीक हुई लेकिन उस हमले में बचाव के दौरान उसके बाएं हाथ की अंगुलियां बेकाम हो गईं। रिंकू उस मामले में एफआइआर दर्ज कराई। जाहिर था पति से उसकी दूरी भी बन गई। 

बावजूद रिंकू हिम्मत नहीं हारी। अपने हक की लड़ाई के क्रम में एक दिन उसकी मुलाकात संचार एवं रेल राज्यमंत्री के निजी सचिव सिद्धार्थ राय से हुई। उसका दर्द सुन वह हिल गए। हर संभव मदद दिलाने का उसे भरोसा दिए। उसके बाद लंका मैदान में संचार एवं रेल राज्यमंत्री की पहल पर आयोजित दिव्यांग शिविर में रिंकू को बैट्री चालित ट्राई साइकिल भेंट कराए। अपने निजी सचिव के मुंह से रिंकू की दर्द भरी कहानी सुन श्री सिन्हा भी द्रवित हो गए।
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