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गाजीपुर रामलीला: सुपनखा नकटैया, सीता हरण व खरदूषण वध का मंच देख दर्शक हुए रोमांचित

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में लीला के दसवें दिन बन्दे वाणी विनायकौ आदर्श रामलीला मण्डल के कालाकारों द्वारा स्थानीय रामलीला स्थल लंका के मैदान में सोमवार को शाम 7 बजे सुपनखा नकटैया, खरदूषण बध, सीता हरण एवं जटायु मरण लीला का मंचन किया गया। इस प्रसंग में दर्शाया गया कि वनवास काल के अन्तराल श्रीराम लक्ष्मण व सीता ऋषियों, मुनियों व अत्र ऋषियों का दर्शन करते हुए एवं अत्रि ऋषि के निर्देशानुसार पंचवटी पहुचकर पर्ण कुटी बनाकर निवास करने लगे। अचानक लंका पति राजा रावण की बहन शुप्र्णनखा घुमते हुए पंचवटी की ओर जाती है। वहा उसने देखा कि दो धनुषधारी वीर अपने एक स्त्री के साथ बैठे है, उनके निकट जाकर उनसे परिचय पुछते हुए अपने शादी का प्रस्ताव रखते हुए कहती है कि तुमसम पुरुष नमो सम नारी, यह संयोग रचेहू विचारी। तुम्हारे जैसा पूरुष मेरे जैसी सुन्दर नारी, तीनो लोक मे नही मिलेगी। अतः तुम मेरे साथ शादी कर लों।शुप्र्णनखा के बातों को सुनते हुए श्रीराम कहते है कि हे सुन्दरी मेरी तो शादी हो चुकी है अगर तुम चाहों तो मेरे छोटे भाई लक्ष्मण से शादी कर सकती हो। श्रीराम के बातों को सुनकर लक्ष्मण के पास जाकर उपरोक्त बातों को रखते हुए शादी के लिए निवेदन करती है। लक्ष्मण ने कहा कि मै तो अपने बड़े भाई श्रीराम का सेचक हॅू। वही जो चाहेगे करेगे। अतः कई बार इधर-उधर घुमने लगी जब उसने दोनो तरफ से निराश हो गयी तो वह अपने असली रुप में आकर सीता पर झपटी, तब श्रीराम की आज्ञा पाकर लक्ष्मण ने उसके नाक को अपने तलवार से काट देते है। अ बवह रुधिर बहाते हुए अपने भाई खरदूषण के पास जाकर सारा बृतान्त बताती है, तो उसकी सारी बातो को सुनकर खरदूषण चतुरंगिणी सेना के साथ तैयार होकर श्रीराम लक्ष्मण से युद्ध करने के लिए युद्ध भूमि मे जाते है। दोनो में धनघोर युद्ध हुआ युद्ध के दौरान श्रीराम ने खरदूषण को युद्ध भूमि में मार गिराते है। इसके बाद वह खरदूषण को मरा हुआ देखकर रोती विलखती वह अपने बड़े भाई लंका पति रावण के पास जाकर सारा बृतान्त बताती है और उन्हे युद्ध के लिए मजबूर कर देती है। अपने बहन शुपर्णनखा की बातो को सुनकर महाराज रावण ने कहा कि जब तुम्हारा नाक कटा तो खरदूषण कहा थे। उनकी बातो को सुनकर शुपर्णनखा कहती है कि वे दोनो भाई युद्ध के लिए गये थे और वही पर वीरगति को प्राप्त हो गये। इतना सुनते ही रावण क्रोधित होकर अपने राज दरवार से उठता है और अपने मामा मारीच के पास जाकर उनसे कहता है कि मामा मारीच आप मायाबी है। अतः आप सोने का हिरण बनकर मेरे साथ पंचवटी को चले। क्योकि हमारी बहन शुपर्णनखा का नाक दो वनवासियों ने काट दिया है। जब मारीच ने सुना कि महाराज रावण श्रीराम जी से वैर करने जा रहे है तो उसने समझाया कि महाराज श्रीराम से युद्ध करना आपके हित में हानिकारक है। क्योकि महर्षि विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए दोनो भाई उनके आश्रम गये थे। जब हम लोग यज्ञ को विध्वंश करने के लिए गये तो उन्होने एक वाण मारा, उनके वाण से सुवाहु तो मर गया लेकिन मै सतयोजन पार जाकरके नदी के किनारे गिरा। श्रीराम साधारण पुरुष नही है। उनसे बैर न करे तो अच्छा है। मारीच की बातों को सुनकर रावण क्रोधित होकर कहता है कि मै तुम्हारे दरवाजे पर शिक्षा लेने नही आया हॅू। तुम मेरे साथ चलते हो या नही। मै अपने तलवार से तुम्हे अभी यह पर मार डालूगा। वह डर के मारे तैयार होकर चलिये महाराज आपके हाथ से मरना तो अच्छा है कि श्रीराम के हाथ से मरु। मेरी मुक्ति होगी। इतना कहते हुए पुष्पक विमान पर सवार होकर रावण के साथ पंचवटी जाकर सोने का मृग बनकर कुटी के चारो ओर विचरने लगे इतने में सीता का ध्यान स्वर्ण मृग पर पड़ा तो श्रीराम से शिकार करने के लिए निवेदन करने लगी। सीता जी के निवेदन को सुनते हुए श्रीराम धनुष वाण उठाकर मृग के पीछे चल देते है। घोर जंगल में जाकर अपनी एक वाण से मृग को मार देते है। वह जमीन पर गिर पड़ता है। उसके बाद हाय, लक्ष्मण, हाय सीते, कहते हुए अपने प्राण को त्याग देता है। उसके आवाज को सुनकर सीताजी घबराती हुई लक्ष्मण को भेजती है। सीताजी के बातो को सुनकर लक्ष्मण जी कुटिया के चारो तरफ लक्ष्मण रेखा खीचकर अपने भाई श्रीराम के मदद के लिए निकल पड़ते है। रावण कुटिया के चारो तरफ देखा तो सुना पाया वह साधु का वेष धारण कर सीता से भिक्षा का निवेदन करता है। जब सीता कंुदमूल फल थाली में सजाकर थाली में सजाती है तो उसने देखा कि रेखा के अन्दर सीता जी है। वह समझ जाता है। उसके बाद कहता है कि आप रेखा के बाहर आकर भिक्षा देते तो मै ग्रहण करुगा। सीता जी साधु के बात को सुनकर रेखा के बाहर आती है इतने मे रावण उनका बाह पकड़कर उठा लिया और उनको अपने विमान पर बैठाकर आकाश मार्ग से लंका के लिए प्रस्थान कर जाता है। जब श्रीराम लक्ष्मण शिकार खेलकर अपने कुटिया के पास आते है तो सीता को न पाकर उन्हे खोजने जंगल झाड़ियों में निकल जाते है और वहा पशु पक्षियों से पूछते है कि हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी तुम देखी सीता मृग नैनी। श्रीराम पूछते हुए आगे जाते है। कुछ दूर आगे जाने पर श्रीराम ने गिद्धराज जटायु को अधमरा देखकर हे तात आपकी दशा किसने किया। तो इतना सुनने के बाद गिद्धराज जटायु ने कहा कि तुम्हारी भ्रार्या सीता को लंकापति रावण आकाश मार्ग से विमान द्वारा दक्षिण दिशा की ओर ले गया मैने रावण से युद्ध किया लेकिन वह अपने चन्द्रहास तलवार से मेरे दोनो पंखो को काट दिया जिससे मै अधमरा होकर जमीन पर गिर पड़ा। इतना कहने के बाद वह अपने शरीर को श्रीराम के गोद में ही परित्याग कर देता है। इस लीला को देखकर दर्शक भाव विभोर हो जाते है। इस मौके पर कमेटी के अध्यक्ष दीनानाथ गुप्ता, उपाध्यक्ष विनय कुमार सिंह, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा, उपमंत्री पं0 लवकुमार त्रिवेदी उर्फ बड़े महाराज, प्रबन्धक बीरेश राम वर्मा, उपप्रबंधक शिवपूजन तिवारी, राजकुमार शर्मा, राम सिंह यादव, पं0 बालगोविन्द त्रिवेदी, वैष्णो त्रिवेदी, कृष्णांश त्रिवेदी आदि उपस्थित रहे।

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