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गाजीपुर: और क्या कहते हैं गाजीपुर के दलित नेता?

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम में बदलाव पर जहां देश भर के दलित आक्रोशित हैं वहीं गाजीपुर के गैर बसपाई दलित नेताओं की इस मसले पर क्या सोच है। इसको लेकर गाजीपुर न्यूज़ टीम ने प्रमुख दलों के दलित नेताओं से चर्चा की। निष्कर्ष यही रहा कि अधिनियम में बदलाव कतई नहीं होना चाहिए। हालांकि सभी दलित नेताओं ने बदलाव के खिलाफ हुए हिंसक प्रदर्शन की निंदा की। सरकारी पार्टी भाजपा के रामहित राम ने कहा कि अधिनियम में यह बदलाव दलितों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है। दलितों के उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ेंगी। 

तत्काल गिरफ्तारी नहीं होने से प्रभावशाली आरोपियों को पुलिस की विवेचना में दखलंदाजी का पूरा मौका मिलेगा। उन्होंने कहा कि इस मामले में बसपा का विरोध मजाक है। बसपा के लोगों को याद करना चाहिए कि उनकी पार्टी मुखिया मायावती वर्ष २००७ के अपने मुख्यमंत्रित्व काल में बकायदा शासनादेश जारी कर इस कानून को हलका कर दी थीं। उनके शासनादेश में साफ था कि दलित उत्पीड़न के मामले में विवेचना के बाद ही आरोपी की गिरफ्तारी की जाए। अगर आरोप गलत मिले तो शिकायतकर्ता के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। भाजपा नेता ने कहा कि बदलाव के खिलाफ हिंसा की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। 

सपा के पूर्व विधायक सुब्बा राम ने कहा कि कानून में बदलाव बिल्कुल गलत है। दलितों को सुरक्षा का अधिकार मिलना ही चाहिए। यह ठीक है कि लोकतंत्र में विरोध जताने का हक सबको है लेकिन उसमें हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि पूरे घटनाक्रम के लिए भाजपा दोषी है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भाजपा सरकार को चाहिए था कि तत्काल अध्यादेश लागू कर दलितों की सुरक्षा को सुनिश्चित करे। 

कांग्रेस के सुनील राम ने भी कमोवेश यही बात कही। उनका कहना था कि आज भी दलितों के उत्पीड़न की घटनाएं आम हैं। ऐसे में इसे रोकने के लिए बने कानून में किसी तरह की ढिलाई ठीक नहीं है। रही बात इस मुद्दे को लेकर हिंसक प्रदर्शन की तो यह सरासर गलत है। 

उधर भाजपा की सहयोगी पार्टी भासपा के जखनियां विधायक त्रिवेणी राम गैर दलों के दलित नेताओं की बात से इत्तेफाक नहीं रखते। उन्होंने कहा कि वह अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की बात से पूरी तरह सहमत हैं। बेशक। दलित उत्पीड़न को रोकने वाले कानून का दुरुपयोग हो रहा है। यहां तक कि खेत में जानवर के जाने पर आपत्ति करने के मामले में भी इस कानून का बेजा इस्तेमाल होता है। उनके लिए ऐसे कई उदाहरण हैं। विरोध प्रदर्शन में हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों पर कठोर कार्रवाई की भी जरूरत है।
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