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दिल्ली निजामुद्दीन जमात में शामिल विदेशियों को इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने दिलाई थी शरण

गाजीपुर न्यूज़ टीम, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के खिलाफ पुलिस ने कोरोना पॉजिटिव मिले विदेशी समेत सात इंडोनेशियाई नागरिकों को अब्दुल्लाह मस्जिद में शरण देने का आरोप लगाया है। तबलीगी जमात में शामिल प्रोफेसर के कहने से ही इंडोनेशियाई नागरिक मस्जिद में ठहराए गए। अब पुलिस शाहगंज में दर्ज मुकदमे में भी प्रोफेसर को आरोपी बनाने की तैयारी कर रही है। फिलहाल प्रोफ़ेसर को उनके परिवार के साथ क्वारंटीन किया गया है।

पुलिस ने बताया कि मेहंदौरी कॉलोनी निवासी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शाहिद कुछ महीने पहले इथोपिया गए थे। दिसंबर 2019 में विदेश से लौटे। मार्च 2020 में दिल्ली में तबलीगी जमात में शामिल हुए। 10 मार्च को गरीबरथ से प्रयागराज आए। इस दौरान सब कुछ ठीक रहा लेकिन जब कोरोना संक्रमण बढ़ा तो अलर्ट जारी कर दिया गया। दिल्ली में हुई तबलीगी जमात में इंडोनेशिया के सात नागरिक भी शामिल हुए थे। ये सातों दो भारतीय के साथ दिल्ली से पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से गया जा रहे थे। रास्ते में लॉकडाउन होने का पता चला तो विदेशियों ने मिर्जापुर में किसी जमाती से संपर्क किया लेकिन बात नहीं हो सकी। फिर उन्होंने दिल्ली मरकज में कॉल करके मदद मांगी। वहां से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर से संपर्क करने के लिए कहा गया।

एसपी सिटी बृजेश श्रीवास्तव ने बताया कि प्रोफेसर ने ही अब्दुल्लाह मस्जिद के प्रमुख वसीम को कॉल करके विदेशियों के रहने का इंतजाम कराया। 22 मार्च को जब विदेशी प्रयागराज पहुंचे तो प्रोफेसर ने उनसे संपर्क करके मस्जिद में कमरा दिलाया। एसपी ने आरोप लगाया है कि जब जमात में शामिल होने वाले सभी लोगों को पुलिस और प्रशासन से सूचना देने की बात कही गई तब भी प्रोफेसर ने न अपने बारे में सूचना दी और न विदेशियों के बारे में जानकारी दी। प्रोफेसर के खिलाफ शिवकुटी थाने में बुधवार रात महामारी अधिनियम समेत संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया था। एसपी सिटी का कहना है कि इन्हें अब विदेशियों के खिलाफ शाहगंज में दर्ज मुकदमे में भी सहयोग का आरोपी बनाया जाएगा।

प्रोफेसर की जांच रिपोर्ट का इंतजार : 
इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को दिल्ली के निजामुद्दीन में हुई तबलीगी जमात में शामिल प्रोफेसर की कोरोना की जांच रिपोर्ट का इंतजार है। रजिस्ट्रार प्रो. एनके शुक्ला का कहना है कि रिपोर्ट आने के बाद कुलपति की सहमति से एमएचआरडी से दिशा-निर्देश लेकर इस मामले में आगे जरूरी कदम उठाए जाएंगे। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग का भी सहयोग लिया जाएगा। लॉकडाउन की वजह से इविवि के सभी विभाग और दफ्तर इन दिनों बंद चल रहे हैं। परीक्षा विभाग से इतनी जानकारी जरूर मिली है कि प्रोफेसर की 17 मार्च को विभाग में हुई परीक्षा में ड्यूटी लगाई गई थी और वह ड्यूटी पर मौजूद थे। इसदिन सुबह की पाली में 7 से 10 बजे तक बीए प्रथम वर्ष के पहले पेपर की परीक्षा हुई थी, जिसमें काफी ज्यादा परीक्षार्थियों के साथ ही विभाग के कई शिक्षक भी उपस्थित थे। परेशानी का विषय प्रोफेसर की यही परीक्षा ड्यूटी ही है क्योंकि वह जमात में शामिल होकर गरीब रथ से 11 मार्च को लौटे थे। उन्होंने यह ड्यूटी वहां से लौटने के बाद की थी। 11 से 16 मार्च के बीच प्रोफेसर के इविवि और अपने विभाग में आने की स्पष्ट जानकारी फिलहाल किसी के पास नहीं है। प्रोफेसर स्वभावत: बहुत रिजर्व रहते हैं इसलिए उनका इविवि के बहुत कम शिक्षकों से ही मिलना-जुलना होता है। उनके एक भाई इविवि के ही एक अन्य संकाय में प्रोफेसर हैं, जो इनके मुकाबले ज्यादा सोशल बताए जाते हैं। प्रोफेसर के विभाग के कुछ शिक्षक और शोधार्थी इस खबर के बाद से परेशान और चिंतित हैं।

हो सकती है प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई
प्रोफेसर के खिलाफ तथ्य छिपाने के आरोप में महामारी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज होने के बाद इविवि प्रशासन भी उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। प्रोफेसर को नोटिस जारी कर इस मामले में स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है। हालांकि अभी वह क्वारंटीन हैं और इविवि भी बंद चल रहा है इसलिए इस मामले में कार्रवाई विश्वविद्यालय के खुलने के बाद ही हो सकेगी। कुलपति प्रो. आरआर तिवारी के हवाले से पीआरओ डॉ. शैलेंद्र मिश्र ने बताया कि तब तक जिला प्रशासन की रिपोर्ट भी आ जाएगी। अभी तक इविवि के पास इस मामले की कोई औपचारिक जानकारी नहीं है। पीआरओ डॉ. मिश्र कहते हैं कि प्रकरण सामने आने के बाद प्रोफेसर को जमात में शामिल होने की जानकारी स्वयं देकर खुद ही क्वारंटीन हो जाना चाहिए था। 
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