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कोरोना मरीज के दोबारा कोरोना पॉजिटिव आने पर डरने की जरूरत नहीं है - WHO

गाजीपुर न्यूज़ टीम, नई दिल्ली। विश्व के तमाम देशों में कोरोना वायरस अपने अलग-अलग रूप दिखा रहा है। ऐसा ही एक रूप है कोरोना मरीजों के ठीक होने के बाद दोबारा पॉजिटिव होना। चीन से लेकर भारत तक में यह ट्रेंड देखा जा रहा है कि जो कोरोना मरीज ठीक हो चुके हैं वो दोबारा भी पॉजिटिव निकले हैं। ऐसे में आपको डरना है या नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने स्थिति स्पष्ट की है। 

डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिसर्च फाइंडिंग टीम के हवाले से बताया है कि यह जरूरी नहीं कि जो मरीज ठीक हो चुके हैं उनकी हर बार रिपोर्ट निगेटिव ही आए। दरअसल फेफड़े की मृत कोशिकाओं के कारण दोबारा पॉजिटिव रिपोर्ट की संभावना बनी रहती है। पर इसका मतलब यह नहीं कि मरीज री-इंफेक्टेट है। यह मरीज का रिकवरी फेज होता है।

डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 संक्रमित मरीजों को लेकर जो महत्वूपर्ण जानकारी साझा की है, उसके अनुसार इसकी पूरी संभावना बनी रहती है कि जो मरीज एक बार ठीक हो चुका है उसकी रिपोर्ट दोबारा पॉजिटिव आए। पर मरीजों का दोबारा पॉजिटिव टेस्ट आने के पीछे फेफड़ों की मरी हुई कोशिकाएं जिम्मेदार हो सकती हैं। इससे मरीजों को डरने की जरूरत नहीं है।


शरीर खुद ही वायरस की सफाई करता है
डब्ल्यूएचओ ने स्पष्ट किया है कि ताजा आंकड़ों और विश्लेषणों के आधार पर कहा जा सकता है कि रिपोर्ट पॉजिटिव आना स्वाभाविक है। ठीक होने के बाद मरीजों के फेफड़ों से मृत कोशिकाएं बाहर आ सकती हैं। इन मृत कोशिकाओं के आधार पर रिपोर्ट पॉजिटिव आ सकती है। पर यह मरीजों का रिकवरी फेज है जिसमें मनुष्य का शरीर खुद ही उसकी सफाई करता है।

महामारी के दूसरे फेज की बात गलत: डब्ल्यूएचओ ने कहा कि तमाम देशों में काफी संख्या में मरीजों की रिपोर्ट ठीक होने के बाद दोबारा पॉजिटिव आई है। यह खास चिंता की बात नहीं है। यह कोरोना का दूसरा फेज बिल्कुल नहीं है। अप्रैल में सबसे पहले दक्षिण कोरिया ने अपने यहां के सौ मरीजों की रिपोर्ट दी थी, जिसमें बताया गया था कि ठीक होने के बाद वो दोबारा पॉजिटिव निकले हैं। इसके बाद कई अन्य देशों में ऐसी बातें सामने आईं। पर अब स्पष्ट है कि इससे ज्यादा खतरा नहीं।

डब्ल्यूएचओ के महामारी विज्ञानी मारिया वान केहोव ने कहा कि ठीक होने के बाद कोरोना मरीजों के फेफड़े अपने आप को रिकवर करते हैं। ऐसे में वहां मौजूद डेड सेल्स बाहर की तरफ आने लगते हैं। वास्तव में ये फेफड़े के ही सुक्ष्म अंश होते हैं जो नाक या मुंह के रास्ते बाहर निकलते हैं। ये डेड सेल्स संक्रामक वायरस हैं यह कहना बिल्कुल गलत है। न ही ये संक्रमण का री-एक्टिवेशन है। वास्तव में यह स्थिति तो उपचार प्रक्रिया का हिस्सा एक है। शरीर खुद को रिकवर करता है।

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