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बच्चों को बिठा निकल पड़े दंपती, पति खींचता रिक्शा और गर्भवती लगाती धक्का

गाजीपुर न्यूज़ टीम, कन्नौज, एक कहावत है कि पति और पत्नी जीवन की गाड़ी के दो पहिये होते हैं, पत्नी सुख में साथ रहती है तो संकट के समय भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी होती है। कुछ ऐसा ही नजारा बीती रात आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे पर देखने को मिला। यहां एक रिक्शे पर बैठे चार बच्चे और गृहस्थी को पति खींच रहा था और उसे सहारा देने के लिए गर्भवती पत्नी पीछे से धक्का लगा रही थी। रात का समय था और दृश्य भी झकझोर देने वाला था। ये अकेला परिवार नहीं बल्कि भरा पूरा 24 लोगों का कुनबा था, जो राजस्थान अलवर से बिहार के लिए 15 सौ किमी के सफर पर निकल पड़ा था।

साहब, हमारी जिंदगी ऐसी ही है...
बीती रात कन्नौज पहुंचकर रिक्शा खींचकर जाते हुए 35 वर्षीय रामूमंडल और पीछे धक्का लगा रही गर्भवती पत्नी संतोष देवी को रोककर कुछ पूछने का प्रयास किया तो उनके आंसू झरने लगे और बोले-साहब हमारी जिंदगी ऐसी ही है। रामू ने बताया कि वह मूलरूप से बिहार के कटिहार थाना बरारी के बाकिया सुखाय गांव का रहने वाला है। बीते कई वर्षों से राजस्थान के अलवर में कबाड़ का काम करता था और इसमें उसके साथ तीन भाई नीरु, वउकू और चंदन भी हाथ बंटाते थे। उसका और भाइयों का परिवार अलवर में रहकर गुजर बसर कर रहा था। लॉकडाउन लगा तो कुछ दिनों बाद परिवार खाने को मोहताज हो गया।

भीख मांगकर भरा बच्चों का पेट
परिवार में 24 सदस्यों को भरपेट खाना खिलाना मुश्किल हो गया। मकान मालिक किराया मांगने लगा और मजबूरी बताने पर उसने बिजली पानी का काट दिया। अब तो वहां रहना भी मुश्किल हो गया सो उसने परिवार के साथ घर लौटने का फैसला किया। श्रमिक स्पेशल ट्रेन के लिए तीन बार आवेदन किया लेकिन उसे टिकट नहीं मिला। प्राइवेट वाहन चालकों से बात की तो वो 24 हजार रुपये किराया मांग रहे थे, इतने रुपये उसके पास नहीं थे। वह तो भीख मांगकर बच्चों का पेट भर रहा था। फिर उसने अपने कबाड़ वाले रिक्शे से घर लौटने का फैसला किया। 16 मई को सुबह रिक्शे पर गृहस्थी का सामान लादा और बच्चों को बिठाकर तीनों भाई निकल पड़े।
मेरी हालत देखकर पत्नी मारने लगी धक्का
रामू ने बताया कि कुछ किलोमीटर चलने के बाद सभी थक गए और भूख से आगे चलना मुश्किल हो गया। रास्ते कहीं कुछ मिल जाता तो खा लेते और पानी पीकर आगे बढ़ते चले आए। मेरी हालत देखकर पत्नी संतोष से रहा नहीं गया और वह रिक्शे में पीछे से धक्का मारने लगी। पत्नी से पेट से है, इसलिए उसे कई बार रोका भी लेकिन वह मेरी हालत देखकर मानने को तैयार नहीं हुई। उसे इस तरह साथ निभाते देखकर कई बार आंखें भी भर आईं लेकिन हिम्मत नहीं हारी और यहां तक आ गए।

खाना मिलते ही निकले आंसू, नहीं छोड़ेंगे घर
पांच दिन बाद जब चार ठेलियाें पर 13 बच्चों समेत 24 लोगों का यह परिवार कन्नौज के ठठिया मंडी टोल प्लाजा पर पहुंचा तो समाजसेवी लोगों ने भोजन कराया। खाना खाकर सभी लोगों के आंखों में आंसू आ गए। वह बोले, पांच दिन बाद पेट भरके खाना खाया है। उन्होंने बताया कि रात होने पर वहीं रुक जाते थे और सुबह सूरज की पौ फटते ही सफर शुरू कर देते हैं। रामू ने कहा कि इतनी मुसीबत देखने के बाद अब घर पहुंचने के बाद कभी गांव नहीं छोड़ेंगे और वहीं पर कोई धंधा करेंगे।
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