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रोमांटिक कहानी: अपरिमित

अमित ने अपनी पत्नी को कहा थैंक्यू डियर , मैं भाग्यशाली हूं कि तुम मेरी लाइफपार्टनर हो , कभी -कभी मैं भी तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूं.
” दरवाज़ा खुलने की आवाज़ के साथ ही हवा के तेज़ झोंके के संग बरबैरी पर्फ़्यूम की परिचित ख़ुशबू के भभके ने मुझे नींद से जगा दिया .” तुम ऑफ़िस जाने के लिए तैयार भी हो गए और मुझे जगाया तक नहीं .” मैने मींची आँखों से अधलेटे ही अमित से कहा .” तुम्हें बंद आँखों से भी भनक लग गई की मैं तैयार हो गया हूँ .” अमित ने चाय का कप मेरी और बढ़ाते हुए कहा . भनक कैसे ना लगती ..यह ख़ुशबू मेरे दिलो दिमाग़ पर छा मेरे वजूद का हिस्सा बन गई है . मैंने मन ही मन कहा.

” थैंक्स डीयर !”

” अरे , इसमें थैंक्स की क्या बात है . रोज़ तुम मुझे बेड टी देती हो , एक दिन तो मैं भी अपनी परी की ख़िदमत में मॉर्निंग टी पेश कर ही सकता . “उसके इस अन्दाज़ से मेरे लबों पर मुस्कुराहट आ गई .

” बुद्धू चाय के लिए नहीं कह रही .. थैंक्स फ़ॉर एवरीथिंग .. जो कुछ आज तक तुमने मेरे लिए किया है .” कहते हुए सजल आँखों से मैं अमित के गले लग गई . चाय पीकर वो मुझे गुड बाय किस कर ऑफ़िस के लिए निकल गया . उसके जाने के बाद भी मैं उसकी ख़ुशबू को महसूस कर पा रही थी . मैंने एक मीठी सी अंगड़ाई ली और खिड़की से बाहर की ओंर देखने लगी .कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .

अगले हफ़्ते राजस्थान एम्पोरीयम में मेरी पैंटिंग्स और मेरे द्वारा बने हैंडीक्राफ़्ट्स की एग्ज़िबिशन थी . साथ में मैं अपनी पहली किताब भी लॉंच करने जा रही थी . कल रात देर तक काम करते हुए मुझे अपने स्टडी रूम में ही नींद लग गई .अमित ने मेरे स्टडी रूम के तौर पर गार्डन फ़ेसिंग रूम को चुना था . उसे पता है मुझे खिड़कियों से कितना लगाव है . ये खिड़कियाँ ही हैं जिनके द्वारा मैं अपनी दुनिया में सिमटी हुए भी बाहर की दुनिया से और मेरी प्रिय सखी प्रकृति से जुड़ी रहती हूँ . बादलों के झुरमुट से , डेट पाम की झूलती टहनियों से , अरावली की हरीभरी पहाड़ियों से मेरा एक अनजाना सा रिश्ता हो गया है .

‘अपरिमित ‘ ये ही तो नाम रखा है , मैंने अपनी पहली किताब का . अतीत की वो पगली सी स्मृतियाँ आज अरसे बाद मेरे ज़ेहन में सजीव होने लगी .

हम तीन भाई बहन है . अन्वेशा दीदी , अनुराग भैया और फिर सबसे छोटी मैं यानि परी . दीदी और भैया शाम को स्कूल से लौटने के बाद अपना बैग पटक आस – पड़ौस के बच्चों के साथ खेलने के लिए निकल जाते वहीं मुझे अपने रूम की खिड़की से उन सबको खेलते हुए निहारने में ही ख़ुशी मिलती . मैं हम तीनों का ख़याल रखने के लिए रखी गई लक्ष्मी दीदी के आगे – पीछे घूमती रहती . कभी वो मेरे साथ लूडो , स्नेक्स एंड लैडर्स खेलती तो कभी हम दोनों मिलकर मेरी बार्बी को सजाते . अन्वेशा दीदी बहुत ही चुलबुली स्वभाव की थी और उसका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी कमाल का था जिससे वह किसी को भी अपनी तरफ़ आकर्षित कर लेती थी . स्कूल , घर और आस – पड़ौस में सबकी चहेती थी . अनुराग भैया और मैं ट्विन्स थे . वे खेल – कूद , पढ़ाई सब में अव्वल रहते . उन्होंने कभी नम्बर दो रहना नहीं सीखा था . 

उन्होंने जन्म के समय भी मुझसे बीस मिनट पहले इस दुनिया में क़दम रख मेरे बड़े भाई होने का ख़िताब हासिल कर लिया था . मैं उन दोनों के बीच मिस्मैच सी लगती . मैं उन्हें देखकर अक्सर सोचती मैं ऐसी क्यों नहीं हो सकती . मम्मी – डैडी मुझे भी उन दोनों के जैसा बनाने के लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहते .” आज तो मेरी छोटी गुड़िया ही अंकल को वो नई वाली पोयम सुनाएगी .” डैडी आने वाले मेहमानों के सामने प्रस्तुति के लिए मुझे ही आगे करते . पर मेरा सॉफ़्टवेर विंडो ६ था जिससे मेरी प्रोग्रैमिंग बहुत स्लो थी .जबकि मेरे दोनों भाई – बहन विंडो टैन थे , बहुत ही फ़ास्ट आउट्पुट और मैं कुछ सोच पाती उससे पहले पोयम हाज़िर होती और मैं मुँह नीचा किए अपने नाख़ून कुरेदती रह जाती .

एक दिन मैंने मम्मा को टीचर से फ़ोन पर बात करते सुना ,” मैम इस बार इंडेपेंडेन्स डे की स्पीच अनामिका से बुलवाइए , मैं चाहती हूँ उसका स्टेज फीयर ख़त्म हो .” टीचर के डर से मैंने स्पीच तो तैयार कर ली पर स्पीच देने से एक रात पहले मैं अपनी दोनों बग़ल में प्याज का टुकड़ा दबाए सो गई ( मैंने कहीं पर पढ़ रखा था कि प्याज़ को बग़ल में डालने से फ़ीवर हो जाता है .) जिससे दूसरे दिन मैं स्कूल ना जा पाऊँ .पर मेरी युक्ति असफल रही और दूसरे दिन ना चाहते हुए भी मुझे स्कूल जाना पड़ा . जिस समय मैंने स्पीच बोल रही थी वातावरण में सर्दियों की गुलाबी धूप खिल रही थी . स्टेज पर चढ़ते ही मेरे हाथ – पैर काँपने लगे थे , सर्दी की वजह से नहीं भय और घबराहट के मारे .

शाम को टीचर का फ़ोन आया था , कह रही थी आपकी बेटी ने कमाल कर दिया .”सुनकर मम्मा ने मुझे गले से लगा लिया . प्याज़ के असर से तो नहीं पर स्टेज फीयर से मुझे तेज़ फ़ीवर ज़रूर हो गया था .

मम्मा लैक्चरार थी . दोपहर को घर आकर थोड़ी देर आराम कर दूसरे दिन के लैक्चर की तैयारी में लग जाती .रात में अक्सर मैंने डैडी को मम्मा से कहते सुना था ,” अनामिका दिन ब दिन डम्बो होती जा रही है जब देखो गुमसुम सी घर में घुसी रहती है . उन दोनों को देखो घर , स्कूल दोनों में नम्बर वन .”

मैं उन लोगों से कहना चाहती थी मैं गुमसुम नहीं रहती हूँ … मैं अपने आप में बहुत ख़ुश हूँ . बस मेरी दुनिया आप लोगों से थोड़ी अलग है .धीरे – धीरे मुझ पर ‘डम्बो ‘ का हैश टैग लगने लगा था . जाने अनजाने मेरी तुलना दीदी और भैया से हो ही जाती थी . पर डैडी भी हार मानने वालों में से नहीं थे . उन्होंने मुझे हॉस्टल भेजने का फ़ैसला कर लिया .माउंट आबू के सोफ़िया बोर्डिंग स्कूल में मेरा अड्मिशन करवा दिया गया . वहाँ मैं सबसे ज़्यादा लक्ष्मी दीदी को मिस करती थी पर अब मैंने छिपकर रोना भी सीख लिया था . अब वह लाल छत वाला हॉस्टल ही मेरा नया आशियाना बन गया था . मुझे एक बात की तसल्ली भी थी की अब मैं गाहे बगाहे दीदी भैया से मेरी तुलना से तो बची .

वहाँ रहते हुए मुझे पाँच साल हो गए थे . मुझमें अंतर सिर्फ़ इतना आया था कि अब मेरा हैश टैग डंबो से बदलकर घमंडी और नकचढ़ी हो गया . जहाँ पहले मेरी अंगुलियाँ एकांत में किसी टेबल , किताब या अन्य किसी सतह पर टैप करती रहती थी वो अंगुलियाँ घंटों पीयानो पर चलने लगी . आराधना सिस्टर ने ही मुझे पीयानो बजाना सिखाया था . मुझे वो बहुत अच्छी लगती थी . जब कभी मै अकेले में बैठी अपने विचारों में डूबी रहती तो वे एक किताब मेरे आगे कर देती . उन्होंने ही मुझमे विश्वास जगाया था तुम जैसी हो , अपने आप को स्वीकार करो . मुझे अपनी ज़िंदगी में ‘कुछ’ करना था .. पर उस कुछ की क्या और कैसे शुरुआत करूँ और कैसे अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाऊँ यह पहेली सुलझ ही नहीं पाती थी .

मेरे अंतर्मुखी स्वभाव के चलते मैं अपने द्वारा बुने कोकुन से बाहर आने की हिम्मत ही नहीं कर पा रही थी । यही नहीं औरों के सामने स्वयं को अभिव्यक्त करना और अपनी बात रखना मेरे लिए लोहे के चने चबाने के बराबर था . इसी कश्मकश में मै स्कूल पूरी कर कॉलेज में आ गई . आगे की पढ़ाई के लिए मुझे बाहर जाना था पर मैं माउंट आबू छोड़कर नहीं जाना चाहती थी . सिस्टर की प्रेरणा से ही ,मैंने कॉरसपॉन्डन्स से ग्रैजूएशन कर लिया और स्कूल में ही लायब्रेरीयन की जॉब करने लगी थी .
आखिर क्यों अमित धोनी की बैटिंग छोड़कर फोन पर बात करने चला गया. इस बात से मेरे मन में शक पैदा होने लगा
इसी दरमियान मेरी मुलाक़ात अमित से हो गई . हमारी स्कूल में कन्सट्रक्शन का काम चल रहा था वह सिविल इन्जिनियर था . इसी सिलसिले में अक्सर उसका हॉस्टल आना होता था . उसने आज तक कसकर बंद किए मेरे दिल के झरोखों को खोलकर उसके एक कोने में अपने लिए कब जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला .

” क्या आप मेरे साथ कॉफ़ी शॉप चलेंगी ?” वीकेंड पर वह अक्सर मुझसे पूछता . उसकी आँखों में मासूम सा अनुनय होता जिसे मैं ठुकरा नहीं पाती थी . हम दोनों एक – दूसरे के साथ होते हुए भी अकेले ही होते क्योंकि उस समय भी मैं ख़ुद में ही सिमटी होती बिल्कूल ख़ामोश .. कभी टेबल पर अंगुली से आड़ी – टेडी लकीरें खींचते हुए तो कभी मेन्यू कार्ड में पढ़ने की असफल कोशिश करते हुए .

“तुम अमित से शादी कर लो ,अच्छा लड़का हैं तुम्हें हमेशा ख़ुश रखेगा .” एक शाम सिस्टर ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा . सारी रात मैं सो नहीं पाई थी . बाहर तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी और एक तूफ़ान सारी रात मेरे मन के भीतर भी घुमड़ता रहा था . मैंने सुबह होते ही अमित को वॉट्सैप कर दिया ,” मैं धीमी , मंथर गति से चलती सिमटी हुई सी नदी के समान हूँ और तुम अलमस्त बहते वो दरिया जिसका अनंत विस्तार हैं . हम दोनों बिलकुल अलग है . तुम मेरे साथ ख़ुश नहीं रह पाओगे . ”

” नदी की तो नियति ही दरिया में मिल जाना है और दरिया का धर्म है नदी को अपने में समाहित कर लेना . बस तुम्हारी हाँ की ज़रूरत है बाक़ी सब मेरे ऊपर छोड़ दो .” तुरंत अमित का मैसेज आया . जैसे वो मेरे मेसिज का ही इंतज़ार कर रहा था . मम्मा पापा को भी इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था . सादगीपूर्ण तरीक़े से हमारी शादी करवा दी गई .

मे के महीने में गरमी और क्रिकेट फ़ीवर अपने शबाब पर थे . अमित सोफ़े पर औंधे लेटे हुए चेन्नई सुपर किंग्स और मुंबई इंडीयंज़ की मैच का मज़ा ले रहे थे . इतने में मोबाइल बजने लगा . रंग में भंग पड़ जाने से अमित ने कुछ झुँझलाते हुए कुशन के नीचे दबा फ़ोन निकाला पर मैंने स्पष्ट रूप से महसूस किया कि स्क्रीन पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए और वह बात करने दूसरे रूम में चला गया . मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इतना ज़रूरी फ़ोन किसका है कि वो धोनी की बैटिंग छोड़कर दूसरे बात करने चला गया वो भी अकेले में .

“ किसका फ़ोन था ?” उसके आते ही मैंने उत्सुकता से पूछा .

“ ऐसे ही .. बिन ज़रूरी फ़ोन था .” संक्षिप्त सा उत्तर दे वो फिर से टीवी में मगन हो गया . मैंने फ़ोन उठाकर रीसेंट कॉल्ज़ लिस्ट देखी , उस पर मनन नाम लिखा हुआ था . स्क्रीन पर कई सारे अन्सीन वॉट्सैप मेसजेज़ भी थे . मैंने वाँट्सैप अकाउंट खोला वो सब मेसजेज़ ‘ पार्टी परिंदे ग्रूप ‘ पर थे . मुझे बड़ा रोचक नाम लगा .

“ अमित ये पार्टी परिंदे क्या है ? “

“ कुछ नही .. हमारा फ़्रेंड्ज़ ग्रूप है जो वीकेंड पर क्लब में मिलते है .”

“ मनन का फ़ोन क्यों आया था ? “

“ मै लास्ट संडे नहीं गया था तो पूछ रहा था कि शाम को आऊँगा की नहीं .”

“ तो तुमने क्या जवाब दिया ?”

“ मैंने मना कर दिया . अब प्लीज़ मुझे मैच देखने दो .”

“ तुमने मना क्यों कर दिया ? तुम मुझे अपने दोस्तों से नहीं मिलवाना चाहते ..”

“ वहाँ सब लोग तेज म्यूज़िक पर डान्स फ़्लोर पर होते हैं .. मुझे लगा तुम्हें ये सब अच्छा नहीं लगेगा . “ इतनी देर में पहली बार अमित ने टीवी पर से नज़रें हटाकर मुझपर टिकाई थी . मैं भावुक हो गई . और मन ही मन सोचने लगी मैं तो आजतक यही सुनती आई हूँ कि शादी के बाद लड़की को अपनी पसंद – नापसंद , शौक़ , अरमान ताक पर रखने पड़ते हैं पर यहाँ तो फ़िज़ाओं का रुख़ बदला हुआ सा था .

“ कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है , और जब इतना क़ीमती तोहफ़ा हो तो जान भी हाज़िर है . एनीथिंग फ़ॉर यू .. जाना ,”कहते हुए उसने मेरी आँखों से ढुलकते आँसूओं को अपनी हथेली में भर लिया .

शाम छः बजे तैयार होकर मैं अमित के सामने खड़ी हो गई . ब्लैक ईव्निंग गाउन में ग्लैमरस लुक में वो मुझे अपलक देखता ही रह गया .

“ मै पूछ सकता हूँ , बेमौसम कहाँ बिजली गिराने का इरादा है ? कहते हुए वह मुझे अपनी बाँहों में भरने लगा तो मैंने हँसते हुए उसे पीछे धकेल दिया .

“ रात को मैं करूँ शर्मिंदा .. मैं हूँ पार्टी परिंदा ..” मैंने अदा से डान्स करते हुए कहा . मेरे इस नए अन्दाज़ से वो बहुत ख़ुश लग रहा था .

राजपूताना क्लब हाउस में बनाव श्रिंगार से तो मैं अमित के दोस्तों से मैच कर रही थी जिसमें कई लड़कियाँ भी थी ,पर मन को कैसे बदलती . वहाँ सब लोग लाउड म्यूज़िक के साथ डान्सिंग फ़्लोर पर थिरक रहे थे . कुछ देर तो मैं भी उन जैसा बनने की कोशिश करती रही . फिर थोड़ी देर बाद खिड़की के पास लगी कुर्सी पर जाकर बैठ गई और अपने स्लिंग की चैन को अपनी अंगुलियों पर घुमाने लगी . उस दिन के बाद मुझे दुबारा उस क्लब में जाने की हिम्मत नहीं कर पाई ना कभी अमित ने मुझे चलने के लिए कहा .

शादी के कुछ दिनों बाद ही अमित की बर्थडे थी . मैं बहुत दिनों से उसकी एक पेंटिंग बनाने में लगी हुई थी । मैंने वह पेंटिंग और एक छोटी सी कविता बना उसके सिरहाने रख दी .सुबह उठकर मै किचन में अमित की पसंद का ब्रेकफ़ास्ट बनाने में जुटी हुई थी .

“ ये पेंटिंग तुमने बनाई है ?” अमित ने पीछे से आकर मुझे बाँहों में भरते हुए पूछा .

“ हाँ .. कोई शक ? “

“ नहीं तुम्हारी क़ाबिलियत पर कोई शक नहीं , पर स्वीटी मुझे लगता है तुम्हारे हाथ ये चाकू नहीं बल्कि पैन और ब्रश पकड़ने के लिए बने है . उसने मेरे हाथ से चाकू लेते हुए कहा .

” मम्मा का फ़ोन आया था वो दो – तीन दिन के लिए मुझे अपने पास बुला रही हैं .” एक दिन उसके ऑफ़िस से आते ही मैंने कहा .

“ मेरी जान के चले जाने से मेरी तो जान ही निकल जाएगी .

” ज़्यादा रोमांटिक होने की ज़रूरत नहीं है . टीवी , लैपटॉप और वेबसिरीज़ .. इतनी सौतन है तो मेरी तुम्हारा दिल लगाने के लिए .” मैंने बनावटी ग़ुस्सा दिखाते हुए कहा .

” ओके! पर प्रॉमिस मी , अपने बर्थ्डे के दिन ज़रूर आ जाओगी . .” उसकी बर्थडे के अगले हफ़्ते ही मेरी बर्थडे थी . शादी के बाद अमित से बिछुड़ने का ये पहला मौक़ा था . किसी ने सही कहा है इंसान की क़ीमत उससे दूर रहकर ही होती है . तीन दिन मम्मा के पास बिता मैं मेरे बर्थडे वाली शाम को वापिस आ गई . मेरे घर पहुँचने से पहले ही अमित मुझे रिसीव करने के लिए बड़ा सा लाल गुलाब का गुलदस्ता लिए लॉन में खड़ा था . मुझे देखते ही मुझे बाँहों में भर लिया और फिर गोदी में उठा मुझे गेस्ट रूम तक लेकर गए . वहाँ का नज़ारा देखकर मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था .. वहाँ होम थीएटर की जगह स्टडी टेबल ने और अमित के मिनी बार की जगह बुक शेल्व्स ने ले ली थी . मैं इन सब बदलावों को छूकर देखने लगी कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही 
अब अमित की पत्नी उसकी भावनाओं को समझ गई थी, उसे खुद की गलती पर पछतावा भी था., कैरियर पर किया फोक्स
“ सरप्राइज़ कैसा लगा ?”

मैं निशब्द थी . समझ नहीं आ रहा था कैसे रीऐक्ट करूँ . जब कभी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में ज़ुबान असक्षम हो जाती है तो आँखें इस काम को बखूबी अंजाम देती है . मेरी आँखें अविरल बहने लगी .

“ तो ये तुम्हारी और मम्मी की मिली भगत थी ना ? बट ऐनीवेज़ …! आई ऐम फ़ीलिंग ब्लेस्ड़ …”

बस उस दिन के बाद मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा . मैंने अपनी कला को अपने जुनून और करीयर में बदल दिया. मैंने हॉबी क्लासेस शुरू कर दी . मेरी शुरुआत दो तीन बच्चों से हुई थी , बढ़ते – बढ़ते यह संख्या सौ के पास आ गई . ख़ाली समय में मैं पैंटिंग्स बनाने लगी और बरसों से घुमड़ती मेरी भावनाओं को शब्दों का रूप देने के लिए मैंने एक किताब लिखनी भी शुरू कर दी .

अगर आज मैं आत्मनिर्भर बन पाई ख़ुद की एक पहचान बना पाई तो उसका पूरा श्रेय अमित को जाता है . नहीं तो मैं ख़ुद अपने अंदर की खूबियों को कभी जान ही नहीं पाती .

हम दोनो नितांत अलग व्यतित्व थे . वह आईफ़ोन टेन की तरह , स्मार्ट और फ़ास्ट जिसका कवरेज एरिया अनंत में फैला था . और मैं नब्बे के दशक का कॉर्डलेस फ़ोन जिसका सिमटा हुआ सा कवरेज एरिया है . मैं स्वयं ही अपनी डिजिटल उपमा पर मुस्कुरा उठी . यह अमित की सौहबत और मौहब्बत का ही तो असर था .

मैं जैसी भी थी उसने मुझे स्वीकार किया . हमेशा मेरी भावनाओं को समझा , ख़ुद को मुझमें ढालने की कोशिश की कभी मुझे बदलने की कोशिश नहीं की . बल्किं मेरी कमियों को मेरी ताक़त बनाया .

हवा के तेज झोंके से विंड चाइम की घंटियों की आवाज़ से मैं विचारों की दुनिया से बाहर लौट आई . एग्ज़िबिशन की सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी . सारी आइटम्स को फ़िनिशिंग टच देने में मुझे समय का पता ही नहीं चला .

शाम घिरने को आई थी और अमित ऑफ़िस से लौटकर आ चुके थे . मैं बहुत खुश थी . उसे देखते ही मैं उसके गले से लग गई .

“ ये सब तुम्हारी वजह से ही मुमकिन हुआ है . तुम्हारे बिना मैं बिलकुल अधूरी हूँ . अब हम अमित और परी नहीं रह गए हैं . एक दूसरे में गुँथ कर ‘अपरिमित’ बन गए हैं .” मैंने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा .

अमित ने अपनी बाँहों के घेरे को थोड़ा ओंर मज़बूत कर लिया . मुझे लग रहा था मैं उसमें , उसके अहसासों में , उसके प्यार में सरोबार हो उसमें समाती चली जा रही हूँ .

किसी ने सच ही तो कहा है ,विवाह की सफलता इसी में है कि शादी के बाद पति – पत्नी एक दूसरे की कमज़ोरियों को परे रख और एक – दूसरे के लिए अपने – अपने कम्फ़र्ट ज़ोन से निकलकर ही तो मैं और तुम से हम बन जाते हैं .
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