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11 घंटे चलकर तय किया 100 किलोमीटर का सफर, अभी जाना है और 600 किमी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. बिहार मधुबनी के रहने वाले लालू, विजय, पंकज, राजा राम अपने 23 साथियों के साथ छह महीने पहले यूपी के हरदोई आए थे। बड़ी उम्मीद के साथ यहां एक फैक्ट्री में काम शुरू किया। जिंदगी हंसी खुशी कट रही थी। लेकिन अब स्थिति बिल्कुल पलट गई। मालिक ने फैक्ट्री से निकाल दिया, खाने को पैसे नहीं। घर वापस  जाए तो जाएं कैसे। कोई मदद करने वाला नहीं। थक हार कर सबने निर्णय लिया यहां से अच्छा है अपनी मिट्टी पर वापस चला जाए। बस और ट्रेन चल नहीं रही। तो साइकिल उठाया और शुरू हो गए 700 लंबे सफर पर। शनिवार दोपहर तक लगातार 11 घंटे चले तो 100 किलोमीटर तक का सफर तय कर चुके थे। तभी 600 किलोमीटर का सफर इन साथियाें का करना है। 

लालू राम बताते हैं गुरुवार शाम फैक्ट्री मालिक ने कह दिया घर चले जाओ। मेरे पास तुम लोगों को देने के लिए पैसे नहीं है। ऐसे में हम लोग क्या करते। कहां जाते। सबने आपस में तय किया कि साइकिल से ही घर वापसी करते हैं। लालू बताते हैं रात में कुछ खाना भी नहीं मिला, बस भूखे प्यासे चले जा रहे हैं। शनिवार दिन में लखनऊ पहुंचे तो यहां खाने को मिला।  

साइकिल पर गृहस्थी लेकर निकली पड़ी रिंकी : 
22मार्च से काम मिलना बंद हो गया। पिछले दो दिनों से पेट भरने का संकट खड़ा हो गया। आने वाले दिनों में स्थिति और बद्दतर हो सकती है। यही सोचकर रिंकी ने साइकिल पर अपनी गृहस्थी बांधी। साइकिल का डंडा न चुभे तो उस पर कपड़ा लपेट कर बेटी को बैठाया और अपनी चाची कल्याणी के साथ छत्तीसगढ़ के लिए पैदल निकल पड़ी। डालीगंज से शहीद पथ तक पहुंचने में उसे तीन घंटे लगे अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ तक का सफर कितना दूभर होगा। रास्ते में डर तो नहीं लगेगा तो वह बोलीं ‘भूख से बड़ा डर नहीं होता। अब निकले हैं तो पहुंच ही जाएंगे।

रिंकी पिछले चार वर्षों से डालीगंज की मलिन बस्ती में झोपड़ी बनाकर रहती थी। उनके साथ डेढ़ साल की बेटी जया और चाची कल्याणी रहती हैं। दोनों सड़क बनाने के काम में मजदूरी करते हैं। रिंकी से पूछा इतना लम्बा सफर कैसे तय करोगी तो बोली ‘पता नहीं। अब निकल पड़े हैं तो पहुंच ही जाएंगे।' रिंकी के सामान में बिस्कुट के कुछ पैकेट, लइया-चना (भूजा) और सत्तू भी। वह बोली यह भी बहुत ज्यादा नहीं है। जब बहुत भूख लगेगी तब खाएंगे। सफर लम्बा है। रास्ते में अगर कोई कुछ दे देगा तो उससे पेट भर लेंगे। गर्भवती संतोषी भी पैदल चल पड़ी: रोज मजदूरी कर पेट भरने वाले कई मजदूर गोमतीनगर के हासेमऊ में झुग्गियां बनाकर रहते थे। पचास मजदूरों का जत्था भी शुक्रवार को की शाम छत्तीसगढ़ के लिए रवाना हुआ। इसमें मीना, बुधिर, ईश्वरी, सरोजनी, रूपरेका, कोमल और संतोषी भी हैं। संतोषी के चार माह का गर्भ है।

शहीद पथ पर इकाना स्टेडियम तक जत्था पहुंचा ही था कि संतोषी को चक्कर आ गया। वह वहीं बैठ गईं। सभी साथी रुक गए। संतोषी के मुंह पर पानी के छींटे मारे। उन्हें पानी पिलाया। संतोषी बताती हैं कि मजदूरी से खर्च चलता था। इसके बाद न किसी ने राशन दिया न भोजन। ऐसे में कितने दिन जिंदा रहते। इससे अच्छा तो छत्तीसगढ़ लौट जाना है। सभी ने फैसला किया और शाम को छत्तीसगढ़ के लिए निकल पड़े।
 
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