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हैप्पी हाइपोक्सिया के शिकार हो रहे कोरोना मरीज, आक्सीजन की कमी ले रही जान

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए जारी गाइड लाइन का उल्लंघन लोगों पर भारी पड़ रहा है। यह पहले से किसी भी संक्रमण से ग्रस्त लोगों के लिए जानलेवा हो रहा है। ऐसे लोग हैप्पी हाइपोक्सिया (शरीर में ऑक्सीजन की कमी) का शिकार हो रहे हैं, लेकिन उन्हें इसका अभास नहीं हो रहा है।
वाराणसी में कोरोना संक्रमितों की संख्या चार हजार के पार पहुंच चुकी है। इसी के साथ संक्रमण से मृत्यु दर में भी इजाफा हुआ है। ऐसे में अस्पताल पहुंचने पर हैप्पी हाइपोक्सिया पीड़ितों को बचाने के लिए डॉक्टर जब तक उपाय कर रहे हैं उनकी सांस थम जा रही है। सीएमओ डॉ. वीबी सिंह ने बताया कि हैप्पी हाइपोक्सिया के कारण कोरोना संक्रमित करीब 20 फीसदी की मौत हुई है।

उन्होंने बताया कि बिना लक्षण वाले कोरोना संक्रमितों में इसका खतरा ज्यादा है। आइएमए के अध्यक्ष डॉ. आलोक भारद्ववाज ने कहा कि हैप्पी हाइपोक्सिया से बचने के लिए लोगों को दिन में तीन बार ऑक्सीमीटर से शरीर में ऑक्सिजन लेबल चेक करना चाहिए। 

क्या होता है हैप्पी हाईपोक्सिया
ये एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर में ऑक्सीजन के पर्याप्त स्तर की आपूर्ति नहीं हो पाती। इस स्थिति को हाइपोक्सिया के रूप में जाना जाता है। ऑक्सीजन की कमी होने से अंग अपना काम सही तरीके से नहीं कर पाते हैं। 

95 से 100 फीसदी होना चाहिए ऑक्सिजन लेबल
स्वस्थ मनुष्य में ऑक्सीजन का स्तर 95 फीसदी होता है लेकिन कोरोना संक्रमण के जो मामले सामने आ रहे हैं उनमें यह स्तर 70 से 80 फीसदी है। कुछ में तो यह 50 फीसदी से भी कम है। डॉक्टर के मुताबिक ऐसे में शरीर में ऑक्सीजन का स्तर घट रहा है और रिएक्शन के तौर पर कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ रहा है। यह स्थिति काफी घातक है। फेफड़ों में सूजन आने पर ऑक्सीजन आसानी से रक्त में नहीं मिल पाती है और यह जानलेवा साबित हो सकता है।

देखने पर बिल्कुल ठीक नजर आते हैं लोग
इस स्थिति से कई लोग ग्रस्त हैं। जब रक्त ऑक्सीजन का स्तर गिरता है, तो शरीर सामान्य रूप से बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर पर प्रतक्रिया करता है जैसे कि सांस की तकलीफ, या यहां तक ​​कि बेहोशी। हालांकि, कोरोना के मरीज़ों में इस स्थिति को देखना चौंकाने वाला भी है और परेशान करने वाला भी। अगर डॉक्टर ब्ल्ड ऑक्सीजन की जांच न करें, तो मरीज़ बिल्कुल ठीक नज़र आता है और ये तब तक पता नहीं चलता जबतक कार्डियेक अरेस्ट न आए। जिससे जान भी जा सकती है।
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