Today Breaking News

कहानी: बेवफाई

प्रेमलता बगैर कुछ बोले तेजी से बरामदे की सीढि़यां चढ़ने लगी और सामने कमरे से निकलती आशा पर नजर पड़ते ही हाथ में पकड़े रिवौल्वर से आशा के सीने में 5-6 गोलियां दाग दीं.
‘‘वैसे तो बाग और घर दोनों ही ठीक हैं, फिर भी अपने सामने धनीराम से पौधों की कटाईछंटाई करवा दूंगी. कारपेट और सोफे वगैरा भी वैक्यूम क्लीनर से साफ करवा देती हूं, पार्टी…’’

दया और नहीं सुन सकी और भागी हुई बगीचे में पानी देते अपने पति धनीराम के पास पहुंच कर बोली, ‘‘आज रविवार वाला धारावाहिक और फिल्म दोनों गए. मैडम के बाग की कटाईछंटाई, फिर वैक्यूम से घर की सफाई और फिर पार्टी का प्रोग्राम है…’’

‘‘तुझे कैसे पता? मैडम तो अभी बाहर आई ही नहीं,’’ धनीराम बोला.

‘‘फोन पर किसी को आज का प्रोग्राम बता रही थीं. तुम कमरे में जा कर जल्दी से नाश्ता कर आओ. एक बार मैडम ने काम शुरू करवा दिया तो पूरा होने के बाद ही सांस लेंगी और लेने देंगी.’’

तभी बंगले के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी.

‘‘ले मिल गई पूरे दिन की छुट्टी. मैडम तो अब सब कुछ भूल कर सारा दिन कमरा बंद कर के प्रेमलता मैडम के साथ ही बतियाएंगी,’’ धनीराम चहकते हुए प्रेमलता के लिए गेट खोलने को लपका.

‘‘आशा कहां है?’’ प्रेमलता ने तेजी से अंदर आते हुए पूछा.

‘‘दया गई है बुलाने. आप बरामदे में बैठेंगी या लौन में?’’

प्रेमलता बगैर कुछ बोले तेजी से बरामदे की सीढि़यां चढ़ने लगी और सामने कमरे से निकलती आशा पर नजर पड़ते ही हाथ में पकड़े रिवौल्वर से आशा के सीने में 5-6 गोलियां दाग दीं और फिर उतनी ही तेजी से अपनी गाड़ी की ओर बढ़ते हुए बोली, ‘‘ड्राइवर, पुलिस स्टेशन चलो.’’

‘‘पुलिस यहीं आ रही है मैडम, मैं ने आप के हाथ में रिवौल्वर देखते ही 100 नंबर पर फोन कर दिया है. आप कहीं नहीं जा सकतीं,’’ हाथ में मोबाइल पकड़े दया का कालेज में पढ़ने वाला बेटा यश प्रेमलता का रास्ता रोक कर खड़ा हो गया.

‘‘ठीक है, पुलिस स्टेशन जाने और शायद फिर वहां से यहां आने से तो यहीं रुकना बेहतर है,’’ कह कर प्रेमलता ने आशा पर झुकी बदहवास सी दया से कहा, ‘‘वह मर चुकी है, उसे मत छूना दया. तुम्हारे हाथ या कपड़ों पर लगा खून देख कर पुलिस तुम्हें भी हिरासत में ले सकती है.’’

‘‘लेकिन मैडम आप ने अपनी बहन सरीखी सहेली को गोली क्यों मार दी?’’ दया ने रुंधे स्वर में पूछा.

‘‘क्योंकि वह बेवफाई पर उतर आई थी,’’ प्रेमलता ने आवेश में कहा और फिर अपनी जीभ काट ली जैसे न बोलने वाली बात कह गई हो.

तभी पुलिस की जीप आ गई. महापौर प्रेमलता को देखते ही जीप से कूद कर उतरे एएसआई ने उसे सलाम किया.

‘‘संडे सैनसेशन की संपादिका आशालता को मैं ने अपने इसी रिवौल्वर से गोली मारी है. ये सब लोग इस के चश्मदीद गवाह हैं. आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए,’’ प्रेमलता ने रिवौल्वर लिए हाथ आगे बढ़ाए.

‘‘आप जैसी हस्ती को गिरफ्तार करने की मेरी औकात नहीं है, मैडम. मैं अपने सीनियर को फोन कर रहा हूं तब तक आप बैठिए,’’ कह एएसआई धनीराम की ओर मुड़ा, ‘‘कुरसी लाओ मैडम के लिए.’’

‘‘अपने सीनियर के बजाय सीधे एसएसपी अशोक का नंबर मिला कर मुझे दीजिए, मैं स्वयं उन से बात करती हूं,’’ प्रेमलता बोली.

एएसआई ने तुरंत नंबर मिला कर मोबाइल उसे पकड़ा दिया.

‘‘चौंकिए मत अशोक साहब. आप ने ठीक सुना है कि मैं ने आशालता का खून कर दिया है और मैं आत्मसमर्पण कर रही हूं… वजह बताने को मैं बाध्य नहीं हूं… व्यक्तिगत तो है ही… जानती हूं नगर निगम की महापौर ने जानीमानी संपादिका की हत्या की है, हंगामा तो होगा ही. खैर, आप अपने लोगों को कार्यवाही तेज करने को कहिए.’’

इस बीच यश ने आशा की सहायिका स्नेहा को फोन कर दिया था. शीघ्र ही लौन स्नेहा और

उस के सहयोगियों से भरने लगा. चूंकि दया, धनीराम और यश स्नेहा से पूर्वपरिचित थे उन्होंने फोन पर कही आशा की बात, प्रेमलता का आना, गोली मारना और कहना कि वह बेवफाई पर उतर आई थी सभी बातें स्नेहा को बताईं. सिवा उन्हें लाश के पास न जाने देने के एएसआई और कुछ नहीं कर सका. स्नेहा को एक सहयोगी से यह कहते सुन कर कि बेवफाई तो यही हो सकती है कि आशा मैडम प्रेमलता का कोई राज सार्वजनिक करने पर तुली हुई हों, एएसआई ने तुरंत यह बात अपने सीनियर को बताई और उस ने अपने सीनियर को.

प्रेमलता सब से अलग लौन में बैठी थी. उस के सपाट चेहरे पर अगर कोई भाव था तो झुंझलाहट का, क्षोभ या शोक का तो कतई नहीं.

‘‘मैं ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है और अब मैं किसी बात का कोई जवाब नहीं दूंगी स्नेहा, मेरे साथ समय बरबाद करने के बजाय तुम आशा के परिजनों को सूचित कर दो. अगर दिलीप का दुबई का नंबर तुम्हारे पास नहीं है तो मैं बता देती हूं,’’ प्रेमलता ने कहा.

‘‘बोलिए,’’ स्नेहा ने अपना मोबाइल चालू किया.

स्नेहा अभी फोन पर बात कर ही रही थी कि कुछ पुलिस अधिकारी आ गए. इंस्पैक्टर को अपने सहायक को यह कहते सुन कर कि उस नंबर का पता लगाओ जिस पर मरने से कुछ देर पहले आशा बात कर रही थी…

स्नेहा बीच में बोल पड़ी, ‘‘आशाजी दुबई में अपने पति दिलीप से बात कर रही थीं. ऐसा दिलीप सर ने मुझे बताया है और कहा है कि वह जैसे भी होगा शाम से पहले पहुंच जाएंगे.’’

‘‘और शाम को कौन सी पार्टी है?’’

‘‘मुझे तो नहीं पता, लेकिन प्रेमलता मैडम को जरूर मालूम होगा,’’ दया बोली.

प्रेमलता ने इनकार में सिर हिलाया.

‘‘मुझे तो न्योता नहीं मिला और अब जब पार्टी होगी ही नहीं तो क्यों थी या किस के लिए थी इस से अब क्या फर्क पड़ता है?’’

‘‘बहुत फर्क पड़ता है,’’ एसएसपी अशोक की आवाज पर प्रेमलता चौंक पड़ी.

‘‘चलिए, मान भी लिया कि आप ने ‘वह बेवफाई पर उतर आई थी’ जैसा कुछ नहीं कहा था, केवल किसी व्यक्तिगत कारण से हत्या की है कहने से भी काम नहीं चलेगा. हमें तो उस व्यक्तिगत कारण का पता लगा कर सरकार और जनता को सच बताना पड़ेगा. वैसे भी ऐसे हाई प्रोफाइल केस की जांच सीआईडी ही करती है. इसलिए मैं ने सीआईडी कमिश्नर को फोन कर दिया है, क्योंकि आप से कुछ कुबूल करवाने की काबिलीयत मुझ में नहीं है.’’

‘‘लेकिन सीआईडी के हाथों जलील करवाने की तो है ही,’’ प्रेमलता मुसकराई.

‘‘खैर, परवाह नहीं. अब जब नाम वाले हैं तो बदनाम भी जोरशोर से ही होंगे.’’

‘‘अगर अपनी इस बदनामी की वजह मुझे बता देतीं तो मेरा भी नाम हो जाता,’’ अशोक ने उसांस ले कर कहा.

प्रेमलता विद्रूप हंसी हंसी, ‘‘ब्रेफिक्र रहो अशोक, अगर तुम्हें नहीं तो तुम्हारे सीआईडी वालों को भी शोहरत नहीं दिलवाऊंगी.’’

तभी सीआईडी के कमिश्नर की गाड़ी आ गई. स्नेहा ने सभी मीडिया कर्मियों को उन्हें घेरने से रोका. दोनों उच्चाधिकारी आपस में बात कर रहे थे कि इंस्पैक्टर देव अपने सहायक वासुदेव के साथ आ गया. अशोक उसे देख कर चौंके.

‘‘ऐसे पेचीदा केस देव ही सुलझा सकता है अशोक. सो मैं ने तुरंत इसे बुलाना बेहतर समझा,’’ स्नेहा बोली.

‘‘राई का पहाड़ बनाने का शौक है आप लोगों को. 3 चश्मदीद गवाह हैं, रिवौल्वर और मेरा आत्मसमर्पण मिल तो गया है मुझ पर मुकदमा चलाने को… अब इस में पेचीदगी ढूंढ़ने के लिए अपने खास जासूस को लगाने की क्या जरूरत है?’’ प्रेमलता ने पूछा फिर आगे बोली, ‘‘वैसे एक बात बता दूं इंस्पैक्टर देव, मुझे जो कहना था कह दिया. इस से ज्यादा मुझ से तुम कुछ नहीं उगलवा पाओगे.’’

‘‘इंस्पैक्टर देव अपराधी से पूछताछ के बजाय उस से जुड़ी अन्य चीजों की सीढ़ी बना कर सफलता के शिखर पर पहुंचने के लिए जाने जाते हैं,’’ स्नेहा ने कहा.

इंस्पैक्टर देव ने चौंक कर उस की ओर देखा. लंबी, पतली, सांवलीसलोनी खोजी पत्रकार स्नेहा. हमेशा सीआईडी पर कटाक्ष करने वाली स्नेहा आज उस के पक्ष में बोल रही थी.

‘‘दिलीप की अनुपस्थिति में आशा की सब से करीबी तुम ही हो स्नेहा तो तुम्हीं से पूछताछ करनी पड़ेगी,’’ अशोक ने कहा, ‘‘आशा मेरी बीवी की फ्रैंड थी. सो उस के करीबी लोगों के बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूं.’’

‘‘तब तो आप से भी पूछताछ करनी पड़ेगी सर,’’ देव बोला.

‘‘जरूर देव, कभी कहीं भी.’’

‘‘यह सब कर के तुम अपने दोस्त दिलीप को और भी दुखी करोगे अशोक,’’ प्रेमलता ने चुनौती भरे स्वर में कहा.

‘‘उस की जिंदगी का सब से बड़ा दुख तो तुम उसे दे ही चुकी हो. अब हमारे छोटेमोटे झटकों से क्या फर्क पड़ेगा उसे,’’ अशोक देव की ओर मुड़े, ‘‘तो अब तुम संभालो देव, हम चलते हैं. अपनी सहायिका स्नेहा की आशा बहुत तारीफ किया करती थी. निजी तौर पर स्नेहा उस के कितने करीब थी, मैं नहीं जानता पर आशा की इस अप्रत्याशित मृत्यु का रहस्य खोजने में स्नेहा से तुम्हें बहुत सहयोग मिलेगा. दया और धनीराम भी आशा के पास कई सालों से हैं, उन से भी मदद मिल सकती है. बैस्ट औफ लक देव.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ देव ने सैल्यूट मारा.

सब के जाने के बाद देव स्नेहा की ओर मुड़ा. वह कुछ लोगों को निर्देश दे रही थी.

‘‘यह हमारे औफिस का स्टाफ है औफिसर, इन सब को औफिस जाने दूं या आप इन से कुछ पूछना चाहेंगे,’’ स्नेहा ने पूछा, ‘‘वैसे तो आज छुट्टी है, लेकिन कुछ लोग आज भी काम पर हैं.’’

‘‘आप की इस टिप्पणी के बाद कि आशा प्रेमलता का कोई राज फाश करने जा रही थीं, हमें आशाजी के औफिस के सभी कागजात चैक करने होंगे और सब से पूछताछ भी…’’

‘‘इस सब के लिए तो मैडम का लैपटौप और आई पैड चैक करना ही काफी होगा,’’ स्नेहा ने बात काटी, ‘‘ये दोनों तो घर पर ही मिल जाएंगे. इस मामले में जब सहायक संपादिका यानी मुझे ही कुछ मालूम नहीं है तो स्टाफ के जानने का सवाल ही नहीं उठता.’’

‘‘ठीक है, अभी इन लोगों को औफिस जाने दीजिए. जो पूछना होगा हम वहीं आ कर पूछेंगे. आप आशाजी का लैपटौप और आई पैड कहां रखा होगा जानती हैं?’’

‘‘मैं जानता हूं,’’ यश ने आगे आ कर कहा, ‘‘मैडम की स्टडी यानी औफिसरूम में. आप वहीं चलिए सर, आप को वहां बैठ कर अपना काम यानी हम सब से पूछताछ वगैरा करने में आसानी होगी.’’

‘‘यहां हमें क्या करना चाहिए यह दूसरों को हम से ज्यादा मालूम है,’’ देव ने वासुदेव ने कहा. अपने स्टाफ को भेज कर स्नेहा भी उन के पीछे स्टडीरूम में आ गई.

‘‘मुझे मैडम के पासवर्ड मालूम हैं, क्योंकि कई बार किसी अन्य कार्य में व्यस्त होने पर वे मुझे अपने लैपटौप या आई पैड से कोई फाइल देखने को कहती थीं.’’

‘‘ठीक है, आप देखिए इस विषय में कुछ मिलता है,’’ देव ने कहा, ‘‘तब तक मैं दया के परिवार से पूछताछ करता हूं.’’

‘‘मैडम के भाईबहन वगैरा को हम ने फोन कर दिया है,’’ दया ने बगैर पूछे कहा, ‘‘ससुराल वालों के नंबर हमें मालूम नहीं हैं.’’

‘‘मैडम के मांबाप नहीं हैं?’’

‘‘नहीं, न ही सासससुर यहां हैं. ससुर हैं. वे अपने दूसरे बेटे के पास रहते हैं. उन का नंबर हमें मालूम नहीं है.’’

‘‘और क्या जानती हो मैडम के बारे में?’’

‘‘यही कि अखबार में काम करती थीं. साहब दुबई में काम करते हैं, महीने 2 महीने में आते थे… कभी मैडम भी चली जाती थीं. बड़े अच्छे…’’

‘‘प्रेमलता के बारे में जो भी जानती हो विस्तार से बताओ?’’

दया के चेहरे पर क्रोध और घृणा के भाव उभरे. बोली, ‘‘बस इतना ही जानते हैं

कि वे मैडम की बचपन की सहेली थीं. बावरी सी हो जाती थीं मैडम इन्हें देखते ही. जिस छुट्टी के रोज प्रेमलता अचानक दिन में आ जाती थीं, तब चाहे कितना भी काम पड़ा हो उन के आते ही मैडम हमें अपने कमरे में जाने को कह देती थीं यह कह कर कि जब तक न पुकारें आना मत.’’

‘‘प्रेमलता अकसर आती थीं?’’

‘‘हां, रात को भी यहीं रुकती थीं. मैडम भी जाती थीं उन के घर. औफिस से फोन कर के कह देती थीं कि आज प्रेम के घर जा रही हूं. सुबह आऊंगी. दोनों ही नौकरी करती थीं. सो दिन में तो फुरसत होती नहीं थी.’’

ये भी पढे़ं- Serial Story: नया अध्याय (भाग-3)

‘‘साहब की दोस्ती भी थी प्रेमलता से?’’

‘‘पता नहीं. उन के आने पर तो जब कोई दावत होती थी तभी आती थीं वह और दावत में तो साहब सब से ही हंस कर बात करते हैं.’’

‘‘साहब और मैडम में कभी झगड़ा हुआ प्रेमलता का नाम ले कर?’’

‘‘हमारे साहब व मैडम में कभी झगड़ा नहीं होता था साहब.’’

‘‘माफ करिएगा इंस्पैक्टर, आशा मैडम और दिलीप सर जैसे संभ्रांत दंपती नौकरों के सामने नहीं झगड़ते,’’ स्नेहा बोली, ‘‘और फिर उन के झगड़े का प्रेमलता की हत्या करने से क्या संबंध?’’

‘‘मेरे हर सवाल का संबंध हत्या के कारण से है. आप कहिए. आप को मिला कुछ?’’ देव ने पूछा.

‘‘प्रेमलता के बारे में कुछ नहीं, न ही ऐसा कुछ जिस के बारे में मुझे न मालूम हो.’’

‘‘इस में मैडम की व्यक्तिगत फाइलें भी तो हो सकती हैं?’’

‘‘अगर मैं कहूंगी कि लगता तो नहीं, तब भी आप अपनी शिनाख्त तो करेंगे ही सो कर लीजिए,’’ स्नेहा मुसकराई, ‘‘वैसे मैडम के लैपटौप से ज्यादा प्रेमलता का लैपटौप और ड्राइवर वगैरा इस तहकीकात में मदद कर सकते हैं आप की.’’

देव मुसकराया, ‘‘यहां आने से पहले ही मैं ने अपने सहायक वसंत को प्रेमलता के बंगले पर भेज दिया था और कमिश्नर साहब प्रेमलता के स्टाफ को बुलवा कर उस का औफिस खुलवाने की व्यवस्था करवा रहे हैं. आप ने भी सुना होगा, प्रेमलता ने जातेजाते अपने ड्राइवर को यहां रुकने और पुलिस से सहयोग करने को कहा था. अभी लेंगे उस का सहयोग.’’

तभी स्नेहा का मोबाइल बजा, ‘‘ओके सर… बौडी तो पोस्टमार्टम के लिए ले गए… पुलिस पूछताछ कर रही है. प्रेमलता फिलहाल तो सहयोग नहीं कर रही,’’ मोबाइल बंद कर के स्नेहा ने देव की ओर देखा, ‘‘दिलीप सर का फोन था. वे प्लेन में बैठ चुके हैं और 2 बजे तक पहुंच जाएंगे. मैं एअरपोर्ट जाऊंगी उन्हें लाने.’’

‘‘मेरा विभाग पासपोर्ट, कस्टम और सामान लाने की औपचारिकताएं संभाल लेगा. दिलीप को हम प्लेन से निकलते ही अपने साथ ले आएंगे,’’ देव ने कहा, ‘‘बेहतर होगा आप हमारे साथ चलें.’’

स्नेहा ने सीधे उस की आंखों में देखा, ‘‘आप को दिलीप सर पर शक है?’’

‘‘फिलहाल तो नहीं,’’ देव ने बगैर पलकें झुकाए कहा, ‘‘वैसे शक आप कर रही हैं मेरी सहृदयता पर… एक शोकाकुल व्यक्ति की सहायता कर रहा हूं मानवता के नाते.’’

‘‘ओह सो नाइस औफ यू… रास्ते में पूछताछ नहीं करेंगे?’’ स्वर में व्यंग्य था या जिज्ञासा, देव समझ नहीं सका.

‘‘पहले आप दोनों को बात करने दूंगा. फिर मौका देख कर सवाल करूंगा, क्योंकि बगैर सवाल किए तो इस हत्या की वजह पता चलने से रही और जिस के पास इस सवाल का जवाब है वह जवाब देने से रही. सो यहांवहां सवाल कर के ही अटकल लगानी होगी, मुझे भी और आप को भी,’’ देव ने कहा और फिर स्नेहा को भृकुटियां चढ़ाते देख कर जल्दी से बोला, ‘‘वजह की तलाश तो मेरे से ज्यादा आप को है, क्योंकि आशाजी आप की…’’

‘‘आशाजी मेरी बौस ही नहीं, मेरी बड़ी बहन की तरह भी थीं,’’ स्नेहा ने रुंधे स्वर में बात काटी, ‘‘बड़े प्यार से या यह कहिए बड़े मनोयोग से संवार रही थीं मेरा कैरियर. उन जैसी सहृदया, शालीन महिला की हत्या क्यों हुई और वह भी उन की प्रिय सखी के हाथों, यह जानने को मैं वाकई में बेचैन हूं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं. अच्छा, यह बताइए प्रेमलता आप के औफिस में भी आया करती थीं?’’

‘‘कभीकभार. या फिर उस सार्वजनिक छुट्टी को जब उन की तो छुट्टी रहती थी, लेकिन हमारा औफिस खुला रहता था. तब वे दोपहर को मैडम को लेने आती थीं. स्विमिंग या किसी रिजोर्ट वगैरा में ले जाने को, बिलकुल किसी स्नेहिल बहन या अभिन्न सहेली की तरह और आज उसी सहेली ने बेबात उन का खून कर दिया,’’ स्नेहा का स्वर फिर रुंध गया.

देव ने कुछ देर उसे संयत होने का समय दिया. फिर बोला, ‘‘वही बात तो हमें तलाश करनी है. प्रेमलता कोई कमसिन किशोरी तो है नहीं जो किसी बात पर चिढ़ कर भावावेश में आ कर किसी का खून कर दे.’’

‘‘खून तो भावावेश में आ कर नहीं सोचसमझ कर किया है इंस्पैक्टर. तभी तो वह रिवौल्वर ले कर आई थी. आप के सहायक ने मैडम के कौल रिकौर्ड चैक कर के बताया तो है कि कल रात मैडम ने देर तक प्रेमलता से बात की थी. आप ने भी गौर किया होगा प्रेमलता की आंखें चढ़ी हुई थीं जैसे रात भर जागी हो. ऐसा क्या कहा होगा मैडम ने जिस के कारण न प्रेमलता रात भर सो सकी और न आशा मैडम को आज का दिन देखने दिया,’’ स्नेहा सिसक पड़ी.

‘‘वही तो हमें पता लगाना है स्नेहाजी. अगर आप ऐसे विह्वल होंगी तो कैसे चलेगा,’’ वासुदेव ने कहा और फिर स्नेहा का ध्यान बंटाने को जोड़ा, ‘‘वैसे अच्छा है कि आप ने खोजी पत्रकार बनना पसंद किया हमारे विभाग में आना नहीं, वरना हम जैसों की तो खटिया ही खड़ी कर देनी थी आप ने.’’

देव हंसा, ‘‘बखिया तो हमारे विभाग की अभी भी उधेड़ती रहती हैं. लेकिन इस बार प्रेमलता की असलियत उधेड़ने में मुझे वाकई में आप की मदद चाहिए. चलिए, आशाजी के बैडरूम को देखते हैं, शायद कुछ मिल जाए.’’

‘‘जब आप खुद ही शायद कह रहे हैं तो फिर दिलीप सर के आने तक रुक जाइए. ऐसे मैडम के बैडरूम में जाना और वह भी उन के न रहने के बाद अच्छा नहीं लग रहा. आप चाहें तो बैडरूम सील कर दें,’’ स्नेहा हिचकिचाई, ‘‘मैं प्रेमलता का घर देखना चाहूंगी.’’

‘‘चलिए. वासुदेव, तुम खयाल रखना कोई किसी चीज से छेड़छाड़ न करे. अगर कोई खास फोन हो तो मुझे बता देना,’’ कह देव उठ खड़ा हुआ, ‘‘बजाय इस के कि आप पुलिस की गाड़ी में चलें, मैं आप के साथ आप की गाड़ी में चलता हूं. फिर उसी में एअरपोर्ट चले जाएंगे.’’

प्रेमलता के सरकारी बंगले पर वसंत एक औफिसनुमा कमरे में बैठा कंप्यूटर चैक कर रहा था.

‘‘कुछ मिला क्या?’’ देव ने पूछा.

ये भी पढें- लिव टुगैदर का मायाजाल: आखिर हर सुख से क्यों वंचित थी सपना?

वसंत ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘रूटीन औफिस फाइलें सर. ऐसा कुछ नहीं जिस पर उंगली उठाई जा सके. लेकिन आई पैड में कविताएं भरी पड़ी हैं, शायद रोज ही एक कविता लिखती थीं महापौर…’’

‘‘कहीं उन्हीं कविताओं को छपवाने को ले कर तो झगड़ा नहीं हुआ था दोनों में स्नेहाजी?’’ देव ने वसंत की बात काटी.

‘‘संडे सैनसेशन में कहानियां और कविताएं न छापना मैनेजमैंट की पौलिसी है, जिस में मैडम कोई बदलाव नहीं कर सकती थीं,’’ स्नेहा ने वसंत के कंधे पर झुक कर आई पैड स्क्रीन को देखा, ‘‘और फिर ये कविताएं तो हिंदी में हैं. संडे सैनसेशन में छापने का सवाल ही नहीं उठता? मैं इन्हें पढ़ सकती हूं?’’

‘‘जरूर,’’ वसंत ने आई पैड पकड़ाते हुए कहा, ‘‘प्राय: सभी कविताएं ‘मेरी उम्मीद’ या ‘मेरी उम्मीद की किरण’ को संबोधित हैं. बहुत अच्छी कवयित्री बन सकतीं थीं महापौर अगर उन्होंने उम्मीद को छोड़ कर कोई और विषय भी चुना होता.’’

‘‘लय और छंद का तालमेल बहुत बढि़या है, मेरी जिंदगी है उम्मीद मेरी बंदगी है उम्मीद…’’

‘‘हम यहां कविता पाठ करने नहीं, तहकीकात करने आए हैं,’’ देव ने टोका, ‘‘लगता है वसंत, तुम ने भी अभी तक कविताओं का रसास्वादन ही किया है?’’

‘‘आप ने ही आई पैड चैक करने को कहा था, तो उस में तो कविताएं ही हैं. टेबल टौप में पुरानी रूटीन फाइलें हैं और लैपटौप पर भी औफिस की कोई गोपनीय सूचना नहीं है. प्रेमलता का बैडरूम लौक्ड है. दूसरे कमरों में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है.’’

‘‘मास्टर की से बैडरूम खोल लो,’’ देव ने कहा, ‘‘स्नेहाजी, चलिए पहले बैडरूम देखते हैं.’’

बैडरूम में घुसते ही सब चौंक पड़े।।।।
प्रेमलता द्वारा अपनी सब से करीबी सहेली आशा की हत्या की वजह जब सामने आई तो लोग अवाक रह गए. आखिर क्या थी इस हत्या की वजह.

सामने की दीवार पर आशा का बहुत बड़ा आकर्षक चित्र लगा था. बैडरूम की साइड टेबल पर दोनों सहेलियों की कालेज के दिनों की एकदूसरे के गले में बांहें डाले खड़ी तसवीर थी.

‘‘प्रेमलता की अलमारियां खोलने के लिए तो आप महिला कांस्टेबल की मौजूदगी चाहेंगी?’’ देव ने स्नेहा की ओर देखा.

‘‘जी हां, जब तक महिला कांस्टेबल आए तब तक मैं प्रेमलता का फेसबुक अकाउंट चैक कर के, उन की और आशा मैडम की किसी कालेज फ्रैंड से संपर्क करना चाहूंगी.’’

देव ने सराहना से उस की ओर देखा.

‘‘ठीक है. मैं नौकरों से पूछताछ कर रहा हूं, आप भी सुनना चाहेंगी?’’

‘‘यहां भी वही दया वाले जवाब होंगे. असलियत जानने के लिए तो कोई कौमन फ्रैंड ही खोजनी होगी,’’ कह कर स्नेहा आई पैड पर फेसबुक खोलने लगी.

स्नेहा का कहना ठीक था, प्रेमलता की नौकरानी भगवती ने भी वही कहा जो दया ने कहा था.

‘‘हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि बीबीजी आशा बीबी की जान लेंगी. वे तो जान छिड़कती थी उन पर. रात को जब तक आशा बीबी का फोन नहीं आ जाता था कि वे घर आ गई हैं, बीबीजी खाना नहीं खाती थीं. सोने से पहले भी फोन पर दोनों घंटों बतियाती थीं और करतीं भी क्या साहब, दोनों ही तो अकेली थीं. हमारी बीबीजी ने तो ओहदे के चक्कर में शादी नहीं की और आशा बीबी कर के भी ओहदे के पीछे पति के साथ न गईं. दिन तो काम में कट जाता था पर रात एकदूसरे से बतिया कर कटती थी.’’

‘‘यह तुम्हें कैसे पता?’’ देव ने पूछा.

‘‘कई बार देखा, कभी पानी की बोतल रखना भूलने पर कमरे में जाना पड़ता था या दूध के पैसे मांगने या और कोई जरूरी बात पूछने तो बीबीजी कान पर फोन लगाए होती थीं और कहती थीं कि एक पल रुक आशी फिर जल्दी से हमें निबटा कर बतियाने लगती थीं.’’

‘‘फेसबुक या लिंक्डइन में मैडम का अकाउंट नहीं है और न ही मैडम के मोबाइल पर रूपम का नंबर है,’’ स्नेहा मायूसी से बोली.

‘‘यह रूपम कौन है?’’

‘‘1 सप्ताह पहले मैं मैडम के साथ इंटरनैशनल बुक फेयर में गई थी. वहां मैडम को एक पुरानी सहपाठिन रूपम मिली थीं. उन के पति प्रणव कुछ रोज पहले ही किसी कंपनी के वाइस प्रैसिडैंट बन कर यहां आए हैं. रूपम से मिलना बहुत जरूरी है, लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा कि उन्होंने अपने पति की कंपनी का क्या नाम बताया था.’’

‘‘वसंत, तुरंत पता लगाओ कि किस कंपनी में प्रणव नाम का नया वाइस प्रैसिडैंट आया है और कहां रहता है?’’ देव ने स्नेहा की बात काट कर वसंत को आदेश दिया, ‘‘रूपम का पता तो आप को मिल जाएगा, लेकिन उन से मिलने के चक्कर में आप एअरपोर्ट जाना तो नहीं टालेंगी?’’

‘‘वह कैसे टाल सकती हूं, सर ने कहा है मुझे आने को. फोन नंबर मिल जाए तो रूपम से मिलने का समय ले लूंगी. मुझे लगता है उन से जरूर कुछ मदद मिलेगी.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह मैडम को प्रेमलता का नाम ले कर छेड़ रही थीं. हो सकता है उन्हें उस रिश्ते के बारे में मालूम हो जिस पर हम शक कर रहे हैं,’’ कहते हुए स्नेहा सकपका गई. देव भी झिझका.

‘‘अगर रूपम हमारे शक की पुष्टि कर देती हैं तो फिर तो यह मामला कुछ हद तक सुलझ जाएगा, लेकिन अभी दिलीप से इस बारे में कुछ पूछना जल्दबाजी होगी.’’

‘‘जी हां, क्योंकि दया के अनुसार तो प्रेमलता दिलीप सर की उपस्थिति में उन के घर नहीं आती थी.’’

तभी महिला कांस्टेबल रैचेल आ गई.

अलमारियों में कपड़ों के अलावा कुछ जेवर थे, कुछ हजार रुपए, चैकबुक और कुछ अन्य दस्तावेज. लेकिन कुछ भी संदिग्ध नहीं था सिवा महंगे विदेशी इत्र और पारदर्शी नाइटियों के.

‘‘हर हसबैंड हैज स्पैंट ए फौरच्युन औन दीज,’’ रैचेल कहे बगैर न रह सकी.

‘‘शी इज अनमैरिड, ए स्पिनिस्टर टू बी ऐग्जैक्ट,’’ स्नेहा के कड़वे व्यंग्य पर देव ने मुश्किल से हंसी रोकी.

‘‘कविताओं से तो नहीं लगता कि महापौर अवसादग्रस्त थीं या किसी मानसिक विकृति का शिकार, लेकिन उन्होंने जो कुछ भी किया है किसी मानसिक व्याधि के कारण ही किया है,’’ देव बोला, ‘‘उन की दवाओं की अलमारी की बारीकी से छानबीन करनी होगी.’’

अलमारी में मामूली खांसीजुकाम, आंखों की दवा और विटामिन की गोलियों के अलावा कुछ नहीं था. तभी वसंत ने बताया कि प्रणव एक विदेशी बैंक का वाइस प्रैसिडैंट है और गोल्फ लिंक्स में बैंक के गैस्ट हाउस में रह रहा है.

‘‘गैस्ट हाउस में तो बगैर फोन किए यानी अपौइंटमैंट लिए भी जा सकती हूं,’’ स्नेहा बोली.

‘‘मगर अभी तो आप एअरपोर्ट चलिए. प्लेन लैंड करने वाला होगा,’’ देव ने कहा और फिर स्नेहा को पार्किंग में रुकने को कह देव अंदर चला गया. फिर कुछ देर बात ही अस्तव्यस्त से व्यथित दिलीप के साथ आ गया. स्नेहा गाड़ी से उतर कर दिलीप के पास गई. उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे. बस इतना ही पूछा, ‘‘आप का सामान सर?’’

‘‘सामान मेरे आदमी घर पर ले आएंगे स्नेहाजी, गाड़ी मैं चलाऊंगा, आप पीछे दिलीपजी के साथ बैठ कर बातें करिए,’’ देव ने कहा, ‘‘बेफिक्र रहिए, तेज चला कर आप की गाड़ी कहीं ठोकूंगा नहीं.’’

‘‘गाड़ी मेरी अपनी नहीं औफिस की है. अब गाड़ी तो क्या, शायद नौकरी भी नहीं रहेगी,’’ स्नेहा का स्वर रुंध गया.

‘‘आशा ने तुम्हें बताया नहीं था कि तुम्हारा नाम आशा की गैरहाजिरी में ऐसोसिएट ऐडिटर के लिए मंजूर हो गया है?’’ दिलीप ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैडम कहीं जाने वाली थीं?’’ स्नेहा ने चौंक कर पूछा.

‘‘मेरे पास दुबई आ रही थी. मैं ने टूअरिंग जौब के बजाय दुबई में डैस्क जौब ले ली है और आशा को वहां भी ऐडिटर की…’’

‘‘ओह आई सी,’’ देव ने बात काटी, ‘‘तो आज शाम पार्टी इसी खुशी में थी?’’

‘‘कैसी पार्टी इंस्पैक्टर?’’ दिलीप ने चौंक कर पूछा. स्नेहा ने दया की कही हुई बात दोहरा दी.

दिलीप ने एक उसांस ली, ‘‘दावत वाली पार्टी नहीं थी. जिस एजेंट ने मुझे दुबई में घर दिलवाया था वही हमें यहां के घर के लिए भी किराएदार दिलवा रहा था. उसी पार्टी को घर दिखाने की बात मैं और आशा कर रहे थे. आशा का पोस्टमार्टम तो हो चुका होगा, इंस्पैक्टर? चलिए, बौडी को ले कर ही घर चलेंगे.’’

‘‘दाहसंस्कार आज ही कर देंगे?’’

‘‘कल सब के आने पर. बौडी आज घर पर ही रखूंगा.’’

‘‘आप प्रेमलता से मिलना चाहेंगे?’’

‘‘क्या फायदा? उस से तो जो उगलवाना है आप ही उगलवाएंगे.’’

‘‘आप की उस से दोस्ती थी?’’

‘‘हालांकि आशा और प्रेम बचपन की सहेलियां थीं, लेकिन उन्होंने अपनी दोस्ती मुझ पर कभी नहीं थोपी यानी आशा न तो प्रेम को जबतब घर बुलाती थी और न ही मुझे उस के घर चलने को कहती थी. वह एक निहायत सौम्य, शालीन महिला हैं, मेरे साथ उन का व्यवहार अपने पद की गरिमा और मर्यादा के अनुकूल था. उस ने आशा की हत्या क्यों की यह मेरी समझ से बाहर है.’’

‘‘दया के अनुसार प्रेमलता अकसर रात को आप के यहां रहती थी और आशाजी उस के. दोनों रोज देर रात तक फोन पर भी बातें भी करती थीं.’’

‘‘मुझे मालूम है आशा अकसर बताती थी कि आज प्रेम आ रही है या वह प्रेम के घर जा रही है. दिन में तो दोनों व्यस्त रहती थीं, रात को ही मिल या बात कर सकती थीं,’’ दिलीप ने कहा और फिर कुछ सोच कर जोड़ा, ‘‘वैसे आशा अकेले रहतेरहते परेशान हो चुकी थी. उसी के कहने पर मैं ने फील्ड जौब छोड़ कर डैस्क जौब ली है. वह अब बच्चा चाहती थी यानी भरीपूरी गृहस्थी.’’

‘‘प्रेमलता ने शादी क्यों नहीं की यह कभी पूछा नहीं आप ने?’’

‘‘प्रेम का अफेयर है किसी ऐसे के साथ जिस से शादी नहीं कर सकती. इस से ज्यादा मुझे नहीं मालूम, क्योंकि आशा के साथ जो भी समय मिलता था उसे मैं दूसरों के बारे में बात करने में नहीं गंवाता था.’’

‘‘यह जो प्रेमलता ने बेवफाई वाली बात कही है उस से आप को भी लगता है कि आशाजी प्रेमलता की कोई गोपनीय बात प्रकाशित करने जा रही थीं?’’

ये भी पढें- वे तीन शब्द: क्या आदित्य आरोही को अपना हमसफर बना पाया?

‘‘यह तो स्नेहा या प्रेमलता के औफिस वाले बेहतर बता सकते हैं. एक बात बता दूं, आशा किसी बात को ले कर परेशान नहीं थी और न ही प्रेमलता से डर कर यहां से भाग रही थी. वह तो चाहती थी कि मैं यहीं वापस आ कर कोई बिजनैस करूं. अभी भी इसी शर्त पर मानी थी कि चंद वर्ष विदेश में पैसा कमा कर फिर यहां आ कर कोई काम करेंगे.’’
अगले रोज जब मीडिया आशा के अंतिम संस्कार की कवरेज में व्यस्त था, देव और स्नेहा रूपम को एक अस्पताल के वीआईपी ब्लौक में ले गए.

आशा की बौडी लेने जब दिलीप अंदर गया तो देव ने स्नेहा से कहा, ‘‘इस ने तो मामला और भी उलझा दिया है.’’

‘‘आप को नहीं लगता कि प्रेमलता ने आशा के अपने पति के पास जाने के फैसले को खुद से बेवफाई समझा था?’’

देव चौंक पड़ा, ‘‘यह तो तभी हो सकता है जब हमारा शक उन दोनों के रिश्तों के बारे में सही हो और दिलीप की यह बात सुन कर कि आशा अब बच्चा चाहती थी हमारा शक तो बेबुनियाद लगता है.’’

‘‘हो सकता है आशा हैट्रो सैक्सुअल हो. हालां मेरा दिलीप सर के साथ रहना जरूरी है, लेकिन उस से भी जरूरी है रूपम से मिलना और वह भी उस के पति के औफिस से लौटने से पहले, क्योंकि उस के सामने रूपम ये सब बातें शायद न करे.’’

देव कुछ बोलता उस से पहले ही दिलीप आ गया, ‘‘मैं तो आशा के साथ ऐंबुलैंस में आऊंगा, आप लोग जाइए. स्नेहा, तुम सुबह से अपने घर से निकली हो सो अब घर जा फ्रैश हो आओ. मेरे घर पर आशा के बहनभाई पहुंच गए हैं और मेरे परिवार वाले भी पहुंचने वाले हैं. मैं ने यश को फोन किया था. उसी ने बताया सब.’’

‘‘ठीक है सर, मैं कुछ देर बाद आती हूं. टेक केयर,’’ स्नेहा का स्वर रुंध गया.

‘‘आप चलिए, मैं दिलीप के साथ रुकता हूं,’’ देव ने कहा, ‘‘मेरा नंबर ले लीजिए, अगर रूपम से कुछ सुराग मिले तो फोन करिएगा.’’

‘‘जरूर.’’

घर जा कर फ्रैश होने के बाद स्नेहा रूपम से मिलने गई. गैस्ट हाउस में रिसैप्शनिस्ट से मैसेज मिलते ही रूपम ने उसे अपने कमरे में बुला लिया.

‘‘मैं ने टीवी पर न्यूज सुनते ही आप के औफिस में फोन किया था पर आप मिली नहीं…’’

‘‘जी हां, मैं भी सीआईडी इंस्पैक्टर के साथ तफतीश में लगी हुई हूं. प्रेमलताजी ने यह कह कर कि आशा बेवफाई पर उतर आई थी, अटकलों का पिटारा तो खोल दिया और फिर यह कह कर कि यह व्यक्तिगत बात है चुप्पी साध ली. अब इतनी बड़ी शख्सीयत का मुंह खुलवाने का रास्ता पुलिस के आला अधिकारियों की समझ में नहीं आ रहा सो मामला आननफानन में सीआईडी के सुपुर्द कर दिया है,’’ स्नेहा सांस लेने को रुकी, ‘‘फिलहाल प्रेमलता के घर पर जो देखा उस से सीआईडी का सब से माहिर इंस्पैक्टर देव भी चकरा गया है और मैं इसी सिलसिले में आप की मदद लेने आई हूं.’’

‘‘मेरी मदद?’’ रूपम ने भौंहें चढ़ा कर पूछा, ‘‘मैं भला क्या मदद कर सकती हूं? कई वर्षों बाद मैं पिछले सप्ताह आशा से मिली थी. प्रेम से तो अभी मुलाकात ही नहीं हुई. सो उस के घर में आप ने जो देखा उस के बारे में मुझे क्या पता होगा?’’

‘‘मैं बताती हूं, प्रेमलता के बैडरूम में आशा का लाइफसाइज पोट्रैट लगा था…’’

‘‘ओह नो,’’ और रूपम हंसी से लोटपोट हो गई. फिर अपने को संयत करते हुए बोली, ‘‘क्षमा करिएगा, मैं खुद पर काबू नहीं रख सकी.’’

‘‘यानी इस रिश्ते के बारे में आप को मालूम था?’’

‘‘मुझे ही नहीं प्रेम और आशा के साथ होस्टल में रहने वाली सभी लड़कियों को मालूम था. दोनों का कहना था कि हम दोनों का नाम लता है और लता का काम ही लिपटना होता है. सो हम दोनों एकदूसरे से लिपट कर अपने नाम को सार्थक करती हैं. उन के घर वालों को मालूम था या नहीं मैं नहीं जानती,’’ रूपम बगैर कुछ पूछे कहती गई, ‘‘लेकिन इन दोनों ने यह समझ लिया था कि एकदूसरे के साथ रहने के लिए पढ़ाई से बढ़ कर और कोई बहाना नहीं हो सकता.

सो दोनों एकदूसरे से लिपट कर पढ़ती रहती थीं और अव्वल आया करती थीं. सो घर वाले भी आगे पढ़ने में सहयोग दे रहे थे. एमए तक तो दोनों होस्टल में रहती थीं. फिर मेरी शादी हो गई. एक अन्य सहेली से सुना था कि दोनों लताएं विभिन्न व्यवसायिक कोर्स कर रही हैं और होस्टल के बजाय फ्लैट में ऐज ए कपल रह रही हैं.’’

‘‘फिर आशा मैडम ने शादी कैसे कर ली?’’

‘‘यह तो प्रेम ही बता सकती है.’’

स्नेहा ने मायूसी से सिर हिलाया, ‘‘जिस दृढ़ता से सुबह उस ने पुलिस अधिकारियों से कहा था कि इकबाले जुर्म के अलावा वह और कुछ नहीं कहेगी मुझे नहीं लगता कि वह कुछ बताएगी.’’ ‘‘आशा के अपने पति के साथ कैसे संबंध थे?’’

‘‘दिलीप सर जिस तरह से व्यक्ति हैं, उस से तो लगता है दोनों में बहुत प्यार था. वैसे तो मैडम व्यक्तिगत बात नहीं करती थीं, लेकिन जब भी दिलीप सर आने वाले होते थे तो उन के चेहरे और व्यवहार में भी उमंग, उत्साह और आकुलता होती थी और उन के जाने के बाद मायूसी किसी भी सामान्य दंपती की तरह.’’

‘‘मनोविज्ञान की ज्ञाता हो?’’

‘‘ज्ञाता तो खैर नहीं हूं, लेकिन एमए मनोविज्ञान में ही किया है.’’

‘‘तो फिर अपने इस ज्ञान का फायदा उठा कर प्रेम को इमोशनल ब्लैकमेल क्यों नहीं करतीं? उस से जा कर जेल में मिलो और बताओ कि

उस के घर की तलाशी लेने पर तुम्हें और इंस्पैक्टर को उस के और आशा के रिश्ते का पता चल गया है. अभी तक तो तुम ने इंस्पैक्टर को यह बात दिलीप को बताने से रोक लिया है, क्योंकि तुम नहीं चाहतीं कि आशा मरने के बाद पति की नजरों से गिरे. अगर प्रेम को वाकई में आशा से प्यार था तो वह भी अपनी प्यारी आशा की रुसवाई नहीं चाहेगी.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर देव से कहती हूं कि मुझे प्रेमलता से मिलने दें,’’ स्नेहा उठ खड़ी हुई, ‘‘आप के सुझाव के लिए बहुतबहुत धन्यवाद.’’

‘‘मैं भी आशा की रुसवाई नहीं चाहूंगी स्नेहा और उसे रोकने का एक ही तरीका है प्रेम का इमोशनल ब्लैकमेल. आशा की रुसवाई रोकने के लिए वह जरूर कुछ बोलेगी.’’

रूपम के कमरे से निकल कर स्नेहा ने देव को फोन कर रूपम के सुझाव के बारे में बताया.

‘‘सुझाव तो अच्छा है, लेकिन प्रेमलता तुम्हें देखते ही सतर्क हो जाएगी और फिर उस को इमोशनल ब्लैकमेल करना मुश्किल होगा. बेहतर होगा कि यह काम रूपम ही करे. तुम उन से आग्रह करो.’’

‘‘ठीक है इंस्पैक्टर, मैं अभी बात करती हूं.’’

थोड़ी हीलहुज्जत के बाद रूपम इस शर्त पर यानी कि वह प्रेमलता से मिलने जेल में नहीं जाएगी और न ही उस की और प्रेमलता की मुलाकात की खबर मीडिया में आएगी, क्योंकि हत्या की अभियुक्ता से उस की दोस्ती उस के पति की पदप्रतिष्ठा के अनुकूल नहीं होगी.

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं. इंस्पैक्टर से कहती हूं कि जेल से बाहर आप की मुलाकात करवाए.’’

बात देव की समझ में भी आई. अत: उस ने कमिश्नर साहब से बात की.

‘‘मैं आईजी प्रिजन से बात कर के प्रेमलता को मैडिकल चैकअप के बहाने जेल से बाहर भिजवाने की कोशिश करता हूं. ऐसी जगह जहां रूपम उस से बात कर सके और तुम चुपचाप उस बातचीत को रिकौर्ड कर लेना, लेकिन इस में समय लगेगा.’’

‘‘कोई बात नहीं सर, मीडिया को कह देंगे कि सिवा महापौर के इकबाले जुर्म के पुलिस और कोई सुराग जुटाने में अभी तक असफल है.’’

अगले रोज जब मीडिया आशा के अंतिम संस्कार की कवरेज में व्यस्त था, देव और स्नेहा रूपम को एक अस्पताल के वीआईपी ब्लौक में ले गए. एक वातानुकूलित कमरे में सोफे पर बैठी प्रेमलता अखबार पढ़ रही थी. उस के चेहरे पर थकान जरूर थी, पर उदासी या परेशानी नहीं.

रूपम को देख कर वह चौंक पड़ी. बोली, ‘‘अरे रूपम तू… आशी ने बताया तो था कि तू शहर में है, लेकिन यहां अस्पताल में कैसे? सब खैरियत तो है न?’’

‘‘खैरियत तूने छोड़ी ही कहां है?’’ रूपम के स्वर में विद्रूप था, ‘‘टीवी चैनलों और अखबारों की खबरों पर मुझे विश्वास नहीं हुआ कि तू आशा यानी अपनी जान की जान ले सकती है और अगर ले भी ली थी तो तुरंत अपनी जान भी क्यों नहीं दे दी? आत्मसमर्पण का ड्रामा कर के अपनी और आशा की दोस्ती को रुसवा क्यों किया?’’

प्रेमलता के चेहरे पर ‘यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था’ जैसे भाव उभरे लेकिन अगले ही पल संयत हो कर बोली, ‘‘तुझे यहां कैसे और किस ने आने दिया?’’

‘‘ससुराल की तरफ से रिश्तेदारी है एक आला पुलिस अफसर से. सो उन्होंने मेहरबानी कर दी.’’

‘‘मेहरवेहरबानी कुछ नहीं, यह जान कर कि तू मेरी सहपाठिन है मुझ से कुछ उगलवाने को भेजा है.’’

‘‘तेरे से अब कुछ उगलवाने की जरूरत किसे है? तेरे बैडरूम की तलाशी और दिलीप से मिली इस जानकारी ने कि आशा यहां की नौकरी छोड़ कर दुबई में बसने जा रही थी, तेरे इस बयान का कि यह बेवफाई पर उतर आई थी का रहस्य भी खोल दिया है, लेकिन बेचारी आशा की इज्जत की तो बुरी तरह धज्जियां उड़ा दीं और जांनिसार पति की नजरों में भी गिरा दिया. अच्छा सिला दिया आशा की दोस्ती का…’’

‘‘बगैर पूरी बात सुने अपना फैसला सुनाने की तेरी कालेज की आदत अभी तक गई नहीं,’’ प्रेम ने बात काटी.

‘‘आदतें कभी नहीं जातीं प्रेम,’’ रूपम व्यंग्य से हंसी, ‘‘तुझे और आशा को जो एकदूसरे की आदत पड़ चुकी थी वह आशा की शादी के बाद गई क्या?’’

‘‘सवाल ही नहीं उठता था. घर वालों के तकाजे से तंग आ कर आशी जब खाड़ी में बसे एक सैल्स ऐग्जीक्यूटिव से शादी कर रही थी तो मैं ने बहुत समझाया था कि ऐसी गलती मत कर, मेरे वाली चाल चल कर घर वालों को बहलाती रह.’’

‘‘तेरी कौन सी चाल थी?’’ रूपम ने दिलचस्पी से पूछा.

‘‘यही कि जब भावी वर से अकेले में मुलाकात हो तो उसे या तो हकीकत बता दो या कुछ ऐसा कहो कि वह स्वयं ही शादी से मना कर दे. मैं ने तो कई लोगों के साथ यही किया और फिर घर वालों से विनती की कि मेरी शैक्षिक योग्यता और नौकरी को देख कर हीनभावना से भर कर जब सभी मुझे नकार देते हैं, तो बारबार रिश्ते की बात चला कर मेरा तमाशा बनाना बंद कर दें. शादी जब होनी होगी हो जाएगी. बात उन की समझ में आ गई.

‘‘लेकिन आशी ने अपनी बीमार मां की खुशी के लिए दिलीप से शादी करनी मान ली कि दुबई में टूअरिंग जौब करने वाला, उसे न तो वहां ले कर जाएगा और न ही जल्दीजल्दी यहां आया करेगा. इसी बात पर वह तलाक ले कर उस से छुटकारा पा लेगी. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. दिलीप कुछ सप्ताह के अंतराल में आता था. तब आशी मुझ से कोई संपर्क नहीं रखती थी. चंद दिनों की बात होती थी. सो मैं बरदाश्त कर लेती थी. लेकिन अब तो दिलीप ने दुबई में अपने लिए ही नहीं आशी के लिए भी नौकरी ढूंढ़ ली थी, आशी इस से बेहद खुश थी. तू ही बता मेरे साथ मरनेजीने के वादे करने वाली आशी का मुझे इस तरह मझधार में अकेले छोड़ कर जाना मैं क्यों और कैसे बरदाश्त करती?’’

प्रेम थोड़ी देर रुक कर फिर बोली, ‘‘इस से पहले कि तू पूछे कि मैं ने यह बात आशी से क्यों नहीं पूछी, तो बता दूं कि पूछी थी और वह इतरा कर बोली कि मैं तो अब रुकने से रही क्योंकि मुझे समझ आ गया है कि जिंदगी की असल कमाई पति के संग गुजारा समय है और तेरे संग गुजारे क्षण जिंदगी का बोनस. बहुत लूट लिया बोनस का मजा अब कुछ कमाई करना चाहती हूं और तुझे भी सलाह देती हूं कि मुझे भूल कर तू भी असली कमाई कर, क्योंकि सिर्फ बोनस के सहारे तो जिया नहीं जा सकता. जीने के लिए तो सभी कमाते हैं सो तू भी कमा और शादी कर के मेरी तरह जिंदगी और घरगृहस्थी का पूरा मजा लूट.’’

‘‘किस से शादी करूं?’’ मेरे यह पूछने पर आशी कुछ देर तो सोचती रही, फिर बोली कि तू ने बताया था कि 5 सितारा होटलों की शृंखला का मालिक अमन तेरे पीछे करोडों रुपए ले कर घूम रहा है कि तू उस के यहां बन रहे होटल में कुछ बोरवैल वगैरा खुदवाने की अनुमति दे दे, उस से क्यों नहीं शादी कर लेती? या कहे तो दुबई में कोई अरब शेख ढूंढ़ूं तेरे लिए.

‘‘बता नहीं सकती रूपम कि कितना गुस्सा आया आशी की इस बेवफाई या बेहयाई पर. देखने में मैं आशी से 21 ही हूं, कितने लड़के मरते थे कालेज में मुझ पर तुझे मालूम ही है और बाद में भी एक से बढ़ कर एक रिश्ते आते रहे मेरे लिए जिन्हें मैं ने आशी के नाम पर कुरबान कर दिया और आज वही आशी मुझे बदचलन अमन या किसी अनजान अरब शेख से शादी करने को कह रही थी. पूरी रात उबलती रही गुस्से में, किसी तरह सुबह का इंतजार किया और बस…’’

‘‘मैं तेरी मनोस्थिति समझ सकती हूं प्रेम. जो हो गया उस के लिए तुझे दोष नहीं दूंगी, लेकिन तेरी और आशा की अच्छी दोस्ती होने के नाते इतनी विनती जरूर करूंगी कि अब चुप रह कर अपने और आशा के रिश्ते की मीडिया और समाज में छीछालेदर मत करवा. आशा को रुसवाई से बचाने के लिए अपनी इस ख्याति को कि तू एक निहायत ईमानदार और कर्त्तव्यपरायण महापौर है लगा दे दांव पर और सिद्ध कर दे कि आशा भी एक कर्त्तव्यनिष्ट पत्रकार थी,’’ रूपम ने चुनौती के स्वर में कहा.

‘‘कैसे?’’ प्रेम ने भृकुटियां चढ़ा कर पूछा.

‘‘तू ने अभी बताया था न कि कोई अमन तुझे लाखों की रिश्वत दे रहा था और भी कई लोग आते होंगे ऐसे प्रस्ताव ले कर?’’ रूपम ने पूछा.

‘‘हां रोज ही.’’

‘‘तो बस भुना किसी ऐसे प्रस्ताव को. कुबूल कर ले कि आशा ने तुझे किसी के ऐसे प्रस्ताव को स्वीकार करते सुन लिया था और वह इस सनसनीखेज खबर को अपने अखबार में छापने पर अड़ी हुई थी,’’ रूपम ने उकसाने के स्वर में कहा, ‘‘तेरे इस बयान के बाद पुलिस तेरे और आशा के रिश्ते को नजरअंदाज कर तेरी रिश्वतखोरी को उजागर कर देगी.’’

‘‘तू ठीक कहती है रूपम. हत्यारिन के रूप में तो बदनाम हो ही चुकी हूं अब क्यों न भ्रष्ट बन कर आशी को ही नाम और सम्मान दिला दूं,’’ प्रेम ने उसांस ले कर कहा.

‘‘शाबाश, जमी रहना इस फैसले पर,’’ कह कर रूपम बाहर आ गई. बराबर के कमरे से इंस्पैक्टर देव और स्नेहा भी बाहर आ गए.

‘‘वाह रूपमजी, किस चुतराई से आप ने कत्ल की वजह उगलवाई और फिर उस से भी ज्यादा होशियारी से अपनी दिवंगत सहेली की बदनामी को रोका. आप की जितनी भी तारीफ की जाए कम है,’’ दोनों ने एकसाथ कहा.

‘‘2 भ्रमित सहेलियों के लिए इतना करना तो बनता ही था,’’ रूपम मुसकराई.
'