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कोरोना में बन्दियों और उनकी प्रेमिका से संवाद का जरिया बनी चिट्टी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ। कफ़स उदास है यारों, सबा से कुछ तो  कहो,कहीं तो बहर ए ख़ुदा आज जिक्रे यार चले ....। 'फ़ैज़ अहमद फ़ैज़' का यह शेर जेलों में क़ैद उन हज़ारों बंदियों के ज़ज़्बात को बयान कर रहा है। जिनकी प्रेमिका या पत्नी पल-पल उनकी रिहाई की राह देख रही हैं। यह हाल सूबे की जेलों में बंद हज़ारों कैदियों के है। 
कोरोना के चलते बन्दियों की प्रेमिका से छह माह से न मुलाकात हुई और न ही बात। ऐसे में बन्दी दिल की बात और अपने जज्बातों को प्रेमिका तक पहुंचाने के लिये अब चिट्टी या पत्र की का सहारा ले रहे हैं। लखनऊ समेत दूसरी जेल के जेलकर्मी या जेल से छूटने वाले कैदी डाकिया की भूमिका निभा रहे हैं। इन पत्रों को बंदियों की प्रेमिका तक सीधे या व्हाट्सएप के जरिये भेज रहे हैं। उधर, प्रेमिका का जवाब भी जेलकर्मी बन्दी तक पहुंचा रहे हैं। इसके एवज में बकायदा बन्दी सुविधा शुल्क भी दे रहे हैं।

पीसीओ से बात में संकोच
सूबे की जेलों एक लाख से अधिक कैदी बन्द हैं। कोरोना के चलते बन्दियों की मुलाकात छह माह से बन्द है।  विकल्प के तौर पर जेल पीसीओ से बन्दियों की उनके  घरवालों या फिर वकील से ही बात हो पाती है, लेकिन यह बातें जेल अधिकारियों के सामने और बातें रिकॉर्ड होने की वजह से बन्दी प्रेमिका से बात करने से घबराते हैं। 

डीजी आनंद कुमार बताते हैं कि कोरोना के चलते बन्दियों की मुलाकात बन्द है। जेलों पीसीओ से बात करने की सुविधा है। बशर्ते बन्दी की बात किसी जेल अधिकारी के सामने और उसकी रिकार्डिंग की जाती है। ताकि बन्दी जेल से किसी को कोई धमकी या फिर और कोई आपराधिक षड्यंत्र न कर पाए। डीजी बताते हैं कि जेल में लिखने पढ़ने की छूट है लेकिन पत्र आदि की पड़ताल के बाद ही वह जेल से बाहर भेज सकते हैं।
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