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कहानी: दगाबाज

आयुषा ने कभी सोचा भी नहीं था कि उस का जीत से आमनासामना होगा, लेकिन शादी के बाद एक मुलाकात के दौरान अचानक जीत को देख कर उस के पांवों तले जमीन खिसक गई. फिर आयुषा ने ऐसा क्या किया कि लाठी भी नहीं टूटी और सांप भी मर गया?
सरन अपने बेटे विनय की दुलहन आयुषा का परिचय घर के बुजुर्गों और मेहमानों से करवा रही थीं. बरात को लौटे लगभग 2 घंटे बीत चुके थे. आयुषा सब के पैर छूती, बुजुर्ग उसे आशीर्वाद देते व आशीर्वाद स्वरूप कुछ भेंट देते. आयुषा भेंट लेती और आगे बढ़ जाती.

जीत का परिचय करवाते हुए सरन ने जब आयुषा से कहा, ‘‘ये मोहना के पति और तुम्हारे ननदोई हैं,’’ तो एकाएक उस की निगाह जीत पर उठ गई. जीत से निगाह मिलते ही उस के शरीर में झुरझुरी सी छूट गई. जीत उस का पहला प्यार था, लेकिन अब मोहना का पति. जिंदगी कभी उसे ऐसा खेल भी खिलाएगी, आयुषा सोचती ही रह गई. अंतर्द्वंद्व के भंवर में फंसी वह निश्चय नहीं कर पाई कि जीत के पैर छुए या नहीं? अपने मन के भावों को छिपाने का प्रयास करते हुए उस ने बड़े संकोच से उस के पैरों की तरफ अपने हाथ बढ़ाए.

जीत भी उसे अपने साले की पत्नी के रूप में देख कर हैरान था. वह भी नहीं चाहता था कि आयुषा उस के पैर छुए. आयुषा के हाथ अपने पैरों की ओर बढ़ते देख कर वह पीछे खिसक गया. खिसकते हुए उस ने आयुषा के समक्ष अपने हाथ जोड़ दिए. प्रत्युत्तर में आयुषा ने भी वही किया. दोनों के बीच उत्पन्न एक अनचाही स्थिति सहज ही टल गई.

जीत को देखते ही आयुषा के मन का चैन लुट गया था. जीवन में कुछ पल ऐसे भी होते हैं, जिन्हें भुलाने को जी चाहता है. वे पल यदि जीवित रहें तो ताजे घाव सा दर्द देते हैं. ठीक वही दर्द वह इस समय महसूस कर रही थी. सुहागशय्या पर अकेली बैठी वह अतीत में खो गई.

मामा की लड़की रंजना की शादी में पहली बार उस का साक्षात्कार जीत से हुआ था. मामा दिल्ली में रहते हैं. पेशे से वकील हैं. गली सीताराम में पुश्तैनी हवेली के मालिक हैं. तीनमंजिला हवेली की निचली मंजिल में बड़े हौल से सटे 4 कमरे हैं. मुख्य द्वार से सटे एक बड़े कमरे में उन का औफिस चलता है. बाकी कमरे खाली पड़े रहते हैं. बीच की मंजिल में 12 कमरे हैं, जिन में उन का 4 प्राणियों का परिवार रहता है. नानी, वे स्वयं, मामी और रंजना. बेटा प्रमोद भोपाल में सर्विस में है. ऊपरी मंजिल में 6 कमरे हैं, लेकिन सभी खाली हैं.

मैं अपनी मम्मी के साथ शादी अटैंड करने आई थी. पापा 2 दिन बाद आने वाले थे. मेहमानों को रिसीव करने के लिए मामा, मामी और उन के परिवार के कुछ सदस्य ड्योढ़ी पर खड़े थे. हवेली में घुसते हुए अचानक मेरे पैर लड़खड़ा गए थे. इस से पहले कि मैं गिरती, मामी के पास खड़े जीत ने मुझे संभाल लिया था. वह पहला क्षण था जब मेरी निगाहें जीत से टकराई थीं. प्रेम बरसात में उफनती नदियों की तरह पानी बड़े वेग से आता है, उस क्षण भी यही हुआ था. हम दोनों ने उस वेग का एहसास किया था.

उस के बाद शादी के दौरान ऐसा कोई क्षण नहीं आया जब हमारी नजरें एकदूसरे से हटी हों. जीत सा सुंदर और आकर्षक जवान मैं ने इस से पहले कभी नहीं देखा था. मैं मानूं या न मानूं पर सत्य कभी नहीं बदला जा सकता. कोई जब हमारी कल्पना से मिलनेजुलने लगता है, तो हम उसे चाहने लगते हैं. उस की समीपता पाने की कोशिश में लग जाते हैं. उस समय मेरा भी यही हाल था. मैं जीत की समीपता हर कीमत पर पा लेना चाहती थी.

मामा द्वारा रंजना की शादी हवेली से करने का फैसला हमारे लिए फायदेमंद सिद्ध हुआ था. इतनी विशाल हवेली में किसी को पुकार कर बुला लेना या ढूंढ़ पाना दूभर था. रंजना की सगाई वाले दिन सारी गहमागहमी निचली और पहली मंजिल तक ही सीमित थी. जीत ने सीढि़यां चढ़ते हुए जब मुझे आंख के इशारे से अपने पास बुलाया तो न जाने क्यों चाह कर भी मैं अपने कदमों को रोक नहीं पाई थी.

सम्मोहन में बंधी सब की नजरों से बचतीबचाती मैं भी सीढि़यों पर उस के पीछेपीछे चढ़ती चली गई थी. थोड़े समय में ही हम ऊपरी मंजिल की सीढि़यों पर थे. एकाएक उस ने मुझे अपनी बांहों में जकड़ कर अपने तपते होंठों को मेरे होंठों पर रख दिया था. अपने शरीर पर उस के हाथों का दबाव बढ़ते देख कर मैं ने न चाहते हुए भी उस से कहा था, ‘छोड़ो मुझे, कोई ऊपर आ गया तो?’

पर वह कहां सुनने वाला था और मैं भी कहां उस के बंधन से मुक्त होना चाह रही थी. मैं ने अपनी बांहों का दबाव उस के शरीर पर बढ़ा दिया था. न जाने कितनी देर हम दोनों उसी स्थिति में आनंदित होते रहे थे. लौट कर सारी रात मुझे नींद नहीं आई थी. जीत की बांहों का बंधन और तपते होंठों का चुंबन मेरे मनमस्तिष्क से हटाए भी नहीं हटा था.

अगली रात ऊपरी मंजिल का एक कमरा हमारे शारीरिक संगम का गवाह बना था. जीत और मैं एकदूसरे में समाते चले गए थे. दो शरीरों की दूरियां कैसे कम होती जाती हैं, यह मैं ने उसी रात जाना था. कितने सुखमय क्षण थे वे मेरी जवानी के, सिर्फ मैं ही जान सकती हूं. उन क्षणों ने मेरी जिंदगी ही बदल डाली थी.

शादी के बाद हम बिछुड़े जरूर थे पर इंटरनैटहमारे मिलन का एक माध्यम बना रहा था. हम घंटों चैट करते थे. एकदूसरे की समीपता पाने को तरसते रहते थे. हम निश्चय कर चुके थे कि हम शीघ्र ही शादी के बंधन में बंध जाएंगे.

तभी एक दिन मैं ने पापा को मम्मी से कहते हुए सुना था, ‘आयुषा के लिए मैं ने एक सुयोग्य वर तलाश लिया है. लड़का सफल व्यवसायी है. पिता का अलग व्यापार है. लड़के के पिता का कहना है कि वे अपनी लड़की की शादी पहले करना चाहते हैं. उस की शादी होते ही वे बेटे की शादी कर देंगे. तब तक हमारी आयुषा भी एमए कर चुकी होगी.’

मम्मी तो पापा की बात सुन कर प्रसन्न हुई थीं, पर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई थी. उसी शाम जीत से चैट करते हुए मैं ने उसे साफ शब्दों में कहा था, ‘जीत या तो तुम यहां आ कर पापा से मेरा हाथ मांग लो या फिर मैं पापा को स्थिति स्पष्ट कर के उन्हें तुम्हारे डैडी से मिलने के लिए भेज देती हूं.’

जीत ने कहा था, ‘तुम चिंता मत करो. यह सम अब तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी है. मैं वादा करता हूं, तुम्हें मुझ से कोई नहीं छीन पाएगा. तुम सिर्फ मेरी हो. मुझे सिर्फ थोड़ा सा समय दो.’ उस ने मुझे आश्वस्त किया था.

उस के बाद जीत ने चैट करना कम कर दिया था. फिर धीरेधीरे मेरे और जीत के बीच दूरियों की खाई इतनी बढ़ती चली गई कि भरी नहीं जा सकी. जीत ने मुझ से अपना संपर्क ही तोड़ लिया. बरबस मुझे पापा की इच्छा के समक्ष झुकना पड़ा था.

सुहागकक्ष का दरवाजा बंद होने की आवाज के साथ मेरी तंद्रा टूट गई. विनय सुहागशय्या पर आ कर बैठ गए, ‘‘परेशान हो,’’ उन्होंने प्रश्न किया.

अपने मन के भावों को छिपाते हुए मैं ने सहज होने की कोशिश की, ‘‘नहीं तो,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘आयुष,’’ मुझे अपनी बांहों में भरते हुए विनय बोले, ‘‘मैं इस पल को समझता हूं. तुम्हें घर वालों की याद आ रही होगी, पर एक बात मेरी भी सच मानो कि मैं तुम्हारी जिंदगी में इतनी खुशियां भर दूंगा कि बीती जिंदगी की हर याद मिट जाएगी.’’

मेरे मन के कोने में हमसफर की एक छवि अंकित थी. विनय का व्यक्तित्व ठीक उस छवि से मिलता था. इसलिए मैं विनय को पा कर धन्य हो गई थी. ऐसे में हर पल मेरा मन यह कहने लगा था कि विनय जैसे सीधेसच्चे इंसान से कुछ भी छिपाना ठीक नहीं होगा. संभव है भविष्य में मेरे और जीत के रिश्तों का पता चलने पर विनय इन्हें किस प्रकार लें? तब पता नहीं हमारी विवाहित जिंदगी का क्या हश्र हो? मैं उस समय कोई भी कुठाराघात नहीं सह पाऊंगी. मुझे आत्मीयों की प्रताड़ना अधिक कष्टकर प्रतीत होती है, पर जबजब मैं ने विनय को सत्य बताने का साहस किया. मेरा अपना मन मुझे ही दगा दे गया. बात जबान पर नहीं आई. दिन बीतते गए. यहां तक कि हम महीने भर का हनीमून ट्रिप कर के यूरोप से लौट भी आए.

हनीमून के दौरान विनय ने मेरी उदासी को कई बार नोटिस किया था. उदासी का कारण भी जानना चाहा, पर मैं द्वंद्व में फंसी विनय को कुछ भी नहीं बता पाई. उसे अपने प्यार में उलझा कर मैं ने हर बार बातों का रुख ही बदल दिया था.

हनीमून से लौटते ही विनय 2 महीने के बिजनैस टूर पर फ्रांस और जरमनी चले गए. सासूमां ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया पर वे नहीं रुके. जीत और मोहना को उन्होंने जरूर रोक लिया.

उन्होंने जीत से कहा, ‘‘मोहना को तो मैं अभी महीनेदोमहीने और आप के पास नहीं भेजूंगी. आयुषा घर में नई है. उस का मन बहलाने के लिए कोई तो उस का हमउम्र चाहिए. वैसे आप भी यहीं से अपना बिजनैस संभाल सकें, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी. कम से कमआयुषा को 2 हमउम्र साथी तो मिल जाएंगे.’’

जीत थोड़ी नानुकर के बाद रुक गया. मैं समझ चुकी थी कि उस के रुकने का आशय क्या है? वह मुझे फिर से पाने का प्रयास करना चाहता है. मैं तभी से सतर्क हो गई थी. उस ने पहले कुछ दिन तो मुझ से दूरियां बनाए रखीं. फिर एक दिन जब सासूमां मोहना के साथ उस के लिए कपड़े और आभूषण खरीदने बाजार गईं तो जीत मेरे कमरे में चला आया. वह अतिप्रसन्न था. ठीक उस शिकारी की तरह जिस के हाथों एक बड़ा सा शिकार आ गया हो.

मेरे समीप आते हुए उस ने कहा, ‘‘हाय, आयुषा. व्हाट ए सरप्राइज? वी आर बैक अगेन. अब हम फिर से एक हो सकते हैं. कम औन बेबी,’’ जीत ने कहते हुए अपने हाथ मुझे बांहों में भरने के लिए बढ़ा दिए.

मेरे सामने अब मेरा संसार था. प्यारा सा पति था. उस का परिवार था. जीत के शब्द मुझे पीड़ा देने लगे. उस के दुस्साहस पर मुझे क्रोध आने लगा. न जाने उस ने मुझे क्या समझ लिया था? अपनी बपौती या बिकाऊ स्त्री? मैं उस पर चिंघाड़ पड़ी, ‘‘जीत, यहां से चले जाओ वरना,’’ गुस्से में मेरे शब्द ही टूट गए.

‘‘वरना क्या?’’

‘‘मैं तुम्हारी करतूत का भंडाफोड़ कर दूंगी.’’

‘‘उस से मेरा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन तुम कहीं की नहीं रहोगी. आयुषा, तुम्हारा भला अब सिर्फ इसी में है कि मैं जैसा कहूं तुम करती जाओ.’’

‘‘यह कभी नहीं होगा,’’ क्रोध में मैं ने मेज पर रखा हुआ वास उठा लिया.

मेरे क्रोध की पराकाष्ठा का अंदाजा लगाते हुए उस ने मेरे समक्ष कुछ फोटो पटक दिए और बोला, ‘‘ये मेरे और तुम्हारे कुछ फोटो हैं, जो तुम्हारे विवाहित जीवन को नष्ट करने के लिए काफी हैं. यदि अपना विवाह बचाना चाहती हो तो कल शाम 7 बजे होटल सनराइज में चली आना. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ जीत तेजी से मुझ पर एक विजयी मुसकान उछालते हुए कमरे से बाहर निकल गया.

अब मेरा क्रोध पस्त हो गया था. उस के जाते ही मैं फूटफूट कर रो पड़ी. मुझे अपना विवाहित जीवन तारतार होता हुआ लगा. जीत ने मेरी सारी खुशियां छीन ली थीं. बेशुमार आंसू दे डाले थे. मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं? कैसे जीत से छुटकारा पाऊं? मेरी एक जरा सी नादानी ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था, पर मैं ने यह निश्चय अवश्य कर लिया था कि यह मेरी लड़ाई है, मुझे ही लड़नी है. मैं किसी और को बीच में नहीं लाऊंगी. कैसे लड़ूंगी? यही सोचसोच कर सारी रात मेरी आंखों से अविरल अश्रुधारा बहती रही थी.

सवेरे उठी तो लग रहा था कि तनाव से दिमाग किसी भी समय फट जाएगा. विपरीत परिस्थितियों में कई बार इंसान विचलित हो जाता है और घबरा कर कुछ उलटासीधा कर बैठता है. मुझे यही डर था कि मैं कहीं कुछ गलत न कर बैठूं. दिन यों ही गुजर गया. शाम के 5 बजते ही जीत घर से निकल गया. जाते हुए मुझे देख कर मुसकरा रहा था. अब तक मैं भी यह निश्चय कर चुकी थी कि आज जीत से मेरी आरपार की लड़ाई होगी. अंजाम चाहे जो भी हो.

मैं जब होटल पहुंची तो जीत बड़ी बेताबी से मेरे आने का इंतजार कर रहा था. मुझे देखते ही वह बड़ी अक्कड़ से बोला, ‘‘हाय डियर, आखिर जीता मैं ही, अगर सीधी तरह मेरी बात मान लेती तो मैं तुम्हें परेशान क्यों करता?’’

‘‘जीत,’’ मैं ने उस की बात अनसुनी करते हुए कहा, ‘‘मैं बड़ी मुश्किल से अपनों की इज्जत दांव पर लगा कर तुम्हारी इच्छा पूरी करने आई हूं. मेरे पास ज्यादा समय नहीं है. आओ और जैसे चाहो मेरे शरीर को नोच डालो. मैं उफ तक नहीं करूंगी,’’ कहते हुए मैं ने अपनी साड़ीब्लाउज उतारना शुरू कर दिया, उस के बाद पेटीकोट भी.

अचानक मेरे इस व्यवहार को देख कर जीत चकित रह गया. उस ने इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी. विचारों के बवंडर ने संभवत: उसे विवेकशून्य कर दिया. आयुषा से क्या कहे, कुछ नहीं सूझा. घबराते हुए उस ने मुझ से पूछा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ में क्या है?’’

‘‘जहर की शीशी,’’ मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम्हें तृप्त कर के इसे पी लूंगी. सारा किस्सा एक बार में खत्म हो जाएगा.’’

‘‘फिर मेरा क्या होगा?’’

‘‘चाहो तो तुम भी इसे पी सकते हो. हमारा प्यार भी अमर हो जाएगा और हम भी.’’

तभी मैं ने देखा उसे अपनी आशाओं पर पानी फिरता हुआ नजर आया था. उस के चेहरे से पसीना चूने लगा था. फिर उस के पैर मुझ से कुछ दूर हुए और दूर होतेहोते कमरे से बाहर हो गए.

सवेरे जब नींद टूटी तो मैं ने देखा कि जीत कहीं बाहर जा रहा था.

सासूमां और मोहना उस के पास दरवाजे पर खड़ी थीं. मुझ पर नजर पड़ते ही मोहना ने मुझे बताया कि आज जीत की एक जरूरी मीटिंग है, उसे 10 बजे की फ्लाइट पकड़नी है. सच क्या था. वह केवल जीत जानता था या मैं. जीत ने जाते समय मुझे देखा तक नहीं, पर मैं उसे जाते हुए देख कर मंदमंद मुसकरा रही थी. मैं अब विनय के प्रति पूरी तरह समर्पित थी.
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