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‘श्री गोरखनाथ आशीर्वाद’ अगरबत्‍ती का लोकार्पण कर उत्‍तराखंड रवाना हुए सीएम योगी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गोरखपुर. वनटांगियों संग दिवाली मनाने शनिवार को दो दिवसीय दौरे पर गोरखपुर पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रविवार की दिनचर्या परंपरागत रही। तड़के उठकर सबसे पहले उन्होंने बाबा गोरखनाथ के दरबार में हाजिरी लगाई। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूरे विधि-विधान से बाबा गोरखनाथ की पूजा-अर्चना करने के बाद मुख्यमंत्री अपने गुरु ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के समाधि स्थल पर पहुंचे और उनका आशीर्वाद लिया। दोपहर बाद ‘श्री गोरखनाथ आशीर्वाद’ अगरबत्‍ती का लोकार्पण कर सीएम उत्‍तराखंड के लिए रवाना हो गए।



गायों को खिलाया गुड़-चना

मंदिर परिसर में व्यवस्था का जायजा लेने के बाद मुख्यमंत्री गोशाला पहुंचे और वहां कुछ समय गायों के बीच गुजारा। इस दौरान उन्होंने बाकायदा कई गायों को उनके नाम से बुलाकर पुचकारा और अपने हाथ से गुड़-चना भी खिलाया। नियमित दिनचर्या का यह सिलसिला सुबह करीब 8ः30 बजे तक चला। इसके बाद सीएम ने उनसे मिलने आए कुछ लोगों से मुलाकात की। सीएम से मिलने के कई जिलों से भोर से ही फरियादी मंदिर में पहुंच गए थे। सीएम ने फरियादियों से मिलकर उनकी समस्‍याओं को सुना और अधिकारियों को समस्‍याओं के त्‍वरित निस्‍तारण का निर्देश दिया। 


गोरखपुर से उत्तराखंड के लिए रवाना हुए सीएम 

मुख्यमंत्री को दोपहर बाद उत्तराखंड के लिए रवाना हुए। वह केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर जा रहे हैं। रवाना होने से पहले पर केंद्रीय औषधि एवं सगंध पौधा संस्थान (सी-मैप), महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र और गोरखनाथ मंदिर के सहयोग से मंदिर में खिले फूलों से बनी अगरबत्ती ‘श्रीगोरखनाथ आशीर्वाद’ का लोकार्पण किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि मंदिर में चढ़ाए गए फूलों से अगरबत्ती बनाने के इस प्रयास से वेस्ट को वेल्थ में बदलने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना साकार हो रही है। 


इससे आस्था को सम्मान मिल रहा है। साथ ही यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी बड़ा कदम है। सीएम योगी ने कहा कि भारतीय मनीषा में कहा गया है कि इस धरती पर कुछ भी अयोग्य नहीं है। फर्क सिर्फ दृष्टि का है। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। निष्प्रयोज्य फूलों से अगरबत्ती व धूपबत्ती बनाने का यह कार्य सकारात्मक दृष्टिकोण से ही संभव हुआ है। अब तक मंदिरों में चढ़ाए गए फूल फेंक दिए जाते थे या नदियों में प्रवाहित कर दिए जाते थे। इससे आस्था भी आहत होती थी और कचरा भी खड़ा हो रहा था।

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