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भदोही में मिला सबसे पवित्र माना जाने वाला बार्न प्रजाति का उल्लू, जानिए इसकी खास विशेषता

गाजीपुर न्यूज़ टीम, भदोही. भदोही जिले में रविवार की सुबह बार्न उल्लू (दुर्लभ प्रजाति) लोगों को मिलने के बाद चर्चा होने लगी।भदोही जिले में सुरियावा थाना क्षेत्र के कोछीया गांव में दुर्लभ उल्लू पक्षी मिला। स्थानीय लोगों के अनुसार यहां के पक्षियों द्वारा उसे चोट पहुंचाया जा रहा था। इसे देखकर गांव के लोगों द्वारा किसी तरह इसे बचाया गया। गांव के अधिवक्ता मुन्ना राम यादव द्वारा पक्षी को पिजड़े में सुरक्षित रखा गया है। 

सफेद और नारंगी रंग का अनोखा यह उल्लू जिनको वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल तीन में स्थान दिया गया है। वन्य अधिकारियों ने अनुसार बार्न उल्लू की औसत आयु चार वर्ष होती है, ऐसे भी उदाहरण हैं जिसमें बार्न उल्लू लगभग 15 वर्ष तक जीवित रहे हैं।


कैप्टिव ब्रीडिंग में बार्न उल्लू 20 वर्ष तक जीवित रह सकते हैं। प्राकृतिक अवस्था में जंगलों में 70 प्रतिशत बार्न उल्लू अपने जन्म के प्रथम वर्ष में ही प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। देश के विभिन्न भागों में ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि बार्न उल्लू को पवित्र मानते हैं, जिससे घर तथा गांव में तरक्की, खुशहाली तथा उन्नति होती है। स्वभाव से बार्न उल्लू बेहद शर्मीला और शांत होता है। इसकी आवाज सामान्य उल्लू के समान नहीं होती है। इसकी आवाज काफी कर्कश होती है। यह कृषक मित्र होने की वजह से रात में खलिहान में रुकता है। अनाज खाने के लिए आने वाले जंतुओं का शिकार करता है। यह खेत में लगे फसलों को कीट पंतग से भी बचाता है। इस प्रजाति के उल्लू अक्सर जोड़े में ही रहते हैं। यह सूखी जगह, पुराने मकानों में, घर और खंडहर, पुराने किलों में निवास करते हैं। ये पक्षी पीपल, बरगद, गूलर जैसे बड़े पेड़ों पर खोखले भाग में अपना निवास बनाते हैं। बार्न उल्लू रात्रिचर होते हैं। इनका भोजन मुख्य रूप से चूहे, मूस्टी होते हैं। प्रतिवर्ष चार से सात सफेद चिकने गोलाकार अंडे देते है। ऐसी स्थिति में नर ही भोजन का प्रबंध करता है और मादा अंडों को सुरक्षित रखने का कार्य करती है।


यह होती है विशेषता

बार्न प्रजाति के उल्लू को आम खलिहान उल्लू भी कहा जाता है। टायटो अल्बा के रूप में भी जाना जाता है, यह प्रजाति, जैसा कि नाम से ही पता चलता है टिटोनिडी परिवार के अंतर्गत आता है। यह अब तक, सबसे व्यापक रूप से पाया जाने वाला रात्रिचर उल्लू प्रजाति है, और यह दुनिया में सबसे व्यापक पक्षी प्रजातियों में से एक होने की प्रतिष्ठा भी रखता है। मुख्य विशेषता यह है कि इस उल्लू को अन्य प्रकार के उल्लुओं के बीच अंतर करता है, इसकी अलग-अलग दिल के आकार की चेहरे की डिस्क है, साथ ही इसके लंबे पैर, लंबे ताल और छोटी, अंधेरे आंखें हैं। इसके अलावा, इसमें एक लंबी विंग अवधि होती है, और एक छोटी पूंछ जो कुछ हद तक एक वर्ग की तरह दिखाई देती है। पक्षी के नाक के सदृश उसके बिल के ऊपर पंखों का एक रिज विकसित होता है। इस उल्लू की 20 - 30 उप-प्रजातियां हैं। कृंतक इस पक्षी के भोजन का प्राथमिक स्रोत हैं। 9.8 - 18 इंच पक्षी की औसत लंबाई है, और इसका पंख 30-43 इंच होता है.

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