Today Breaking News

कहानी: नहले पे दहला

वह युवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का अपना निवासस्थान था. दासदासियां थीं. काफी संपत्ति भी थी. मातापिता काफी अरसा पहले गुजर गए थे.

एक घटना जो दिल्ली शहर में 1657 ई. में घटी…


वह युवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी. उस का अपना निवासस्थान था. दासदासियां थीं. काफी संपत्ति भी थी. मातापिता काफी अरसा पहले गुजर गए थे. भाईबहन नहीं थे. उस ने अभी तक विवाह नहीं किया था. उस के चाहने वालों की कमी नहीं थी, किंतु वह किसी को भी प्रश्रय नहीं देती थी. इधर कुछ दिनों से जब भी वह बाहर निकलती, एक युवक उस के आगेपीछे चक्कर मारता. उस के चेहरे पर कामना के भाव पढ़ने में उसे कोई असुविधा नहीं हुई. अपने चाहने वालों में एक की बढ़ोतरी होने से कोई परेशानी नहीं हुई थी.


एक दिन वह किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थी. लौटते वक्त वह युवक उस की पालकी के साथसाथ चलने लगा. मौका पा कर उस ने प्रणय निवेदन भी कर दिया. युवती ने युवक की तरफ देखा भी नहीं. युवक उस की इस उपेक्षा से मर्माहत हुआ था. युवक का प्यार एकतरफा था. प्रणय निवेदन में असफल हो उस ने युवती को उपहार भेजने शुरू किए. किंतु वे उस के पास वैसे ही लौट आते. युवती ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. इस से युवक ने बेइज्जती महसूस की तथा युवती के गर्व को कुचलने के लिए योजना बना एक षड्यंत्र रच डाला.


युवती की एक वृद्धा बांदी थी. वह उसे गुसल कराती. उस के केश संवारती. युवक ने इस वृद्धा बांदी के घर जाना शुरू किया तथा थोड़े समय में उसे अपने वश में कर लिया. बांदी को रिश्वत दे कर उस ने युवती के बारे में गोपनीय खबरें एकत्र कर लीं. युवक ने योजनानुसार षड्यंत्र को मूर्तरूप देने के लिए दिल्ली के काजी की अदालत में मामला दायर कर दिया. युवक की नालिश के अनुसार, युवती उस के साथ बहुत सी रातें गुजारने के बाद अब शादी करने से मुकर रही है. युवती ने व्यभिचार किया है. इसलिए काजी इस का उचित फैसला करें.


ये भी पढ़ें- अब हम समझदार हो गए हैं


युवक की नालिश के अनुसार, काजी ने युवती को अपनी अदालत में तलब किया. काजी के पूछने पर युवती ने आश्चर्य व्यक्त कर युवक को झूठा ठहराया. उस ने बताया कि उलटे युवक ही कुछ दिनों से उस के पीछे चक्कर लगाता हुआ उसे परेशान कर रहा है. उस ने उपहार भेजे, जिन्हें उस ने लौटा दिया. युवक के साथ विवाह करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता.


काजी ने इस बार युवक की तरफ देखा. युवक ने युवती की तरफ आग्नेय नेत्रों से देख कर कहा, ‘‘हुजूर, यह झूठ कह रही है.’’


‘‘तुम सत्य कह रहे हो, इस का प्रमाण क्या है?’’


‘‘हुजूर, प्रमाण है.’’


‘‘तो पेश करो.’’


‘‘हुजूर, पहले ये बताएं कि इन्होंने कभी मुझ से एकांत में भेंट की है या नहीं?’’


युवती ने घृणा से युवक की तरफ देख कर कहा, ‘‘प्रश्न ही नहीं उठता है.’’


‘‘हुजूर, मैं इन के ढके शरीर के कुछ गोपन चिह्न इन्हें बता सकता हूं. जब ये कभी मुझ से एकांत में मिली ही नहीं तो मैं इस की जानकारी कहां से पाऊंगा?’’


काजी सोच में पड़ गया. उस ने युवक को अपने पास बुलाया. युवक ने युवती के कुछ गोपन चिह्नों के बारे में काजी को बताया.


युवती काजी और युवक के वार्त्तालाप को सुन नहीं पा रही थी, किंतु वह अंदाजा ठीक ही लगा रही थी. फिर भी वह निश्चिंत थी. युवक से उस ने एकांत में कभी मुलाकात ही नहीं की तो वह उस के शरीर के गोपन चिह्नों की खबर कैसे पा जाएगा. युवक ने काजी को पसोपेश में डाल दिया. अंत में काजी ने निर्णय लिया कि युवक के दावे के सचझूठ की परीक्षा कर ली जाए. उस ने एक खोजा और एक बांदी को युवती के शरीर पर उन निशानों को देख कर परीक्षा करने के लिए भेज दिया. कुछ देर बाद बांदी काजी की अदालत में हाजिर हुई तथा सिर झुका कर युवक के समर्थन में सिर हिला दिया. सत्य ही युवती के शरीर पर वे चिह्न पाए गए थे. काजी की दृष्टि में अब युवक सच्चा था तथा युवती व्यभिचारिणी. उस ने युवती को फैसला सुना आदेश दिया, ‘‘तुम्हें इस युवक से विवाह करना होगा.’’


युवती काजी के फैसले से आई विपत्ति को अच्छी तरह अनुभव कर रही थी. युवक ने किसी तरह उस के शरीर के गोपनीय चिह्नों को जान उसे मात दी थी. उस ने भी नहले का उत्तर दहले से देने का निश्चय कर तुरंत प्रकृतिस्थ हो काजी से अनुनय भरे स्वर में कहा, ‘‘हुजूर का हुक्म सिरआंखों पर, किंतु विवाह की तैयारियों के लिए मुझे कुछ महीनों की मुहलत देनी होगी. मेरे रिश्तेदार दूर रहते हैं, उन्हें खबर देनी होगी. विवाह की तैयारियों में वैसे भी देर होती ही है.’’


युवक अपने षड्यंत्र में सफल हो जाने पर फूला नहीं समा रहा था. युवती उस से विवाह करने को रजामंद हो गई थी, वह भी काजी के सामने. इसलिए कुछ महीने इंतजार कर लेने में हर्ज ही क्या है. वह इंतजार करने को खुशीखुशी राजी हो गया.


युवकयुवती के राजी हो जाने पर काजी क्यों अपनी टांग अड़ाता. उस ने भी युवती को सहर्ष कुछ महीनों की मुहलत दे दी. युवती काजी की अदालत से अपने घर वापस आ कर अपनी दासियों से जिरह करने लगी. तब वृद्धा दासी ने घबरा कर सत्य को कुबूल कर लिया. उस ने ही सोने की कुछ मुहरों के लालच में युवक को उन गोपनीय चिह्नों की जानकारी दी थी. जब युवती ने वृद्धा दासी को धमकाया तो वह युवती के कहे अनुसार काजी की अदालत में उचित समय आने पर सही बातें बताने को राजी हो गई.


धीरेधीरे 8 महीने गुजर गए. एक दिन युवती 2 शक्तिशाली दासों तथा एक पालकी व उस के वाहकों को ले कर युवक के घर पहुंची. युवक अपने घर में अकेला रहता था तथा कुछ महीनों से बीमार था. उस का शरीर अब एक जीर्ण काया में बदल गया था. युवती ने युवक के घर में प्रवेश कर अपने दोनों दासों को संकेत किया. दासों ने उस युवक को जबरदस्ती उठा कर पालकी में लिटा दिया. शीघ्र ही पालकी शहर काजी की अदालत की ओर चल पड़ी.


युवती ने उस युवक को अपने दोनों दासों की सहायता से काजी के समक्ष उपस्थित कर कहा, ‘‘हुजूर, कल मैं और यह युवक जब एकांत में मिले थे तो यह मेरे बहुमूल्य स्वर्णहार को चोरी कर भाग गया. हुजूर, इंसाफ कर मेरे हार को वापस दिलवाएं.’’


युवक ने कराहते हुए कहा, ‘‘हुजूर, मैं तो महीनों से बीमार हूं. मुझ से तो ठीक से चला भी नहीं जाता. यह औरत मुझे जबरदस्ती इन दोनों व्यक्तियों के सहारे पकड़ कर लाई है.’’


‘‘हुजूर, यह व्यक्ति मक्कार तथा झूठ गढ़ने में माहिर है.’’


‘‘हुजूर, यह औरत ही झूठी है. इसे तो मैं ने कभी देखा भी नहीं है.’’


‘‘क्यों, कल क्या तुम मेरे घर में नहीं थे?’’


‘‘हुजूर, इस औरत को आज से पहले मैं ने कभी देखा नहीं है.’’


काजी को लगा कि युवक सही कह रहा है. उस ने औरत से पूछा, ‘‘तुम्हारा कोई गवाह है?’’


औरत ने समर्थन में सिर हिलाया तो युवक ने चीखते हुए कहा, ‘‘हुजूर, यह झूठ कह रही है. इस का कोई भी गवाह नहीं है.’’


‘‘हुजूर, मेरा गवाह यह युवक ही है.’’


काजी ने विस्फारित नेत्रों से युवती की तरफ देखा. उसे लग रहा था कि उस ने युवती को कहीं देखा है. किंतु वह स्मरण नहीं कर पा रहा था. इस पर युवती ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘हुजूर ने मुझे पहचाना नहीं?’’


काजी ने अपनी स्मरणशक्ति पर जोर दिया, किंतु वह उस औरत को पहचानने में विफल रहा. इस पर उस युवती ने कहा, ‘‘हुजूर, 8 महीने पहले इस युवक ने आप की अदालत में मेरे विरुद्ध नालिश की थी. हुजूर ने भी मुझे व्यभिचारिणी मान मुझे इस से विवाह करने का हुक्मनामा सुनाया था.


‘‘मैं ने हुजूर से कुछ महीने की मुहलत मांगी थी. आज यह युवक मुझे पहचानने से इनकार कर रहा है. मेरे शरीर के गोपनीय चिह्नों को स्मरण रखने वाला मेरे चेहरे को इतनी जल्दी कैसे भूल गया? हुजूर, उस बांदी तथा खोजा से इस की शिनाख्त करें, जिन्होंने इस की नालिश पर हुजूर के हुक्म से मेरे शरीर की परीक्षा की थी.’’


काजी ने बांदी और खोजा को बुलवा कर उन से पूछा तो उन्होंने युवती और युवक को पहचान युवती के कथन का समर्थन किया.


इस पर लज्जित हो काजी ने कहा, ‘‘मुझे प्रतिदिन सैकड़ों मामलों पर फैसला सुनाना पड़ता है. फिर मैं वृद्ध भी हो चला हूं. अत: तुम्हें पहचानने की मेरी भूल स्वाभाविक है. किंतु मेरी समझ में नहीं आ रहा कि इस व्यक्ति ने तुम्हारे शरीर के गोपन चिह्नों के बारे में कैसे जान लिया?’’


इस पर उस युवती ने अपनी वृद्धा दासी की सोने की कुछ मुहरों के लालच में गद्दारी किए जाने की घटना को कह सुनाया. काजी ने दासी को उसी समय सिपाही भेज अदालत में बुलवाया तो उस ने डरतेडरते सभी कुछ स्वीकार कर लिया. काजी ने अब क्रोधित हो युवक की तरफ देखा. वह थरथर कांप रहा था. काजी ने दांत भींचते हुए कहा, ‘‘तुम्हें तो जिंदा गाड़ कर कुत्तों से नुचवा देना चाहिए. किंतु मैं स्वयं को भी लज्जित महसूस कर रहा हूं. तुम्हारी चिकनीचुपड़ी बातों में आ मैं ने इस शरीफजादी के साथ बेइंसाफी की है. अब तुम्हारे साथ इंसाफ शहंशाह ही करेंगे.’’


काजी ने पूरे मामले को मुगल बादशाह शाहजहां के पास फैसले के लिए भेज दिया. दोनों की मुगल दरबार में पेशी हुई. युवती ने सारी घटना का वर्णन कर बादशाह से इंसाफ करने की प्रार्थना की. बादशाह ने वृद्धा दासी से पूछताछ की तो उस ने डरतेडरते सही घटना बता दी शाहजहां ने युवक से प्रश्न किया तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि वह उस औरत के प्रेम में पड़ गया था. पर उस की उपेक्षा से वह उसे किसी भी तरह हासिल करने को कटिबद्ध हो गया था. उस ने उस वृद्धा बांदी को लालच दे उस से उस युवती के शरीर के गुप्त चिह्नों की जानकारी पा काजी को बहका कर अपने पक्ष में फैसला करवा लिया था. वह युवती 8 महीने बाद अपना केश विन्यास बदल तथा दूसरे किस्म के कपड़े पहन अपने दोनों दासों की सहायता से उसे जबरदस्ती काजी की अदालत में ले गई. फिर उस ने चोरी के मामले में उसे अभियुक्त ठहराना चाहा तो वह उस के बदले भेस के चलते उसे पहचान नहीं पाया.


वह अपने किए पर लज्जित था तथा बादशाह से माफ कर देने की आरजू कर रहा था. बादशाह ने गंभीर हो कहा, ‘‘एक शरीफ औरत को बदनामी के साथसाथ मानसिक कष्ट भी हुआ. उस की क्षतिपूर्ति तो मैं स्वयं भी नहीं कर सकता. किंतु इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो, अत: युवक और वृद्धा बांदी को कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए.’’


बादशाह ने युवती की बुद्धि की तारीफ कर उसे पुरस्कृत किया. उसी दिन बादशाह के आदेश से दिल्ली के राजपथ पर उस युवक और उस की सहयोगिनी वृद्धा बांदी को कमर तक मिट्टी में गाड़ दिया गया. फिर तीर मार कर दोनों की हत्या कर दी गई. दोनों की मृत देह 24 घंटे तक रास्ते पर पड़ी रही, जिस से कि राहगीर उन्हें देख कर शिक्षा ग्रहण करें. युवती द्वारा नहले पर दहला मारने की घटना भी दिल्ली में काफी दिनों तक चर्चित रही.

'