कहानी: वचन
पूजा और साहिल के काम पर चले जाने के बाद ममता मां जी को उन के कमरे से बाहर हौल में ले आती थी और अपने रोज के काम करती रहती थी.
पूजा ने भी ममता पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाला था. पूजा के पति साहिल एक कंपनी में बड़े पद पर काम करते थे. उन्हें भी काम के सिलसिले में अकसर शहर से बाहर जानाआना पड़ता था. ऐसे में पूजा के पूरे घर की जिम्मेदारी ममता के कंधों पर थी. ममता को अपने घर वापस जाने में शाम हो जाती थी. तब तक राधा स्कूल से आ कर घर के सारे काम निबटा देती थी ताकि मां को बंगले पर से लौट के आने के बाद कुछ करना न पड़े और वह आराम कर सके.
ममता के घर वापस आने के बाद शाम की चाय दोनो मांबेटी साथ में पीती थीं.
समय का चक्र घूमता जा रहा था. राधा युवावस्था में प्रवेश कर चुकी थी. पूजा मेमसाब के सहयोग से शहर के एक अच्छे कालेज मैं उस का दाखिला हो गया था. राधा पढ़ाई में बहुत होनहार थी. इसलिए पूजा ने ममता को आश्वासन दिया था कि राधा जितना पढ़ना चाहे, उसे पढ़ने देना. कालेज की फीस या और किसी भी बात की चिंता करने की उसे जरूरत नहीं है. वह सब देख लेगी. अचानक से ममता खुद को एक बड़ी चिंता से मुक्त होता हुआ महसूस कर रही थी.
पूजा मेमसाब के लिए उस के दिल में इज्जत और बढ़ गई थी. पति की मृत्यु के बाद उस के सगेसंबंधियों ने उस का साथ नहीं दिया था. यहां तक कि उस के मायके वालों ने भी उस से मुंह फेर लिया था. पूजा मेमसाब न होतीं तो वह राधा की परवरिश कैसे करती. यह सब सोच कर प्रकृति का शुक्रिया अदा करते हुए विचार कर रही थी कि पूजा मेमसाब का कर्ज कैसे उतार पायेगी वह.
पूजा और साहिल के काम पर चले जाने के बाद ममता मां जी को उन के कमरे से बाहर हौल में ले आती थी और अपने रोज के काम करती रहती थी. एक दिन दोपहर के 3 बज रहे थे. ममता मां जी के पास बैठ कर सब्जी काट रही थी. अचानक दरवाजे की घंटी बजी तो ममता
यह सोचते हुए उठी कि अभी इस समय कौन आया होगा? पूजा मेमसाब तो शहर के बाहर गई हैं, रात होगी आने को, बोल के गई थीं.
ममता ने दरवाजा खोला, तो देखा, साहब का ड्राइवर रमेश खड़ा था. उस के सिर से खून बह रहा था. ममता के मुंह से चीख निकल गई. ड्राइवर बोला, ‘ममता दीदी, हमारी गाड़ी का ऐक्सिडैंट हो गया है, साहब को बहुत चोट आई है. मैं उन्हें अस्पताल में भरती करवा कर आया हूं. मेमसाब कहां हैं, जल्दी बुलाओ, मैं तब तक दूसरी गाड़ी निकालता हूं मेमसाब को अस्पताल ले जाने के लिए.’
ममता ने कहा, ‘दूसरी गाड़ी ले कर पूजा मेमसाब शहर के बाहर गई हैं. उन्हें लौटने में समय लगेगा.’
रमेश बोला, ‘अब क्या करें ममता दीदी, अस्पताल में तो पैसे भी जमा करने बोल रहे हैं.’
ममता को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. मेमसाब को फ़ोन करने का कोई मतलब नहीं हैं. वे कितनी भी जल्दी करेंगी तो भी शाम होने के पहले वापस नहीं आ पाएंगी.
उधर मां जी बारबार चिल्ला रही थीं उसे, ‘क्या हो गया, मुझे कुछ बताएगी कि नहीं? कौन आया है?’
ममता ने उन को नजरअंदाज कर दिया था. पहले अस्पताल पहुंचना जरूरी है, उस ने सोचा.
वह झट से फोन के पास गई और राधा को फोन लगा कर बोली, ‘बेटा, जल्दी बगंले पर आ जा और सुन, आटे के डब्बे के अंदर एक सफेद रंग की थैली रखी है, वह बहुत संभाल कर लेती आना.’
फ़ोन रख कर ममता मां जी के पास आ कर उन को समझाती हुई बोली, ‘मैं कुछ काम से बाहर जा रही हूं, राधा आ रही है. मेरे वापस आते तक आप के पास रहेगी.’
‘पर, तू जा कहां रही है? कौन आया है? चिल्लाई क्यों थी? कुछ तो बता.’
ममता बोली, ‘आने के बाद बताती हूं सब. अभी मुझे जाना है. इतने में राधा आ चुकी थी, बोली, ‘क्या हो गया मां? तुम ने अचानक मुझे बुलाया, सब ठीक तो है?’
ममता उस का हाथ पकड़ कर उसे बाहर ले गई और उसे सारी बात समझा दी और उस से वह सफेद थैली ले ली.
राधा बोली, ‘तुम यहां की चिंता मत करो मां. जल्दी जाओ. साहब अकेले हैं अस्पताल में.’
ममता जातेजाते वापस आई और राधा को छाती से लगाती हुई बोली, ‘बेटा, घबराना मत.’ और ममता रमेश के साथ अस्पताल के लिए निकल गई.
अस्पताल पहुंचते ही ममता डाक्टर साहब का कमरा ढूंढने लगी. एक नर्स से उस ने साहिल का नाम ले कर पूछा कि वे कौन से कमरे में हैं.
नर्स ने कहा, ‘वे आईसीयू में हैं. वहां जाने की अनुमति किसी को भी नहीं है.’
ममता डाक्टर साहब के पास गई और बोली, ‘डाक्टर साहब मेरे साहब अब कैसे हैं? ठीक तो हो जाएंगे न? डरने की कोई बात तो नहीं है न?’
डाक्टर ने ममता को साहिल का ब्लडग्रुप बताया तो ममता सिर पर हाथ रख बैठ गई और खुद को कोसने लगी कि समय की कितनी मारी है.
डाक्टर ने कहा, ‘उन्हें खून चढ़ाना पड़ेगा. उन के घर के लोग किधर हैं? वे अब तक आए क्यों नहीं? आप उन के घर के सभी सदस्यों को जल्दी बुला लीजिए ताकि उन के खून से हम पेशेंट के खून की जांच कर सकें. अगर समय पर उन को खून नहीं चढ़ाया गया तो उन का बचना बहुत मुश्किल है क्योंकि हम हर मुमकिन कोशिश कर चुके हैं. बाहर ब्लडबैंक में उन के ग्रुप का खून नहीं मिल रहा है. आप जल्दी करिए, देर नहीं होनी चाहिए.’
ममता ने कहा, ‘मेमसाब तो शहर के बाहर हैं, उन को आने में शाम होगी. आप मुझे बताइए, साहब का ब्लडग्रुप क्या है?’
डाक्टर ने ममता को साहिल का ब्लडग्रुप बताया तो ममता सिर पर हाथ रख बैठ गई और खुद को कोसने लगी कि समय की कितनी मारी है वह. ममता खुद को बहुत मजबूर महसूस कर रही थी. थोड़ी देर चुप रहने के बाद ममता ने अस्पताल के फ़ोन से राधा को फोन लगा कर कहा कि वह मेमसाब को फोन कर के सिर्फ इतना बता दे कि साहब का ऐक्सिडैंट हो गया है और लौट कर सीधे अस्पताल आने को बोलना. फिर वह डाक्टर के कमरे की तरफ बढ़ गई.
डाक्टर साहब के पास जा कर वह बोली कि मेमसाब को आने में समय लगेगा, जब तक कोई और वयवस्था नहीं होती, उस के खून की जांच कर लें.
ममता का खून साहिल के खून से मैच हो जाएगा, यह ममता जानती थी. उस ने अपना खून दे कर पूजा मेमसाब के सुहाग को तो बचा लिया था पर किस को पता था कि वह अपनी जान खतरे में डाल चुकी है.
रात के 9:00 बज चुके थे. पूजा अस्पताल पहुंची, तो देखा ड्राइवर बाहर ही बैंच पर बैठा था.
उस ने पहले ड्राइवर से पूछा कि रमेश, तुम ठीक हो न?
‘जी मेमसाब, मैं ठीक हूं. और साहब भी अब खतरे से बाहर हैं.’
इतना सुनते ही पूजा ने सुकून की सांस ली और जैसे ही आगे जाने लगी, रमेश ने कहा, ‘पर मेमसाब, ममता दीदी…’ ममता का नाम सुन कर पूजा वापस आई और रमेश को चिल्लाती हुई बोली, ‘क्या हुआ ममता को, रमेश? बोलो, क्या हुआ ममता को?’
रमेश ने कहा, ‘ममता दीदी की हालत नाजुक है मेमसाब. साहब के सिर पर चोट लगने की वजह से उन का बहुत खून बह गया था और डाक्टर साहब के बहुत कोशिश करने पर भी साहब का ब्लडग्रुप ब्लड बैंक में नहीं मिला. ममता दीदी का खून साहब के खून से मिल गया था. इसलिए ममता दीदी ने अपना खून दे कर साहब की जान बचा ली.’
यह सब सुन कर पूजा के पैर के नीचे से जमीन सरक गई थी और वह सोचने लगी कि अब वह राधा को क्या मुंह दिखाएगी.
पूजा भागती हुई डाक्टर के पास गई और बोली, ‘मैं साहिल की पत्नी हूं.’
डाक्टर साहब बोले, ‘चिंता मत करिए, अब वे ठीक हैं, थोड़ी देर में उन को रूम में शिफ्ट करेंगे, तब आप मिल सकती हैं.’
‘ममता कैसी है?’
डाक्टर ने कहा, ‘खून देने के कुछ घंटे बाद वे बेहोश हो कर गिर पड़ी थीं.
उस के बाद हम ने उन के कुछ टैस्ट किए, जिन की रिपोर्ट्स अच्छी नहीं हैं. अभी कुछ कह नहीं सकते. उन का इलाज चल रहा है. तब तक आप पेपरवर्क पूरा कर दीजिए. और हां, आप की मेड ने यहां आने के बाद 25 हज़ार रुपए जमा करवाए थे. उस की रसीद काउंटर से ले लीजिए.’
पूजा के मन में जाने कितने सवाल एकसाथ घूम रहे थे. सबकुछ जानने के बाद भी ममता ने ऐसा क्यों? क्यों अपनी जान ख़तरे में डाल दी? राधा के बारे में नहीं सोचा? वे 25 हज़ार रुपए उस की 4 साल की जमा पूंजी होगी. अपनी संस्था के जरिए मैं ने न जाने कितनी ही औरतों का जीवन सुधारा और संवारा है पर अपने ही घर में अपनी नजरों के सामने रहने वाली ममता के लिए मैं ने क्या किया? अपने स्वार्थ के लिए अपनी जिम्मेदारियों का बोझ उस पर डाल दिया. उस के स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोचा मैं ने. इन सब सवालों ने पूजा को आत्मग्लानि से भर दिया था.
2 वर्षों पहले की घटना पूजा के सामने आज वर्तमान बन कर खड़ी थी. अचानक एक दिन ममता काम करतेकरते बेहोश हो गई थी. पूजा ने घर पर डाक्टर को बुलाया तो डाक्टर ने ममता को देख कर पूछा था कि इन्होंने हाल ही में रक्त दान किया है क्या?
पूजा ने कहा, ‘पता नहीं डाक्टर साहब, मेरे से तो कोई जिक्र नहीं किया इस ने.’
डाक्टर ने कहा, ‘ऐसा ही लग रहा है इन की हालत देख कर. इन के शरीर में खून की कमी है.
मैं दवाई और टौनिक लिख देता हूं. इन को समय पर लेने के लिए बोलिए. खानेपीने का खयाल रखना भी जरूरी है. और एक बात, आगे से कभी भी ये रक्त दान न करें. इन की जान को भी खतरा हो सकता है.’ यह बोल कर डाक्टर साहब चले गए थे.
पूजा ने रमेश को भेज कर ममता के लिए दवाई, टौनिक और कुछ फल मंगवा लिए थे.
पूरे एक घंटे बाद ममता जब होश में आई तो पूजा मेमसाब ने दूध से भरा गिलास उस के हाथ में थमाते हुए पूछा था, ‘तूने रक्त दान किया है? राधा को पता है यह बात?’
ममता डरतीडरती बोली, ‘नहीं मेमसाब, राधा को नहीं पता है. उसे पता भी नहीं लगने देना. वह ऐसे ही बहुत चिंता करती है मेरी.’
पूजा चिल्लाती हुई ममता से बोली, ‘तुझे पता भी है कि तू बेहोश हो गई थी. क्या जरूरत थी खून देने की?’
ममता ने कहा, ‘पड़ोस में 10 दस साल की बच्ची छत से गिर गई थी. उसे खून की जरूरत थी मेमसाब. आसपड़ोस के सभी लोग खून की जांच करवाने के लिए जा रहे थे ताकि उस बच्ची को खून दे सकें. किसी का खून बच्ची के खून से नहीं मिला. पर मेरा खून मिल गया. उस की मां मेरे सामने आ कर मिन्नतें करने लगी, मैं कैसे उसे मना करती.’
‘वह सब ठीक है ममता,’ पूजा ने कहा, ‘किसी की मदद करने में कोई बुराई नहीं है. पर अगर तुझे कुछ हो जाता तो… डाक्टर ने बोला है कि दोबारा तूने ऐसा कुछ भी किया तो तू अपनी जान ख़तरे में डाल देगी. राधा का क्या होगा, सोचा है,’ पूजा बोली थी.
आप के रहते मुझे मुझे राधा की चिंता नहीं है मेमसाब,’ ममता बोली, ऐसे भी मैं ने राधा को सिर्फ जन्म दिया है व उसे बड़ा किया है पर उस से जुड़ी हर जिम्मेदारी को तो आप ने ही…’
ममता को बीच में ही रोकती हुई पूजा बोली, ‘मैं कुछ सुनना नहीं चाहती, तुझे वचन देना होगा मुझे कि तू आज के बाद किसी को रक्त दान नहीं करेगी.’
ममता ने कहा, ‘ठीक है मेमसाब, मैं वचन देती हूं.’
पूजा को क्या पता था कि ममता उस को दिया हुआ वचन एक दिन उस के ही सुहाग को बचाने के लिए तोड़ देगी.
“मैडम, मैडम,” नर्स की आवाज सुन पूजा अतीत से वर्तमान में लौट आई थी.
नर्स ने कहा, “आप के पति को होश आ गया है.”
पूजा भागते हुए साहिल के कमरे में गई और उस से लिपट कर रोने लगी. आंसुओं के सैलाब को रोकना अब उस के लिए मुमकिन नहीं था.
साहिल ने उस को संभालते हुए कहा, “मै ठीक हूं पूजा. कुछ नहीं हुआ है मुझे.”
थोडी देर बाद पूजा को एहसास हुआ कि साहिल को ममता के बारे में कैसे पता होगा. खुद को शांत करती हुई पूजा बोली, “तुम्हें पता है, ममता ने अपना खून दे कर तुम्हें एक नई जिंदगी दी है. आज और अपनी जान खतरे में डाल दी उस ने.”
साहिल ने आश्चर्य से कहा, “ममता ने…?”
उस ने हम दोनों को जिंदगीभर के लिए अपना ऋणी बना दिया है साहिल.”
साहिल ने पूजा से कहा, “ममता को कुछ नहीं होना चाहिए पूजा, हम राधा का सामना कैसे करेंगे?”
साहिल और पूजा बात कर ही रहे थे कि नर्स ने पूजा को बाहर बुला कर कहा, “ममता की हालत बिगड़ती ही जा रही है, जल्दी चलिए.”
पूजा बदहवास सी ममता के कमरे की तरफ भागी. डाक्टर साहब उसे इंजैक्शन लगाने की तैयारी कर रहे थे.
पूजा को देख कर ममता ने धीरे से अपना हाथ उठाया, तो पूजा ने जल्दी से उस का हाथ थाम कर अपने माथे से लगाते हुए कहा, “यह तूने क्या कर दिया ममता? राधा के बारे में तो सोचा होता.”
ममता ने धीरे से कहा, “रिशतों को अपने खून से सींचना आप से ही सीखा है मेमसाब. राधा को सिर्फ इस लायक बना देना कि वह अकेले खुद को संभाल सके, अपनी जिंदगी जी सके.” इतना कह कर ममता ने हमेशा के लिए खामोशी की चादर ओढ़ ली थी.
दुनिया छोड़ कर ममता को गए पूरे 3 वर्ष हो चुके थे. ममता के घर की छत पर अब ‘ममता ब्लड बैंक’ का बोर्ड लग चुका था. साहिल और पूजा ने सारी जरूरी कागजी कार्रवाई कर के राधा को अपनी बेटी के रूप में गोद ले लिया था.
आज सुबह से ही घर में बहुत रौनक़ थी. रसोईघर से स्वादिष्ठ व्यंजनों की ख़ुशबू आ रही थी. “पूजा, मैं एयरपोर्ट के लिए निकल रहा हूं,” साहिल ने पूजा को आवाज देते हुए सूचित किया था.
मां जी ने ज़िद कर के अपनी आरामकुरसी बाहर बरामदे में ही रखवा ली थी और जा कर बैठ गई थीं उस पर.
पूजा ममता की फोटो के सामने दीया जलाती हुई बुदबुदा रही थी, ‘खुश तो है न तू, आज पूरे 3 साल बाद राधा वापस आ रही है वह भी इस शहर की कलैक्टर बन कर. तू तो चली गई अपना ‘वचन’ तोड़ कर लेकिन देख तेरे ‘वचन’ की लाज रख ली मैं ने.’
“पूजा पूजा, राधा बिटिया आ गई,” मां जी ने चिल्लाते हुए कहा, तो पूजा आरती की थाली ले कर दौड़ पड़ी.
लेखिका-निधि पांडे