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बेसहारा नहीं 'कामधेनु' कहलाएंगीं गोशाला की गायें, गो आधारित खेती को गोशालाओं से जोड़ने की तैयारी

गाजीपुर न्यूज़ टीम, जौनपुर. गोवंश अब बेसहारा नहीं 'कामधेनु' कहलाएंगे। गो-संरक्षण केंद्रों के यह पशु अब न सिर्फ खेती के लिए वरदान साबित होंगे, बल्कि बेरोजगारों को काम भी देंगे। जनपद में गो आधारित खेती के लिए गोशालाओं को जोडऩे की तैयारी चल रही है। गोमूत्र व गोबर से खाद व कीटनाशक दवा बनाकर खेती में उपयोग किया जाएगा। प्रयोग के तौर पर फिलहाल एक स्वयं सहायता समूह को गोशाला संचालन की जिम्मेदारी सौंपने की कवायद चल रही है। वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों व जहरीले कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से भूमि, जल, वायु पूरा पर्यावरण प्रदूषित हुआ है, जिसके कारण विभिन्न प्रकार के रोग से मानव समाज भी अछूता नहीं है। ऐसे में जीरो बजट गो-आधारित प्राकृतिक खेती को अपनाया जाना आवश्यक हो गया है। 

बोले अधिकारी

मुख्य विकास अधिकारी की पहल पर धर्मापुर कृषक प्रोड्यूसर कंपनी से जुड़ी प्रगति स्वयं सहायता समूह को केराकत के सरौंनी गांव स्थित वृहद गो संरक्षण केंद्र के संचालन की जिम्मेदारी सौंपने ने तैयारी है। संस्था को गाइड लाइन के अनुसार चारा व देख-रेख के लिए धनराशि दी जाएगी। -डाक्टर राजेश सिंह, उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी।


बोलीं अधिकारी

संस्था से 35 समूहों के 615 महिलाओं सहित एक हजार से अधिक किसान जुड़े हैं। गो-आधारित खेती के लिए किसानों को जोड़कर रोल माडल बनाया जाएगा। इससे जहां वे आत्म निर्भर होंगे वहीं पर्यावरण प्रदूषण भी रुकेगा। गोशालाओं के गोवंशों को आवश्यकता के अनुसार पौष्टिक आहार, उपचार करके दुग्ध उत्पादन से जोड़ा जाएगा, वहीं अक्षम पशुओं के भी गोबर व मूत्र के उर्वरक व कीटनाशक दवाएं बनाई जाएंगी। पहले एक गोशाला को संचालन के लिए लिया जा रहा है। सबकुछ ठीक रहा तो गो आधारित खेती के लिए गोशालाओं को वृहद पैमाने पर जोड़ा जाएगा। -संध्या सिंह, निदेशक, धर्मापुर कृषि प्रोड्यूसर कंपनी।

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