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कहानी: अपने अपने सपने

पंखुरी डा. मणि के जीवन में एक खास अनुभव बन कर आई जिस ने उन्हें समझाया कि सभी के अपने सपने होते हैं और वे उतने ही जरूरी हैं जितने खुद के. बस, समझनेसमझने की बात है जो एक पिता नहीं समझ पा रहा था.

डा. मणि अपने चिरप्रतीक्षित सपने को साकार  रूप में मूर्त देख बहुत प्रसन्न थीं. उन की बेटी आद्या ने उन का नर्सिंग होम जौइन कर के उन्हें चिंतामुक्त कर दिया था. डा. अवनीश के साथ उस की जुगलबंदी देख वे मन ही मन उस के सुखद दांपत्य की कल्पना करतीं. लेकिन यह निर्णय तो पूर्णतया आद्या को या उन दोनों को ही करना होगा.


पिछले 10 वर्षों में इस नर्सिंग होम के रूप में जिस पौधे को उन्होंने  रोपा था वह आज वटवृक्ष बन कर शहर के विश्वसनीय नर्सिंग होम में शुमार हो चुका है. अब उन के चेहरे पर अपने सपने के पूर्ण होने की अपूर्व संतुष्टि का भाव रहता था.


एक क्रिटिकल केस में वे घंटों से परेशान थीं. जैसे ही पेशेंट ने आंखें फड़फड़ाईं, वे डा. पूनम को सब समझा कर अपने केबिन में आ गईं और ललिता से कौफी लाने के लिए कह कर आंखें बंद कर कुछ देर रिलैक्स होने की कोशिश करने लगीं कि तभी रीना अंदर आई और एक विजिटिंग कार्ड उन के सामने रख दिया.


उन्होंने उड़ती नजर से कार्ड को देखा, बोलीं, “आज मैं किसी मैडिकल रिप्रैजेन्टेटिव  से नहीं मिल पाऊंगी,  उन्हें डा. अवनीश से मिलने को कह दो.”


“डा. मैडम,  वे आप से ही मिलना चाहती हैं.‘’


उन्होंने कार्ड पर फिर नजर डाली, पंखुरी सिंह…“भेज दो.”


25 – 30 वर्षीया, छरहरी सी आकर्षक युवती, आंखों के अंदर से  झांकती कजरारी आंखें और माथे पर झूलती घुंघराली लटें,  कंधे पर सुंदर सा बैग लटकाअए हुई अंदर आते ही बोली, “डाक्टर साहिबा, नमस्कार.”


“नमस्कार,” उन्हें ऐसा लगा कि जैसे कोई चंदा मांगने के लिए आया है, इसलिए रूखी आवाज में बोलीँ, “क्या काम है?”


“मैडम, आप ने मुझे पहचाना नहीं?”


वे गौर से उस के चेहरे को देखने लगीं. अपने स्मृतिपटल को काफी खंगालने के बाद भी वे पहचान का सूत्र तलाशने में असमर्थ रही थीं. रोज सैकड़ों मरीजों व उन के रिश्तेदारों से मिलते रहने के कारण  मन में सबकुछ गड्डमड्ड सा हो रहा था.


फिर भी उस का चेहरा जानापहचाना सा जाने क्यों लग रहा था उन्हें.


“मैं, पंखुरी, जिस को  आप ने नया जीवन सच्चे अर्थों में दिया था.”


वे एकदम खड़ी हो गई थीं, “ओह पंखुरी, सालों पहले तुम अपनी मां के साथ आई थीं. तुम्हारे पापा पुलिस में थे, न.”


“यस, यस.”


“आओ बैठो, तुम्हारी मां व पापा सब ठीक तो हैं?”  यह कहने के बाद उन्होंने ललिता से कौफी  लाने को बोला और फिर से पंखुरी से मुखातिब हुईं, “मुझे कैसे याद किया, एनी प्रौब्लम?”


उस ने अपने बैग से एक कार्ड निकालते हुए कहा, “डा. मैडम, 4 मार्च को कला वीथिका सभागार  में मेरी एकल प्रदर्शनी है. उस की चीफ गैस्ट आप होंगी,” वह सकुचाते हुए आगे बोली, “उदघाटन भी आप को करना है. मैं ने बिना आप की परमिशन उदघाटन के लिए आप का नाम दे दिया है, इस के लिए बड़ा वाला सौरी.” वह सिर झुकाए खड़ी थी.


वे हंस पड़ी थीं.  उन्होंने कार्ड को ध्यान से देखा- ‘4 मार्च, सन्डे, शाम  3 बजे, …कला वीथिका. फिर बोलीं, “ठीक है, मैं आऊंगी.”


“मैं गाड़ी भेजूं?”


“नो नीड टु बी फौर्मल,” यह कह उन्होंने उठ कर उसे प्यार से गले लगा लिया.


“मैडम, मेरा ‘यशोदा’ नाम से बुटीक भी है. यह मेरे द्वारा डिजायन किया हुआ सूट आप के लिए मेरी ओर से गिफ्ट है.”


“अरे, इट्स ग्रेट, वेरी नाइस सूट. थैंक्स पंखुरी. आद्या, मेरी बेटी, ‘यशोदा बुटीक‘ के लिए कुछ कह तो रही थी. पंखुरी, आई विल कम.”


“बाय…” कहती हुई वह  चली गई थी.


वह ठंडी हवा के झोंके की तरह आई  और  चली गई. उन के स्मृतिपटल पर अतीत का पृष्ठ सजीव हो उठा और  पंखुरी का  क्लांत श्रांत चेहरा उन की आंखों के समक्ष दृष्टिगत हो उठा था. और आज, आत्मविश्वास से परिपूर्ण स्वाभिमानी युवती को देख मन ही मन आत्मसंतुष्टि  से उन के चेहरे पर मुसकराहट छा गई थी.


वे अतीत के दिनों में पहुंच गई थीं…एक रात को 9 बजे ही वे अपनी कुरसी से घर जाने के लिए उठी थीं और अपने नर्सिंग होम का राउंड लेने के बाद मन ही मन बुदबुदाईं, ‘चलो, आज कोई सीरियस पेशेंट नहीं है. आज की रात चैन से सोऊंगी. घर जल्दी पहुंच कर थोड़ी देर आद्या के साथ भी समय बिताऊंगी.


उस की प्रिंसिपल ने भी एक दिन उन्हें बुला कर कहा भी था- डा. मणि, आप की बेटी शायद अकेलापन महसूस करती है. आप उसे थोड़ा टाइम दिया करिए. कहीं ऐसा न हो कि आप दूसरों का इलाज करती रह जाइए और आप की अपनी ही बेटी बीमार हो जाए.


घर आ कर वे आद्या पर कितनी नाराज हो उठी थीं. वे सोचने लगी थीं कि इस साल वह 12वीं पास तो हो जाएगी लेकिन अपनी पढ़ाई को ले कर वह सीरियस नहीं है. मेरे सपने का क्या होगा? एक आद्या ही तो  उन के जीवन की धुरी है. उस को हर हाल में उन का सपना पूरा  करना ही होगा.  यदि कंपीटिशन में अच्छी रैंक न आई, तो क्या होगा?


किसी अच्छे कालेज में एडमिशन के लिए कम से कम 50 लाख रुपए का खर्च आएगा. अभी तो नर्सिंग होम की ईएमआई चल ही रही है. इतने बड़े स्टाफ की सैलरी, नईनई मशीनें आदि सबकुछ लोन के बलबूते ही तो इतना बड़ा साम्राज्य  खड़ा हुआ  है. उन्होंने निश्चय किया कि आज ही वे आद्या से अवश्य अपने सपने को पूरा करने के लिए सीरियस हो जाने के लिए  कहेंगी.


वे स्टाफ को रात के लिए आवश्यक निर्देश देने के बाद अपनी गाड़ी स्टार्ट कर रही थीं कि सुपरवाइजर लीला घबराई हुई सी भागती हुई आई थी, ‘मैडम, इमरजैंसी केस है. लड़की बेहोश है. उस के मुंह से झाग निकल रहा है. शायद, उस ने कुछ उलटासीधा खा लिया है.’


लड़की की हालत नाजुक थी. उस का चेहरा काला पड़ गया था, मुंह से झाग निकल रहा था. वह पूरी तरह से अचेत थी.

‘नाइट ड्यूटी पर डा. पूनम हैं, वे इस केस को संभाल  लेंगी.’


‘उन्होंने ही तो मुझे आप को बुलाने के लिए भेजा है.’


उसी समय लड़की की मां रोती हुई आई और उन के पैरों पर गिर पड़ी थी.


उन्होंने उसे उठाया, ‘क्या बात है?’ पूछा था.


‘डा. आप मेरे लिए भगवान की तरह हैं. आप का बहुत नाम सुन रखा है. मेरी बेटी को प्लीज बचा लीजिए. डा. साहब, मेरी बेटी को कुछ हो गया तो मैं यहीं पर सिर पटकपटक कर अपनी जान दे दूंगी.’


वे लीला से लड़की की हालत के बारे में जानकारी ले रही थीं कि महिला के पति जीप से उतरते दिखे, शायद वे पुलिस अधिकारी थे क्योंकि उन के साथ कई पुलिस वाले वहां खड़े हुए थे.   मामले की गंभीरता को देखते हुए वे इमरजैंसी की तरफ चल दी थीं.


लड़की की हालत नाजुक थी. उस का चेहरा काला पड़ गया था, मुंह से झाग निकल रहा था. वह पूरी तरह से अचेत थी.


उस पर नजर पड़ते ही वे खुद एक क्षण को सहम गई थीं. फूल सी कोमल, नाजुक लड़की, जिस की उम्र 18 -19  वर्ष के आसपास रही होगी. दूध सा धवल रंग सांवला पड़ गया था, काले घुंघराले बाल बारबार चेहरे पर अठखेलियां करने को बेताब थे. वे सोचने को मजबूर हो गई थीं कि इस नाजुक सी कली ऩे ऐसा कदम क्यों कर उठाया होगा?


वे तत्काल उस के उपचार में जुट गई थीं. ड़ा. पूनम से बातचीत कर स्वयं ही उस की निगरानी करने लगीं. लगभग एक घंटे बाद वे अपने केबिन में आईं. उन्होंने शीशे से बाहर निगाह डाली, तो देखा कि उस की मां की आंखों से निरंतर अश्रुधारा प्रवाहित हो रही थी. अधिकारी पति के चेहरे से लग रहा था कि वह शायद पत्नी को घुड़क रहे थे.


उन को केबिन में देखते ही पतिपत्नी दोनों दरवाजा खोल कर तेजी से अंदर आए थे. ‘डा. साहब, मेरी बेटी अब कैसी है, वह ठीक है न?’


‘आप पहले मुझे बताइए कि ऐसा क्या कारण है कि बच्ची ऐसा कदम उठाने को मजबूर हो गई?’


मुखर अधिकारी पति पत्नी को डपटते हुए बोले, ‘डा. साहब, सब इन्हीं के लाड़प्यार का नतीजा है.’


डा. मणि अपने को नहीं रोक पाई थीं, ‘लेकिन, आज तो इन्हीं की वजह से इस बच्ची की जान बच सकती है. यदि एक घंटा और बीत जाता तो इस की जान बचाना मुश्किल हो जाता और आप लोग हाथ मलते ही रह जाते. बेहोश लड़की को अकेले औटो में ले कर आना हिम्मत का काम है. इस समय जाने कैसे ये इस को ले कर यहां आई हैं?’


‘वैसे डा. साहब, ये पढ़ीलिखी नहीं हैं और अपनी बेटी को भी अपनी तरह ही बनाना चाह रही हैं. लेकिन डा., मैं ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि तुम्हें हर हालत में आईएएस औफिसर बनना ही है, उस से कम मुझे मंजूर नहीं.’


‘देखिए सर, यह हौस्पिटल है, यहां जोरजोर से बोलना मना है. आप दोनों बाहर बैठ जाइए. अभी भी आप की बेटी की हालत नाजुक है. बेटी के होश में आने का इंतजार करिए.’


मां गिड़गिड़ाती हुई बोली, ‘डा. साहब, मुझे एक बार बेटी को देख लेने दीजिए.’ और बदहवास हो कर फिर से डा. के पैर पर गिरने का उपक्रम करने लगी थी.


वे स्वयं भी एक मां थीं.  उस के दिल की पीड़ा का गहराई से अनुभव कर सकती थीं. सो, वे स्वयं महिला को सहारा दे कर उस की बेटी के पास ले गईं. बेटी के चेहरे, बाल पर हाथ फेरती हुई वह सिसकने लगी थी.


अधिकारी उन के पीछेपीछे आ गए थे. वे उन्हें जोर से डांट कर बोले, ‘बंद करो अपना यह नाटक. अपनी आंख खुली रखतीं, तो आज यह दिन न देखना पड़ता.’


वह सहम कर पति अवधेश के पीछेपीछे चल कर बाहर आ गई और कुरसी पर आंख बंद कर के बैठ गई थी.


उक्त महिला यानी यशोदा जी ने अपनी बेटी के बचपन की बातें डा. मणि को एक दिन सुनाई थीं… पंखुरी छोटी सी थी तब से उसे स्केचिंग का शौक था. उसे स्कूल से कई बार मैडल भी मिले थे. उस की प्रतिभा को पहचान कर उस की टीचर और प्रिंसिपल ने उन से कहा था कि इस का एडमिशन किसी आर्ट स्कूल में करवा दीजिए. यह बहुत आगे तक जाएगी. इस के अंदर प्रतिभा कूटकूट कर भरी हुई है. लेकिन पति की नाराजगी के डर के कारण उस के मुंह से आवाज ही नहीं निकलती थी.


एक दिन वह स्केचिंग में इतनी खोई हुई थी कि उस को पापा के अंदर आने की आहट ही न हो पाई थी. उन्होंने स्केचिंग करते देख आव देखा न ताव, उस के सुंदर चित्रों की फाइल को बेदर्दी से चिंदीचिंदी कर के हवा में उड़ाते हुए बोले, ‘खबरदार, यदि मैं ने अब कभी स्केचिंग करते देखा तो समझ लो, कैदियों की तरह कमरे में बंद कर दूंगा.’


उस दिन वह घंटों फूटफूट कर रोती रही थी. मांबेटी दोनों एकदूसरे से लिपट कर अपनी मजबूरी पर सारी रात आंसू बहाती रही थीं.


अब वह डर के कारण आधी रात को चोरीछिपे स्केचिंग कर के अपना शौक पूरा किया करती थी. उन्होंने बेटी के इस हुनर को देखा, परखा और समझा भी. परंतु अड़ियल पिता की जिद के कारण वह अपनी बेबसी पर आंसू बहा कर रह जाती थी.


पंखुरी 7वीं क्लास में आ गई थी. उसे मैथ्स में अच्छे नंबर नहीं मिले थे. अवधेश जी ने एक 20-22 साल के लड़के जयेश, जो उन के परिचित का बेटा था, को ट्यूटर की तरह रख दिया. वह एमएससी का छात्र था. वह अकसर पंखुरी के लिए चौकलेट ले कर आता. पंखुरी की मां ने उसे मना किया तो वह बोला, ‘आंटी, मेरी कोई बहन नहीं है, इसलिए यह मेरी छोटी बहन की तरह है.’ यह सुन वे चुप हो गई थीं.


परंतु लगभग 2 महीने भी नहीं हुए थे कि वह ट्यूटर को देख कर उन के पीछे छिपने लगी थी.


‘मम्मी, मुझे ट्यूटर से  नहीं पढना.’


‘क्यों, क्या बात है, मुझे बताओ?’


‘पापा मुझे डांटेंगे.’


वह उन के कान में फुसफुसा कर बोली थी, ‘वह उसे अपनी गोद में बिठाता है. उस के गालों को छूता है.‘ फिर वह डर कर चुप हो गई थी.


उस दिन के बाद से वह स्वयं कमरे में बैठ कर कुछ काम करने लगती थी. परंतु महीना पूरा होते ही जयेश ने स्वयं ही आना बंद कर दिया था. जिस की वजह से पति अवधेश उस पर बुरी तरह चीखेचिल्लाए थे.


वह अपनी कक्षा में प्रथम तो कभी नहीं आई परंतु पढ़ने में ठीकठाक थी. जब वह 8वीं कक्षा में अच्छे नंबर से पास हुई तो अवधेश जी ने खुश हो कर उसे एनरौयड फोन दिलवा दिया था. उसे कोचिंग जाने के लिए स्कूटी भी दिलवा दी थी.


अब तो उस की दुनिया ही बदल गई थी. उस के बहुत सारे दोस्त बन गए थे. वह कभीकभी क्लास कट कर पिक्चर जाया करती और उन्हें बता दिया करती थी.


‘मां, पापा को नहीं बताना, नहीं तो वे मेरी आफत कर देंगे.’


वे स्वयं उन से डरतीं थीं, इसलिए चुप रहतीं. लेकिन आगे से उसे जाने के लिए मन करती थीं.


परंतु अब उस का दायरा बढ़ने लगा था. वह स्कूल कैंटीन में कौफी और कोल्डड्रिंक का भी आनंद लेने लगी थी. इस के लिए भी जब उस की पौकेटमनी ख़त्म हो जाती तो वह उन से मांगती और वे न चाहते हुए भी उसे पैसे दे दिया करतीं. क्या वे गलत थीं, वे क्या करतीं?


यदि वे पति से कुछ भी कहतीं तो उन की अपनी मुसीबत होती और बेटी की तो जान की आफत ही हो जाती.


वह यूनिट टैस्ट में अच्छे नंबर नहीं ला रही थी. इसलिए उस ने अपने रिपोर्टकार्ड पर खुद से साइन बनाना शुरू कर दिया था.

कुछ दिनों तक तो वह हर समय अपने फोन के साथ ही खेलती रहती. उन्हें तो इस नए फोन की ज्यादा जानकारी थी नहीं, लेकिन जब समझने लगीं तो पता चला कि वह लिखलिख कर दोस्तों से बात करती रहती है.


उन्होंने उसे समझाया था कि पहले पढ़ाई किया करो, उस के बाद दोस्ती वगैरह. उस समय तो वह कहना मान जाती लेकिन फिर थोड़े दिनों के बाद कुछ नया करने को उस का मन मचल उठता था.


9वीं  में उस के नंबर अच्छे नहीं आए थे. अब वह 10वीं में आ गई थी, बोर्ड था. अवधेश जी ने उस की कोचिंग की संख्या बढ़ा दी थी. उन्होंने एक दिन धीरे से उन से कहा भी था कि वह थक जाएगी तो अपनी पढ़ाई कब किया करेगी. लेकिन उन को तो अपनी पुलिसिया सोच पर किसी का हस्तक्षेप दूसरों की गुस्ताखी महसूस होता और उन्हें तो वे दुनिया का सब से बड़ा मूर्ख समझा करते थे.


वह यूनिट टैस्ट में अच्छे नंबर नहीं ला रही थी. इसलिए उस ने अपने रिपोर्टकार्ड पर खुद से साइन बनाना शुरू कर दिया था.


एक दिन वे उस की मेज ठीक कर रही थीं तो उस की कौपी के बीच में लाल निशान लगा हुआ कार्ड दिखाई दिया था. उन्होंने शाम को पंखुरी को दिखा कर पूछा, तो वह ढिठाई से बोली, ‘जाइए, पापा से कह दीजिए, मैं उन की इच्छा के अनुसार क्लास में टौप नहीं कर सकती. बस, पास हो जाऊं, यही बहुत है.’


उन्होंने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि पढ़लिख ले, बेटा, वरना मेरी तरह पति की चार बातें सुननी पड़ेंगी.


वह उन से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी थी, ‘मौम, मैं क्या करूं? मैथ्स का प्लसमाइनस और फिजिक्स व कैमिस्ट्री के फार्मूले मेरे सिर के ऊपर से निकल जाते हैं. आप पापा को समझाइए कि मुझे आईएएस औफिसर बनने में कोई भी रुचि नहीं है. मैं अपनी जिंदगी अपनी तरह से जीना चाहती हूं. मैं आर्टिस्ट बनना चाहती हूं. मैं आर्ट गैलरी में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाना चाहती हूं. मेरा जीवन, मेरे सपने, मेरे अपने हैं. मैं उन की बेटी हूं, तो क्या सांस भी उन की परमिशन के बाद ही लेनी होगी.’


उस की बातें उन के दिल को छू गई थीं. लेकिन पति के सामने तो डर के मारे उन की बोलती ही बंद हो जाती थी. उन के कानों में उस की प्यारी सी खिलखिलाहट की मधुर आवाज गूंज रही थी. उस का उन से प्यार से लिपटना और पिता की डांट व पिटाई से बचने के लिए झूठ पर झूठ बोलते जाना…


बोर्ड की परीक्षाएं नजदीक आ गई थीं. कोचिंग सैंटर में रिवीजन कराया जा रहा था. स्कूल में प्रिपरेशन लीव हो गई थी. इसलिए वह सारे दिन घर पर रहती थी. जब भी वे उस के कमरे में झांकतीं, वह अपने मोबाइल पर कुछ करती होती या फिर बुक खोल कर उसे सोती हुई पाती थीं. यदि वे उस से ध्यान से पढ़ने को कहतीं तो वह एकदम नाराज हो कर उन पर चिड़चिड़ा उठती थी.


उस की बोर्ड की परीक्षा आरंभ हो गई थी. जब वह पेपर दे कर लौट कर आती तो उस का चेहरा बुझाबुझा हुआ होता था. वह मैथ्स का पेपर दे कर आई थी, तो उस के पापा ने उस का पेपर देखते ही एकदो प्रश्न के उत्तर पूछ डाले थे और गलत उत्तर सुनते ही भड़क उठे थे. वे चीख कर बोले, ‘मूर्ख की बेटी मूर्ख ही तो होगी. मैं ने व्यर्थ में ही इस लड़की से इतनी उम्मीद और आशाएं पाल रखी हैं.’


उन्होंने उस का पेपर फाड़ कर गुस्से में फेंक दिया था. उन के मुंह से आवेश में पुलिसिया गाली निकल पड़ी थी.


उस दिन वह घंटों फूटफूट कर रोती रही थी. किसी तरह उस ने अपने पेपर पूरे दिए लेकिन उस के बाद अब वह अपने कमरे से बहुत कम निकलती थी. खानापीना, हंसना, बात करना, टीवी देखना बंद कर दिया था, यहं तक कि, सहेलियों के फोन भी न उठाती, उन से भी बात न करती. बस, चुपचाप अपने कमरे में लेटी हुई शून्य को निहारती रहती. उस के चेहरे से उस की प्यारी सी मुसकान रूठ गई थी.


वे बेटी से बात करना चाहतीं तो वह मुंह फेर कर लेट जाती. वह गुमसुम, खोईखोई सी रहने लगी थी. वे बेटी की मानसिक दशा को देख कर चिंतित हो उठी थीं, परंतु अपना दर्द कहतीं तो किस से कहतीं. वे यह समझ रही थीं कि उन की बेटी निराशा के गर्त में डूब कर मानसिक रूप से बीमार हो गई है. परंतु अपना दर्द और मन का डर पति से कहने की हिम्मत नहीं जुटा  सकी थीं.


अवधेश जी ने  एक दिन व्यंग्यात्मक लहजे में बेटी से कहा था, ‘कितने फीसदी नंबर ला पाओगी? डोनेशन के लिए लाखों रुपयों का इंतजाम करना होगा, तभी तो तुम्हारा कहीं एडमिशन करवा पाऊंगा.’


निश्चय ही उस ने नैट पर अपना रिजल्ट देख कर यह कदम  उठाया होगा. यह सब उन्होंने डा. मणि को बता दिया था.


हौस्पिटल में आज यशोदा जी को अपनी बेबसी व कायरता पर बहुत क्रोध आ रहा था. उन्हें चुप देख कर पति बोले, “मेरा लाखों रुपया तुम्हारी लाड़ली ने मिट्टी में मिला दिया. इस को बरबाद करने में सौ प्रतिशत तुम्हारा हाथ है. सदानंद, जो मेरा चपरासी है, आज औफिस में मिठाई ले कर आया था, उस की लड़की कंपीटिशन में   मैरिट लिस्ट में आई है और दिल्ली आईआईटी में स्कौलरशिप के साथ इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है.” घृणा से मुंह सिकोड़ कर वे आगे बोले, “एक मेरी बेटी है, जिस ने मेरा नाम डुबो कर रख दिया. मेरा सिर इस लड़की के कारण शर्म से झुक गया. मैं कहीं मुंह दिखाने लायक न रहा.”


आज वे अपने को नहीं रोक पाई थीं, “आप कैसे पिता हैं, आप को अपनी बेटी की नहीं बल्कि अपने पैसे व स्टेटस की फिक्र हो रही है. इस समय भी आप अपने लाखों रुपए की बात कर रहे हैं. आप की बेटी अपने जीवन के लिए एकएक सांस के लिए संघर्ष कर रही है. आप को उस की जरा भी फिक्र नहीं है.” उन की आंखों से क्रोध टपक रहा था, वे आगे बोलीं, “आप से मैं ने कितनी बार कहने की कोशिश की कि आप की बेटी को साइंस से ज्यादा चित्रकला का शौक है. परंतु आप ने तो हर काम डंडे के जोर से करवाना सीखा है. हर काम में जबरदस्ती अच्छी नहीं होती.”


आज पहली बार उन्होंने पति के समक्ष जोर से बोलने का साहस किया था. पति कहीं जोरजोर से चीखनेचिल्लाने न लगें, इस डर के कारण वे वहां से उठ कर डाक्टर के पास चली गई थीं.


आज अवधेश जी को पहली बार अपनी गलती का एहसास हुआ था. वे उठ कर पत्नी की बगल में जा कर खड़े हो गए थे.


डा. मणि अंदर ही थीं. अब पतिपत्नी दोनों ही चिंतातुर दिखाई पड़ रहे थे. वे पत्नी का हाथ पकड़ कर आहिस्ता से  बोले, “मेरी पंखुरी अवश्य ठीक हो जाएगी, ऐसा मेरा विश्वास है.”


यशोदा जी का आत्मविश्वास बढ़ गया था. दोनों आ कर फिर से कुरसी पर बैठ गए थे.


“आप हर समय अपने  सपने, अपनी सोच मुझ पर थोपते रहे, अब उसी तरह बेटी को भी अपने डंडे के इशारे पर चलाना चाहते हैं. हर बच्चे की रुचि और क्षमता अलग होती है. किसी भी तरह की विशेष पढ़ाई के लिए उस को मजबूर मत करिए. आप की बेटी आप से डरती है, इसलिए वह आप से झूठ बोलती है, आप से सारी बातें छिपाया करती है. उस के अपने सपने हैं, अपनी इच्छाएं हैं. उसे अपनी तरह से जीने दीजिए. जब वह गलत रास्ते पर जाए तो फिर हम लोगों का कर्तव्य बनता है कि हम उस का मार्गदर्शन कर के सही रास्ता दिखाएं.


“जब कभी आप उसे पढ़ाने बैठते हैं, तो बातबात पर ‘झापड़ रसीद कर  दूंगा.’ कहते थे. कभीकभी 2 थप्पड़ लगा भी देते थे, तो कभी कौपीकिताब उठा कर फेंक भी देते थे. वह डरीसहमी हुई सही उत्तर जानते हुए भी गलत कर बैठती थी.


अधिकारी पिता का चेहरा खुशी से खिल उठा था, ‘डा. साहिबा, आप सच में इंसान नहीं, बल्कि भगवान हो. डाक्टर, प्लीज, मैं एक बार अपनी बेटी से माफी मांग सकता हूं.

“मैं कम पढ़ीलिखी हुई हूं, आप से विनती करती हूं कि आप अपने सपने को पूरा करने के लिए मेरी बेटी की बलि मत चढ़ाइए. सपने तो सपने ही होते हैं. पंखुरी को अपने सपनों की उड़ान भरने दीजिए.”


अवधेश जी की आंखें गीली हो गईं थीं. वे बोले, “तुम मुझ से कम पढ़ीलिखी हो, लेकिन कहीं अधिक समझदार हो. ये सब बातें तुम ने मुझ से पहले क्यों नहीं कहीं. शायद, मेरी अक्ल पर पड़ा हुआ परदा हट जाता. पंखुरी को होश में आने दो, मैं उस से माफी मांग लूंगा.”


डा. मणि आईसीयू में ही बैठी हुई पंखुरी के चेहरे पर नजर लगाए हुए थीं. उन्होंने उस को इंजैक्शन लगाया,  मौनिटर पर लगातार उन की निगाहें टिकी थीं. फिर वे उठ कर अपने केबिन में बैठ गईं. परंतु मन में अत्यंत बेचैनी महसूस कर रही थीं वे.


अनजाने में उस प्यारी बच्ची में वे अपनी आद्या की सूरत देख रही थीं. वे भी तो हर समय आद्या को डांटतीडपटती रहती हैं.


एक दिन वह उन से बोली थी कि, ‘मौम, मैं डाक्टर नहीं बनना चाहती. मुझे आप की लाइफ नहीं पसंद. मुझे मरीज के पास जाने से उबकाई आती है.’


‘पागल है तू, इतना बड़ा नर्सिंग होम तुम्हारे लिए ही तो बनवाया है. तेरे सिवा मेरे लिए इस दुनिया में मेरा कौन है.’


‘नो, मौम, आई डोन्ट लाइक,’ कहती हुई वह तेजी से अपने कमरे में चली गई थी. यह बात उस समय की है , जब वह क्लास 9वीं में थी. वे आद्या के ख़यालों  में खो गई थीं, तभी सिस्टर की आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई. लीला खुशी से भागती हुई आई, ‘डा. वह लड़की अपनी पलकें फड़फड़ा रही है.’


वे तेजी से उस ओर गई थीं. उस को होश में आते देख उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था मानो उन्होंने अपनी आद्या के  जीवन को बचा लिया है. उस को होश में आते देख उन के चेहरे पर मुसकान आ  गई थी.


‘बधाई हो मैडम, आप की बेटी ने आज अपने जीवन की जंग जीत ली है,’


अधिकारी पिता का चेहरा खुशी से खिल उठा था, ‘डा. साहिबा, आप सच में इंसान नहीं, बल्कि भगवान हो. डाक्टर, प्लीज, मैं एक बार अपनी बेटी से माफी मांग सकता हूं.’


‘श्योर, श्योर.’


उन्होंने डा .पूनम और सिस्टर को जरूरी निर्देश देने के बाद अपनी घड़ी पर निगाह डाली थी. रात को 12 बजने वाले थे. वे उदास और निराश हो उठी थीं. आद्या, उन की इकलौती बेटी, उन की व्यस्तता के कारण कितना अकेलापन महसूस करती होगी. अब वे उस पर डाक्टर बनने का जरा भी दबाव नहीं डाला करेंगी. उस का जो मन हो, वह पढ़ाई करे. जो मन हो, वह बने. वे मन ही मन सोच रही थीं कि आज इस नन्ही परी ने जीवन का अनमोल पाठ पढ़ा दिया था. उन्हें महसूस हो रहा था कि आज उन के दिल से मानो भारी बोझ उतर गया हो. वे बेटी आद्या को प्यार से अपने गले लगाने को तड़प उठी थीं. आज उन्हें अपने घर तक का रास्ता बहुत लंबा लग रहा था. घर पहुंचतेपहुंचते घड़ी ने 12 बजा दिए थे. आज वे खुद को अपराधबोध से पीड़ित महसूस कर रही थीं.


उस के कमरे की लाइट जलती देख वे सीधे उसी के कमरे में गई थीं. आद्या, शायद, उन का इंतजार करतेकरते सो गई थी. उस की हथेली में मोबाइल था.


उन्होंने आहिस्ताआहिस्ता उस का मोबाइल निकालने की कोशिश की, तो उस ने धीरे से अपनी आंखें खोल दी थीं. वह तेजी से बैड से उठी और उन से लिपट गई.


‘मम्मा, कभी अपना फोन भी चैक कर लिया करिए.’


उन्होंने अपने पर्स से मोबाइल निकाल कर देखा, आद्या की 20 मिस्डकौल थीं.


‘सौरी बेटा, क्या करूं, कोई न कोई इमरजैंसी केस आ ही जाता है. बस, उस के बाद मैं बिजी हो जाती हूं. यही वजह है कि मुझे अकसर देर हो जाती है.’


‘मम्मा, आप कितनी मेहनत करती हैं.’


‘डाक्टर की ड्यूटी होती है कि वह हर पेशेंट का सही से इलाज करे.’


‘मम्मा, मैं ने आज आप के इंतजार में खाना भी नहीं खाया.’


‘आओ, मैं खाना  गरम करती हूं.’


‘नो मम्मा, आप चेंज कर के आओ, मैं माइक्रोवेव में खाना गरम करती हूं.’


आज पहली बार वे उस घड़ी को कोस रही थीं जब उन्होंने डाक्टर बनने का निश्चय किया. उसी की वजह से बेटी के पास भी बैठने का समय नहीं मिलता  है.


डा. मणि प्यार से अपने हाथों से बेटी के मुंह में कौर खिलाती हुई बोलीं, ‘आद्या, ध्यान से सुनो, आज तुम से एक इंपार्टेंट बात कहनी है. बेटा, तुम्हें जिस लाइन में आगे बढने में रुचि हो, उसी विषय में पढ़ाई करो.’


‘परंतु मम्मा, आप का सपना और आप का नर्सिंग होम, उस का क्या होगा?’


‘बेटा, अपने सपने के लिए तुम्हारे साथ जोरजबरदस्ती तो मुझे नहीं करनी चाहिए न. आखिर तुम ने भी तो अपने भविष्य के लिए कोई सपना देखा होगा?’


‘हां, हां, क्यों नहीं?’


‘मम्मा, मैं ने बहुत सोचविचार कर निर्णय लिया है कि मैं आप की तरह ही डाक्टर बनूंगी. मैं ने देखा है कि लोग आप के पास कितनी उम्मीद व आशा ले कर आते हैं और ठीक हो जाने पर कितने खुश होते हैं. मैं भी जब डाक्टर बन जाऊंगी तब आप की ही तरह गरीब और जरूरतमंद इंसानों का मुफ्त में इलाज किया करूंगी.


‘मैं आप से बहुत नाराज हूं क्योंकि आप को तो यह भी नहीं पता कि आज एमबीबीएस के एन्ट्रेंस का रिजल्ट नैट पर आ गया है. मम्मा, औल इंडिया में मुझे 5वीं  रैंकिंग मिली है.’


डा. मणि ने प्रसन्नता से अभिभूत हो कर बेटी के माथे पर प्यार कर के उसे अपनी बांहों में  लिपटा कर गले से लगा लिया. उन की आंखों से खुशी के आंसू प्रवाहित हो उठे थे.


आज उन की खुशी का ठिकाना नहीं था. उन की बेटी ने उन का सपना पूरा करने के लिए पहला सोपान पार कर लिया था.


“क्या बात है मौम, बड़ी खुश दिखाई पड़ रही हैं?” नर्सिंग होम में आद्या की इस आवाज से उन की तंद्रा भंग हुई और वे वर्तमान में लौटीं, बोलीं, “हां, कभी फुरसत में बताऊंगी. वैसे, सच तो यही है कि मैं बहुत  खुश हूं क्योंकि मेरी बातों की वजह से एक प्यारी सी  बेटी के अपने सपने साकार  हुए हैं.”

 
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