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कहानी: अंतिम प्रहार

बंधनों में जकड़ा शिवानी का जीवन बिन प्यार के नीरस था. एक तरफ स्वार्थी मां तो दूसरी तरफ प्रेम की चाह. वह चाहती थी कि अपनी बढ़ती उम्र के साथ जल्दी से जल्दी विवाह बंधन में बंध जाए.

उस की सहकर्मी दीप्ति के शब्द उस के कानों में अभी तक गूंज रहे थे, ‘अब क्या करेगी यह शादी? सिर के बाल चांदी होने लगे. 30 को पार कर गई. यह शादी की उम्र थोड़ी है.’


लंच का समय था. स्कूल की सभी अध्यापिकाएं साथ में बैठ कर खाना खा रही थीं. सब एकदोचार के गु्रप में बंटी हुई थीं. शिवानी अपनी 3 सहेलियों के साथ एक गु्रप में थी. औरतों की जैसी आदत होती है, खाते समय भी चुप नहीं रह सकतीं. सभी बातें कर रही थीं. अपनी क्लास के बच्चों से ले कर पिं्रसिपल व सहकर्मी अध्यापिकाओं तक की, घर से ले कर पति, बच्चों और सास तक की बातें कर रही थीं. अंत में हमेशा की तरह बात घूम कर शिवानी के ऊपर आ कर टिक गई.


निकिता ने कहा, ‘‘शिवानी, तू कुछ नहीं बोल रही है?’’‘‘क्या बोले बेचारी? शादी तो की नहीं. न बच्चा, न पति, न सासननद. किस की बुराई करे बेचारी. पता नहीं कब करेगी शादी? उम्र तो निकली जा रही है,’’ संजना ने सहानुभूति दिखाते हुए कहा.


तभी दीप्ति ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा था, ‘अब क्या करेगी यह शादी…’ उस के ये वाक्य शिवानी के कानों में गरम लोहे की तरह घुसते चले गए थे. पहले ही कम बोलती थी. दीप्ति के वाक्यों ने तो उस के हृदय पर पत्थर रख कर मुंह पर ताला जड़ दिया था. उस के मुख पर हजार रेगिस्तानों की सी वीरानी और गरम धूल की परतें जम गई थीं. आंखें जड़ हो कर बस खाने की प्लेट पर जड़ हो गई थीं. दीप्ति की बात पर निकिता और संजना भी हैरान रह गई थीं. उसे ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी. शिवानी की अभी तक शादी नहीं हुई थी, तो उस में उस का क्या दोष था. सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं, शिवानी की भी थी. तभी तो अब तक उस की शादी नहीं हो पाई थी.


वे चारों हमउम्र थीं, सहकर्मी थीं. परंतु उन में अकेली शिवानी ही अविवाहिता थी. बाकी तीनों न केवल शादीशुदा थीं बल्कि तीनों के बच्चे भी थे. उन के बीच घरपरिवार और शादी को ले कर बातें होती ही रहती थीं. सभी शिवानी को शादी करने की सलाह देती रहती थीं परंतु इतनी तल्ख बात आज से पहले कभी किसी ने नहीं कही थी.


शिवानी अंतर्मुखी स्वभाव की थी. कम बोलती थी. अपना दुखदर्द भी किसी से नहीं बांटती थी. उस दिन भी दीप्ति की तल्ख बात का उस ने कोई जवाब नहीं दिया. परंतु उस का दिमाग सनसना गया था. क्या अब उस की शादी नहीं होगी? क्या वह बूढ़ी हो गई थी? बाल पकना क्या बुढ़ापे की निशानी है?


आज तक उस ने किसी लड़के से दोस्ती नहीं की, प्रेम करना तो बहुत दूर की बात थी. पारिवारिक संस्कारों और अंतर्मुखी स्वभाव के कारण वह लड़कों से खुल कर बात नहीं कर पाई. वह सुंदर थी. कई लड़के उस के जीवन में आए, उस से प्रेम निवेदन भी किया, उस ने उन का प्यार स्वीकार भी किया, परंतु जब लड़के एक सीमा से आगे बढ़ कर उसे बिस्तर पर लिटाना चाहते, वह भाग खड़ी होती. ‘यह सब शादी के बाद,’ वह कहती, तो लड़के उसे घमंडी, दकियानूसी और बेवकूफ लड़की सम?ा कर छोड़ देते.


लिहाजा, 30 वर्ष की उम्र तक उस का कोई स्थायी बौयफ्रैंड न बन सका, जिस के साथ वह घर बसाने की बात सोच सकती. अब तो कमउम्र के लड़के उस से दूर भागने लगे थे और उस की उम्र के दायरे वाले आदमी शादीशुदा थे. मां भी उस की शादी के बारे में नहीं सोचती थी. इस में मां का दोष नहीं था. वह डरती थी कि शादी के बाद शिवानी जब अपने घर चली जाएगी तो वह किस के सहारे जीवन व्यतीत करेगी. उन की जीविका का कोई साधन नहीं था. जबकि उन का लड़का था और उस की पत्नी थी. दोनों मां के साथ पुश्तैनी घर में रहते थे. उस के भाई को पिता की जगह पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी भी मिली हुई थी. पिता के घर में मां के साथ रहता था परंतु अपनी तनख्वाह का एक पैसा भी मां को नहीं देता था. मां का गुजारा उन की पैंशन और शिवानी की कमाई से चलता था. एक ही घर में 2 परिवार रहते थे. मांबेटी और बेटाबहू. कैसी विडंबना थी?


मां किस तरह बेटी के साथ भेद करती है और बेटे को महत्त्व देती है, यह पहली बार शिवानी को तब पता चला जब उस के पिता की मृत्यु हुई. वह सरकारी सेवा में गु्रप बी औफिसर थे और सेवानिवृत्ति के पहले ही उन की मृत्यु हो गई थी. ग्रैच्युटी,  इंश्योरैंस, जीपीएफ आदि का कुल 20 लाख के लगभग मिला था. सारा पैसा मां ने एमआईएस (मंथली इंकम स्कीम) में डाल दिया था. 20 हजार के लगभग मां की पैंशन बंधी थी. कम नहीं थे.


बाप की जगह पर जब अनुकंपा के आधार पर नौकरी की बात आई, तो सब ने यही सलाह दी कि बेटी शिवानी यह नौकरी कर लेगी. वह 22 साल की थी और ग्रेजुएट थी. आसानी से उसे गु्रप ‘सी’ की नौकरी मिल जाती और उस का भविष्य संवर जाता. भाई छोटा था और उस का ग्रेजुएशन भी पूरा होने में एक साल बाकी था. ग्रेजुएशन के बाद भविष्य में वह कोई अच्छी नौकरी पा सकता था.


सब की बातें सुनने के बाद मां ने अपना निर्णय सुनाया, ‘‘बेटी बाप की जगह नौकरी करेगी तो हमें क्या मिलेगा? एक दिन वह शादी कर के ससुराल चली जाएगी. उस की तनख्वाह ससुराल वालों को जाएगी. बेटे को पढ़लिख कर भी नौकरी नहीं मिली तो उस का क्या होगा? सो, नौकरी बेटा ही करेगा, चाहे जो हो जाए.’’


लोगों ने बहुत सम?ाया परंतु मां अपने निर्णय से नहीं डिगी. विभाग में आवेदन किया तो उन्होंने बेटे की कम उम्र और शिक्षा को ले कर प्रश्न खड़े कर दिए. मां ने बड़े अधिकारी से मिल कर बात की, तो उन्होंने रास्ता सु?ाया कि वे बेटे के ग्रेजुएशन तक इंतजार कर सकते थे. लिहाजा, मामला एक साल तक अधर में लटका रहा. जब गौरव का ग्रेजुएशन हो गया और वह 21 साल का हो गया, तो उसे पिता के स्थान पर नौकरी मिल गई.


शिवानी के जीवन में खुशियां थीं परंतु प्यार नहीं. उस का कोई प्रेमी नहीं था. इस की कोई चाहत भी उस के मन में नहीं थी. वह चाहती थी जल्दी से जल्दी विवाह बंधन में बंध जाए.

सबकुछ व्यस्थित हो गया तो एक पारिवारिक महिला शुभचिंतका ने शिवानी की मम्मी सुषमा को सलाह दी, ‘‘सुषमा बहन, बेटे को नौकरी मिल गई है. आप को पैंशन मिल रही है. बेटी ग्रेजुएशन कर के घर में बैठी है. अब उस की शादी कर दो.’’


सुषमा को शुभचिंतका की बात नागवार गुजरी, गहरी उसांस ले कर कहा, ‘‘अभी कहां से कर दें. बेटे की अभीअभी नौकरी लगी है. कुछ जमापूंजी हो तो करें.’’शुभचिंतिका ने हैरानी से कहा, ‘‘क्या बात करती हो बहन. पति का पैसा कहां चला गया?’’


‘‘उस को बेटी की शादी में खर्च कर देंगे तो बुढ़ापे में मु?ो कौन पूछेगा. बेटा और बेटी दोनों की शादी करनी है परंतु बेटा कुछ कमा कर जोड़ ले तो सोचूंगी. तब तक बेटी भी कोई न कोई नौकरी कर लेगी. आज के जमाने में एक आदमी की कमाई से घर कहां चलता है.’’


‘‘बात तो ठीक है परंतु जवान बेटी समय पर घर से विदा हो जाए तो मां की सारी चिंताएं खत्म हो जाती हैं. वरना हर समय लांछन का दाग लगने का भय सताता रहता है.’’


‘‘बहन, सच्ची बात कहूं,’’ सुषमा ने नाराजगी के भाव से कहा, ‘‘दूसरों की मैं नहीं जानती परंतु मेरी बेटी बहुत सीधी है. मैं ने उसे ऐसे संस्कार दिए हैं कि मरती मर जाएगी, परंतु गलत काम नहीं करेगी. मजाल है कि राह चलते किसी लड़के की तरफ निगाह उठा कर देख ले.’’


शुभचिंतिका ने मन ही मन सोचा, लगता है सुषमा ने जमाना नहीं देखा है. कितना बदल गया है. लड़कालड़की किस तरह खुलेआम इश्क फरमाते घूम रहे हैं. लगता है समाज में नैतिकता और मर्यादा की सारी सीमाएं टूट चुकी हैं. शिवानी कब तक जमाने की बदबूदार हवा से अपनी नाक बंद कर के रखेगी. जवानी की आग जब देह को जलाने लगती है तो बड़ेबड़े संतों की दृढ़ प्रतिज्ञा तिल के समान जल जाती है.


शुभचिंतिका ने सुषमा को आगे सम?ाना उचित नहीं सम?ा. शिवानी के पास कोई चारा नहीं था. भागदौड़ कर उस ने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली. तनख्वाह बहुत ज्यादा नहीं थी परंतु घर में बैठने से तो यह बेहतर था कि वह काम कर रही थी. अनुभव प्राप्त कर रही थी. इधर उस ने बीएड का फौर्म भर रखा था. चयन होने पर एक साल की ट्रेनिंग पर चली गई. ट्रेनिंग पूरी होते ही उसे उसी स्कूल में अच्छी तनख्वाह पर अध्यापिका की नौकरी मिल गई.


शिवानी के जीवन में खुशियां थीं परंतु प्यार नहीं. उस का कोई प्रेमी नहीं था. इस की कोई चाहत भी उस के मन में नहीं थी. वह चाहती थी जल्दी से जल्दी विवाह बंधन में बंध जाए. पति के घर चली जाए. फिर उस के जीवन में प्यार और खुशी के अनमोल मोती बरसेंगे.


परंतु मां को जैसे उस के विवाह की कोई चिंता ही नहीं थी. उस के रिश्ते आते, तो अनमने ढंग से बात सुनती और मना कर देती. परंतु बेटे की शादी की चर्चा वह बहुत लगन से करती. कोई रिश्ता आता, तो खोदखोद कर जानकारी लेती. परिवार कैसा है? लड़की सुंदर है? पढ़ीलिखी है और सब से मुख्य बात पूछना न भूलती, दहेज कितना मिलेगा?


जब भी घर में कोई अड़ोसीपड़ोसी या रिश्तेदार आता, केवल गौरव की शादी की बात होती. वह तो जैसे घर की बेटी ही न थी. वह बस एक पैसा कमाने की मशीन और घर का काम करने वाली नौकरानी थी. घर के सारे खर्च भी उसी की तनख्वाह से चलते. बेटा अपने वेतन की एक पाई भी मां के हाथ पर न धरता, न कोई हिसाब देता. बस, अपने शौक पर खर्चा करता या बैंक में जमा करता. मां भी अपनी पैंशन का पैसा कभीकभार ही बैंक से निकालती. शिवानी मां और भाई के होते हुए भी अपने ही घर में एक उपेक्षित सा जीवन व्यतीत कर रही थी.


दहेज के लालच में मां ने गौरव की शादी एक धनी परिवार की लड़की के साथ तय कर दी. पता नहीं सुषमा के मन में क्या था? बड़ी बेटी कुंआरी बैठी थी और उस से 2 साल छोटे भाई की शादी तय कर दी थी क्योंकि अच्छाखासा दहेज ला रही थी. किसी खास ने सवाल किया तो सुषमा का दिल जला देने वाला जवाब था, ‘बेटा दहेज ला रहा है परंतु बेटी दहेज ले कर जाएगी. फिर क्यों न पहले बेटे की शादी करूं?’


शिवानी के दिल को बहुत चोट पहुंची. पहले वह घर की बातें किसी से नहीं कहती थी परंतु ये सारी बातें उस ने अपनी सहेलियों से कहीं, तो निकिता ने कहा, ‘यार, सम?ा में नहीं आता तुम्हारी मां सगी है कि सौतेली. अरे, सौतेली मां भी बहुत अच्छी होती है. सम?ाना बहुत मुश्किल है कि वह तुम्हारी शादी के खिलाफ क्यों है?’


‘मु?ो तो लगता है, या तो इस का भाई बहुत होशियार है या इस की मां बहुत लोभी और लालची जो बेटे के विवाह में लेना तो जानती है और बेटी के विवाह में कुछ भी खर्च नहीं करना चाहती,’ संजना ने कहा. ‘तुम्हारा भाई अपना बैंक बैलैंस बढ़ा रहा है. मां अपना पैसा खर्च नहीं कर रही है. शिवानी, तुम बहुत बड़ी बेवकूफ हो. कल तुम्हारी भाभी घर में आएगी, तो पूरे घर में उस का राज होगा. तुम्हारी हैसियत एक नौकरानी से भी बदतर हो जाएगी. मेरी सलाह मानो, तुरंत बैंक में अपना खाता खोल लो और बुरे दिनों के लिए कुछ बचा कर रखो.’ निकिता ने उसे उचित सलाह दी.


तभी दीप्ति ने कहा, ‘और मेरी मानो, तो यह सतीसावित्री का चोला उतार कर फेंक दो. आज के जमाने में नैतिकता, मर्यादा और पारिवारिक संस्कारों का आडंबर ओढ़ कर जीने से जीवन बहुत कठिन हो जाता है, खासकर, जब सगी मां और भाई तुम्हारे जीवन को बरबाद करने में जुटे हों. ऐसी स्थिति में तुम्हें स्वयं अपना रास्ता तलाश करना होगा. किसी लड़के को पसंद कर के उस के साथ घर बसा लो, वरना उम्र निकलने के बाद पछताने के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा.’


शिवानी बेचारी आज कितनी हिम्मत से इतना सब बोल पाई थी वरना तो उस के मुंह में जैसे जबान ही न थी. उस की सहेलियों ने उसे खूब सिखायापढ़ाया था.

दीप्ति की बात बहुत सही थी. सब ने उस की बात से सहमति जताई.


सब से पहला काम उस ने यह किया कि बैंक में खाता खोल लिया. अगले महीने जब उस ने मां के हाथ पर पैसे नहीं रखे तो मां ने कड़े स्वर में पूछा, ‘शिवानी, तनख्वाह नहीं मिली क्या?’


‘मिली है, परंतु बैंक में है,’ शिवानी ने भी जोर से जवाब दिया. अब दब कर रहने से क्या हासिल होने वाला था.


‘बैंक में, क्या?’


‘क्योंकि अब तनख्वाह सीधे बैंक खाते में आने लगी है,’ उस ने बिना घबराए जवाब दिया.


‘तो कल निकाल कर ले आना, राशन भरवाना है.’


‘मम्मी, घर में भाई भी है, वह मु?ा से ज्यादा तनख्वाह पाता है. आप की पैंशन भी कम नहीं है. फिर घर चलाने की जिम्मेदारी मेरी ही क्यों? आप दोनों अपना पैसा क्या ऊपर वाले के घर ले कर जाएंगी,’ शिवानी ने गुस्से में कहा.


शिवानी की बात सुन कर मां सन्न रह गईं. उन की गाय जैसी बेटी मरखनी कैसे हो गई थी. यह उस की सहेलियों के सम?ाने का असर था. परंतु मां की सम?ा में नहीं आया. उन्होंने कांपती आवाज में पूछा, ‘यह कैसी बातें कर रही है तू? क्या तू इस घर की सदस्य नहीं है? मेरी बेटी नहीं है?’


‘आप ने मु?ो अपनी बेटी माना ही कहां है? जब से होश संभाला है, गौरव को तरजीह दी जा रही है. मु?ा से 2 साल छोटा है, परंतु शादी आप उस की पहले कर रही हैं. ध्यान रखना, कहीं आप के संस्कार धूल में न मिल जाएं?’


‘क्या मतलब है तेरा?’


‘मतलब आप अच्छी तरह सम?ाती हैं. कोई भी लड़की जीवनभर अनुचित अनुशासन और बंधन को स्वीकार नहीं कर सकती. एक न एक दिन वह बंधन तोड़ कर बरसात के पानी की तरह बह जाएगी, तब आप पारिवारिक मर्यादा का ढोल पीटती रहना.’


मां की बोलती बंद हो गई.


शिवानी बेचारी आज कितनी हिम्मत से इतना सब बोल पाई थी वरना तो उस के मुंह में जैसे जबान ही न थी. उस की सहेलियों ने उसे खूब सिखायापढ़ाया था. मां से खुल कर बात करने के लिए कहा था. तभी आज वह इतना कुछ बोल पाई थी. परंतु अब डर रही थी कि मां का पता नहीं कौन सा रूप देखने को मिले. परंतु मां ने भी उस से कोई बात नहीं की और कई दिनों तक सामान्य व्यवहार किया. शायद उन के मन में भी डर बैठ गया था कि शिवानी कोई गलत कदम न उठा ले और परिवार की मर्यादा तोड़ कर किसी लड़के के साथ भाग न जाए.


शिवानी ने मां के सामने बगावत के तेवर अवश्य दिखाए थे परंतु आने वाले दिनों में उस का कुछ असर दिखाई नहीं दे रहा था. सबकुछ पहले की ही तरह चलता रहा. हां, 2 महीने के बाद गौरव की शादी हो गई और शिवानी की छोटी भाभी घर में आ गई.


सहेलियां उसे बीचबीच में उकसाती रहती थीं. वह किसी लड़के से प्यार कर ले. परंतु अब कोई लड़का उस की तरफ आकर्षित ही न होता. उस के मुखमंडल पर गंभीरता के कारण बड़ी उम्र की परिपक्वता ?ालकने लगी थी. उस के पास भी इतना साहस न था कि स्वयं किसी लड़के या पुरुष को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास कर सके. वह इतनी संकोची थी कि किसी भी व्यक्ति से बात करते समय उस की जबान जैसे तालू से चिपक जाती थी.


कुछ साल और बीत गए. शिवानी अब 30 की हो चुकी थी. अब वह लड़की कम महिला ज्यादा लगती थी. वह मन ही मन दुखी रहने लगी थी. मम्मी ने तो जैसे ठान लिया था कि उस की शादी तो दूर, शादी की बात भी न करेंगी. इस बीच सहेलियों के उकसाने के बावजूद वह किसी के प्यार में गिरफ्तार न हो सकी. स्कूल में भी कई कुंआरे अध्यापक थे परंतु किसी के साथ उस का टांका न भिड़ सका.


और आज दीप्ति ने ऐसी बात कह दी थी कि वह दुख के अथाह सागर में डूब गई थी. काफी देर तक जब वह कमरे से नहीं निकली, तो मम्मी ने आ कर उसे उठाया, ‘‘अभी तक लेटी हो. रात हो गई. चलो, खाने का प्रबंध करो.’’


शिवानी ने लेटेलेटे ही जवाब दिया, ‘‘मेरा खाने का मन नहीं है. खुद बना लो. बहू से कहो, वह क्या जीवनभर महावर लगा कर बैठी रहेगी?’’ शिवानी के स्वर में तीखा व्यंग्य था. बहू लाखों का दहेज ले कर आई थी, इसलिए मम्मी कभी उसे घर के किसी काम के लिए न कहती थी. शिवानी के रूप में बिना तनख्वाह वाली सीधीसादी गऊ जैसी नौकरानी जो मिली थी. परंतु अब उसे सिधाई का चोला उतार कर चंडी बन कर जीना होगा, कब तक कुढ़ती रहेगी? क्यों नहीं अपने लिए नया रास्ता ढूंढ़ लेती. अभी भी देर नहीं हुई थी.


मां कुड़कुड़ाती हुई चली गई. उस रात शिवानी ने न तो घर का कोई काम किया, न खाना खाया. मां ने भी उस से खाने के लिए नहीं पूछा. डायन मां भी अपने बच्चों से इस तरह की बेरुखी और बेदर्दी नहीं दिखाती, परंतु सुषमा किसी और मिट्टी की बनी थी. कोई मां अपनी बेटी की दुश्मन नहीं होती परंतु कुछ मांएं बेटों के प्यार में अंधी हो कर बेटियों का जीवन बरबाद कर देती हैं. सुषमा बेटे के लिए सारा पैसा बचा कर मरना चाहती थी.


दूसरे दिन सुबह शिवानी बहुत शांत थी. उस ने मन ही मन एक निर्णय ले लिया था. अब कोई दुविधा उस के मन में नहीं थी.


निकिता और संजना ने कहा, ‘‘शिवी, कल तेरे साथ बहुत बुरा हुआ. दीप्ति को तु?ा से ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी. तू अभी भी शादी कर सकती है.’’


दीप्ति ने पश्चात्ताप भरे स्वर में कहा, ‘‘शिवी, मु?ो माफ कर दो. मैं ने जो कहा था, मजाक के तौर पर कहा था. परंतु बात इतनी गंभीर हो जाएगी, मैं ने सोचा ही न था. प्लीज, मु?ो माफ कर दो. मेरे मन में तुम्हारे प्रति कोई दुर्भाव नहीं है.’’


‘‘मैं जानती हूं दीप्ति,’’ शिवानी ने मुसकरा कर कहा और उस का हाथ पकड़ कर सहला दिया, ‘‘मैं तो उस बात को भूल चुकी. अब मैं ने कुछ और निर्णय ले लिया है.’’


क्या? के भाव से तीनों ने उस के चेहरे को देखा.


उस ने जवाब दिया, ‘‘अब मैं मां के संरक्षण से बाहर निकल कर अपना स्वतंत्र जीवन जीना चाहती हूं. तुम लोग मेरे लिए एक किराए का कमरा ढूंढ़ दो.’’


‘‘मां, और भाई को बता दिया?’’ संजना ने पूछा.


‘‘नहीं,  मकान मिलने पर बता दूंगी.’’


‘‘घर ढूंढ़ने के बजाय अगर तुम अपने लिए वर ढूंढ़ लो, तो ज्यादा बेहतर होगा,’’ निकिता ने सलाह दी.


‘‘वह भी ढूंढ़ लूंगी तुम मेरी मदद करोगी तो.’’


दीप्ति इतनी देर से कुछ सोच रही थी. अचानक बोली, ‘‘शिवी, मैं एक बात कहूं, परंतु यह न सम?ाना कि मैं फिर से तुम्हारा मजाक उड़ा रही हूं.’’


‘‘तुम बताओ तो सही,’’ निकिता ने उस का उत्साह बढ़ाया.


‘‘मेरी नजर में एक रिश्ता है, परंतु तुम्हें शायद वह अच्छा न लगे.’’


‘‘अच्छा क्यों न लगेगा?’’ संजना ने पूछा.


‘‘क्योंकि वह कुंआरा नहीं है, विधुर है और उस की 5 साल की एक बच्ची भी है.’’


‘‘विधुर और एक बच्ची का बाप,’’ निकिता के मुंह से निकला. उस ने शिवानी को देखा, ‘‘वह शांत थी. संजना भी हैरान थी कि दीप्ति फिर से शिवानी का मजाक बना रही थी. बोली, ‘‘यार, कल भी तुम ने उस का दिल दुखाया था और आज भी…’’


‘‘हां, दीप्ति, शिवी अभी इतनी बूढ़ी नहीं हुई है कि उस के लिए कुंआरा वर न मिले. आज लड़के 30 साल की उम्र के बाद ही शादी करना पसंद करते हैं. प्रयत्न करेंगे तो उस के लिए अच्छा वर मिल जाएगा,’’ निकिता ने कहा.


‘‘वैसे, वह है कौन जिस की तू बात कर रही है?’’ संजना ने जिज्ञासा से पूछा.


शिवानी सब की बातें गौर से सुन रही थी और मन ही मन कुछ बुन रही थी. उस के दिमाग में विचार बहुत तेजी से दौड़ रहे थे.

दीप्ति का उत्साह मर गया था, फिर भी उस ने बताया, ‘‘मेरा ममेरा भाई है. उस की पत्नी कुछ वर्ष पहले मर गई थी. घर में मातापिता और एक बेटी है. सरकारी नौकरी में है. उम्र ज्यादा नहीं है, 34 या 35 साल. बस, कमी इतनी ही है कि वह विधुर है और एक बच्ची का बाप है.’’


कुछ पलों के लिए सन्नाटा पसरा रहा. फिर निकिता ने कहा, ‘‘रिश्ता तो अच्छा है परंतु क्या शिवानी तैयार होगी? पराई मां की बच्ची को अपना कर उसे मां का प्यार दे सकेगी?’’


‘‘परंतु क्या शिवानी की मां ऐसे रिश्ते के लिए तैयार होगी?’’ संजना ने सवाल खड़ा किया.


‘‘इस की मां जब कुंआरे लड़के के साथ शादी नहीं करा रही है तो वह विधुर के साथ शादी के लिए कैसे मान जाएगी,’’ निकिता ने कहा.


‘‘फिर कैसे होगा?’’ संजना ने भौंहें नचा कर पूछा.


शिवानी सब की बातें गौर से सुन रही थी और मन ही मन कुछ बुन रही थी. उस के दिमाग में विचार बहुत तेजी से दौड़ रहे थे. उसे जल्द ही निर्णय लेना होगा वरना एक दिन वह महिला से बूढ़ी स्त्री में बदल जाएगी, तब उस के हाथ में जीवन के सुखमय पल नहीं, बस, सूखी रेत के रसहीन कण होंगे जो उस की आंखों में सदा किरचों की तरह कसकते रहेंगे.


अब उस की आंखें शिवानी के ऊपर टिकी थीं. शिवानी ने ज्यादा देर उन्हें पसोपेश में नहीं रखा. धीमे से बोली, ‘‘मु?ो दीप्ति के कजिन का रिश्ता मंजूर है.’’


सभी हैरान रह गए. शिवानी से ऐसे उत्तर की अपेक्षा किसी ने नहीं की थी. सभी सम?ा रहे थे वह मना कर देगी. सब से ज्यादा आश्चर्य निकिता और संजना को हुआ, तो सब से ज्यादा खुशी दीप्ति को हुई. परंतु वे तीनों नहीं जानती थीं कि भविष्य में पति और मां की दोगुनी खुशियां जो शिवानी को प्राप्त होने वाली थीं उन के बारे में सोच कर वह अभी से रोमांचित और अभिभूत हो रही थी.


‘‘क्या तुम एक लड़की को मां का प्यार दे सकोगी?’’ निकिता ने पूछा.


‘‘हां,’’ शिवानी ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘अपने जीवन में मु?ो मेरी मां से जो उपेक्षित व्यवहार मिला है उस से मैं सम?ा सकती हूं कि ममता से वंचित लड़की के हृदय पर क्या गुजरती है. मैं अपनी होने वाली बेटी को ऐसा प्यार दूंगी कि लोग मु?ो असली मां सम?ोंगे.’’


‘‘मैं तुम्हारी भावनाओं को सम?ा सकती हूं परंतु तुम एक बार फिर से रात में सोच लो. कल बताना,’’ संजना ने सलाह दी. उसे सलाह देने की आदत सी थी.


‘‘नहीं, अब सोचने का वक्त नहीं है. जितनी जल्दी हो सके, मैं मां के नरक से बाहर निकलना चाहती हूं.’’


‘‘अब जब तुम दीप्ति के भाई के रिश्ते के लिए राजी हो तो तुम्हें किराए का कमरा क्यों चाहिए. एकाध महीना अपने घर में गुजार लो,’’ निकिता ने कहा.


‘‘चलो, मेरे मन से पश्चात्ताप की आग ठंडी हो गई. शिवानी ने मेरी बात मान कर मेरे मन का बो?ा हलका कर दिया वरना कल की बात को ले कर मैं परेशान होती रहती,’’ दीप्ति ने खुश मन से कहा.


‘‘पिछली बातों को याद करने का कोई लाभ नहीं है. अब आगे की सोचो, यह सब कैसे होगा?’’ संजना ने कहा.


सब ने निकिता की तरफ देखा. वही सम?ादारीभरा जवाब दे सकती थी. कुछ पल विचारने के बाद उस ने कहा, ‘‘शिवानी के घर की परिस्थितियां देखते हुए उस का बाजेगाजे और बरातियों के साथ शादी करना संभव नहीं है. कोर्ट मैरिज करना ही बेहतर तरीका होगा.’’


‘‘क्यों न आर्य समाज मंदिर में शादी कर लें,’’ संजना ने सु?ाव दिया.


‘‘फिर भी शादी रजिस्टर्ड करवानी पड़ेगी तो एक बार में ही क्यों नहीं…?’’


सभी कोर्ट मैरिज पर सहमत थे. दीप्ति ने सलाह दी, ‘‘आज ही उस के मामा के घर चल कर सबकुछ तय कर लिया जाए. सभी तैयार हैं तो ऐसे कार्य में देरी क्यों?’’


दीप्ति के कजिन का नाम मुकेश था. वह 35 वर्ष का ही था. लंबा और छरहरा कद. हसमुंख चेहरा. शिवानी तो पहली नजर में ही उस पर फिदा हो गई. मुकेश के घर में उस के मातापिता और बेटी थी. अच्छा खातापीता घर था.


जब सभी मुकेश और उस के मातापिता से बात कर रहे थे, शिवानी ने मुकेश की बेटी को पुचकार कर अपने पास बुला दिया. गोद में बैठा कर उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘बेटा, आप का नाम क्या है?’’


‘‘श्रुति, लेकिन सब मु?ो तनुतनु कहते हैं.’’


‘‘अरे, आप के तो दोनों नाम ही बहुत प्यारे हैं,’’ उस ने तनु को अपनी गोद में समेटते हुए कहा, ‘‘आप स्कूल जाते हो?’’


‘‘हां, मैं क्लास वन में हूं और मैं ड्राइंग बना लेती हूं, दिखाऊं?’’ और वह ?ाटपट उस की गोद से उतर गई और बैग से ड्राइंग की किताब ला कर उसे दिखाने लगी.


‘‘वाह, बहुत अच्छे. आप तो बहुत अच्छी ड्राइंग कर लेती हो.’’


‘‘आंटी, आप को ड्राइंग आती है? मेरी दादीमां को नहीं आती.’’


‘‘हां, मु?ो बहुत अच्छी ड्राइंग बनानी आती है.’’


‘‘आप मु?ो बनाना सिखाओगे?’’ उस ने मासूमियत से कहा.


‘‘हां, लेकिन मैं बहुत दूर रहती हूं. आप मु?ो अपने घर में रख लो, तो मैं आप को रोज ड्राइंग सिखा दिया करूंगी.’’


तनु कुछ सोचने लगी. फिर बोली, ‘‘पापा से पूछती हूं,’’ और वह दौड़ कर मुकेश के पास गई. अपने नन्हेनन्हे हाथों से उस का ध्यान आकर्षित कर बोली, ‘‘पापा, इन आंटी को ड्राइंग आती है. आप इन्हें घर में रख लो, तो मु?ो अच्छी ड्राइंग बनाना सिखा देंगी.’’


तनु की भोली बात पर सभी हंसने लगे. तनु की सम?ा में नहीं आया कि सभी क्यों हंस रहे थे?’’ मुकेश ने पूछा, ‘‘यह आंटी, आप को अच्छी लगती हैं.’’


‘‘हां, पापा. आप इन्हें अपने घर में ले आओ.’’


‘‘ठीक है बेटा, आप जैसा कहोगे.’’


उस दिन शिवानी को जीवन की सारी खुशियां मिल गई थीं. खुशियों के उड़नखटोले में उड़ती हुई जब वह घर पहुंची तो सुषमा रौद्र रूप लिए उस का इंतजार कर रही थी. स्वर में कोई प्यार, ममता और दुलार नहीं, बल्कि सौतेली मां जैसा व्यवहार, ‘‘कहां से मुंह काला कर के आ रही हो?’’


शिवानी के मन में आनंद का सागर लहरा रहा था. उस ने शांत भाव से कहा, ‘‘मां, मैं तुम्हारी सगी बेटी हूं, कभी प्यार से भी पूछ लिया करो.’’


‘‘इतनी देर कहां कर दी?’’ उन के स्वर की तल्खी कम नहीं हुई थी. शिवानी ने सोचा, बता ही दूं. एक दिन बताना ही है, बोली, ‘‘मां होते हुए भी जो जिम्मेदारी आप को निभानी चाहिए थी वह मेरी सहेलियां निभा रही हैं, इसीलिए देर हो गई.’’


शिवानी आज बहुत कुछ बोल गई थी. सुषमा को जैसे लकवा मार गया था. शिवानी ने जैसे अंतिम प्रहार करते हुए कहा, ‘‘आप गौरव को राजमहल बनवा कर दीजिए.

‘‘क्या मतलब?’’ मां ने भौंहें ऊंची कर के पूछा. उन की सम?ा में सचमुच कुछ नहीं आया था.


‘‘अपने लिए वर ढूंढ़ने गई थी,’’ शिवानी ने साफसाफ बता दिया. सुन कर मां के तोते उड़ गए. कानों पर विश्वास नहीं हुआ. फटी आंखों से उसे देखती रही. फिर बोली, ‘‘तुम्हारी शादी के लिए पैसा कहां से आएगा?’’


‘‘क्यों, पापा की मृत्यु के बाद जो पैसा मिला था वह कहां गया? उस में मेरा भी तो आधा हिस्सा है.’’


‘‘उस के बारे में सोचना भी मत,’’ सुषमा ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘तुम भले ही घर से भाग कर शादी कर लो परंतु उस पैसे के बारे में सोचना भी मत. गौरव नया प्लौट खरीद रहा है. उस के लिए पैसे बचा कर रखे हैं.’’


शिवानी के मुंह में ढेर सारी कड़वाहट घुल गई. मुंह पर ‘थू’ का भाव लाते हुए बोली, ‘‘यही तो आप चाहती थीं कि मैं कहीं भाग जाऊं. परंतु बचपन में ऐसे संस्कार ही नहीं दिए. बेटी को अनिच्छा से पालना और बड़ा करना फिर उसे परदों में बंद कर के रखना ताकि कहीं मुंह काला कर के परिवार की ?ाठी मर्यादा को मटियामेट न कर दे. यही आप जैसी मांओं ने सीखा है.


आप की इसी गंदी सोच ने देश की बेटियों का भविष्य गर्त कर रखा है. मां, आप चिंता न करो. आप के पति और बेटे की कमाई का मु?ो एक ढेला भी नहीं चाहिए. जीवन में खुशियों से बढ़ कर कुछ नहीं होता. आप का पैसा मेरे किस काम का, जब मेरे जीवन में पति, परिवार और बच्चे का सुख नहीं है. सोच कर देखिए, अगर आप के मांबाप आप जैसी सोच के होते और आप की शादी न करते तो आप भाई के घर में कैसा महसूस करतीं और कैसा जीवन व्यतीत करतीं.’’


शिवानी आज बहुत कुछ बोल गई थी. सुषमा को जैसे लकवा मार गया था. शिवानी ने जैसे अंतिम प्रहार करते हुए कहा, ‘‘आप गौरव को राजमहल बनवा कर दीजिए. वह आप का और परिवार का नाम रोशन करेगा. बेटियां केवल दुख देती हैं, तो मां, बस एकाध महीना तुम्हें और दुख दूंगी. इस के बाद मैं चली जाऊंगी. ?ोंपड़ी के अंधेरे में रह लूंगी परंतु तुम्हारे महल की जगमगाहट देखने कभी नहीं आऊंगी,’’ कहतेकहते शिवानी का गला भर आया. आंखों में आंसू ?िलमिलाने लगे. वह मुंह घुमा कर कमरे के भीतर चली गई.


सुषमा जैसे पत्थर की हो गई थी. परंतु उस के अंदर भी कुछ घुमड़  रहा था जो बाहर निकलने के लिए बेताब था. शिवानी ने उन के अंतर्मन को हिला कर रख दिया था और वह सोचने के लिए मजबूर हो गई थी. कहीं न कहीं उन से बहुत बड़ी गलती हुई थी. पुत्रमोह में कोई इतना अंधा नहीं होता कि बेटी को बिलकुल उपेक्षित कर दे, उस का भविष्य बरबाद कर के उसे नाटकीय जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर कर दे.


अंदर से घुमड़ कर जब उन की आंखों से आंसू बह निकले तो उन की चेतना लौटी. वह लगभग भाग कर कमरे में गई और शिवानी को अपने अंक में भर कर बोली, ‘‘बेटी, मु?ो माफ कर दे. मैं तेरी गुनाहगार हूं. यह क्या कर दिया मैं ने तेरे साथ. परंतु अब तू चिंता मत कर, मैं तु?ो इस घर से बाजेगाजे के साथ बिदा करूंगी तेरी पसंद के वर के साथ,’’ फिर वह रोने लगी.


शिवानी भी अपनी मां के सीने से लग कर फफक पड़ी. दोनों को ही पता नहीं था कि वे दुख से रो रही थीं कि खुशियों के अतिरेक से. उन्हें बस इतना पता था कि उन के चारों तरफ धवल ज्योत्सना बिखरी पड़ी थी जिस ने सब के मन के कलुष को धो दिया था.

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