Today Breaking News

कहानी: पीर पराई

यादों के झरोखों पर आज फिर किसी ने दस्तक दे दी थी. न चाहते हुए भी मन उस की तरफ खिंचता चला गया. वे वही आंखें थीं जिन्होंने मुग्धा को सालोंसाल सोने नहीं दिया.

मोहित और मुग्धा का कालेज में आखिरी साल था. मुग्धा अपने नाम के अनुरूप थी, चंचल, शोख, जिंदादिल जिंदगी से भरपूर. एक  झलक में किसी को भी अपना दीवाना बना दे. उस की कजरारी, गोलगोल सी बड़ीबड़ी आंखें सब के मन को मोह लेतीं और मोहित बांका सजीला नौजवान. कालेज की न जाने कितनी लड़कियां उस पर मरती थीं और कहीं न कहीं मन ही मन मुग्धा से जलती भी थीं कि मोहित जैसा खूबसूरत लड़का उसे बेपनाह प्यार करता है.


‘‘मुग्धा, अंदर आ जाओ भीग जाओगी. देखो बारिश शुरू हो गई है,’’ मोहित ने कहा. मुग्धा छोटे से बच्चे की तरह बारिश की बूंदों को चेहरे पर महसूस कर खुशी से पागल हो गई थी. जब भी बारिश होती तो मिट्टी की सोंधीसोंधी खुशबू के लिए मुग्धा ऐसे ही खुशी से  झूम उठती थी. बारिश में भीगना उसे बहुत पसंद था. तितलियों की तरह इधरउधर दौड़तीभागती मुग्धा, बारिश की बूंदों से भीगा हुआ मुग्धा का चेहरा उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रहा था.


‘‘क्या मोहित, वहां क्या दुबक कर बैठे हो? देखो न, कितना अच्छा मौसम है,’’ और मुग्धा फिर से पानी में भीगने चली गई. मोहित मंत्रमुग्ध सा उसे देखता रहा. कभीकभी उसे अपने समय पर रश्क भी होता था. मुग्धा को न जाने क्या सू झा, वह अपनी नाजुक कलाइयों से बरगद के विशाल वृक्ष को बांधने का निरर्थक प्रयास करने लगी. उस की इस हरकत को देख कर मोहित के चेहरे पर मुसकान आ गई. यह जगह मुग्धा को बहुत पसंद थी. इस जगह पर उन दोनों ने भविष्य के न जाने कितने सपने देखे थे, साथ निभाने के सपने, साथ जीवन बिताने के सपने.


‘मुग्धा, अब चलो तबीयत खराब हो जाएगी, अभी एक पेपर और भी बचा है.’’ ‘‘मोहित, परसों आखिरी पेपर है न, खूब मजे करेंगे. पहले एक अच्छी सी पिक्चर, फिर बढि़या सा खाना और उस के बाद एक लौंग ड्राइव,’’ मुग्धा ने अपनी बड़ीबड़ी गोल आंखों को घुमा कर कहा.


‘‘जैसा रानी साहिबा का हुक्म.’’ मोहित की इस बात को सुन कर मुग्धा खिलखिला कर हंस पड़ी. उसे बच्चों की तरह हंसता देख कर मोहित मुसकरा उठा. ‘‘क्या सोच रहे हैं जनाब?’’ मुग्धा ने अनोखी अदा से कहा.


‘‘कुछ नहीं, सोचता हूं तुम्हारे नर्सिंगहोम में तो मरीजों की लाइन लगी रहेगी.’’ मुग्धा ने बड़े आश्चर्य से मोहित की तरफ देखा, ‘‘ऐसा क्यों भला?’’ ‘‘तुम्हारे खूबसूरत चेहरे को देख कर सब बेहोश हो जाएंगे और क्या.’’


मोहित की बात को सुन कर मुग्धा बहुत देर तक हंसती रही. ‘‘मोहित, शादी के बाद तुम मोटे न हो जाना. मु झे मोटे लड़के बिलकुल पसंद नहीं. अदरक की तरह किधर से भी फैल जाते हैं. अगर ऐसा हुआ न, मैं तुम्हें छोड़ कर चली जाऊंगी,’’ और मुग्धा व मोहित बहुत देर तक हंसते रहे.


मुग्धा और मोहित का एमबीबीएस  का आखिरी साल था. एक सुनहरा भविष्य उन का इंतजार कर रहा था. बारबार मुग्धा की निगाह कलाई में बंधी हुई घड़ी की तरफ जाती. तभी सामने से मोहित आता दिखाई दिया, ‘आने दो आज मोहित को अच्छे से खबर लूंगी. इतनी देर कर दी.’


‘‘क्या मोहित, तुम ने मेरी सारी प्लानिंग खराब कर दी. क्याक्या सोचा था,’’ मोहित के चेहरे पर एक अजीब सी नीरसता और तनाव फैला हुआ था. मोहित ने मुग्धा का हाथ अपने हाथों में ले कर संजीदा आवाज में कहना शुरू किया था,’’ मेरी बातों को ध्यान से सुनो मुग्धा, हमारा सफर यहीं तक था. आज से हमारे रास्ते यहीं से अलग होते हैं.’’


मुग्धा मोहित की बातों को सुन कर स्तब्ध थी. ‘‘यह कैसा मजाक है मोहित. तुम जानते हो, मु झे इस तरह के मजाक बिलकुल पसंद नहीं.’’ ‘‘मुग्धा, मैं मजाक नहीं कर रहा. कल पापा के एक दोस्त आए थे. वे बहुत बड़े व्यवसायी हैं. तुम तो मेरे घर की हालत जानती हो, पापा ने न जाने किनकिन मुसीबतों से हम भाईबहनों को पढ़ाया और आज हमें इस लायक बनाया. आज मेरी बारी है उन के लिए कुछ करने की. पापा के दोस्त अपनी इकलौती बेटी की शादी मु झ से करना चाहते हैं. उन्होंने पापा से वादा किया कि एमएस करने में जितना भी खर्चा आएगा, वे उठाएंगे और एक नर्सिंग होम भी बनवाने का वादा किया है. पापा ने इस रिश्ते के लिए हां कर दी है. मैं कुछ नहीं कर पाया.’’


मुग्धा को सम झ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे. ‘‘मोहित, मेरा क्या होगा? एक बार भी तुम ने सोचा, तुम्हारे बिना मैं कैसे जिंदा रहूंगी. हमारे सपने, हमारे उन सपनों का क्या जो हम ने एकसाथ देखे थे,’’ मुग्धा बदहवास सी बोलती जा रही थी. पर मोहित के पास उस की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं था और उसे वहीं छोड़ कर चला गया. मुग्धा मोहित को जाते हुए देखती रही. धीरेधीरे वह उस की आंखों से ओ झल हो गया.


समय अबाध गति से भागा जा रहा था. मुग्धा ने मोहित से सारे रिश्ते खत्म कर लिए. उस का अब इस शहर में रहना भी दुश्वार होता जा रहा था. इम्तिहान खत्म होने के बाद मुग्धा वापस अपनी मां के पास आ गई. पर मोहित की आंखें उस का वहां भी पीछा करती रहीं. न जाने कितने अस्पतालों से उस के लिए नौकरी के प्रस्ताव आए पर मुग्धा इन सब से दूर कहीं दूर भाग जाना चाहती थी. अंत में अपना सबकुछ बेच कर मुग्धा अपनी मां के साथ एक छोटे से कसबे में रहने लगी और गांववासियों की सेवा करने लगी. यहां रहते हुए उसे काफी वक्त हो गया था. मां बहुत देर से कुछ कहने का प्रयास कर रही थी पर सम झ नहीं आ रहा कि बात कहां से शुरू करे. तब मुग्धा ने ही कहा, ‘‘मां, कुछ कहना चाहती हो, तो कह दो न. कहे बिना मानोगी नहीं,  तुम्हारे पेट में दर्द होने लगेगा.’’


एक दिन अचानक रात में दरवाजे  पर किसी ने जोरजोर से आवाज  लगाई, ‘‘डाक्टर साहब, डाक्टर साहब, दरवाजा खोलिए,’’ गहरी नींद में डूबी मुग्धा हड़बड़ा कर उठ बैठी.

‘‘मुग्धा, आज मिसेज सिंघानिया आई थीं. बहुत देर तक बैठी रहीं. उन की छोटी बेटी आजकल लंदन में है. 2 बच्चे हो गए उस के. वह तुम से छोटी थी. पति का बहुत लंबाचौड़ा कारोबार है. मिसेज सिंघानिया तो अपने दामाद की तारीफ करते नहीं थक रही थीं. ‘‘अच्छा,’’ मुग्धा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.


 ‘‘जानती हो, मिसेज सिंघानिया बता रही थीं कि उन की बेटी नंदिता जब भी आती है तो उस के लिए बहुत महंगेमहंगे उपहार ले कर आती है. उस के दोनों बच्चे दिनभर नानीनानी कह कर उन से लगे रहते हैं.’’ ‘‘अच्छा.’’ ‘‘क्या अच्छाअच्छा, इतनी देर से मैं ही बोले जा रही हूं और तुम हो कि मेरी बात का ठीक से जवाब भी नहीं दे रही.’’


 ‘‘दे तो रही हूं न मां, बोलो, क्या कहना चाहती हो?’’ मां धीरे से मुग्धा के निकट आ गई और उस के बालों पर अपनी उंगलियां फेरते हुए बोली, ‘‘मुग्धा, कब तक ऐसी बैठी रहेगी, अपने बारे में तो सोचो. काम करने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है. एक बार उम्र निकल जाएगी तो शादी होना भी मुश्किल हो जाएगी. आज मिसेज सिंघानिया तुम्हारे लिए अपने बड़े भाई के बेटे का रिश्ता ले कर आई थीं. 13-14 साल पहले उन के बड़े भाई के बेटे की शादी हुई थी, पत्नी की रोड ऐक्सीडैंट में मृत्यु हो गई थी. 10-12 साल की बेटी है. खाताकमाता परिवार है. लड़का भी देखने में ठीकठाक है, उन्हें तुम्हारी नौकरी करने से भी कोई दिक्कत नहीं है. अगर तुम हां करो तो मैं बात आगे बढ़ाऊं?’’


मुग्धा अपनी मां की बात को सुन कर ही  झुं झला उठी और उस ने चादर को अपने शरीर से अलग किया और बिस्तर से नीचे उतर आई. ‘‘क्या मां, रोजरोज वही… कितनी बार सम झा चुकी हूं. मु झे शादी नहीं करनी है, तो बस, नहीं करनी है. और ऐसा है, मिसेज सिंघानिया से कह दो अपने भाई के बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ़ लें, मेरा रास्ता न देखें.’’


‘‘एक बार मिल तो लो बेटा, बहुत अच्छा परिवार है. तुम बहुत खुश रहोगी. मेरा क्या है, मैं आज हूं, कल नहीं. न जाने कब क्या हो और मैं इस दुनिया से चली जाऊं.’’


मां ने  झूठी नाराजगी दिखाते हुए मुग्धा से कहा. मुग्धा ने बड़े प्यार से मां के गले में अपनी दोनों बांहें डाल कर कहा, ‘‘तुम अभी इतनी जल्दी मु झे छोड़ कर नहीं जा रहीं. दुनिया की परवा करना छोड़ दो, उन का तो काम ही है कहना और बैठेबैठे कुछ काम कर लिया करो. दिनभर सासबहू के सीरियल देखती रहती हो न, इसीलिए ऐसी खुराफाती बातें दिमाग में घूमती रहती हैं. घूमफिर आया करो. मैं ने ट्रैवल एजेंसी से बात कर ली, बहुत अच्छा पैकेज है. जाओ, चारों धाम की यात्रा कर आओ. कुछ पुण्य मिलेगा,’’ कह कर मुग्धा जोर से हंस पड़ी.


मुग्धा अपनी मां का ध्यान भटकाने की भरसक कोशिश करती रही. पर मां का रिकौर्ड जहां था वहीं आ कर अटक गया था. ‘‘अब तू मु झे चारों धाम की यात्रा पर भेजेगी. काश, तेरा कोई भाई होता तो मु झे चारों धाम पर भेजता तो मु झे मरने के बाद स्वर्ग मिलता, पर ऊपर वाले ने न जाने मेरे लिए क्याक्या सोच रखा है. अब बेटी, मु झे चारों धाम पर भेजेगी,’’ कह कर मां आंचल में मुंह छिपा कर रोने का उपक्रम करने लगी. मां की यह हमेशा की आदत थी जब वह मुग्धा से अपनी बात मनवा नहीं पाती थी तो इसी तरीके से अनर्गल बातें करना शुरू कर देती थी.


‘‘मां, तुम भी किस तरह की बातों में पड़ जाती हो. तुम्हें जाने से मतलब है न. कितने दिन से सोच रही हो पर मेरी वजह से कहीं निकल नहीं पातीं. जाओ और मजे करो,’’ मुग्धा ने अपनी मां के गालों को खींच कर बड़े ही शरारती लहजे में कहा.


कभीकभी मुग्धा इस उम्र में भी छोटी बच्ची की तरह लगने लगती. पर अब तो मुग्धा के बालों में भी सफेद चांदनी दिखने लगी थी. छोटी बहन की भी शादी हो चुकी थी और वह अपने 2 बच्चे व परिवार के साथ बहुत खुश थी. याद है आज भी उसे वह दिन जब मुग्धा ने जिद कर के छोटी बहन की शादी करा दी थी. मां कहती रह गई बड़ी बहन के रहते छोटी की शादी करना कहां तक सही है. समाज क्या कहेगा बड़ी बहन अभी कुंआरी बैठी है और छोटी बहन की शादी कर दी. जरूर बड़ी में कोई खोट है या किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा है. पर मुग्धा अपनी मां को कभी जवाब न देती. मुग्धा की जिद के आगे किसी की एक न चली और छोटी भी ब्याह कर अपने घर चली गई.


मां को चारों धाम पर गए आज 15 दिन हो गए थे. मुग्धा अस्पताल से लौटने के बाद देररात तक टीवी देखती, खाली घर उसे काटने को दौड़ता. जब आंखें और शरीर थकान और नींद से बो िझल हो जाते तब वहीं सोफे पर लेट जाती. समय पंख पसारे उड़ता चला जा रहा था.


एक दिन अचानक रात में दरवाजे  पर किसी ने जोरजोर से आवाज  लगाई, ‘‘डाक्टर साहब, डाक्टर साहब, दरवाजा खोलिए,’’ गहरी नींद में डूबी मुग्धा हड़बड़ा कर उठ बैठी. उस की निगाह बगल में रखी घड़ी पर गई. रात के एक बज रहे थे. उस वक्त भला कौन हो सकता है. चौकीदार भी कुछ दिनों से छुट्टी पर था, गांव में उस की मां बीमार थी. मुग्धा निर्णय नहीं ले पा रही थी कि इतनी रात को वह दरवाजा खोले कि नहीं. उस ने दरवाजे के पास आ कर धीरे से पूछा, ‘‘कौन है?’’


‘‘बेटा, दरवाजा खोलो हम हैं रामू काका.’’ ‘‘रामू काका, आप, इस वक्त?’’ ‘‘बेटा, अस्पताल से थोड़ी दूर पर एक कार का ऐक्सीडैंट हो गया है. 16-17 साल का लड़का है, किसी अच्छे घर का लड़का लगता है, काफी चोट आई है, काफी खून बह गया है. जरा जल्दी से चल कर देख लो, न जाने किस के घर का चिराग है.’’


‘‘रामू काका आप जल्दी से उसे अस्पताल ले कर चलिए, मैं अभी आती हूं,’’ मुग्धा का घर अस्पताल से सटा हुआ था. मुग्धा ने जल्दीजल्दी कपड़े बदले और अस्पताल की तरफ चल पड़ी. मुग्धा रास्तेभर यही सोचती रही, ‘‘16-17 साल का लड़का, अभी तो उस की जिंदगी शुरू हुई है, अभी तो उसे बहुतकुछ देखना था,’’ पूरा शरीर खून से लथपथ था. मुग्धा ने तुरंत औपरेशन थिएटर में जाने का आदेश दिया. चोट बहुत गहरी तो नहीं थी पर खून काफी बह गया था. नर्स ने जल्दीजल्दी उस लड़के के चेहरे पर लगी चोटों को साफ किया. एक घंटे के अथक प्रयास के बाद वह लड़का खतरे से बाहर था.


‘‘डाक्टर साहब, इस लड़के के पास से वह मोबाइल और पर्स मिला है. उस के घरवालों को भी इन्फौर्म करना होगा,’’ नर्स ने कहा. ‘‘हां, यह बात तो है,’’ मुग्धा ने कहा और अपने चैंबर में आ गई और उस ने वार्डबौय से एक कप कौफी लाने को कहा. वह बहुत थक चुकी थी. उस ने उस लड़के से मिले हुए मोबाइल की डिटेल्स को खंगालना शुरू किया. आखिरी कौल पापा के नाम से थी. उस ने उस पर फोन मिलाया. 4-5 घंटी जाने के बाद किसी ने फोन उठाया, ‘‘हैलो, डाक्टर मोहित हेयर.’’


मुग्धा आवाज सुन कर स्तब्ध थी. नियति उस के साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं कर सकती. क्या दुनिया में मोहित नाम का सिर्फ एक ही व्यक्ति है. यह मेरी गलतफहमी भी तो हो सकती है.यादों की किताबों के न जाने कितने पन्ने उस की आंखों के सामने पलटते चले गए, ‘‘हैलो… हैलो, क्या आप मेरी आवाज सुन रहे हैं.’’


मुग्धा जैसे नींद से जागी, ‘‘हैलो, मैं गौरीगंज से बोल रही हूं. हमारे यहां ऐक्सीडैंट का एक केस आया है.16-17 साल के लड़के के पास से एक मोबाइल और पर्स मिला है. मयंक नाम है लड़के का. क्या आप उस लड़के को जानते हैं? अगर हां, तो कृपया कर के मरीज को ले जाएं.’’


मोहित चुपचाप उसे जाते देखता रहा. सूरज अपनी पूर्ण लालिमा के साथ एक नए सवेरे के स्वागत के लिए उदय हो रहा था और उस की किरणों से आत्मविश्वास से भरा हुआ मुग्धा का चेहरा और भी दमक रहा था.  

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ. मेरा मयंक ठीक तो है न?’’ ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है. वह ठीक है, खतरे से बाहर है. आप जल्द से जल्द यहां आ जाएं.’‘‘जी, मैं अभी निकलता हूं. एकसवा घंटे में मैं आप के पास पहुंच जाऊंगा. तब तक आप उस का ध्यान रखें. थैंक्यू मैम, मैं आप का एहसान जीवनभर नहीं भूलूंगा.’’


‘‘वैलकम,’’ मुग्धा अब तक उस आवाज को पूरी तरह पहचान चुकी थी. उस ने किसी तरह से अपनेआप को इतनी देर तक संभाल रखा था. इतने सालों बाद उस का अतीत एक बार उसे पुकार रहा था. वह अतीत, जिसे वह न जाने कब का भूल चुकी थी. सच कहते हैं लोग, इंसान कुछ भी कर ले पर अपने अतीत से नहीं भाग सकता.


सोचतेसोचते न जाने कब मुग्धा की आंख लग गई, तभी नर्स की आहट की आवाज को सुन कर उस की नींद खुल गई. ‘‘डाक्टर साहब, वह जो ऐक्सीडैंट केस आया था, उस के घर वाले आ गए हैं. आप से मिलना चाहते हैं.’’


मुग्धा ने अपनेआप को संभाला और वार्ड की तरफ चल पड़ी. आज इतने वर्षों बाद उस का अपना अतीत उस के सामने आ कर खड़ा हो गया था. यादों के  झरोखों पर आज फिर किसी ने दस्तक दे दी थी. न चाहते हुए भी मन उस की तरफ खिंचता चला गया. वे वही आंखें थीं जिन्होंने मुग्धा को सालोंसाल सोने नहीं दिया. सालोंसाल वे आंखें मुग्धा का पीछा करती रहीं, पर उन आंखों की वह कशिश, चेहरे का वह नूर जिस पर न जाने कितनी लड़कियां मरती थीं, न जाने कहां गायब हो गया था. वक्त के थपेड़ों ने या फिर बेहिसाब जिम्मेदारियों ने उस को उम्र से पहले ही परिपक्व कर दिया था. आंखों की कशिश जिम्मेदारियों के बो झ तले और मोटे फ्रेम के पीछे कहीं दूर छिप गई थी और उस सजीले नौजवान को कहीं दूर पीछे धकेल बहुत आगे निकल आई थी. मुग्धा की आंखें मोहित को पहचानने में कभी गलती नहीं कर सकती थीं. मोहित की आंखें मुग्धा को पहचानने की कोशिश कर रही थीं.


‘‘वही तो है, हां, बिलकुल मुग्धा ही तो है. आज भी वैसी ही सुंदर, सौम्य और सहज. रत्तीभर भी नहीं बदली. पर वह तो कभी ऐसे फीके रंग नहीं पहनती थी. जीवन से भरपूर, जिंदादिल किसी को भी पलभर में अपना दीवाना बना दे.’’


मोहित ने अपनेआप को सम झाने का प्रयास किया. मुग्धा ने उसे देख कर भी अनदेखा कर दिया. मोहित सम झ नहीं पा रहा था कि वह बात की शुरुआत कैसे करे. ‘‘ये लड़के के पिता हैं,’’ नर्स ने कहा.


‘‘आप का बेटा ठीक है, दवाइयां लिख रही हूं. समयसमय पर देते रहिएगा. चिंता की कोई बात नहीं. आप का बेटा दवा की वजह से आराम से सो रहा है,’’ मुग्धा उस का चैकअप करने के लिए जैसे ही  झुकी, मोहित ने धीरे से पूछा, ‘‘कैसी हो मुग्धा?’’


मुग्धा ने जलती हुई निगाहों से मोहित की ओर देखा. जैसे पूछना चाह रही हो, ‘‘अब पूछ रहे हो कि कैसी हूं मैं, अब तक कहां थे. एक बार भी सोचा कि जिंदा हूं या मर गई,’’ विचारों के न जाने कितने तूफान उस के दिल में उठ रहे थे. पर उस ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए कहा, ‘‘आप का बेटा अब ठीक है. आप चाहें तो कल इसे ले जा सकते हैं,’’ और वह तेजतेज कदमों से चलते हुए दूसरे मरीजों को देखने के लिए आगे बढ़ गई.


मोहित स्तब्ध और एकटक उसे जाता देखता रहा. क्या मुग्धा ने उसे पहचाना नहीं था, क्या वह इतना बदल गया है. सच भी तो है. अब वह पहले जैसा कहां रहा. मुग्धा कहती थी, ‘मु झे अदरक की तरह यहांवहां से फैले पुरुष बिलकुल अच्छे नहीं लगते.’ वह भी तो ऐसा ही हो गया था. मोहित को बहुतकुछ कहना और सुनना था. इन 20 सालों में जो कुछ हुआ वह कह और सुना लेना चाहता था.


मुग्धा अपने मरीजों को देख कर अपने घर की तरफ जाने को तत्पर थी. रात बीतने को थी, आसमान में हलका अंधेरा ही था. चिडि़यों की यदाकदा चहचहाहट से आसमान गूंज रहा था. तभी मोहित ने पीछे से मुग्धा को आवाज दी.  ‘‘डा. मुग्धा, एक मिनट आप से बात करनी है,’’ मुग्धा के पांव वहीं जम गए. चाह कर भी वे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई.


‘‘मुग्धा, पहचाना नहीं? मैं मोहित.’’ क्या कहती मुग्धा. शब्द उस के मुंह तक आतेआते अटक से गए. ‘‘तुम को कैसे भूल सकती हूं मोहित?’’मोहित बोलने लगा, ‘‘तुम यहां कैसे? कालेज छोड़ने के बाद किसी को नहीं पता कि तुम कहां गईं. तुम ने अपना पुराना घर भी बेच दिया. आंटी कैसी हैं और तुम्हारी छोटी बहन… क्या नाम था उस का,’’ मोहित ने अपनी याददाश्त पर जोर डालते कहा, ‘‘निवेदिता.’’


मुग्धा ने बड़ी गंभीरता से कहा, ‘‘हांहां वही. निवेदिता की शादी हो गई और मां चारों धाम की यात्रा पर गई हैं.’’ ‘‘और तुम, तुम कैसी हो?’’ मोहित ने मुग्धा की आंखों में आंखें डाल कर पूछा. मुग्धा का सब्र अब जवाब दे चुका  था. उस ने जलती निगाहों से मोहित को देखा, ‘‘तुम बताओ, कैसी होनी चाहिए?’’ मुग्धा की आंखों में तैरते सूनेपन को मोहित  झेल नहीं पाया. उस ने अपनी निगाहें घुमा लीं.


‘‘मुग्धा, जो कुछ भी हुआ, उस के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूं. पर तुम सम झो उस परिस्थिति में मैं कर भी क्या सकता था.’’


‘‘समझा ही तो था,’’ मुग्धा ने व्यंग्य से मोहित को देखा. कुछ देर तक उन दोनों के बीच एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहा. मोहित ने दोनों के बीच फैले सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा, ‘‘तुम यहां कैसे और तुम्हारे पति व बच्चे?’’ मोहित ने बहुत हिम्मत जुटा कर मुग्धा से पूछा. ‘‘मैं ने शादी नहीं की मोहित.’’


‘‘क्यों मुग्धा? इतनी लंबी जिंदगी है, अकेले कैसे काटोगी?’’ ‘‘मोहित, सोचा भी था और चाहा भी था पर हर सोची और चाही हुई चीज इंसान को मिल जाए, यह जरूरी तो नहीं.’’


‘‘मुग्धा, मु झे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारा जीवन बरबाद कर दिया. मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं. मु झे माफ कर दो. तुम ने सबकुछ जानने के बाद भी मेरे बेटे की जान बचाई,’’ मोहित फूटफूट कर रो पड़ा. मोहित आत्मग्लानि की आग में जल रहा था. मोहित को बच्चों की तरह रोता देख कर मुग्धा के दिल में वर्षों से जमा गुस्सा आंसुओं के रूप में पिघल कर आंखों से बह गया.


‘‘मोहित, जो होता है वह अच्छे के लिए ही होता है. इस गांव में बहुत ही सीधे और सज्जन लोग हैं. यहां किसी की दीदी, किसी की बेटी तो किसी की बूआ हूं. खून का रिश्ता न होते हुए भी ये लोग मेरी एक आवाज पर खड़े हो जाते हैं. क्या हुआ जो एक रिश्ता नहीं जुड़ा. उस एक रिश्ते के बदले मु झे न जाने कितने रिश्ते मिल गए. जहां तक तुम्हारे बेटे की बात है, तो तुम शायद यह भूल गए कि डाक्टरी की पढ़ाई के समय हमें मानवता और इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है. पहली बात तो यह है कि मु झे तो उस वक्त तक यह पता भी नहीं था कि वह तुम्हारा बेटा है और पता होता तो भी, मैं तुम्हारे बेटे की जान बचाती. तुम अपने दिल पर कोई भी बो झ मत रखो. अब मैं चलती हूं. मेरी सुबह की सैर का वक्त हो गया.’’


मोहित चुपचाप उसे जाते देखता रहा. सूरज अपनी पूर्ण लालिमा के साथ एक नए सवेरे के स्वागत के लिए उदय हो रहा था और उस की किरणों से आत्मविश्वास से भरा हुआ मुग्धा का चेहरा और भी दमक रहा था.

'