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कहानी: प्रतिकार

क्या उपकार प्रतिकार के मानसिक अंतर्द्वंद्व में जूझती आराधना अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन पाई?

आपरेशन टेबल पर पड़े मरीज को देख कर डा. आराधना सकते में आ गई. यह वही दरिंदा था जिस ने उस के हंसतेखेलते परिवार को उजाड़ दिया था. रात में मां का फोन आया था कि वह सुबह आ रही हैं. उन्हें स्टेशन से लेने के लिए वह निकल ही रही थी कि फोन की घंटी बज उठी. उस ने रिसीवर उठाया तो पता चला कि फोन अस्पताल के आपातकालीन विभाग से आया था और उसे जल्दी पहुंचने के लिए कहा गया था.


कई महीनों के बाद तो उस ने छुट्टी ली थी. मां उस से मिलने आ रही हैं. पिछली बार जब वह घर गई थी तब केवल 4 दिन की छुट्टियां ली थीं. मां ने उस से पूछा था, ‘अब फिर कब आओगी’ तो उस ने कहा था, ‘मां, अब तुम मुझ से मिलने आना. मेरा आना संभव नहीं हो पाएगा.’


तब मां ने कहा था, ‘तुम छुट्टी लोगी, तभी मैं वहां आऊंगी. स्टेशन से ले जा कर घर बिठा देती हो… अकेले घर में मन ही नहीं लगता. कम से कम उस दिन तो छुट्टी ले ही लिया करो.’


यही सोच कर उस ने मां को अपनी छुट्टी की खबर दी थी और मां आ रही थीं. पर अचानक अस्पताल से फोन आने के बाद उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह जानती थी कि अकेले भी मां को स्टेशन से घर आने में कितनी तकलीफ होगी. भैयाभाभी जानेंगे तो अलग गुस्सा होंगे कि यदि उस के पास मां के लिए इतना भी समय नहीं है तो वह उन्हें अपने पास बुलाती ही क्यों है.


जल्दी में कुछ और उपाय नहीं सूझा तो उस ने डा. कपिल के पापा से मां को स्टेशन से लाने के लिए अनुरोध किया. वह जानती थी कि मां को लाने और घर तक छोड़ने में कम से कम डेढ़ घंटा तो लग ही जाएगा. उधर अस्पताल से दूसरी बार फोन आ चुका था. मां पहली बार जब आई थीं तब कपिल के पापा से उन की मुलाकात


हुई थी इसलिए परेशानी की कोई बात नहीं थी.


ताला लगा कर चाबी उस ने कपिल के पापा को दे दी. उन की इस असुविधा के लिए उस ने पहले ही फोन पर उन से क्षमा मांग ली थी. तब उन्होंने फोन पर हंस कर कहा था, ‘‘तुम्हारी मां के आ जाने से मुझ बुड्ढे को भी कोई बात करने वाला मिल जाएगा.’’


उन की बात सुन कर वह भी खिलखिला कर हंस पड़ी थी.


अस्पताल पहुंचते ही वह डा. सिद्धांत के कमरे में गई. उन्होंने ही उसे फोन कर के बुलाया था. मरीज की प्राथमिक चिकित्सा कर दी गई थी पर आपरेशन की तुरंत आवश्यकता थी. समय पर आपरेशन न करने से मरीज की जान को खतरा था.


उस ने देखा कि आपरेशन थिएटर के बाहर एक औरत बुरी तरह से रोते हुए नर्स से कह रही थी, ‘‘सिस्टर, मैं अभी पूरे पैसे जमा नहीं करा सकती पर मैं जल्दी ही बिल चुका दूंगी.’’


सिस्टर ने झिड़कते हुए कहा था, ‘‘पैसा नहीं है तो किसी सरकारी अस्पताल में ले जाओ. इसे यहां क्यों ले कर आई हो?’’


‘‘यहां के डाक्टर योग्य हैं. मेरा इस अस्पताल पर विश्वास है. मैं जानती हूं कि डा. आराधना और डा. सिद्धांत मेरे पति को बचा लेंगे इसीलिए मैं यहां आई हूं. सिस्टर, मैं एकएक पैसा चुका कर ही यहां से जाऊंगी.’’


नर्स से बात करने के बाद वह औरत उस के पास आ कर रोतेरोते कह रही थी, ‘‘प्लीज, मेरे पति को बचा लीजिए. मुझे पता है कि आप मेरे पति को बचा सकती हैं. बचा लेंगी न आप?’’


उस ने उस औरत को सांत्वना दी, ‘‘देखिए, अपनी ओर से डाक्टर पूरा प्रयत्न करता है. यह उस का कर्तव्य होता है. आप चिंता न करें. सब ठीक हो जाएगा. क्या हुआ था आप के पति को?’’


‘‘पता नहीं डाक्टर, रात पेट में दाईं ओर दर्द होता रहा. सुबह उठते ही खून की उलटी हो गई. मैं घबराहट में कुछ कर ही नहीं सकी. जो रुपए घर में रखे थे उन्हें भी नहीं ला सकी. डाक्टर, आप इन का इलाज शुरू कीजिए, मैं घर जा कर पैसे ले आऊंगी.’’


नर्स ने फार्म पर हस्ताक्षर कराते समय उस औरत से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे पति शराब पीते हैं?’’


‘‘हां, सिस्टर, बहुत अधिक पीते हैं. यह शराब ही इन्हें ले डूबी है. शराब के नशे में क्याक्या नहीं किया इन्होंने. सारी संपत्ति गंवा दी. अच्छाखासा कारोबार था, सब समाप्त हो गया. सासससुर बेटे के गम में ही चल बसे. मैं अकेली औरत क्याक्या करूं. कोई संतान भी नहीं हुई जो उस से मेरा जीवन अच्छा कट जाता,’’ कह कर वह औरत फिर रोने लगी.


वह उन की बातों को सुन रही थी लेकिन उस का ध्यान मरीज की ओर था जो अभी भी बेहोशी की हालत में था. डा. सिद्धांत भी आ गए थे. वह उन के साथ ही मरीज के पास आ गई. उस ने नब्ज देखी. ब्लडप्रेशर चेक किया. उस समय सबकुछ सामान्य था.


‘‘आपरेशन किया जा सकता है डा. सिद्धांत,’’ यह कह कर उस ने मरीज की ओर ध्यान से देखा. चेहरा कुछ जाना- पहचाना सा लग रहा था. उस चेहरे की प्रौढ़ता के पीछे वह मरीज की युवावस्था का चेहरा ढूंढ़ने लगी तो उस चेहरे को क्षणांश में ही पहचान गई. उस ने मरीज को फिर से देखा. उस की नजरें धोखा नहीं खा सकतीं. 20 बरसों के बाद भी वह उसे पहचान गई.


एक पल को उसे जोर का झटका लगा. उस के कदम आपरेशन थिएटर की ओर नहीं बढ़ सके. कमरे में जा कर वह कुरसी पर धम से बैठ गई. थोड़ा पानी पीने के बाद उस ने कुरसी के पीछे सिर टिका कर आंखें मूंद लीं.


तब वह 12-13 साल की थी और दीदी 17 की रही होंगी. वह 7वीं कक्षा में थी और दीदी 12वीं में, शिवांक सब से छोटा था. दोनों बहनें एक ही स्कूल में पढ़ने जाती थीं. स्कूल दूर नहीं था इसलिए दोनों पैदल ही जाया करती थीं. मां सुबह उठ कर नाश्ता तैयार करतीं. पापा कभीकभी उन को स्कूटर से भी स्कूल छोड़ आते थे.


दीदी पढ़ने में बहुत तेज थीं. पापा भी उन का पूरा ध्यान रखते थे. शाम को आफिस से आ कर दोनों की पढ़ाई के बारे में, स्कूल की अन्य गतिविधियों के बारे में पूछते रहते और जो भी कठिनाई होती उसे दूर करते थे. चूंकि पापा आफिस के साथसाथ दीदी को नियमित नहीं पढ़ा पाते थे अत: दीदी को विज्ञान पढ़ाने के लिए ट्यूशन लगा दी थी. वह चाहते थे कि दीदी अच्छे अंकों से पास हों क्योंकि पापा दीदी को डाक्टर बनाना चाहते थे.


दीदी भी पापा की इच्छाओं को समझती थीं. वह आज्ञाकारी बेटी बन उन की हर बात को मानती थीं. स्कूल में दीदी एक आदर्श विद्यार्थी मानी जाती थीं और परीक्षा में टौप करेगी ऐसी सभी आशा करते थे.


दीदी स्कूल से आ कर ट्यूशन के लिए जाती थीं. शाम को मां दीदी को अपने साथ लाती थीं. उस दिन शिवांक को बहुत तेज बुखार था. इसलिए मां ने उन दोनों बहनों को एकसाथ भेज दिया था ताकि वापसी में दोनों एकसाथ आ सकें.


जनवरी का महीना था. दोनों बहनें घर की ओर आ रही थीं कि वह अनहोनी हो गई जिस ने उस के घर को तिनकातिनका कर बिखेर दिया. उस अंधेरे ने जीवन में जो अंधकार भर दिया उस की पीड़ा वह आज भी महसूस करती है.


ट्यूशन पढ़ाने वाले अध्यापक के घर से निकल कर वे कुछ दूर ही पहुंची थीं कि एक कार तेजी से उन के पास आ कर रुकी और वे कुछ संभल पातीं कि कार खोल कर उतरे युवकों ने उन्हें कार में धकेल दिया. कार चल पड़ी तो उन दोनों युवकों ने अपनी हथेलियों से उन का मुंह जोर से बंद कर दिया ताकि वे चिल्ला न सकें.


तीनों युवकों ने उन्हें ले जा कर एक कमरे बंद कर दिया था. फिर कुछ देर बाद तीनों युवक दोबारा वहां आए. वह डरीसहमी कोने में दुबक  कर खड़ी देखती रही. उस के सामने ही उस की दीदी को नंगा कर दिया गया. एक ने दीदी के बाजू पकड़ लिए और दूसरे ने टांगें और फिर तीसरा…वह राक्षस, दीदी छटपटाती रहीं, चिल्लाती रहीं लेकिन उन के रोने को किसी ने नहीं सुना. वह दीदी को बचाने गई तो एक ने ऐसे जोर से धक्का दिया कि वह दीवार से जा टकराई और बेहोश हो गई.


जब होश आया तो सबकुछ समाप्त हो चुका था. वे तीनों दरिंदे कमरे से जा चुके थे. दीदी बेहोश पड़ी थीं. बाहर निकल कर उस ने देखा तो उस की समझ में नहीं आया कि कौन सी जगह है. सारी रात वह यह सोच कर रोती रही कि उस की मां और पापा कितने परेशान हो रहे होंगे.


सुबह होने पर वह कमरे से बाहर निकल कर आई और किसी तरह अपने घर पहुंच कर मां व पापा को सारी बात बताई. जब उन्हें यह सब पता चला तो उन के पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई. वे उसे ले कर वहां गए जहां दीदी को वह बेहोश छोड़ कर आई थी. दीदी अभी भी बेहोश पड़ी थीं. पापा दीदी को ले कर अस्पताल गए तो डाक्टरों ने इलाज से ही पहले ढेरों प्रश्न कर डाले. पापा ने जाने कैसेकैसे कह कर सिफारिश कर उस का इलाज शुरू करवाया था. लेकिन तब तक दीदी बहुतकुछ खो चुकी थीं. मानसिक रूप से विक्षिप्त दीदी थोड़ीथोड़ी देर बाद चीखने लगतीं, कपड़े फाड़ने लगतीं.


परीक्षाएं शुरू हुईं और समाप्त भी हो गईं. दीदी बेखबर थीं और फिर एक दिन इसी बेखबरी में दीदी चल बसीं. पापा ने ठान लिया था कि वह इस का बदला ले कर रहेंगे. उन्होंने अपने जीवन का जैसे उद्देश्य ही बना लिया था कि अपराधियों को उस के किए की सजा दिला कर रहेंगे. पुलिस में रिपोर्ट तो लिखाई ही थी. उस की पहचान पर पुलिस ने उन युवकों को पकड़ भी लिया. अदालत में मुकदमा चला, जज के सामने भी उस ने चिल्ला कर उस युवक के बारे में बताया था लेकिन उन लोगों ने ऐसेऐसे गवाह पेश कर दिए जिस से यह साबित हो गया कि वह तो घटना वाले दिन शहर में था ही नहीं. अमीर पिता का बिगड़ा बेटा था सो पैसे के बल पर छूट गया. बाकी दोनों युवकों को 3-3 माह की सजा हुई, बस.


पापा टूट तो पहले ही गए थे, फैसला आने के बाद तो जैसे बिखर ही गए. उन्होंने उस शहर से अपना ट्रांसफर करवा लिया लेकिन वहां भी वह संभल नहीं पाए. दीदी की मृत्यु वह सहन नहीं कर पाए और एक दिन उन्होंने हम सब को छोड़ कर आत्महत्या कर ली.


पापा ने एक मकान ले रखा था. मां उसी में आ कर रहने लगीं. उन्होंने एक कमरा अपने पास रखा और बाकी कमरे किराए पर चढ़ा दिए.


पापा और दीदी की मौत ने उसे कुछ ही समय में बड़ा कर दिया. वह शांत, चुप रहने लगी. पढ़ाई में उस ने मन लगाना शुरू कर दिया. चूंकि पापा दीदी को डाक्टर बनाना चाहते थे इसलिए उस ने ठान लिया था कि वह पापा की इच्छा को अवश्य पूरी करेगी. वह दीदी जैसी प्रतिभावान नहीं थी पर अपनी लगन और दृढ़ निश्चय के कारण वह सफलता की सीढि़यां चढ़ती गई और एक दिन उस ने डाक्टर बन कर दिखा ही दिया. आज वह एक सफल डाक्टर है और लोग उसे


डा. आराधना के रूप में जानते हैं. इस इलाके में उस का नाम है.


मां विवाह के लिए पिछले 5 सालों से जिद कर रही हैं लेकिन वह ऐसा सोच भी नहीं सकती. वह मानसिक रूप से इस के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाती. शायद दूसरी वजह यही है कि बचपन में जो वीभत्स दृश्य उस ने देखा था उस कुंठा से वह निकल नहीं पाई है. हार कर मां ने शिवांक का विवाह कर दिया और उसी के पास वह रहती है.


आज जिस पुरुष को अभी देख कर वह आई है, वह कोई और नहीं बल्कि वही दरिंदा था जिस ने उस के सामने ही उस की दीदी की इज्जत से खेल कर उन्हें मौत के मुंह में धकेल दिया था और दीदी को न्याय नहीं दिला पाने की पीड़ा में पापा ने आत्महत्या कर ली थी.


उस के मन में उबाल उठ रहा था, जो न्याय दीदी को पापा नहीं दिला पाए थे वह दिलवाएगी. वह उस व्यक्ति से अवश्य प्रतिकार लेगी. तभी दीदी और पापा की आत्मा को शांति मिल सकेगी. वह उस का इलाज नहीं करेगी जो इस समय जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा है.


वह निश्ंिचत हो कर वैसे ही कुरसी पर सिर टिकाए बैठी रही पर उस के मन को अभी भी कुछ कचोट रहा था. उसे लगा जैसे कुछ गलत हो रहा है.


जब वह कोई निर्णय नहीं ले पाई तो उस ने अपने घर आई मां को फोन किया. बड़ी देर तक फोन की घंटी बजती रही, किसी ने रिसीवर उठाया ही नहीं. फिर उस ने कपिल के घर फोन किया. फोन कपिल के पापा ने उठाया. उस ने छूटते ही पूछा, ‘‘अंकल, मां नहीं आईं क्या? घर पर फोन किया था. किसी ने रिसीवर उठाया ही नहीं.’’


‘‘च्ंिता न करो, बेटी, तुम्हारी मां मेरे घर में हैं. तुम थीं नहीं सो इधर ही उन्हें ले कर चला आया.’’


‘‘अंकल, मां से बात कराएंगे?’’


‘‘क्यों नहीं, अभी करवा देता हूं.’’


‘‘हैलो, मां कैसी हैं आप, सौरी, मैं आप को लेने नहीं आ सकी.’’


‘‘कोई बात नहीं, बेटी. मैं तुम्हारी मजबूरी को समझती हूं. तुम च्ंिता मत करो. चाय पी कर मैं घर चली जाऊंगी. तुम अपना काम कर के ही आना.’’


‘‘मां, आप अस्पताल में आ सकती हैं?’’


‘‘क्यों, क्या बात है, बेटी? तुम्हारी आवाज भर्राई हुई क्यों है?’’


‘‘कुछ नहीं, मां. बस, आप यहां आ जाओ,’’ उस ने छोटे बच्चों की तरह मचलते हुए कहा.


‘‘अच्छा, मैं अभी आ रही हूं,’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया.


मां जब अस्पताल पहुंचीं तब भी वह अपने कमरे में निश्चल बैठी थी. मां को देखते ही वह उन से लिपट कर रोने लगी. मां उसे भौचक देखती रहीं, सहलाती रहीं. थोड़ा मन शांत हुआ तो मां से अलग हो कर फिर से कुरसी पर आंखें मूंद कर बैठ गई. लग रहा था जैसे उस में खड़े होने की शक्ति ही नहीं रही.


मां ने च्ंितित स्वर में पूछा, ‘‘आराधना, क्या बात है. सबकुछ ठीक तो है न, बोल क्यों नहीं रही बेटी.’’


वह फिर से रोने लगी और रोतेरोते उस ने मां को उस व्यक्ति के बारे में सबकुछ बता दिया.


मां भी सकते में आ गईं. जरा संभलीं तो बोलीं, ‘‘मत करना उस का आपरेशन, मरने दे उसे. यही उस की सजा है. मेरा घर बरबाद कर के वह अभी तक जीवित है. हमें कानून से न्याय नहीं मिला, अब समय है, तू बदला ले सकती है. तभी साधना और तुम्हारे पिता की आत्मा को शांति मिलेगी. कुछ सोचने की जरूरत नहीं. चुपचाप घर चल, तू ने छुट्टी तो ले ही रखी है.’’


वह उसी तरह कुरसी पर सिर टिकाए बैठी रही. तभी नर्स ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘डाक्टर, आपरेशन की तैयारी पूरी हो गई है. आप भी जाइए.’’


नर्स तो कह कर चली गई पर वह मां की ओर देखने लगी. मां ने उस से फिर कहा, ‘‘देख ले, आराधना, अच्छा अवसर मिला है. मत जा, कोई और यह आपरेशन कर लेगा.’’


‘‘मां, यह आपरेशन मैं ही कर सकती हूं, इसीलिए तो घर से बुलवाया गया था.’’


‘‘सोच ले.’’


‘‘मैं अभी आती हूं,’’ कह कर वह अपने कमरे से बाहर आ गई. मरीज के साथ आई औरत वहीं खड़ी थी. उस का दिल चाहा कि वह उस से सबकुछ बता दे कि उस के पति ने क्याक्या किया था. पर इस में उस औरत का क्या दोष है.


वह बिना कुछ बोले आपरेशन थिएटर में चली गई. देखा तो वह व्यक्ति अचेतावस्था में आपरेशन टेबल पर लेटा हुआ था. उस की मनोस्थिति से बेखबर यदि और थोड़ी देर उस का आपरेशन नहीं किया गया तो वह बच नहीं पाएगा. वह इस वहशी का अंत देखना चाहती है. वह पापा और दीदी की मृत्यु का बदला लेना चाहती है. लेकिन उस के मन की दृढ़ता पिघलने क्यों लगी है? कभी उस औरत का दारुण रुदन सुनाई देने लगता तो कभी उस का गिड़गिड़ाता हुआ चेहरा सामने आ जाता तो कभी दीदी और पापा सामने आ जाते. कभी मां के शब्द कानों में गूंजने लगते. यह कैसा अंतर्द्वंद्व है. वह बदला ले या अपना कर्तव्य निभाए. मन दीदी का साथ दे रहा था तो अंतरात्मा उस का.


वह थोड़ी देर खड़ी रही. खाली- खाली आंखों से उस व्यक्ति को देखती रही. उस के चेहरे पर भाव आजा रहे थे.


नर्स हैरानी से उसे देख रही थी. बोली, ‘‘डाक्टर, सब ठीक है न?’’


‘‘ठीक है,’’ कह कर वह ग्लव्स और ऐप्रेन पहनने लगी.


2 घंटे के अथक परिश्रम के बाद आपरेशन पूरा हो गया. वह निढाल सी हो कर बाहर आई. वह औरत उस की ओर बढ़ी पर उस से वह कुछ कह नहीं पाई. उस के कंधे पर हाथ रख वह अपने कमरे की ओर चली आई थी. मां अभी तक वहीं थीं. वह उन की गोद में सिर रख कर फफकफफक कर रो पड़ी. मां उस के सिर को सहलाते हुए खुद भी रो पड़ीं. उन दोनों की आंखों से अब आंसू के रूप में अतीत का दर्द बह रहा था.

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