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अनुप्रिया पटेल दूसरी बार मोदी मंत्रिपरिषद में शामिल, पिता की विरासत संभालने के लिए राजनीति में रखा कदम

गाजीपुर न्यूज़ टीम, मिर्जापुर. मोदी मंत्रिपरिषद में अपना दल एस की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को एक बार फिर मौका मिला है। अनुप्रिया पटेल 2014 में बनी मोदी की पहली सरकार में राज्यमंत्री बनी थीं। इस बार भी उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया है। 

यूपी में 2014 के आम चुनावों में बीजेपी गठबंधन में शामिल अपना दल ने 2 सीटें हासिल की थीं। इसके बाद मोदी सरकार ने मिर्जापुर से सांसद अनुप्रिया पटेल को केंद्र में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्यमंत्री बनाया था। 2019 में अनुप्रिया पटेल एक बार फिर सांसद बनीं लेकिन मोदी सरकार दोबारा बनने के बाद अपना दल को केंद्रीय टीम में जगह नहीं मिली थी। 


अनुप्रिया पटेल को राजनीति विरासत में मिली है। उनके पिता सोनेलाल पटेल यूपी की सियासत में अपनी अलग पहचान रखते रहे। वह बसपा के संस्थापकों में से एक माने जाते हैं। बाद में वह बसपा से अलग हो गए और अन्य पिछड़ा वर्ग को केंद्रित कर अपना दल का गठन किया। हालांकि अपना दल को केवल कुर्मी जाति का ही साथ मिला। यूपी की पिछड़ी जातियों में यादवों के बाद सबसे ज्यादा कुर्मी वोट बैंक है। करीब 9 प्रतिशत आबादी के साथ यूपी की करीब 100 विधानसभा सीटों पर कुर्मी जाति का खासा असर माना जाता है। यही वजह है कि अपना दल हर चुनाव में दमदार उपस्थिति दर्ज कराया रहा है। 


न चाहते हुए राजनीति में आईं अनुप्रिया पटेल

अनुप्रिया पटेल का जन्म 28 अप्रैल 1981 को कानपुर शहर में हुआ। उन्होंने दिल्‍ली स्थित लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन और एमिटी यूनिवर्सिटी से साइकोलॉजी में मास्टर डिग्री हासिल की है। छत्रपति साहू जी महाराज यूनिवर्सिटी (कानपुर) से एमबीए भी हैं। अनुप्रिया शुरुआती जीवन में राजनीति से दूर ही रहीं। वह खुद भी कई बार कह चुकी हैं कि वह राजनीति में नहीं आना चाहती थीं, लेकिन पिता सोनेलाल की 2009 में हादसे में मौत के बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। पिता  की पार्टी को संभालने के लिए अनुप्रिया पटेल राजनीति में आई गईं।


मां-बहन से अलगाव

पिता की मौत के बाद अनुप्रिया पटेल ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव बनीं। पार्टी की कमान उनकी मां कृष्णा पटेल के पास आ गई। समय बीतता गया और अनुप्रिया अपने पिता की तरह अपनी अलग पहचान बनाती गईं, लेकिन इसके साथ ही उनके परिवार में तनाव भी बढ़ते गए। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में अनुप्रिया वाराणसी की रोहनिया विधानसभा से चुनाव जीतीं। इसके दो साल बाद ही उनकी पार्टी ने बीजेपी से गठबंधन किया और 2014 में अनुप्रिया पटेल मिर्ज़ापुर से लोकसभा चुनाव जीतीं। इसके बाद वह 36 वर्ष की उम्र में सबसे युवा मंत्री बनीं।


इधर, अनुप्रिया ने रोहनिया विधानसभा सीट छोड़ी तो इस सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर परिवार में रस्साकसी हो गई। यहीं से अपना दल में टूट की नींव पड़ गई। इस सीट पर अनुप्रिया के पति आशीष सिंह चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन मां कृष्णा पटेल ने इसे खारिज कर दिया और खुद रोहनिया से चुनाव लड़ीं। ये उपचुनाव कृष्णा पटेल हार गईं और अब मां और बेटी आमने-सामने आ गईं। इससे पार्टी पर कब्जे की जंग शुरू हो गई। उपचुनाव हारने के कुछ समय बाद कृष्णा पटेल ने सीधे अनुप्रिया पटेल और उनके कुछ सहयोगियों को पार्टी से बाहर कर दिया। तब तक अनुप्रिया की अलग पहचान बन चुकी थी। पार्टी पर हक के लिए दोनों पक्ष कोर्ट पहुंचे। मामला अभी भी हाईकोर्ट में विचाराधीन है। इस बीच अनुप्रिया पटेल ने 2016 में अपनी अलग पार्टी अपना दल (सोनेलाल) बना ली।


इस दौरान मां कृष्णा पटेल और बहन पल्लवी पटेल से उनका टकराव समय-समय पर होता रहा। 2017 के विधानसभा चुनाव में पल्लवी पटेल कई बार मंच से अनुप्रिया पटेल पर निशाना साधती रहीं लेकिन चुनावों में उनकी पार्टी कुछ खास प्रदर्शन नहीं कर सकीं, दूसरी तरफ अपना दल (सोनेलाल) ने अच्छा प्रदर्शन किया।

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