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अलम पर वाराणसी के हाजी असलम उर्दू-अरबी कैलीग्राफी से उकेरते हैं इश्‍के हुसैन - Muharram 2021

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. मुहर्रम की पहली तरीख से ही जो चीजें अजादारों को भीतर से इश्‍के हुसैन से सराबोर करती है, उनमें हैं अलम व बैनर। इमामबारगाहों व अजाखानों की जीनत उर्दू-अरबी कैलीग्राफी से तैयार ये अलम न केवल अय्याम-ए-अजा की पहचान हैं, बल्‍क‍ि शाेहदा-ए-कर्बला को खेराजे अकीदत पेश करने का जर‍िया भी हैं। इन सुंदर ल‍िखावट और नायाब करीगरी का पर्याय वर्तमान कें केवल एक ही शख्‍स है, प‍ितरकुंडा नि‍वासी हाजी मोहम्‍मद असलम। वे बीते चार दशक से इस कला को न केवल संजाेए हुए हैं, बल्‍क‍ि कंप्‍यूटर के युग में मशीनों को भी कड़ी चुनौती दे रहे हैं।

हाजी मोहम्‍मद असलम के प‍िता हाजी मोहम्‍मद शाबान भी इस कला में माह‍िर थे। उन्‍होंने छह दशक तक इस कला को पोषि‍त क‍िया। उस दौर में याकूब पेंटर, मुर्तजा हुसैन, मंजूर पेंटर जैसे द‍िग्‍गजों का बोल-बाला था। मगर उनके बाद अगली पीढ़ी ने इस कला को आगे बढ़ाना उच‍ित नहीं समझा। माहे मुहर्रम से पहले ही बनारस, जौनपुर, राबर्ट्सगंज व पूर्वांचल सह‍ित बि‍हार से अलम व बैनर तैयार करने के आर्डर म‍िलने लगते हैं, जो पूरे अय्यामे अजा में लगातार बने रहते हैं। मुहर्रम के अलावा 13 रजब, जश्‍ने यौमुन्‍नबी आद‍ि धार्म‍िक आयोजन में कैलीग्राफी से बैनर व झंडा तैयार करने के आर्डर म‍िलते हैं।

कपड़े पर उर्दू कैलीग्राफी अब भी लोगों की पहली पसंद

हाजी असलम के पुत्र मोहम्‍मद आजम व मोहम्‍मद अकरम ह‍िंदी व अंग्रेजी में कपड़े पर कैलीग्राफी करते हैं। साथ ही कंप्‍यूटर पर ड‍िजाइनर फ्लेक्‍स भी तैयार करते हैं। मगर कंप्‍यूटर युग में भी लोगों को कपड़े पर उर्दू-अरबी कैलीग्राफी ही पसंद है। हाजी असलम बताते हैं क‍ि छोटा बैनर तैयार करने में दो से तीन घंटा, वहीं बड़े बैनर को बनाने में अमूमन चार से पांच घंटे का समय लगता है।

यह है कैलीग्राफी

देखने में सुंदर शब्दों को लिखने की खास कला को कैलीग्राफी कहते हैं। यह एक विजुअल आर्ट है। कैलीग्राफर कई तरह के फान्ट, स्टाइल, माडर्न और क्लासिक तरीकों का प्रयोग करते हुए बेहतरीन सुलेख लिखते हैं। एक कैलीग्राफर सुंदर अक्षरों को लिखने के लिए खास तरह के पेन, निब, पेंसिल, टूल, ब्रश आदि का इस्तेमाल करते हैं।

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