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पारिवारिक संपत्ति बंटवारे का विवाद कम करने को घटाएं स्टांप शुल्क, विधि आयोग ने उप्र सरकार से की सिफारिश

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने सरकार को परिवार की संपत्ति का पारिवारिक सदस्यों के बीच बंटवारे को लेकर एक अहम सिफारिश की है। आयोग ने प्रदेश सरकार से कहा है कि परिवार के सदस्यों के बीच अचल संपत्ति के बंटवारे के लिए स्टांप शुल्क व रजिस्ट्रेशन फीस को कम करते हुए उस पर अधिकतम पांच हजार रुपये स्टांप शुल्क और दो हजार रुपये निबंधन शुल्क यानी कुल सात हजार रुपये तय किया जाए। 

अभी ऐसे मामलों में संपत्ति की रजिस्ट्री की तरह संपत्ति के मूल्य का आठ फीसद तक स्टांप व निबंधन शुल्क लिया जाता है। इससे प्रदेश में संपत्ति बंटवारे, हस्तांतरण, वसीयत से जुड़े मुकदमों में भारी कमी आएगी। साथ ही राज्य सरकार को स्टांप से मिलने वाले शुल्क में किसी तरह की कमी नहीं आएगी।

राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपे अपने 20वें प्रतिवेदन में कहा है कि परिवार की संपत्ति का परिवारिक सदस्यों के बीच आपस में ट्रांसफर या विभाजन की प्रक्रिया दूसरे कई राज्यों की तरह सरल, सहज और किफायती होनी चाहिए। आयोग का मानना है कि शुल्क में कमी आदि करने से संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद कम होंगे जिससे मुकदमेंबाजी के मामले भी घटेंगे।

उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परिवार का मुखिया अपने जीवनकाल में अपनी विधवा बेटी, बहन, पौत्री या आर्थिक या शारीरिक दृष्टि से कमजोर सदस्य को पारिवारिक संपत्ति दान, विभाजित या पारिवारिक लोगों के बीच बांटी जाती है तो संपत्ति के मूल्य के अनुसार स्टांप शुल्क देना पड़ता है। सामान्य तौर पर स्टांप शुल्क से बचने के लिए संपत्ति के स्वामी परिवार के सदस्यों के पक्ष में वसीयत कर देते हैं। संपत्ति स्वामी की मृत्यु के बाद वसीयत निष्पादित होने के मामलों में भी कई बार विवाद खड़ा होता है जिसके लिए परिवार के सदस्यों को सक्षम न्यायालय में वाद दायर करना पड़ता है।

राजस्व में न आएगी कमी, मुकदमे जरूर घटेंगे: राज्य विधि आयोग की ओर से इकट्ठा किये गए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020 में 46,333 दानपत्र, 56 पारिवारिक व्यवस्थापन तथा 1,63,638 वसीयतनामे किये गए। वर्ष 2018 से 2020 के बीच 37 जिलों के विभिन्न न्यायालयों के समक्ष इन विषयों से संबंधित 20,145 मामले दायर किये गए और केवल 4846 मामले निस्तारित किये गए। इससे अदालतों पर मुकदमों का भार प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि राज्य का दायित्व है कि मुकदमों की संख्या घटायी जाए। साथ ही, राज्य के राजस्व में भी कमी न आने पाए। इस मकसद से आयोग ने परिवार के सदस्यों के बीच अचल संपत्तियों के ट्रांसफर से संबंधित विलेखों पर लिये जाने वाले स्टांप शुल्क को तर्कसंगत बनाने की जरूरत के बारे में अध्ययन किया। इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों का भी अध्ययन किया।

दूसरे राज्यों में अधिकतम तीन फीसद है स्टाम्प शुल्क : अध्ययन में आयोग ने पाया कि बिहार, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल तथा उत्तराखंड में राज्य सरकारों ने इस तरह के विलेखों पर अदा किये जाने वाले स्टांप शुल्क की दर घटाकर संपत्ति के मूल्य के 0.2 से तीन प्रतिशत तक लेने का निर्णय किया है। कर्नाटक में इन तीनों विलेख पर अधिकतम 5000 रुपये, केरल में दानपत्र व पारिवारिक व्यवस्थापन पत्र पर अधिकतम 1000 रुपये तथा महाराष्ट्र में आवासीय/कृषि संपत्ति के दानपत्र पर देय स्टांप शुल्क का अधिकतम 200 रुपये की धनराशि तय कर दिया है।

बंटवारे में मिली संपत्ति पर ले सकेंगे लोन: अभी यदि किसी व्यक्ति का अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्सा है लेकिन ट्रांसफर डीड रजिस्टर्ड न होने के कारण उसे संपत्ति के एवज में लोन नहीं मिल पाता है। यदि विलेख पर कम स्टांप शुल्क लगेगा तो लोग ज्यादा से ज्यादा ऐसे विलेखों को रजिस्टर कराएंगे। ऐसी स्थिति में बंटवारे के तौर पर प्राप्त संपत्ति के एवज में बैंक से लोन भी लिया जा सकेगा।

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