गरीबों को सुविधाओं और सरोकारों से मोदी ने बिछाई 2022 की बिसात, कोर वोटर पर किया फोकस
गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. प्रतीकों से सियासत को परवान चढ़ा एजेंडे को धार देकर लोगों को भाजपा से जोड़ने में माहिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को लखनऊ में शहरों की सूरत व सीरत बदलने का सपना संजोए आयोजित कार्यक्रम में भी इसी राह पर आगे बढ़ते नजर आए।
उन्होंने गरीबों व महिलाओं की सुविधाओं और सरोकारों की अनदेखी पर विपक्ष को कठघरे में खड़ा करते हुए और केंद्र की अपनी व प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकारों के काम बताते हुए वर्ष 2022 की सियासी बिसात बिछा दी। ब्योरा तो शहरों में रहने वाले गरीबों के लिए हुए केंद्र व प्रदेश सरकार के कामों और उनमें महिलाओं को दी गई प्राथमिकता का दिया। बात आज के आयोजन से शहरों के लोगों को समस्याओं से निजात, लोगों के बेहतर स्वास्थ्य व सुविधाओं में सरलता पर की, लेकिन संकेतों के जरिए प्रदेश में वर्ष 2022 में भी भाजपा की सरकार बनाने की जरूरत भी समझा दी।
उन्होंने अपनी व योगी सरकार के गरीबों व महिलाओं के समस्याओं के समाधान, सम्मान, स्वाभिमान और संपन्न बनाने के संकल्प के लिए काम करने की प्रतिबद्धता का संदेश पहुंचाने के लिए जो कुछ हो सकता था, वह सब अपने भाषण में किया। गरीबों को राम से तो अटल को आंबेडकर से जोड़कर और उनके विकास के मॉडल में आम लोगों की दुश्वारियों को दूर करने की प्रतिबद्धता का उल्लेख कर अगड़ों, पिछड़ों व दलितों अर्थात समग्र हिंदुत्व की सियासत को और मजबूती देने का प्रयास भी किया। पर, इस सावधानी के साथ कि सरकार की सबका साथ-सबका विकास और सबका विश्वास की प्रतिबद्धता का संदेश साफ दिखे।
प्रधानमंत्री मोदी ने सेट किया एजेंडा
प्रधानमंत्री के भाषण में सामान्यत: तो शहरों की सूरत बदलने, गरीबों की दिशा व दशा में परिवर्तन लाने, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के स्वप्न को साकार करने की चिंता और प्रयास दिखे। पर, इनमें गूढ़ निहितार्थ छिपे नजर आए। पूरे भाषण में उनकी निगाह मार्च 2022 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव पर टिकी दिखी। तभी उन्होंने कई बार खासतौर से गरीबों व महिलाओं को यह समझाने पर ज्यादा जोर दिया कि प्रदेश में 2017 से पहले और उसके बाद योगी सरकार बनने के बाद के फर्क के क्या मायने हैं। इसलिए यह समझाया भी कि प्रदेश में जब योगी अर्थात भाजपा की सरकार नहीं थी तो केंद्र सरकार की तरफ से गरीबों के लिए स्वीकृत 18 हजार घरों में 18 को भी बनने नहीं दिया गया।
योगी सरकार बनने पर सिर्फ साढ़े चार साल में बड़े पैमाने पर गरीबों के लिए घर, रोजगार के लिए काम किए गए। इसके दूरगामी नतीजे समझाने के लिए ही शायद मोदी ने तीन करोड़ परिवारों के लखपति बनने का गणित भी समझाया। जिससे लोग समझ सकें कि योगी सरकार आने के बाद किस तरह गरीबों की जिंदगी में बदलाव आया है।
नजर कोर वोट पर, गरीबों व महिलाओं पर नजर
मोदी का गरीबों और महिलाओं पर फोकस यूं ही नहीं था। गहराई से सभी पहलुओं और वर्ष 2014 से अब तक हुए तीन चुनाव के नतीजों व मतदाताओं के रुझान पर नजर डालें तो यह कोई भी समझ सकता है कि गरीब, दलित, पिछड़े और महिलाएं लगातार मतदान को प्रभावित कर रही हैं।
मोदी और अमित शाह ने इसी सामाजिक गणित पर फोकस करते हुए समग्र हिंदुत्व के एजेंडे को सेट करते हुए इन्हें भाजपा के साथ जोड़कर वोटों का गणित ठीक किया है। साथ ही भाजपा की अगड़ों और शहरी पार्टी होने की छवि को बदला है। इसलिए प्रधानमंत्री की कोशिश आज 4000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की शुरुआत करते हुए यह समझाने पर ज्यादा दिखी कि ये योजनाएं सिर्फ शहरों की सूरत बदलने नहीं जा रही है, बल्कि गरीबों, महिलाओं, मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की जिंदगी बदलने का सपना भी साकार करने जा रहा है।
इनके लिए वर्ष 2022 में प्रदेश में भाजपा की सरकार आना जरूरी है। तभी तो उन्होंने कांग्रेस का नाम भले ही नहीं लिया, लेकिन यह बताना जरूरी समझा कि केंद्र में उनकी सरकार आने से पहले अर्थात वर्ष 2014 से पूर्व की सरकार ने देश के गरीबों के लिए सिर्फ 13 लाख मकान मंजूर किए गए थे। उनमें सिर्फ 8 लाख ही बन पाए। जबकि उनकी सरकार ने 2015 से अब तक 1.13 करोड़ आवास स्वीकृत किए और इनमें 50 लाख बनवा भी दिए।
समग्र और समावेशी हिंदुत्व पर भी नजर
प्रधानमंत्री ने लखनऊ में विकास के सहारे समग्र व समावेशी हिंदुत्व के संदेश को गाढ़ा करने की कोशिश की। हालांकि उन्होंने हिंदुत्व शब्द का प्रयोग नहीं किया, लेकिन जिस तरह यूपी को राम, कृष्ण और भगवान बुद्ध की भूमि बताते हुए इसके सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित किया।
अयोध्या में इस दिवाली 7.5 लाख दीए जलने का उल्लेख करते हुए प्रदेश में 9 लाख आवास पाने वाले लाभार्थियों से इस दीपावली पर अपने घर के सामने दो-दो दीपक जलाने की अपील की। इससे भगवान राम के प्रसन्न होने की बात भी कही।
इस तरह वह राम को आम गरीबों से जोड़ते नजर आए। जैसे वह समझाना चाह रहे हों कि गरीबों का घर में खुशहाली का उजाला ही रामराज की कल्पना है। जिस पर वह चल रहे हैं। इसका आधार हिंदू-मुसलमान नहीं बल्कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास है।
मोदी के वोटों का गणित
प्रधानमंत्री लखनऊ में थे, सो उन्होंने अटल के सहारे समीकरणों को दुरुस्त करने के एजेंडे पर भी कोई चूक नहीं की। अब यह निर्णय करने वाले जाने कि बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर चेयर बनाने के पीछे कोई रणनीति उद्देश्य रहा या यह सामान्य निर्णय है। बावजूद इसके प्रधानमंत्री ने जब अटल के कामों और विपक्ष की तरफ से की गई उनकी आलोचनाओं का उल्लेख करते हुए इस चेयर के महत्व को समझाया तो संकेतों में ही सही वह आंबेडकर की विरासत के साथ अटल और भाजपा को जोड़ते नजर आए।
इसमें शोषित व वंचितों को सम्मान दिलाने की चिंता शामिल थी। रही बात सरोकारों की तो मोदी लखनऊ में थे, इसलिए उन्होंने अटल व लखनऊ के रिश्तों को जोड़ते हुए और खुद को इसी प्रदेश से सांसद होने का सौभाग्य प्राप्त होने की बात कहते हुए भावनाओं के सरोकारों से भी 22 के एजेंडे को धार देने में चूक नहीं की।
अर्थशास्त्री प्रो. अंबिका प्रसाद तिवारी जो कुछ कहते हैं उससे प्रधानमंत्री के भाषण के निहितार्थ और अच्छी तरह समझे जा सकते हैं। तिवारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में नगरीय आबादी इस समय लगभग छह करोड़ है। इसमें गरीबों का अनुमानत: 26.6 प्रतिशत है। इनमें 44.9 प्रतिशत दलित और 36.6 प्रतिशत पिछड़े अर्थात ओबीसी हैं। लगभग 23.05 प्रतिशत लोग मलिन बस्तियों में रहते हैं। समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने संकेतों के जरिए विपक्ष के सामने वर्ष 2022 के लिए कितनी बड़ी चुनौती खड़ी करने के एजेंडे पर काम की शुरुआत कर दी है।