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कार्तिक पूर्णिमा पर काशी में गंगा में आस्‍था की डुबकी, सूर्य को अर्घ्‍य देकर सुख और समृद्धि की कामना

गाजीपुर न्यूज़ टीम, वाराणसी. कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर शुक्रवार की सुबह सूर्योदय से पूर्व ही आस्‍थावानों का जमावड़ा गंगा, गोमती और वरुणा आदि नदियों में लगा। हर-हर महादेव के साथ हर हर गंगे का उदघोष करते हुए आस्‍थावानों ने नदियों में स्‍नान कर उगते सूर्य को अर्घ्‍य देकर सुख और समृद्धि की कामना की। नदियों के तट पर न पहुंच पाने वाले आस्‍थावानाें ने घरों में ही विशिष्‍ट अनुष्‍ठान कर श्री हरि की पूजा के साथ ही दान कर पुण्‍य की कामना की। सुबह से ही घाटों पर दूर दूर तक आस्‍था का रेला लगा लगा और लोगों ने घाट पर दान पुण्‍य के साथ ही कार्तिक मास पर्यंत पूजन अनुष्‍ठानों का भी पारण कर वर्ष भर के लिए श्री और समृद्धि की कामना की।

इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर कृतिका का महासंयोग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा में कृतिका नक्षत्र का संयोग हो तो इसे महापुण्यदायी महाकार्तिकी कहा जाता है। शास्त्र के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर सायंकाल मत्स्यावतार हुआ था। भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध भी किया था। ऐसे में सायंकाल जल तीर्थों पर दीपदान किया जाता है। मान्यता है इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है।

हिंदी के बारह मासों में सर्वप्रमुख माना जाने वाला कार्तिक श्रीहरि को समर्पित होता है। इसमें धर्मानुरागीजन विभिन्न नदियों विशेषकर गंगा समेत नदियों में स्नान, दान-यज्ञ, होम, उपासना करते हैं। अंतिम दिन पूर्णिमा पर मासपर्यंत स्नान का समापन होता है। काशी में यह पर्व देव दीपावली के रूप में मनाया जाता है।  सिख समाज के लोग गुरुनानक देव का जन्मोत्सव मना रहे हैं। काशी में भगवान कार्तिकेय के दर्शन का भी विधान है।

इस दिन व्रत रह कर वृष दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गो, हाथी, रथ घोड़ा व घृतादि का दान करने से संपत्ति वृद्धि और पूर्णिमा का व्रत रह कर श्रीहरि स्मरण-आराधना से सूर्य लोक की प्राप्ति होती है। कार्तिकी में स्वर्ण का मेष दान करने से ग्रह-योगों के कष्ट नष्ट होते हैैं। कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ कर हर मास की पूर्णिमा को व्रत से सभी तरह की मनोकामना पूर्ण होती है।

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