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मुख्‍तार संग राजभर की मुलाकात से क्या बनेगी बात? अखिलेश का यह प्लान है तैयार

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. बांदा जेल में बंद मुख्‍तार अंसारी से ओमप्रकाश राजभर की मुलाकात को लेकर उत्‍तर प्रदेश के सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। इस एक घंटे की मुलाकात में राजभर और अंसारी ने अगले साल होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर क्‍या सियासी खिचड़ी पकाई है इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। पूर्वाचल के सियासी गणित में अंसारी परिवार के महत्‍व को समझने और पिछले चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली बीजेपी की काट तैयार करने की सपा मुखिया अखिलेश यादव की कोशिशों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि अंसारी इस बार सपा-सुभासपा के बैनर तले मैदान में उतर सकते हैं। गौरतलब है कि मुख्‍तार अभी मऊ से बसपा के विधायक हैं लेकिन पूर्व मुख्‍यमंत्री मायावती उनका टिकट काटने का ऐलान पिछले दिनों कर चुकी हैं। 

अब सवाल उठता है कि जिस मुख्‍तार से बसपा प्रमुख ने रणनीति के तहत किनारा कर लिया, उन्‍हें साथ लेकर सपा-सुभासपा गठबंधन को क्‍या फायदा होगा? राजनीतिक जानकार इसे पूर्वांचल में मुस्लिम वोटों को साधते हुए यादव, गैर यादव पिछड़ी जातियों के साथ ऐसा समीकरण खड़ा करने की अखिलेश की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं जो 2022 के महासमर में भाजपा की काट बनकर सपा की नैय्या पार लगा सके। दरअसल यूपी की सत्‍ता में काबिज होने के लिए पूर्वांचल काफी अहम है।

पूर्वांचल ने जिसका दिया साथ, वही हुआ सिंहासन पर विराजमान

पूर्वांचल में 28 जिले आते हैं। इनमें वाराणसी, सोनभद्र, प्रयागराज, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महाराजगंज, संतकबीरनगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रतापगढ़, अंबेडकरनगर और कौशांबी शामिल हैं। इन जिलों में दलों की स्थिति प्रदेश की राजनीति उनकी दशा और दिशा को तय कर सकती है। देखा गया है कि यहां से आने वाली 164 सीटें में से जिस दल को सबसे अधिक सीटें मिलीं उसके लिए सत्‍ता की मंजिल आसान ही नहीं लगभग सुनिश्चित हो जाती है। ये भी पढ़े: 'मुख्तार अंसारी' खुद तो हमेशा जीतता रहा लेकिन अपने राजनीतिक दलों के लिए साबित हुआ 'पनौती'

2017 के चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 115 सीटों पर जीत हासिल की थी। जबकि सपा को 17, बसपा को 14, कांग्रेस को 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थीं। 2012 के चुनाव में सपा ने 102 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी को 17, बसपा को 22, कांग्रेस को 15 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं। तब सूबे की सत्‍ता में अखिलेश यादव की ताजपोशी हुई थी।  वहीं, 2007 में जब मायावती पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थीं तो उनकी बसपा को पूर्वांचल से 85 सीटें मिली थीं। उस चुनाव में सपा को 48, भाजपा को 13, कांग्रेस को 9 और अन्य को चार सीटें ही मिली थीं। 

जाहिर है दोबारा मुख्‍यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के लिए जोर लगा रहे अखिलेश यादव की कोशिश पूर्वांचल में 2012 वाली जीत दोहराने की है। इसके लिए वे एक तरफ लगातार पूर्वांचल के दौरे कर रहे हैं, दूसरी तरह सपा के पुराने दोस्‍तों से हाथ मिलाकर वोटों के नए समीकरण बनाने में भी जुटे हैं। इन्‍हीं कोशिशों के तहत उन्‍होंने हाल में सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर से हाथ मिलाया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सपा-सुभासपा गठबंधन के साथ मुख्‍तार अंसारी आते हैं तो यादवों के साथ गैर यादव पिछ़ड़ी जातियों और मुस्लिम वोटों का नया समीकरण खड़ा हो सकता है। 

इसमें ओमप्रकाश राजभर जहां पूर्वांचल के जिलों में 12 से 22 फीसदी और पूरे प्रदेश तीन फीसदी की तादाद में मौजूद राजभर वोटों को साधने में भूमिका निभा सकते हैं तो वहीं मुख्‍तार अंसारी मुस्लिम वोटों को। बताते हैं कि चंदौली, गाजीपुर, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, मछलीशहर, वाराणसी, जौनपुर, भदोही और मिर्जापुर में राजभर वोटों की अच्‍छी खासी तादाद है। प्रदेश की करीब चार दर्जन सीटों पर इनका असर है। कहा जाता है कि प्रदेश की करीब 22 सीटों पर भाजपा की जीत में राजभर वोटबैंक बड़ा कारण था। इस चुनाव में राजभर की पार्टी को चार सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा के साथ राजभर की दोस्‍ती पिछले लोकसभा चुनाव में टूट गई थी। उनके जातीय आधार को देखते हुए अब अखिलेश ने उनसे हाथ मिलाया है। 

मुख्‍तार का असर

मऊ से लगातार तीन बार जीतकर विधानसभा में पहुंचे मुख्‍तार अंसारी, उनके सांसद भाई अफजाल अंसारी और परिवार का पूर्वांचल के मुस्लिम वोटों पर खासा असर बताया जाता है। बताते हैं कि मुस्लिमों के अलावा सवर्ण वोटों के एक धड़े का भी अंसारी परिवार की ओर झुकाव रहता है। पूर्वांचल की कुछ सीटों पर मुस्लिम आबादी 10 से 11 फीसदी तक है। माना जाता है कि मुस्लिम वोटर बड़ी संख्‍या में सपा को वोट करते हैं लेकिन मुख्‍तार की वजह से पूर्वांचल में पिछले चुनावों में इन सीटों पर बसपा की मजबूत दावेदारी होती थी। अब सपा उस आधार को एकतरफा हासिल करना चाहती है। 

बीजेपी का भी फोकस, सीएम योगी के लिए अहम है पूर्वांचल 

वहीं पूर्वांचल पर बीजेपी का भी पूरा फोकस पूर्वांलच पर है। पिछली बार यहां से क्‍लीन स्‍वीप कर चुकी बीजेपी समझती है कि मिशन 2022 में कामयाबी के लिए पूर्वांचल को साधे रखना होगा। इसी रणनीति के तहत पार्टी ने जहां एक ओर अपना दल की अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के डा.संजय निषाद से हाथ मिलाया है वहीं पीएम नरेन्‍द्र मोदी की ताबड़तोड़ सभाएं कराई जा रही हैं। मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ खुद पूर्वांचल से हैं। वह पूर्वांचल की विकास योजनाओं को जल्‍द से जल्‍द अमली जामा पहनाने के लिए सक्रिय हैं और एक-एक सीट को लेकर वहां के स्‍थानीय समीकरणों को दुरुस्‍त करने में जुटे हैं। 

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