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सबका साथ-सबका विकास वाली पार्टी क्या ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है? 80 बनाम 20 में 20 कौन, योगी ने बताया

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है। शनिवार को चुनाव आयोग की तरफ से तारीखों की घोषणा से ठीक पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने सरकारी न्यूज चैनल दूरदर्शन के डीडी कॉन्क्लेव में कहा कि यह चुनाव 80% बनाम 20% का होगा। हालांकि, उन्होंने उसी कार्यक्रम में स्पष्ट कर दिया था कि उनके कहने का तात्पर्य क्या है, फिर भी इसे उत्तर प्रदेश की हिंदू-मुस्लिम आबादी से जोड़कर देखा जा रहा है। तो क्या मान लिया जाना चाहिए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का यूपी चुनाव में जोर ध्रुवीकरण का दांव खेलने पर है?

आखिर योगी ने कहा क्या है

इसका जवाब तलाशें, इससे पहले जान लेते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने कहा क्या था। सीएम ने शनिवार को डीडी कॉन्क्लेव में कहा, 'मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं... चुनाव 80 बनाम 20 का होगा। 80 फीसदी समर्थन एक तरफ होगा, 20 फीसदी दूसरी तरफ होगा। मुझे लगता है कि 80 फीसदी सकारात्मक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेंगे, 20 फीसदी हमेशा विरोध किए हैं, विरोध करेंगे लेकिन सत्ता बीजेपी की आएगी। बीजेपी फिर से सबका साथ, सबके विकास के अभियान को आगे बढ़ाने का कार्य करेगी।'

80-20 फॉर्म्युले पर योगी की सफाई

फिर सोमवार को उन्होंने एक निजी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में 80 बनाम 20 के बयान को समझाया। उन्होंने कहा, 'यह चुनाव 80 बनाम 20 फीसदी जाएगा, रिजल्ट 10 मार्च को आने दीजिए। एक तरफ बीजेपी होगी, तीन चौथाई सीटों के साथ सरकार बना रही होगी, दूसरी तरफ कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे दल होंगे, जो 20 प्रतिशत की लड़ाई के लिए माथापच्ची करेंगे।'

सीएम योगी ने डीडी कॉन्क्लेव में भी कहा था कि भाजपा इस बार भी 300 से अधिक सीट जीतेगी। चुनाव में विपक्ष की चुनौती के सवाल पर योगी ने कहा, 2019 (लोकसभा चुनाव) में सबसे बड़ा गठबंधन हुआ। सपा, बसपा और लोकदल सहित तमाम पार्टियों ने मिलकर लड़ा था, तब सर्वाधिक 64 सीट भाजपा को और इसके बाद दूसरे स्थान पर बसपा को 10 एवं पांच सीट सपा को मिली थी। मैंने तब भी कहा था कि भाजपा 65 सीट जीतेगी।

फिर योगी का संकेत समझिए

इस तरह, मुख्यमंत्री ने 80 - 20 के फॉर्म्युले को सीधे-सीधे प्रदेश की हिंदू-मुस्लिम आबादी से नहीं जोड़कर बीजेपी बनाम बाकी पार्टियों का जामा पहना दिया है, लेकिन डीडी कॉन्क्लेव में ही दिए गए उनके अन्य बयानों पर गौर करेंगे तो संकेत समझने में देर नहीं लगेगी। योगी 80 - 20 फॉर्म्युले की बात करने से पहले कहते हैं, 'कोई भारत विरोधी तत्व और हिंदू विरोधी तत्व कैसे स्वीकार कर लेगा मोदी जी को और योगी जी को? कभी स्वीकार नहीं केरगा। मैं गर्दन काटकर तस्तरी में उसके सामने प्रस्तुत कर दूं तो भी वह मुझे कोसेगा ही। मुझमें विश्वास उसको नहीं करना है। न पहले करता था और न आगे उसका करना है। हम भी ऐसे तत्वों की परवाह नहीं करते।'

'सबका साथ, सबका विकास' के नारे का क्या?

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा, 'हमलोग जब तक चुनावी समर में हैं, हम अपनी बात कहेंगे, लेकिन जब सत्ता में होंगे तो सत्ता पर सिंघासन पर बैठने के बाद सबके प्रति समदृष्टि करना होगा। तब कोई अपना पराया नहीं, सबको एकसमान शासन की योजनाओं से जोड़ना, कमजोर तबके के उत्थान के लिए विशेष योजनाएं बनाना।' योगी के इस बयान में वह संकेत साफ है कि चुनाव प्रचार के दौरान भले ही वो 80 बनाम 20 जैसी बातें कर लें, लेकिन सरकार में आने पर उनके मन में ऐसा कुछ नहीं रहता है। यानी, योगी 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे पर भी लोगों का भरोसा बनाए रखने को कहते हैं।

80-20 फॉर्म्युले की दरकार ही क्या?

अब सवाल है कि योगी आदित्यनाथ को 80-20 के फॉर्म्युले की बात क्यों करनी पड़ी? उनकी छवि एक कठोर प्रशासक और विकासवादी नजरिए के नेता की है तो फिर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की जरूरत ही क्यों पड़ रही है? इसका जवाब यूपी में मुसलमानों की चुनावी ताकत और लंबे समय तक चले किसान आंदोलन के असर में ढूंढा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में 140 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता 20 से 45 प्रतिशत तक हैं।

70 सीटों पर 20 से 30 प्रतिशत जबकि 73 सीटों पर 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। वहीं, 36 सीटों पर तो मुसलमान अपने दम पर किसी को हराने या जिताने की ताकत रखते हैं। 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और उसके साथी दलों ने 111 सीटें जीत ली थीं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब एनडीए ने मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर भी जीत दर्ज कर ही ली थी, तो इस बार 80 - 20 का फॉर्म्युला देने का मतलब क्या है?

किसान+मुसलमान का डर?

अब एक नजर इस समीकरण पर डालते हैं। इस बार पहले और दूसरे चरण में पश्चिमी यूपी की जिन 113 सीटों पर मतदान होने वाले हैं, वहां किसानों, मुसलमानों और दलितों का दबदबा है। इस चुनाव में बीजेपी से टक्कर लेती दिख रही समाजवादी पार्टी किसानों और मुसलमानों को साथ लेकर बीजेपी को मात देने की फिराक में है।

इस इलाके में किसानों का सबसे ज्यादा प्रभाव वाला जिला मुजफ्फरनगर है। वहां 2013 के दंगे के बाद बीजेपी ने पैठ बना ली, लेकिन किसान आंदोलन ने पार्टी के मन में डर बिठा दिया है कि कहीं किसान और मूलतः जाट फिर से मुसलमानों के साथ न हो जाएं। अगर ऐसा हुआ तो 2017 का प्रदर्शन दोहराना कठिन हो जाएगा। मुजफ्फर नगर से निकला शामली जिला को भी ले लें तो दोनों जिलों में मुसलमानों की आबादी 38 प्रतिशत से भी ज्यादा है।

बीजेपी ने 2017 के चुनाव में पश्चिमी यूपी की 113 सीटों में 85 अपने नाम कर ली थी। यहां तक कि 38 प्रतिशत से भी ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले मुजफ्फरनगर और शामली जिले से क्रमशः संजीव बालियान मुजफ्फरनगर से दूसरी बार सांसद हैं तो पिछले चुनाव में सुरेश राणा शामली की थाना भवन सीट से जीतकर यूपी सरकार में गन्ना मंत्री बने हैं। बात अगर मुजफ्फरनगर और शामली के साथ बागपत, सहारनपुर और मेरठ की भी कर लें तो 2017 में यहां की 26 में से 20 सीटें बीजेपी जीती थी। यही वजह है कि मुजफ्फरनगर दंगे के बाद पलायन करने वाले हिंदू परिवार जब सात साल बाद गांव लौटे तो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने उनसे मुलाकात की।

80 बनाम 20 में 20 कौन, योगी ने बताया

बहरहाल, योगी ने 80 - 20 के फॉर्म्युले में 20 प्रतिशत कौन है, इस पर भी स्थिति स्पष्ट की। उन्होंने कहा, 'ये 20 प्रतिशत वे लोग हैं जो रामजन्मभूमि का विरोध करते हैं, काशी विश्वनाथ का विरोध करते हैं, मथुरा-वृंदावन के भव्य धाम का विरोध करते हैं जिनकी पीड़ा माफियाओं के साथ, पेशेवर अपराधियों के साथ है। जिनकी संवेदना पेशेवर आतंकियों के साथ है। ये वही लोग हैं।'

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