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अजय कुमार लल्लू के सिर फूटा यूपी चुनाव में कांग्रेस की करारी हार का ठीकरा, कसौटी पर नहीं उतर सके खरे

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ. पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले अजय कुमार लल्लू को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान सौंपकर कांग्रेस पार्टी ने पिछड़ों के जिस बड़े वोट बैंक को साधने का मंसूबा पाला था, विधानसभा चुनाव में वह ध्वस्त हो गया। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाये जाने पर लल्लू सरकारी बस में बैठकर जिस सादगी से लखनऊ आए थे, प्रदेश में पार्टी की करारी हार के कारणों की समीक्षा के लिए दिल्ली में बुलाई गई बैठक में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से उसी निस्तब्ध अंदाज में चलता कर दिया गया।

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की करारी हार पर प्रदेश अध्यक्ष पद से अजय कुमार लल्लू के जिस ठिठके हुए इस्तीफे पर सभी कांग्रेसियों की निगाहें लगी थीं, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के मांगने पर उन्हें वह त्यागपत्र देना पड़ गया। यह बात और है कि लल्लू प्रदेश अध्यक्ष भले थे लेकिन चुनाव कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के चेहरे पर लड़ा गया था। लल्लू के इस्तीफे के साथ कांग्रेस की सभी प्रदेश कमेटियां भंग हो गई हैं। चुनाव हारने वाले सभी जिला व शहर अध्यक्षों से भी इस्तीफा मांगा गया है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की पसंद रहे लल्लू को अक्टूबर 2019 में तब प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, जब उसी साल हुए लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टी की दुर्गति के बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर ने पद से इस्तीफा दे दिया था। कुशीनगर की तमकुहीराज सीट से लगातार दूसरी बार जीतकर आए लल्लू तब कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता थे। हालांकि चुनाव में मिली जबर्दस्त हार के बाद नैतिकता के आधार पर तत्काल इस्तीफे की पेशकश का जो जज्बा राज बब्बर ने दिखाया था, लल्लू उसमें कंजूसी कर गए।

प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए लल्लू पार्टी के लिए सड़क पर संघर्ष करते तो दिखे लेकिन उनकी यह कवायद कांग्रेस के लिए 'अंत भला तो सब भला' वाली कहावत चरितार्थ नहीं कर पाई। प्रदेश अध्यक्ष पद पर उनका चयन भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच शुरू से बहस का विषय रहा। लल्लू जिस मधेशी बिरादरी से आते हैं, अधिक संख्याबल वाली कई अन्य पिछड़ी जातियों की तरह प्रदेश में उसकी व्यापक मौजूदगी है नहीं। इसलिए वह पिछड़ों के बड़े वर्ग को अपील नहीं कर सके। सड़क पर तमाम संघर्षों के बावजूद लल्लू पार्टीजनों के बीच अपनी तथाकथित सवर्णविरोधी छवि को तोड़ नहीं पाए।

पार्टी के वफादार सिपाही बनने के चक्कर में कुछ मौकों पर वह प्रतिक्रियावादी ही नहीं, अतिवादी भी दिखे। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने पर लल्लू जिस अंदाज में मुखर हुए, वह उनके तमाम समर्थकों को भी नहीं सुहाया। वस्तुत: कुशीनगर में लल्लू की हार की पटकथा उसी दिन लिख गई थी, जिस दिन उन्होंने आरपीएन सिंह के खिलाफ विष वमन किया था।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे गए अपने इस्तीफे में लल्लू ने कहा है कि विधान सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सभी पदाधिकारियों ने पूरी मेहनत और लगन से पार्टी के लिए काम किया और संगठन को ग्राम स्तर तक पहुंचाया। समय-समय पर सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ संघर्ष भी किया। लेकिन चुनाव में हमें अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा, उसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए वह अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहे हैं। यह भी कहा कि वह कांग्रेस के लिए सदैव पूरी निष्ठा से काम करते रहेंगे।

नए चेहरे को खोजती निगाहें : अजय कुमार लल्लू के इस्तीफे के बाद पार्टी के भीतर नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चा तेज हो गई है। कयास लगाए जा रहे हैं कि नया प्रदेश अध्यक्ष अगड़ी जाति से हो सकता है। इसके पीछे कांग्रेसियों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि पिछड़ी जातियों ने अतीत में कांग्रेस से परहेज किया है। वहीं कांग्रेस को परंपरागत रूप से ब्राह्मणों का समर्थन मिलता रहा है। हालांकि चर्चा यह भी है कि बसपा से छिटके वोटबैंक को भाजपा से वापस छीनने के लिए कांग्रेस दलित चेहरे पर भी दांव चल सकती है।

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