Today Breaking News

कहानी: सिसकता इश्क़

जब से रशिका की मुलाकात हनीफ से हुई है उस के दिल में एक अजीब सी हलचल मची हुई है. हनीफ की शख्सियत रशिका के अंदर क‌ई सवाल खड़े कर रही है. औफिस में लोगों के बीच होती कानाफूसी रशिका को और अधिक विचलित कर देती है. कोई कहता है कि अरे, इन के तो खून में ही बेवफाई होती है, तो कोई कहता, इन लोगों को तो दूसरों की भावनाओं संग खेलने और फिर उसे पूरी तरह से तबाह कर छोड़ देने की बचपन से तालीम दी जाती है. जिहाद…जिहाद…जिहाद कहकह कर इन्हें जिहादी बना दिया जाता है.

रशिका के कानों पर जब भी ये बातें पड़तीं, वह तिलमिला उठती. लेकिन कहती किसी से कुछ नहीं. उसे अभी इस औफिस में जौइन किए हुए केवल एक ही महीना हुआ था. लेकिन इस एक ही महीने में उस ने इतनी दफे हनीफ के बारे में गलत सुन लिया था कि उस के लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो गया था कि वह जो सुन रही है उस पर यकीन करे या फिर जो देख रही है उस पर.


बचपन से रशिका यह सुनती आई है कि जो दिखता है वह हमेशा सच नहीं होता है. इस के अलावा उसे अपने परिवार द्वारा यह सबक भी कंठस्थ करा दिया गया है कि हनीफ जैसों को क़ौम के लोगों से दूर ही रहना चाहिए क्योंकि ये किसी के भी सगे नहीं होते. इसलिए तो उस ने अपनी सब से अच्छी व प्यारी सखी गजाला की दोस्ती पर दाग लगा दिया था. आज भी उस के स्मृतिपटल पर अंकित है वह वाकेआ जो उस के दिल में दास्तां ए दर्द बन कर दफन है और जिसे वह अब तक कभी भुला नहीं पाई. आज भी उसे ऐसा लगता है जैसे उस के अपने ही दकियानूसी सोच और परिवार वालों के दबाव की वजह से उस ने अपनी अभिन्न सहेली और शुभचिंतक गजाला को खो दिया है.


इस एक महीने में बमुश्किल रशिका का हनीफ से केवल 2 दफे ही आमनासामना हुआ था. लेकिन दोनों ही बार जब भी उस की मुलाकात हनीफ से हुई, उस के कुशल व्यवहार ने रशिका को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि औफिस के लोग जो हनीफ के पीठपीछे कहते हैं उस में कोई सचाई है भी या नहीं. जब वह पहली बार इंदौर से यहां हैदराबाद आई तो औफिस गेट पर उस की पहली मुलाकात हनीफ से ही हुई थी और हनीफ ने इतनी शालीनतापूर्वक रशिका को एचआर डिपार्टमैंट का रास्ता बताया था कि एक पल के लिए रशिका की निगाह हनीफ पर थम गई थी.


दूसरी बार जब रशिका को औफिस एकोमोडेशन के लिए औनलाइन फार्म भरना था और जिस के लिए उसे अपनी ही औफिस बिल्डिंग के तीसरे फ्लोर पर एडमिनिस्ट्रेटिव औफिस जाना पड़ा, वहां उस का हनीफ से मिलना हुआ और एक बार फिर हनीफ से मिल कर उसे हनीफ सज्जन, सभ्य और दूसरों की मदद करने वाला व्यक्ति ही लगा.


औफिस जौइन करने के बाद से ही रशिका के कानों में पड़ती हनीफ के विरुद्ध क‌ई गलत बातें सुनने की वजह से रशिका ने उस दिन हनीफ को देख कर भी अनदेखा कर दिया था लेकिन हनीफ ने सामने से आ कर उस का फौर्म भरने से ले कर उसे सबमिट करने तक में उस की मदद की. रशिका का दिल इन एकदो मुलाकातों में ही हनीफ का होने लगा था. लेकिन रशिका दुविधा में थी कि वह कैसे उस इंसान से प्यार कर सकती है जो उस की जाति तो दूर, उस के धर्म का भी नहीं है और जो अपनी पहली पत्नी को तलाक दे चुका है. वह भी उस पत्नी को जिस से उस ने प्रेमविवाह किया था और उन का एक बेटा भी है.


रशिका खुद को समझाने लगी और उस ने हनीफ से एक दूरी बना ली ताकि कभी गलती से भी उस का हाल ए दिल हनीफ के समाने उस की नज़रों से बयां न हो जाए. इस बीच कंपनी की ओर से एक ग्रुप प्रोजैक्ट में रशिका, हनीफ और उन के साथ औफिस के 3 और स्टाफ को 15 दिनों के लिए बैंगलुरु जाने का और्डर हुआ.


रशिका इस प्रोजैक्ट को रिजैक्ट कर देना चाहती थी लेकिन दिल के आगे भला आज तक किसी का जोर चला है जो रशिका का चलता. वैसे भी किसी ने ठीक ही कहा है कि किसी के चाहने से क्या होता है, वही होता है जो होना होता है. रशिका खुद को संभालने में लगी हुई थी, इसलिए उस ने निश्चय किया कि वह यह प्रोजैक्ट नहीं करेगी, यही सोच कर वह इस प्रोजैक्ट को नहीं कहने के लिए जा ही रही थी कि कौरिडोर में हनीफ से टकरा गई और हनीफ ने उस से पूछ लिया- “रैडी फौर अ न्यू प्रोजैक्ट?”


रशिका हनीफ को यह नहीं कह पाई कि वह उस के साथ नहीं जाना चाहती. वह थोड़ी मुसकराती और थोड़ी सकुचाती हुई बोली- “इया, आय एम रैडी.”


15 दिनों तक हनीफ के साथ एक ही छत यानी एक होटल में रहना होगा, यह सोच कर रशिका का दिल हिचकोले खाने लगा. भीतर ही भीतर रशिका का दिल इस बात से भी डरने लगा, कहीं अपने जज्बात के आगे वह कमजोर न पड़ जाए. उस के मन में दबा हुआ प्यार सिर उठाने की गुस्ताखी न कर बैठे. लेकिन अब सिर ओखली में रख ही दिया है तो फिर मूसल से क्या डरना. जो होगा, देखा जाएगा, यह सोच कर रशिका सब के साथ बैंगलुरु आ गई.


यहां बैंगलुरु में पहले से ही होटल व सभी के लिए अलग कमरे बुक थे. इस ग्रुप में रशिका के साथ एक और लड़की उपासना भी थी, जो इस एक महीने में रशिका की शुभचिंतक बन गई थी और हर वक्त रशिका को हनीफ से सतर्क रहने व हनीफ से बच के रहने के लिए आगाह करती रहती थी. हनीफ को मिला कर 2 और लड़के भी थे राजीव और संदीप. कुल मिला कर इन का 5 लोगों का एक ग्रुप था जो इस नए प्रोजैक्ट पर काम करने वाला था, जिसे लीड हनीफ ही कर रहा था.


बैंगलुरु में पहुंचते ही और एयरपोर्ट से बाहर पांव धरते ही रशिका ने देखा, सभी के तेवर ही बदल ग‌ए. हमेशा संस्कारों, धर्म और सहीग़लत की बातें करने वाले अपने संस्कारों को भूल मौजमस्ती और अपने वास्तविक रूप में आ गए हैं, जिसे देख रशिका हैरान थी. लेकिन हनीफ में अब भी वही सादगी बरकरार थी जो हैदराबाद में रशिका ने हनीफ में देखा था. रशिका की हैरानी उस वक्त और अधिक बढ़ गई जब होटल पहुंच कर उपासना अपना रूम होते हुए भी संदीप संग रूम शेयर करने के लिए राज़ी हो गई. संस्कारों और अपनी सभ्यता की दुहाई देने वाली उपासना का यह रूप रशिका के लिए अप्रत्याशित था. लेकिन हनीफ पर इन सब बातों का कोई असर नहीं था. वह सभी से नौर्मल बिहेव ही कर रहा था. रशिका ने उपासना को संदीप संग रूम शेयर करने से रोकना चाहा लेकिन उपासना ने रशिका को यह कह कर चुप रहने को कहा कि-


“चिल यार, यह हमारा हैदराबाद नहीं बैंगलुरु है, यहां हम कुछ भी कर सकते हैं, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, ये 15 दिन न, हमारे हैं. हम सारा दिन प्रोजैक्ट पर काम करेंगे और रात को पार्टी.”


वैसा ही हुआ. पांचों पूरा दिन औफिस में अपने न‌ए प्रोजैक्ट पर काम करते और फिर सभी बैंगलुरु घूमने निकल जाते, केवल हनीफ को छोड़ कर. उस के बाद देररात तक उपासना, संदीप और राजीव तीनों एक ही रूम में मिल कर पार्टी करते. रशिका भी एकदो दिनों तक उन तीनों के साथ शाम को घूमने निकली लेकिन उसे उन के साथ घूमना रास नहीं आया और वह भी हनीफ की ही तरह अगले दिन से होटल में रुकने लगी. एक रोज़ रशिका को अपने रूम में बोरियत महसूस होने लगी, तो वह हनीफ के रूम में आई. उस ने हलका सा दरवाजे को हाथ लगाया और दरवाजा खुल गया. उस के बाद रशिका ने जो देखा, हैरान हो गई और दरवाजे पर ही खड़ी रही, हनीफ कोई मोटी किताब पढ़ रहा था.


हनीफ को प्यास महसूस हुई तो वह पानी पीने के लिए उठा. उस ने रशिका को दरवाजे पर खड़ा देख उसे अंदर आने को कहा. लेकिन रशिका फिर भी कुछ देर वहीं खड़ी रही. उस के मन में यह दुविधा थी कि वह इस कट्टरपंथी व्यक्ति के कमरे में जाए या फिर दरवाजे से ही लौट जाए. तभी हनीफ ने उसे फिर अंदर आने को कहा. रशिका सकुचाती हुई अंदर आई. हनीफ रशिका के मनोभाव को समझ गया, बोला-


“माना कि मैं और मेरा परिवार इसलाम धर्म को मानने वाले हैं लेकिन इस बात से मेरा परिवार या मैं बिलकुल भी इत्तफाक नहीं रखते कि हमें हिंदुओं से या हिंदू धर्म से कोई रंजिश है.”


रशिका हिचकिचाती हुई बोली-


“नहीं, तुम गलत सोच रहे हो, मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रही थी.”


उस दिन रशिका और हनीफ के बीच काफी देर तक बातें चलती रहीं. रशिका हनीफ के मोहपाश में बंधती चली जा रही थी. अब यह रोज़ का सिलसिला हो गया था. औफिस से आने के बाद दोनों घंटों बातें किया करते. इस तरह समय पंख लगा कर उड़ गया और हैदराबाद जाने का वक्त आ गया. रशिका को ऐसा लग रहा था मानो पलक झपकते ही ये 14 दिन बीत गए. 15वें दिन सभी ने मिल कर तय किया कि आज रात हैदराबाद निकलने से पहले ग्रैंड पार्टी करेंगे. उस रात सब ने खूब एंजौय किया. उपासना, संदीप और राजीव ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी. होटल पहुंच कर सभी अपनेअपने रूम में चले गए.


रशिका अपने रूम में पहुंच कर आईने के सामने खड़ी हो खुद को निहारने लगी. आईने में हनीफ और खुद को एक जोड़े के रूप में कल्पना कर खुद से ही शरमाने लगी. तभी डोरबेल बजी और रशिका का चेहरा यह सोच कर सूर्खगुलाबी हो गया कि शायद डोर पर हनीफ होगा क्योंकि पिछले कुछ दिनों से रशिका को यह लगने लगा था कि हनीफ के दिल में भी उस के लिए प्यार के अंकुर फूट रहे हैं.


पलकें झुकाए, मुसकराती हुई रशिका ने दरवाजा खोला तो वह हैरान रह ग‌ई. सामने नशे में धुत राजीव खड़ा था और वह रशिका के मना करने के बाबजूद कमरे में घुस आया और रशिका से बदतमीजी के साथ जबरदस्ती भी करने की कोशिश करने लगा. उसी वक्त वहां हनीफ आ गया और उस ने रशिका को राजीव से छुड़ाया. उस के बाद रशिका हनीफ से लिपट गई. यह देख राजीव ज़ोरज़ोर से चिल्लाता हुआ रशिका को भलाबुरा कहते हुए कहने लगा-


“तुम जैसी लड़कियों की वजह से ही हमारा समाज और धर्म बिगड़ रहा है और हनीफ जैसे लोग अपने मनसूबे में कामयाब हो रहे. ये लोग जिहाद को प्यार का नाम दे देते हैं और तुम जैसी आवारा लड़कियां अपने धर्म के लड़कों को छोड़ उन के क़ौम में चली जाती हो. तुम भी उन्हीं में से एक हो. मैं सब जानता हूं, तुम भी रशिका भटनागर से रशिका बानो, रशिका बेगम बनना चाहती हो. तभी तो जब से यहां आई हो, घंटों इस के कमरे में बैठी रहती हो. अभी ही देख लो खुद को कैसे लिपटी हुई हो एक तलाकशुदा आदमी के साथ.”


यह सुन हनीफ का पारा चढ़ ग‌या और वह राजीव पर हाथ उठाने ही वाला था कि रशिका ने उसे रोक दिया. उसी वक्त होटल के और भी कुछ लोग वहां आ गए. उस के बाद राजीव वहां से चला गया और हनीफ रशिका को संबल देने के बाद उस का मोबाइल उसे देते हुए बोला-


“हमारा फोन एक्सचेंज हो गया है. ये तुम्हारा फोन, मैं तुम्हें लौटाने आया था. मेरा फ़ोन शायद तुम ले आई हो.”


अपना फोन लेने के बाद रशिका ने हनीफ का फोन उसे लौटा दिया और फिर हनीफ जैसे ही जाने लगा, रशिका ने हनीफ से धीरे से कहा- “थैंक्स.”


यह सुन हनीफ दरवाजे पर रुक गया और मुसकराते हुए बोला-


“कोई भी प्रौब्लम हो, फोन कर लेना.” इतना कह कर वह वहां से चला गया.


रशिका बिस्तर पर लेटी हनीफ के बारे में सोचने लगी. सहसा उसे अपनी सहेली गजाला याद आ गई. गजाला उस की स्कूलफ्रैंड थी और दोनों कालेज में भी साथ थीं. लेकिन गजाला और रशिका की दोस्ती रशिका के परिवार वालों को हमेशा बेहद खटकती थी. उन्हें यह दोस्ती पसंद न थी.


रशिका की मां हमेशा यही कहती कि गजाला के क़ौम के लोग कभी अपने नहीं होते हैं. ये लोग हमेशा पीठपीछे वार करते हैं. रशिका के पापा भी रशिका को हमेशा बारबार, बस, यही समझाते हुए कहते कि तुम देख लेना, एक न एक दिन तेरी यह अभिन्न सहेली गजाला तुझे जरूर धोखा देगी और ऐसा ही कुछ हो गया.


इंटर कालेज डांस कंपीटिशन के दौरान रशिका फाइनल राउंड में पहुंच गई थी. फाइनल राउंड शुरू ही होने वाला था कि रशिका गजाला को ढूंढती हुई ड्रैसिंगरूम से बाहर आई तो उस ने जो देखा उसे देख उस की आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ. गजाला के हाथों में रशिका के पानी की बोतल थी और वह राशि से बात कर रही है जो फाइनल राउंड में रशिका की प्रतिद्वंद्वी है. रशिका ने यह भी देखा कि राशि के हाथों में दवाई की एक शीशी थी. यह देख रशिका यह समझ बैठी कि गजाला राशि से मिली हुई है और दोनों मिल कर उस के पानी में दवाई मिलाने की बात कर रही हैं क्योंकि रशिका ने राशि को यह कहते हुए सुन लिया था कि इस शीशी में नशे की दवाई है.


यह देख रशिका रोती हुई वहां से दौड़ी और उस के पीछे गजाला. उस दिन रशिका ने डांस कंपीटिशन तो जीत लिया लेकिन शक और धर्म के नाम पर जो विष रशिका के मातापिता रशिका के ज़ेहन में बचपन से बोते आ रहे थे कि गजाला के क़ौम के लोग कभी किसी के नहीं होते, ये लोग पीठ पर वार करते हैं, उस जहर ने आज रशिका को हमेशा के लिए गजाला से जुदा कर दिया.


उस दिन रशिका के पीछे गजाला भी दौड़ी थी और वह दौड़ती हुई सीढ़ियों से फिसल कर गिर गई. गजाला के सिर पर काफी गहरी चोट लगने की वजह से उस ने 2 दिनों के बाद इस दुनिया को अलविदा कह दिया. रशिका ने अपनी सब से अच्छी दोस्त गजाला को सदा के लिए खो दिया. उसे अपनी इस गलती का एहसास तब हुआ जब अचानक एक रोज़ राशि से उस की मुलाकात हुई और राशि ने गजाला की सचाई बयां करते हुए कहा-


“रशिका, तुम कैसी हो, तुम्हारे पास गजाला जैसी सच्ची दोस्त थी और तुम ने उसे अपनी बेतुकी सोच की वजह से खो दिया. हां, मैं उस दिन डांस कंपीटिशन में तुम्हें हराना चाहती थी, मैं चाहती थी कि गजाला वह नशे की दवाई तुम्हारे पानी की बोतल में मिला दे लेकिन उस ने ऐसा करने से मना कर दिया था. जानती हो, गजाला ने उस दिन मुझ से क्या कहा था. तुम्हें तो पता भी नहीं है कि उस ने मुझ से क्या कहा था. उस ने मुझ से कहा कि रशिका मेरी सब से अच्छी सहेली है और मैं अपने जीते जी उस के साथ किसी को भी ग़लत नहीं करने दूंगी. और तुम ने क्या किया, तुम उस की दोस्ती का मान भी नहीं रख पाईं.”


इतना कह कर राशि तो चली गई लेकिन रशिका आज भी उस नामुराद घड़ी और खुद को कोसती रहती है और खुद को गजाला की मौत के लिए जिम्मेदार मानती है. यह सब सोचते हुए रशिका की आंखों से नींद गुम हो गई थी. कल हैदराबाद लौटना था. रशिका ने यह फैसला ले लिया कि हैदराबाद पहुंचते ही वह हनीफ से इजहारे मोहब्बत कर देगी क्योंकि वह एक बार फिर अपनी जिंदगी से किसी अच्छे इंसान को नहीं खोना चाहती और उस ने यह भी तय कर लिया कि वह अपने मातापिता को भी हर हाल में इस शादी के लिए राज़ी कर लेगी.


अगली सुबह सभी पांचों साथ में ही एयरपोर्ट पहुंचे. बीती रात रशिका संग की अपनी बदतमीजी पर राजीव को अफसोस था और वह शर्मिंदा भी था. उस ने रशिका से माफी भी मांगी. रशिका ने ऊपरी तौर पर उसे माफ कर दिया लेकिन मन ही मन रशिका अब भी राजीव के रात वाले बरताव पर बेहद नाराज़ थी.


यहां हैदराबाद पहुंचते ही फिर सभी अपने बनावटी रूप में आ गए और एक सभ्य, संस्कारी व धार्मिक होने का चोला पहन कर घूमने लगे. इधर रशिका अपना हाल ए दिल हनीफ से बयां करने के मौके तलाशने लगी और उधर हनीफ बैंगलुरु से आने के बाद से ही रशिका से दूर रहने लगा. रशिका जब भी हनीफ से मिलने को कहती, वह कोई न कोई बहाना बना देता. रशिका अपने लिए हनीफ की आंखों में प्यार देख चुकी थी, अब बस, वह हनीफ की जबानी सुनना चाहती थी.


एक रोज़ औफिस के फूड कोर्ट में हनीफ अकेले बैठा कौफी पी रहा था. यह देख रशिका उस के पास जा बैठी और अपने दिल के सारे पन्ने उस के सामने खोल कर रख दिए. हनीफ बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए चुपचाप सुनता रहा. उस के बाद अपनी कौफी पी रशिका से कुछ कहे बगैर उठ खड़ा हुआ और वहां से जाने लगा. यह देख रशिका भी उठ खड़ी हुई और हनीफ का हाथ पकड़ उसे रोकती हुई बोली-


“मैं जानती हूं, तुम मुझसे प्यार करते हो. तुम्हारी आंखों में इस वक़्त भी मैं अपने लिए प्यार देख रही हूं. तुम अभी कुछ नहीं कहना चाहते, मत कहो. मैं तुम्हारे हां का इंतजार करूंगी और हां, मैं आज ही अपने मम्मीपापा से हमारे लिए बात भी करूंगी.”


इतना कह कर रशिका ने हनीफ का हाथ छोड़ दिया. हनीफ बुत की तरह खड़ा रहा और रशिका वहां से चली गई. उस रात रशिका ने अपने मातापिता से फोन पर हनीफ के बारे में बताते हुए उस से शादी करने की अपनी इच्छा ज़ाहिर कर दी. हनीफ के बारे में सुन कर रशिका के मातापिता ने उसे फौरन इंदौर आने को कहा ताकि वे इस विषय पर बात कर सकें.


अगले दिन रशिका औफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले कर इंदौर आ गई. घर पहुंचते ही रशिका के मातापिता उस पर बरस पड़े. रशिका की मां चिल्लाती हुई उस से बोली-


“पूरे हैदराबाद में तुझे कोई और लड़का नहीं मिला, दूसरी जाति में भी नहीं. तुम तो गैरधर्म में शादी करना चाहती हो, ऊपर से तलाक शुदा आदमी के साथ जिस का एक बेटा भी है. तुम्हारा दिमाग ठिकाने पर तो है.”


यह सुन रशिका बोली- “मम्मी, हनीफ तलाकशुदा जरूर है लेकिन उस में केवल हनीफ की ही गलती नहीं है. उस में उस लड़की की भी उतनी ही गलती है, वह भी तो शादी कर के अपनी शादी निभा नहीं पाई.”


“कभी सोचा है वह लड़की अपनी शादी निभा क्यों नहीं पाई क्योंकि वह अपना धर्म छोड़ कर दूसरे धर्म में चली गई थी और जिस धर्म में तुम जाना चाहती हो न, उस धर्म के लड़के किसी गैरधर्म की लड़की से प्यार नहीं करते, बस जिहाद करते हैं, जिहाद…समझी. आज वह तुम से शादी करेगा, कल तुम्हें तलाक़तलाक़तलाक कह कर दे देगा और फिर किसी तीसरी की तलाश में निकल जाएगा. तुम्हें मालूम है, वह अपने धर्म के मुताबिक 4 शादियां कर सकता है. तब क्या करोगी,” रशिका की मां गुस्से में तिलमिलाती हुई बोली.


“मां, हनीफ ऐसा कुछ नहीं करेगा. उस की एक शादी टूट गई है, इस का मतलब यह नहीं है कि वह बुरा है,” रशिका ने अपनी मां को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी. तब रशिका ने साफ शब्दों में कह दिया कि वह शादी करेगी तो हनीफ से ही करेगी.


रशिका का इतना कहना था कि रशिका के पिता, जो अब तक कुछ नहीं कह रहे थे, भड़क उठे और बोले, “यह शादी किसी भी सूरत में नहीं हो सकती. अगर तुम उस लड़के से शादी करती हो तो दोबारा इस घर की चौखट पर कभी पैर मत रखना. यह समझ लेना कि तुम्हारे मातापिता तुम्हारे लिए मर गए हैं.”


रशिका अपने मातापिता के आशीर्वाद से हनीफ संग शादी के बंधन में बंधना चाहती थी, इसलिए वह पूरे एक हफ्ते इंदौर में रुकी और अपने मातापिता को इस शादी के लिए राज़ी करने का प्रयत्न करती रही लेकिन अंत तक वे नहीं माने और रशिका निराश हो कर हैदराबाद लौट आई.


यहां हैदराबाद में जब रशिका औफिस पहुंची तो उसे हनीफ कहीं दिखाई नहीं दे रहा था. उस का मोबाइल भी बंद बता रहा था. रशिका ने जब संदीप और राजीव से हनीफ के बारे में पूछा तो उन्हें भी कुछ मालूम नहीं था. राजीव ने इतना कहा कि उस ने लास्ट टाइम हनीफ को उपासना के साथ देखा था पर आज उपासना भी औफिस नहीं आई थी.


रशिका बारबार कभी हनीफ का नंबर डायल करती तो कभी उपासना का. लेकिन दोनों का ही नंबर बंद बता रहा था. वह समझ ही नहीं पा रही थी कि आखिर दोनों का नंबर बंद क्यों बता रहा है. आखिरकार रशिका का पूरा दिन ऐसे ही बीत गया और सारी रात आंखों ही आंखों में कटी. दूसरे दिन जब रशिका औफिस पहुंची तब भी हनीफ का कुछ पता नहीं था. वह सोच ही रही थी कि आखिर हनीफ कहां होगा. उसी वक्त रशिका के सामने उपासना आ खड़ी हुई. उपासना को सामने खड़ा देख रशिका भी खड़ी हो गई और वह उपासना से बोली, “मैं कल से तुम्हारा और हनीफ का मोबाइल ट्राई कर रही हूं, तुम्हारा नंबर भी बंद बता रहा है और हनीफ का भी, तुम्हें पता है हनीफ कहां है?”


उपासना लंबी सांस लेती हुई रशिका को उस की चेयर पर बिठाती हुई बोली, “कल मैं छुट्टी पर थी और मेरे मोबाइल की बैटरी खराब हो गई थी, इसलिए मेरा मोबाइल बंद था. रही बात हनीफ की, तो मुझे नहीं पता वह कहां है. हां, इतना जरूर पता है कि उस ने यह कंपनी और जौब दोनों छोड़ दी है.”


इतना कहने के बाद उपासना अपने पर्स से एक बंद लिफाफा रशिका को देती हुई बोली, “यह लिफाफा हनीफ तुम्हारे लिए छोड़ गया है.” यह कह कर उपासना वहां से चली गई.


धड़कते दिल और कंपकंपाते हाथों से रशिका ने वह बंद लिफाफा खोला जिस पर लिखा था-


“रशिका, मैं जानता हूं तुम्हारे दिल में मेरे लिए जो जज्बात हैं. मैं यह भी जानता हूं कि तुम्हारे मातापिता इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे और उन के आशीर्वाद के बगैर मैं तुम्हारा हाथ नहीं थाम पाऊंगा. मैं एक बार फिर शादी कर के अपने प्यार को जिहाद का नाम नहीं देना चाहता, इसलिए प्यार को, बस, प्यार ही रहने दो…”


इतना पढ़ कर रशिका की आंखों से अश्रुधारा बहने लगे. उस के बाद रशिका ने झिलमिलाती आंखों से जो पढ़ा, उस में मशहूर गीतकार साहिर लुधियानवी की एक ग़ज़ल की पंक्ति लिखी थी-


“वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा…”


यह पढ़ने के बाद रशिका ने नम आंखों से वह लिफाफा संभाल कर अपने बैग में रख लिया. आज एक बार फिर ऊंचनीच, जाति, धर्म, संप्रदाय, क़ौम जैसे बेमाने शब्दों की वजह से 2 प्यार करने वाले दिल जुदा हो गए और प्यार फिर हार गया.

'