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कहानी: गुड्डन

“गुड्डन आज तुम फिर देर से आई हो, आठ बज गए हैं. तुम्हारे लिए सवेरेसवेरे सजनासंवरना ज्यादा जरूरी है. अपने काम की फिक्र बिलकुल नहीं है. तुम ने तो हद कर दी है. इतनी सुबहसुबह कोई लिपस्टिक लगाता है क्या? मैं तो तुम्हारी हरकतों से आजिज आ चुकी हूं.’’

गुड्डन लगभग 18-19 साल की लड़की है. वह उन की सोसाइटी के पीछे वाली खोली में रहती है.


जब वह 11-12 साल की थी तब वह मुड़ीतुड़ी फ्रौक पहन कर और उलझेबिखरे बालों के साथ मुंह

अंधेरे काम करने आ खड़ी होती थी. पर जैसे ही उस ने जवानी की दहलीज पर पैर रखा, उसे दूसरी लड़कियों की तरह खुद को सजनेसंवरने का शौक हो गया था.


अब वह साफसुथरे कपड़े पहनती, सलीके से तरहतरह के स्टाइलिश हेयरस्टाइल रखती, नाखूनों में नेलपौलिश तो होंठ लिपस्टिक से रंगे होते. बालों में रंगबिरंगी सस्ती वाली बैकक्लिप लगा कर आती. अब वह पहले वाली सीधीसादी टाइप की नहीं वरन तेजतर्रार छम्मकछल्लो बन गई थी.


खोली के कई लड़कों के साथ उस के चक्कर चलने की बातें, उस खोली में रहने वाली दूसरी कामवालियां चटपटी खबरों की तरह एकदूसरे से कहतीसुनती रहती थीं.


निशा की बड़बड़ करने की आदत से वह अच्छी तरह परिचित थी. सुबहसुबह डांट सुन कर उस ने मुंह फुला लिया था. लेकिन उन के घर से मिलने वाले बढ़िया कौस्मेटिक की लालच में वह चुपचाप उन की बकबक को नजरअंदाज कर चुपचाप सुन लिया करती थी. दूसरे अंकलजी भी तो जब तब ₹100- 200 की नोट चुपके से उसे पकड़ा कर कहते कि गुड्डन काम मत छोड़ना, नहीं तो तेरी आंटी परेशान हो जाएंगी.


वह अपनी नाराजगी दिखाने के लिए जोरजोर से बरतन पटक रही थी. निशा समझ गई थीं कि आज गुड्डन उन की बात का बुरा मान गई है. वह उस के पास आईं और प्यार से उस के कंधे पर हाथ रख कर बोलीं,”क्यों रोजरोज देर से आती हो? अंकलजी को औफिस जाने में देर होने लगती है न…”


“आओ, नाश्ता कर लो.”


“आंटीजी, मुझे आज पहले ही देर हो गई है. अभी यही सारी बातें 502 वाली दीदी से सुननी पड़ेगी.‘’


निशा उस की मनुहार करतीं, उस से पहले ही गुड्डन जोर से गेट बंद कर के जा चुकी थी.


उन्हें गुड्डन का यह व्यवहार जरा भी अच्छा नहीं लगा,“जरा सी छोकरी और दिमाग तो देखो… यहांवहां लड़कों के संग मुंह मारती रहती है जैसे मैं कुछ जानती ही नहीं.’’


“निशा बस भी करो. तुम्हें अपने काम से मतलब है कि उस की इन बातों से…’’


पति की नाराजगी से बचने के लिए वे चुपचाप अपना काम करने लगी थीं पर उन के चेहरे पर नाराजगी के भाव साफ थे.


निशा 46 वर्षीय स्मार्ट शिक्षित घरेलू महिला थीं. उन के पति रवि बैंक में मैनेजर थे. उन के पास घरेलू कामों के लिये 3 कामवालियां थीं. उन्हीं में एक गुड्डन भी थी.


पत्रिका पढ़ने के बाद उन का सब से पसंदीदा काम था अपनी कामवाली से दूसरे घरों की महिलाओं की रिपोर्ट लेना. उस के बाद फिर थोड़ा नमकमसाला लगा कर फोन घुमा कर उन्हीं बातों की चटपटी गौसिप करना.


गुड्डन उन की सब से चहेती और मुंहलगी कामवाली थी. वह सुबह बरतन धो कर चली जाती फिर दोपहर तक सब का काम निबटा कर आती तो बैठ कर आराम से सब के घरों में क्या चल रहा है, बताती और कभी खाना खाती तो कभी चाय बना कर खुद पीती और उन्हें भी पिलाया करती, फिर अपने घर चली जाया करती.


निशा का यह मनपसंद टाइमपास था. दूसरों के घरों के अंदर की खबरें सुनने में उन्हें बहुत मजा आता था. गुड्डन भी तेज थी, सुनीसुनाई बातों में कुछ अपनी तरफ से जोड़ कर इस कदर चटपटी खबर में तबदील कर देती मानो सच उस ने अपनी आंखों से देखा हो. लेकिन इधर कुछ दिनों से उस का रवैआ बदल गया था.


मोबाइल फोन की आवाज से उन का ध्यान टूटा. उधर महिमा थी,”हैलो आंटी, आज गुड्डन आप के यहां आई है क्या? बहुत नालायक है. कभी फोन बंद आता है तो कभी बिजी आता है. मैं तो इस की हरकतों से आजिज आ गई हूं. वाचमैन से मैं ने कह दिया है कि देख कर के मेरे लिए कोई ढंग की अच्छी सी कामवाली भेजो. गुड्डन आई कि नहीं?”


“तुम ने मुझे बोलने का मौका ही कहां दिया,” निशा हंस कर बोली थीं.


“आंटी आप ने इस के करम सुने. कई लड़कों के साथ इस का चक्कर चल रहा है…’’


यह उन का मन पसंद टौपिक था, वे भला कैसे चुप रहतीं,”अरे वह जो सोसाइटी के बाहर राजेंद्र प्रैस का ठेला लगाता है न दिनभर उसी के घर में घुसी रहती है यह तो… मेरे घर से काम कर के गई और यहां तो तुम्हारे घर पर ही जाने को बोल कर गई थी. आज तो उस ने चाय भी नहीं पी और ऐसे बरतन पटकपटक कर अपना गुस्सा दिखा रही थी कि कुछ पूछो मत…”


“आज सुबह आप सैर पर नहीं आई थीं. तबियत तो ठीक है न?”


“हां, आज उठने में देर हो गई…”


“ओके बाय आंटी, दरवाजे पर देखती हूं शायद गुड्डन आ गई है.‘’


गुड्डन का काम करने का अंदाज सोसाइटी की महिलाओं का पसंद था. एक तो वह चोरी नहीं करती थी, दूसरा घर में झाङूपोंछा अच्छी तरह करती. वह कई सालों से इन उच्च और मध्यवर्ग परिवारों की महिलाओं के घरों में काम करती आ रही थी. इसलिए वह इन लोगों के स्वभाव और कार्यकलापों से खूब अच्छी तरह परिचित हो चुकी थी. वह इन लोगों की आपसी बातों पर अपना कान लगाए रहती थी और सब सुनने के बाद मौका मिलते ही इन लोगों को अच्छी तरह से सुना भी दिया करती थी.


इन दिनों राजेंद्र के साथ उस की दोस्ती के चर्चे सब की जबान पर चढ़े हुए थे. वह जिस के घर में भी काम करने जाती, वहां व्यंगात्मक लहजे में कुछ न कुछ सुन ही लेती,”तुम्हें यहांवहां घूमने से फुरसत मिल गई तो काम कर लो अब…”


राजेंद्र जिस की उम्र लगभग 40 साल थी, उस की बीबी उस को छोड़ कर किसी दूसरे के साथ चली गई थी.

वह और उस का बूढा बाप दोनों ही खोली में अकेले ही रहते थे. कुछ दिनों पहले उस ने अपनी खेती की जमीन बेची थी. उस के एवज में उसे लाखों रुपए मिले थे. वह गेट के बाहर ठेले पर प्रैस किया करता था. उस से भी उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. वह राजेंद्र के पिता को कभी चाय दे जाती तो कभी खाना खिला देती.


इस तरह से कालीचरण पर उस ने अपना फंदा फेंक दिया था. अब कालीचरण उसे बिटियाबिटिया कह कर उस पर लाड़ दिखाता और उस को अपने साथ बाजार ले जाता और कभी चाट खिलाता तो कभी मिठाई.


तेज दिमाग गुड्डन ने राजेंद्र को अपने प्यार के जाल में फंसा कर उस से दोस्ती कर ली. वह उस के घर में उस के लिए रोटी बना देती फिर दोनों मिल कर साथ में खाना खाते. दोनों साथ में कभी घूमने जाते तो कभी मूवी देखने, तो कभी मौल घूमते. राजेंद्र छेड़ता तो वह खिलखिलाती. उन दोनों की दोस्ती पर यदि कोई कुछ उलटासीधा बोलता तो वह पलट कर उस से लड़ने पर उतारू हो जाती,”तुम्हें क्या परेशानी है? राजेंद्र हमारा दोस्त है, खसम है. हम तो खुल्लमखुल्ला कह रहे हैं. जो करना है कर लो. जो

समझना है समझ लो मेरी बला से…”


उस के दोनों मतलब सिद्ध हो रहे थे. मालकिन की तरह उस के घर में मनचाहा खाना बनाती, खुद भी खाती और राजेंद्र को भी खिलाती. दोनों की जिंदगी में रंग भर गए थे. राजेंद्र भी रोज उस के लिए मिठाई वगैरह कुछ न कुछ ले कर आता. वह उसे अपने साथ बाजार भी ले कर जाता. कभी सलवारसूट तो कभी लिपिस्टिक, तो कभी चूड़ियां या इसी तरह अन्य सजनेसंवरने का सामान दिलवाता रहता.


इसलिए स्वाभाविक था कि वह उसे खुश रखता है तो उस का भी तो फर्ज बनता था कि वह भी उसे खुश रखे. बस इस तरह दोनों के बीच अनाम सा रिश्ता बन गया था.


उस की लालची अम्मां को खानेपीने को मिल रहा था. वह भी खुश थी.

उस के दोनों हाथों में लड्डू थे. जब जिस से मौका लगता उस से पैसा ऐंठती. बापबेटा दोनों उस की मुट्ठी में थे…


इसी रिश्ते की खबर सोसाइटी की तथाकथित उच्चवर्गीय महिलाओं को मिल गई थी, क्योंकि खोली की दूसरी कामवालियां आपस में बैठ कर ऐसी बातें चटखारे लेले कर के अपने मन की भड़ास निकाला करती थीं और इसीलिए सोसाइटी की महिलाओं के पास भी गुड्डन के कारनामों की खबर नमकमिर्च के साथ पहुंचती रहती थी.


घरेलू महिलाओं की चर्चा जानेअनजाने इन घरेलू कामवालियों पर आ कर टिक जाती थीं क्योंकि उन्हें इन के साथ रोज ही दोचार होना पड़ता था.


गुड्डन सोसाइटी में कई घरों में झाड़ूपोंछा करती थी और वर्मा अंकल के यहां तो खाना भी बनाती थी. चूंकि वह बिलकुल अकेले रहते हैं इसलिए उन के घर की तो सर्वेसर्वा वही है.


दोपहर में खाली होते ही महिमा निशा के घर आ गई थी,”क्या हो रहा है आंटी?”


“कुछ खास नहीं. आओ बैठो…”


ऐसा लग रहा था कि मानो कोई राज बताने जा रही है,”कुछ सुना है आप ने? इस गुड्डन के तो बड़े चर्चे हैं.चारों तरफ इस की बदनामी हो रही है. अपने बगल में ही दरवाजे के अंदर वर्मा अंकल के साथ जाने क्या गुल खिला रही है. रीना बता रही थी कि कोई रंजीत औटो चलाता है,

उस के साथ भी यह प्यार का नाटक कर के पैसा ऐंठ रही थी. अब तो वह राजेंद्र के साथ खुलेआम मटरगश्ती करती फिर रही है.”


“अच्छा… आज उसे आने दो, ऐसी झाड़ लगाऊंगी कि वह भी याद रखेगी.”


फिर उन्हें उस का सुबह का बरतन पटकना याद आ गया तो बोलीं,”छोड़ो महिमा, हमें उस के काम से मतलब है. छोटी सी थी तब से मेरे घर पर काम कर रही है. एक भी चम्मच इधर से उधर नहीं हुई. घर को चमका कर जाया करती है.


“हम लोगों को क्या करना है. जो जैसा करेगा वह भरेगा… उस की अम्मां ने तो इसी तरह से अपनी जिंदगी ही बिता दी.‘’


महिमा ने अपनी दाल गलती हुई न देख कर बोली,”आंटी, अब चलूंगी, आरव स्कूल से आता होगा.”


निशि के पेट में खलबली मची थी,’गुड्डन को आने दो आज उस की क्लास ले कर रहूंगी… 40- 45 साल के राजेंद्र जैसे मालदार पर अपना हाथ मारा है. कहीं मेरे सीधेसादे रवि पर भी अपना जादू न चला दे. ऐसी छोरियां पैसे के लिए कुछ भी कर सकती हैं…‘

अगली दोपहर जब वह आई तो निशा तापाक से बोल पङीं,”आज बड़ा सजधज कर आई है… यह सूट बड़ा सुंदर है. तुझे किस ने दिया है? यह तो बहुत मंहगा दिख रहा है.”


“इतना मंहगा सूट भला कौन देगा? सोसाइटी में नाम के बड़े आदमी रहते हैं लेकिन दिल से छोटे हैं सब. कोई कुछ दे नहीं सकता. मैं ने खुद खरीदा है.”


“साफसाफ क्यों नहीं कहतीं कि तेरे आशिक राजेंद्र ने दी है तुम्हें.”


“नहीं आंटीजी, रंजीत दिल्ली से मेरे लिए ले कर आया है. मुझ से कहता रहता है कि तुझे रानी बना कर रखूंगा…’’ वह शर्मा उठी थी.


वे तो बंदूक में जैसे गोली भरी बैठी हुई थीं,”काहे री गुड्डन, अभी तक तो राजेंद्र के साथ तेरा लफड़ा चल रहा था अब यह रंजीत कहां से आ मरा? उस दिन तेरी अम्मां आई थी. वह कह रही थी कि तू ज्यादा समय राजेंद्र की खोली में गुजारती है. वह तुझे इतना ही पसंद है तो उसी के साथ ब्याह रचा ले. तेरी अम्मां यहांवहां लड़का ढूंढ़ती फिर रही है.”


वह चुपचाप अपना काम करती रही तो निशा का मन नहीं माना. वह फिर से घुड़क कर बोलीं,”क्यों छोरी, तेरी इतनी बदनामी हो रही है तुझे बुरा नहीं लगता?”


“आंटीजी, राजेंद्र जैसे बूढ़े से ब्याह करे मेरी जूती. मैं कोई उपमा आंटी जैसी थोड़ी ही हूं, जो पैसा देख कर ऐसा भारीभरकम काला दामाद ले आई हैं… ऐसी फूल सी नाजुक पूजा दीदी, बेचारी 4 फीट की दुबलीपतली लड़की के बगल में 6 फीट का लंबाचौड़ा आदमी…”


“चुप कर…” निशा चीख कर बोलीं,”तेरा मुंह बहुत चलता है… आकाशजी की बहुत बड़ी फैक्टरी है. वे रईस लोग हैं…’’


गुड्डन के मुंह से कड़वा सच सुन कर उन की बोलती बंद हो गई थी इसलिए उन्होंने इस समय वहां से चुपचाप हट जाना ही ठीक समझा था.


जनवरी की पहली तारीख थी. वह खूब चहकती हुई आई थी,”आंटी, हैप्पी न्यू ईयर…”


“तुम्हें भी नया साल मुबारक हो. कल कहां गायब थीं? किसी के साथ डेट पर गई थीं क्या…?’’


“आंटी, आप भी मजाक करती हैं… वह बी ब्लौक की रानी आंटी जो आप की किट्टी की भी मैंबर हैं…’’


“क्या हुआ उन को?’’


“उन का लड़का शिशिर है न… उन की शादी के लिए लड़की वाले आए थे, इसलिए आंटी ने मुझे काम करने के लिए दिनभर के लिए बुलाया था…’’


“बेचारी रानी अपने बेटे की शादी के लिए बहुत दिनों से परेशान थीं… चलो अच्छा हुआ… शिशिर की शादी तय हो गई.’’


“मेरी पूरी बात तो सुनिए… लड़की वाले उन की मांग सुनते रहे. सब का मुंह उतरा हुआ था…धीरेधीरे वे लोग आपस में रायमशविरा करते रहे थे.


“आंटी, मैं भी बहुत घाघ हूं. चाय देने गई फिर बरतन धीरेधीरे उठाती रही और उन लोगों की आपसी बात ध्यान से सुन रही थी. वे कह रहे थे कि गाड़ी, 20 तोला सोना, शादी का दोनों तरफ का खर्चा लड़की वाले करें. शादी फाइवस्टार होटल में होगी…’’


“रानी आंटी तो पूरी मंगता हैं… देखो जरा, अपने लड़के को बिटिया वाले को जैसे बेच रही हैं.


“हम गरीब लोगन को सब भलाबुरा कहते हैं, लेकिन बड़े आदमी भी दिल के बड़े नहीं होते. आप लोग में भी कम नहीं. एक लड़की की शादी करने में मायबाप चौराहे पर खड़े हो कर बिक जाएं, तब बिटिया का ब्याह कर पाएं…


“रानी आंटी कैसी धरमकरम की बातें किया करती हैं. खुद को बड़ी धरमात्मा बनती हैं. अपने यहां भागवतकथा करवाने में लाखों रुपया खर्च कर डालीं थीं. का अब बिटिया वाले से वही खर्चा की वसूली करेंगी?


“सरकार तो दहेज को अपराध कहती है…आप लोगन में दहेज मांगने की कोई मनाही नाहीं है का?‘’


“गुड्डन मुंह बंद कर के काम किया कर, तुम इतना बोलती हो कि सिर में दर्द हो जाता है. शिशिर बड़ा अफसर है, उस की तनख्वाह बहुत ज्यादा है…उन की बिटिया यहां पर राज रजती.”


लगभग 1 साल पहले उन के बेटे की शादी में भी गाड़ी और दहेज में बहुत सारा सामान आया था. इसलिए गुड्डन की बातें सुन कर उन्हें लगा कि वह इशारोंइशारों में उन पर भी बोली मार रही है.

निशा ने उस की ओर आंखें तरेर कर देखा और फोन पर अपनी आदत के अनुसार रानी के घर की चटपटी खबर को इधर से उधर कर के अपने मनपसंद काम में जुट गईं.


लगभग 6 महीने पहले उन की सासूमां का इंतकाल उन के देवर के घर में हो गया था. निशा चालाक थी, उन्होंने सासूमां के जेवर दबा कर रख लिए थे और अब वे उसे किसी के साथ बांटना नहीं चाह रही थीं…


पूरा का पूरा वे अकेले ही हजम करना चाह रही थीं. उन के देवर सतीश और ननद संध्या उन पर बंटवारा करने का दबाव बनाए हुए थे. लेकिन उन्होंने साफसाफ कह दिया था कि उन के पास कोई जेवर नहीं है, क्योंकि उन की नियत खराब थी.


पर पति रवि बंटवारा करने के लिए उन पर दबाव डाल रहे थे. उसी सिलसिले में वे लोग कई बार आ चुके थे और हर बार गरमगरम बहस के बाद कोई न कोई बहाना बना कर वे उन्हें अपने घर से जाने पर मजबूर कर देती थीं.


“भाभी, आप मेरे हिस्से का जेवर मुझे दे दीजिए, मुझे ईशा की शादी करनी है. सोना इस समय इतना मंहगा है… आप को तो मेरी हैसियत के बारे में अच्छी तरह से पता है…’’


संध्या भी हिम्मत कर के बोली,”भैया, आप ने अम्मां का सारा जेवर दाब लिया… यह गलत बात है कि नहीं? घरमकान में तो हिस्सा नहीं मांग रहे हैं. जेवर का तो बंटवारा कर ही दो.”


गुड्डन काम करती सारी बातें ध्यानपूर्वक सुन रही थी तभी जैसे ही निशा को याद आया कि गुड्डन सारी बातें सुन रही होगी तो उन्होंने तेजी से आ कर उस से बरतन हाथ से छुड़वा कर कहा कि इस समय जाओ, शाम को आना.


पर होशियार गुड्डन को तो मसाला मिल गया था कि निशा आंटी कितनी शातिर हैं. उन्होंने सब का हिस्सा दबा कर रख लिया है.


सतीश और संध्या अकसर आते, आपस में बातचीत, कहासुनी और बहसबाजी होती पर अंतिम निर्णय कुछ भी नहीं हो पाता क्योंकि निशा की नियत खराब थी, वह किसी को कुछ देना ही नहीं चाहती थीं. वे गुड्डन के सामने रोरो कर नाटक करतीं कि ये लोग उन्हें परेशान कर रहे हैं…


एक दिन गुड्डन उन से बोली,”आंटी, अम्मां कथा सुन कर आईं तो बता रही थीं कि हमारे धरम में बताया गया है कि भाईबहन का हिस्सा हजम करना बहुत बड़ा पाप होता है.”


निशा को तत्काल कोई जवाब नहीं सूझा था. वे खिसिया कर बोलीं,”चल बड़ी धरमकरम वाली बनी है.”


एक दिन गुड्डन सुबहसुबह बड़ी घबराई हुई सी आई थी,”आंटीजी, आंटीजी…”


“क्या हुआ, क्यों चिल्ला रही हो?”


“आप को किसी ने खबर नहीं दी? गेट पर पुलिस की गाड़ी खड़ी है. कई सारे पुलिस वाले श्याम अंकल को अपने साथ ले कर जा रहे थे. उन्हें कुछ पूछताछ करनी है. गार्ड लोग आपस में बात कर रहे थे कि श्याम अंकल ने ₹10 करोड़ का घोटाला किया है. उसी की जांच चल रही थी. घर में छापा पड़ा है. बहुत सारे अफसर उन के घर में घुस कर छानबीन कर रहे हैं.


“आंटीजी ₹10 करोड़ में बहुत सारा रुपया होता होगा न?’’


निशा नीर से हमेशा से चिढ़ती थी, उस की तरफ देख कर बोली,”हां…हां… बहुत सारा होता है…”


वे बड़बड़ाने के अंदाज में बोलीं,”बड़ी अकड़ कर रहती थीं मिसेज श्याम. आज स्विट्जरलैंड तो कल पैरिस… यह हार तो श्यामजी ने मेरे बर्थडे पर गिफ्ट किया था…अब आज क्या इज्जत रह गई…?”


“आंटीजी आप लोग हम लोगन को बेकार में भलाबुरा कह के बदनाम करती रहती हैं… कम से कम हम लोग भाईबहन का हिस्सा तो नहीं मार कर रख लेते… हम लोग बैंक की रकम तो नाहीं मार लेते. हम लोग खोली में चाहे कितना लड़झगड़ लें लेकिन यदि कोई पर मुसीबत आ जाए तो तुरंत सब उस के दरवाजे पर मदद करने के लिए इकट्ठा होय जात हैं…


“आज श्याम अंकल का मुंह उतरा हुआ था. उन के आसपास दूरदूर तक कोई नहीं खड़ा हुआ था… नीरा दीदी फूटफूट कर रो रही थीं… उन का फोन भी उन से ले लिया… सब लोग बताय रहे थे. हम तो सुबह से गार्ड के पास ही खड़े होय कर सब तमाशा देख रहे थे… बेचारी नीरा दीदी…”


गुड्डन को आंसू बहाते देख निशा उस की भावुकता देखसमझ नहीं पा रही थीं कि क्या करें और इस से क्या कहें… वे उस के लिए गिलास में पानी ले कर आईं,“लो पानी पी लो और चुप हो जाओ. उन के वकील उन्हें छुड़ा कर बाहर लाने के लिए कोशिश कर रहे होंगे और वह जल्दी ही छूट कर आ जाएंगे.”


लेकिन मन ही मन में निशा सोच रही थीं कि गुड्डन भला इस केस की पेचीदगी को क्या समझेगी? पर आज गुड्डन की भावुकता को देख कर पता नहीं क्यों नीरा की बेबसी के बारे में सोच कर वह भी उदास हो उठी थीं.


एक स्त्री की बेचारगी के बारे में सोच कर उन की आंखें भी भीग उठीं.


गुड्डन के हाथ काम कर रहे थे लेकिन वह निरंतर बड़बड़ा रही थी,”सब देखने के बड़े आदमी बनते हैं… कोई किसी के दुख में नाहीं खड़ा होता… बड़े आदमी खालीपीली दिखावा करना जानत हैं…”


गुड्डन लगातार रोए जा रही थी और उस के निश्छल आंसुओं के कारण उन का भी दिल भर आया था और वे भी उदास हो उठी थीं.

 
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