कहानी: ऐसे ही आती रहना
शुभी का शक करना भी सही था लेकिन विशाखा ने जिस निर्मल और सहज हृदय के साथ शुभी की सेवापानी की, उस से उस ने प्रोफैसर और शुभी के दिलों में अपनी जगह बना ली.
वह आज आ रही है, यह सोच कर ही मेरा मन बल्लियों उछल रहा है. वह आएगी, मेरे सामने बैठेगी, उस के बारे में सोच कर और किसी बहाने से उस से फोन पर बात करने के बाद मेरे लिए खुद को संभालना काफी मुश्किल होता है. फिर, आज तो वह मेरे सामने होगी, यह सोच कर ही मैं रोमांच से भर उठता हूं. यद्यपि मैं जानता हूं कि इस अवसर पर मुझे रोमांच से नहीं भरना चाहिए पर क्या करूं, उस के आने की सूचना मात्र से ही मेरा रोमरोम हर्षित हो उठता है. मुझे आज भी याद है, 3 वर्ष पहले भी वह जब आने वाली थी तब भी सुबह से ही मैं ने घर सिर पर उठा रखा था और वही हाल मेरा आज भी है. जब से उस के आने की सूचना मिली है, मैं थोड़ीथोड़ी देर में किचन में जाता हूं और शुभी से कहने लगता हूं, ‘‘शुभि, उन्हें ये पसंद है, उन्हें खाने में बिना मिर्चमसाले की सब्जी पसंद है. शुभी, तुम्हें याद है न जब वे यहां थे तब वह अकसर बिना प्याजलहसुन की सब्जी बनाती थी. मेरी इतनी उत्सुकता और उतावलापन देख कर शुभी हंसते हुए कुछ मजाकिया अंदाज में बोल पड़ी, ‘‘इतना तो आप अपनी बेटी के आने पर उतावले नहीं होते जितने आज हो रहे हो.’’
‘‘तुम्हीं तो कहती हो कि कोई आता है तो उस का ध्यान रखना अपनी जिम्मेदारी है. अब तुम अकेली परेशान न हो, इसलिए ही तो मैं तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा था. अगर तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा तो ठीक है, मैं जा कर टीवी देखता हूं. करो तुम अकेली ही सारा काम, मुझे क्या,’’ कुछ बनावटी सा गुस्सा दिखाते हुए मैं ने कहा.
‘‘अरे नहींनहीं, चलो जब तक मैं किचन का बाकी काम निबटा व नहा कर आऊं, तुम डाइनिंग टेबल सैट कर दो. वे लोग आएंगे तो सभी बैठ कर बातें करेंगे.’’ यह कह कर शुभी नहाने चली गई और डाइनिंग टेबल पर जरूरी सामान रख कर मैं बालकनी में आ कर बैठ गया. कुछ देर बाद शुभी 2 कप चाय ले कर मेरे बगल में आ कर बैठ गई. शुभी को पता है कि मौसम कोई भी हो, चाय मेरी कमजोरी है. चाय पीतेपीते शुभी बोली, ‘‘विशाखा अपने पति के साथ पहली बार आ रही है. चलो अच्छा ही हुआ कि उस ने शादी कर ली वरना मातापिता का साथ कब तक रहता है.’’
‘‘हूं, बात तो सही है.’’ इस के बाद शुभी बाकी के काम करने चली गई और मैं खो सा गया कुछ पुरानी यादों में.
हां, तो मैं आप को बता दूं कि वर्तमान में मैं यानी अंशुमान मिश्रा एक कालेज से रिटायर्ड प्रोफैसर हूं. मेरे परिवार में एक बेटी और एक बेटा हैं, दोनों विवाहित हैं और अमेरिका में सैटल्ड हैं. शुभी मेरी पत्नी है और सेवानिवृत्त होने के बाद पत्नी के साथ सुखी वैवाहिक जीवन का आनंद ले रहा हूं. उन दिनों मैं आगरा के सैंट जौंस कालेज में इतिहास विषय का हैड औफ द डिपार्टमैंट था जब मेरा परिचय विशाखा से हुआ था. मेरी सेवानिवृत्ति में 3 वर्ष थे और उस दिन मैं कुछ दिनों बाद ही कालेज में होने वाले इतिहास के एक सैमिनार की तैयारी में बिजी था कि उसी समय मेरे दरवाजे पर ‘मे आई कम इन, सर’ की आवाज सुन कर चौंक गया था.
जब सिर उठा कर देखा तो सामने एक सुंदर बाला को देख कर मन हर्षमिश्रित आश्चर्य से भर गया. दूधिया सफेद रंग, कंजी आंखें, कमर तक सर्प जैसी लहराती चोटी, लगभग 6 फुट की लंबाई और करीने से बांधी गई प्रिंट की प्योर सिल्क की साड़ी में वह बाला मु?ो किसी आसमान से उतरी परी जैसी प्रतीत हुई थी. मैं अपलक उसे देखने में इस कदर खो गया कि विशाखा का ‘मे आई कम इन सर,’ ?भी मुझे सुनाई ही नहीं पड़ा था.
जब विशाखा ने फिर से अपना प्रश्न दोहराया तो मैं ने कहा, ‘‘ओह, आइएआइए मैडम, प्लीज कम.’’
‘‘सर, आई एम विशाखा शर्मा, इतिहास की न्यू लैक्चरर.’’
‘‘यस, आई नो अबाउट यू, प्लीज सिट,’’ मैं ने अपने सामने पड़ी कुरसी की तरफ इशारा कर के विशाखा से कहा.
उस दिन की औपचारिक बातचीत के बाद विशाखा तो चली गई पर 59 साल की उम्र में भी मेरे ऊपर मानो उस का जादू चढ़ गया था. उस के बोलने के अंदाज और बला की खूबसूरती पर मैं तो पहली नजर में ही बोल्ड हो गया था. इस के बाद अकसर विशाखा से मिलना होता ही रहता था. आश्चर्य की बात यह थी कि तन के साथसाथ विशाखा इंटैलिजैंसी में भी किसी से कम न थी. यही नहीं, थोड़े ही समय में कालेज में भी उस ने खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी.
कालेज में आगामी कुछ दिनों में ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम’ विषय पर एक राष्ट्रीय स्तर का सैमिनार होने वाला था, चूंकि मैं हैड औफ द डिपार्टमैंट था और इतिहास विषय के फिलहाल हम 2 ही प्रोफैसर थे, सो आजकल तैयारी के सिलसिले में विशाखा से अकसर मुलाकात होने लगी थी. हमेशा वैल ड्रैस्ड रहना, किसी भी मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय देना, खिलखिला कर हंसना और देशदुनिया के बारे में उस की जागरूकता देख कर मैं अकसर दंग रह जाता था. उस दिन काम करतेकरते काफी देर हो गई.
जब हम दोनों कालेज से निकले तो मैं ने उसे उस के घर छोड़ने का औफर दिया जिसे उस ने बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया. रास्ते में कार चलाते हुए मैं ने उस के परिवार के सदस्यों के बारे में पूछा तो उस ने बहुत अल्प शब्दों में उत्तर दिया, ‘‘सर, मैं मूलतया कानपुर की रहने वाली हूं, यहां अपने मातापिता के साथ रहती हूं.’’
संक्षिप्त सा उत्तर दे कर वह चुप हो गई. मुझे लगा कि शायद वह इस के आगे कुछ और नहीं बताना चाहती, इसलिए मैं भी चुप हो गया पर तो क्या लगभग 40 की होने के बाद भी विशाखा अविवाहित है या फिर कोई और बात है, मैं इसी विचार में पड़ा था कि अचानक विशाखा की आवाज सुनाई दी, ‘‘सर, बस यहीं छोड़ दीजिए, अगले टर्न के कौर्नर पर मेरा घर है.’’
विशाखा की आवाज से मैं एकदम चौंका और बोला, ‘‘अरे नहींनहीं, मैं घर पर ही छोड़ देता हूं.’’ यह कह कर मैं ने गाड़ी मोड़ दी. विशाखा को उस के घर पर छोड़ कर मैं अपने घर की तरफ चल दिया. रात के 9 बजे का समय सभी के अपने घर लौटने का समय होता है. आजकल ट्रैफिक ने हर जगह अपने पांव इतने अधिक पसार लिए हैं कि हर शहर दिल्ली के ट्रैफिक को मात देने लगा है. सो, मेरी गाड़ी भी मंदमंद गति से ही चल रही थी.
जैसे ही घर पहुंचा, हैरानपरेशान सी शुभी को बालकनी में चक्कर काटते हुए पाया. मुझे देखते ही उस ने ‘कहां चले गए थे आज? कब से फोन लगा रही हूं? उठा क्यों नहीं रहे थे?’ जैसे अनेक सवाल दाग दिए.
‘‘अरे भाई, मुझे घर के अंदर आने दोगी कि नहीं,’’ कह कर मैं ने घर में प्रवेश किया और शुभी मेरे पीछेपीछे आ गई.
‘‘अरे, आज जो नई लैक्चरर आई है, उस को घर छोड़ना था, इसलिए देर हो गई.’’
‘‘और फोन क्यों नहीं उठा रहे थे. जब उठाते नहीं हो तो फोन खरीदा क्यों है,’’ शुभी कुछ तैश में बोली.
‘‘सैमिनार की तैयारी कर रहे थे, इसलिए फोन साइलैंट मोड पर कर दिया था और औन करना भूल गया था. अब चाय भी पिलाओगी या झगड़ा ही करती रहोगी, मेरी जानेमन.’’ मैं ने कुछ प्यार से शुभी के गाल पर एक किस्सी जड़ दी थी और शुभी ‘‘तुम भी न, इस उम्र में भी’’ कह कर शरमाती हुई चली गई थी और मैं फ्रैश होने बाथरूम में.
शुभी के साथ यही समस्या थी कि 55 की उम्र में ही वह खुद को 80 की समझने लगी थी. जरा भी रोमांस का मूड बनाओ तो झिड़क देती थी. मैं अभी कुछ और मधुर स्मृतियों में गोता लगाता कि तभी शुभी का स्वर मेरे कानों में पड़ा, ‘‘अरे आप को बाजार से कुछ मिठाइयां लानी थीं न, भूल गए क्या?’’
‘‘अरे हां, जाता हूं बस,’’ कह कर मैं ने बैग और कार की चाबी ली और चल दिया बाजार.
बाजार से आ कर मैं ने शुभी से पूरी तैयारियों का जायजा लिया और आ कर अपने बैडरूम में टीवी के सामने जम गया. मेरी आंखें तो टीवी स्क्रीन पर थीं पर मन फिर दौड़ लगाते हुए आज से लगभग 8 वर्ष पहले जा पहुंचा जब विशाखा से मेरी अनौपचारिक मुलाकातें होने लगी थीं. मुझे उस की नजदीकी एक सुकून देने लगी थी, मेरी हर समस्या का सौल्यूशन उस के पास होता था. उस के चेहरे की जरा सी उदासी मुझे परेशान कर देती थी. चूंकि इतिहास के हम 2 ही प्रोफैसर थे, सो विभिन्न शहरों में होने वाले कालेज के सैमिनारों में भी हम दोनों ही जाते थे.
मेरी विशाखा से बढ़ती नजदीकियों ने कब शुभी के मन में शक का बीज बो दिया, मुझे पता ही न चला जबकि शुभी के प्रति मेरे व्यवहार में लेशमात्र भी बदलाव नहीं था. एक दिन जब रात को मैं काफी लेट घर पहुंचा तो दरवाजा खोलते ही शुभी के बदले तेवर देख कर हैरान रह गया, ‘‘इतनी देर कैसे हो गई?’’
‘‘अरे, तुम्हें बताया तो था कि आजकल कालेज में बहुत काम है.’’
‘‘क्या हर समय कामकाम लगाए रहते हो, मुझे सब पता है क्या, कितना और कैसा काम चल रहा है आजकल.’’
‘‘क्या हुआ शुभी, ये उलटीसीधी बातें क्यों कर रही हो?’’ मैं ने आश्चर्य से कहा.
‘‘इतने दिनों से देख रही हूं, तुम उस नई लड़की विशाखा को ले कर कुछ ज्यादा उत्साहित नहीं रहते हो. मिसेज बंसल भी आज मुझे बता रही थीं कि आजकल तुम दोनों बस आपस में ही लगे रहते हो. घंटों स्टाफरूम में बैठ कर अपनी ही बातें करते रहते हो. आज ही मुझे समझ आया कि आजकल तुम देर से क्यों आते हो,’’ शुभी ने हम दोनों पर आरोप लगाते हुए कहा.
‘‘ओहो, क्या हो गया है तुम्हारी बुद्धि को, जियोग्राफी के प्रोफैसर बंसल की पत्नी मिसेज बंसल को तुम जानतीं नहीं क्या कितनी पंचायती है, कालेज के हर इंसान के बारे में तरहतरह की बातें बनाना उस का काम है. तुम उस की बातों पर भरोसा कर रही हो. मुझ से लगभग 20 वर्ष छोटी होगी वह और तुम.’’ मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या का निदान कैसे करूं. खैर, गुस्से में डाइनिंग टेबल पर चाय छोड़ कर मैं अपने रूम में आ गया.
विशाखा को कालेज जौइन किए 8 माह हो गए थे. विशाखा मुझे अच्छी लगती थी, यह सही था परंतु उस में प्यार, प्रेम या वासना जैसा भाव कभी नहीं था. हम स्टाफरूम में बैठ कर देश, दुनिया और समाज के विभिन्न मुद्दों पर घंटों बातें करते रहते थे. विशाखा का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि मैं खुद उस तरफ खिंच जाता था. एक दिन जब मैं विशाखा को घर छोड़ने आ रहा था तो वह बोली, ‘सर, आप के परिवार में कौनकौन है?’
‘विशाखा, मेरी एक बेटी और बेटा है. दोनों ही अपने परिवार के साथ यूएस में सैटल्ड हैं. यहां पर मैं अपनी पत्नी शुभी के साथ रहता हूं. चलो, आज मैं तुम्हें शुभी से मिलवाता हूं.’ शायद विशाखा से मिलने के बाद शुभी का शक का कीड़ा निकल जाए, इसलिए मैं ने विशाखा के सामने घर चलने का प्रस्ताव रख दिया.
‘सर, मैं श्योर आप के साथ चलती पर आज मुझे घर जा कर मांपापा को डाक्टर के पास ले जाना है. अगली बार मैं मेम से मिलने जरूर चलूंगी.’
‘क्यों, क्या हुआ पापामम्मी को?’
‘नहीं सर, हुआ तो कुछ नहीं है पर रूटीन चैकअप करवाना है ताकि एकदम से कोई मुसीबत न आ जाए वैसे भी यह शहर मेरे लिए नया है.’
‘अरे, तुम चिंता क्यों करती हो, जब कभी कोई भी जरूरत हो तो जरूर बताना. कभी भी अकेला मत समझना खुद को. वैसे, तुम बुरा न मानो तो एक बात पूछूं. तुम्हारे परिवार में और कौनकौन है.’’ न जाने क्यों मैं उस के परिवार के बारे में जानने को बहुत उत्सुक था.’
‘सर, मैं ने बताया था न आप को, बस मैं और मेरे मातापिता,’ विशाखा ने कहा तो इस बार मैं थोड़ा ज्यादा खुल गया और कहा, ‘तो आप ने विवाह…’ आगे के शब्द लाख चाहने पर भी मेरे मुंह से निकल ही नहीं पाए.
‘सर, बहुत लंबी दास्तान है, क्या करेंगे सुन कर,’ विशाखा ने उदास स्वर में कहा.
‘विशाखा, एक बात कहूं, कभीकभी कहने से मन हलका हो जाता है, इसलिए चाहो तो कह डालो. अभी तो तुम्हारा घर दूर है.’ मैं मानो विशाखा की जिंदगी का सबकुछ जान लेना चाहता था.
‘सर, आम लड़कियों की भांति मेरी भी शादी एक अच्छे खातेपीते परिवार में हुई थी. उस समय मैं ग्रेजुएशन कर रही थी और पोस्टग्रेजुएट कर के आगे नैट की परीक्षा देना चाहती थी पर अचानक से मेरी मौसी एक रिश्ता ले कर आ गईं. लड़के वाले उन के दूर के किसी रिश्तेदारी में थे. वे एक दिन आए और मैं उन्हें पसंद आ गई थी. उन लोगों का एक्सपोर्टइंपोर्ट का बिजनैस था. पैसे वाले लोग थे. पापामम्मी को लगा कि इकलौती लड़की है, अच्छा घरपरिवार मिल रहा है तो आननफानन शादी कर दी.
‘शादी के समय मुझे आगे पढ़ने के लिए भी सहमति दी गई थी पर बाद में सब भुला दिया गया. उन के परिवार में महिलाओं को बिजनैस के लिए यूज किया जाता था. पार्टियों में सजाधजा कर मूर्तियों की तरह बैठा देते और विरोध करने का मतलब मारपीट और गालीगलौज. महिलाओं का अस्तित्व ही सिर्फ यही था कि वे बिजनस के लिए आने वाले क्लाइंट्स के लिए पार्टियों की व्यवस्था करें. हम महिलाओं को तो अपनी बात कहना दूर, मुंह खोलने तक की इजाजत न थी.
‘मेरे लिए ये सब बहुत असहनीय था. जिस परिवार में मेरी ही इज्जत नहीं थी वहां आगे चल कर मेरे मातापिता की क्या इज्जत होगी. ऐसे में जरूरत पड़ने पर मैं अपने मातापिता के लिए क्या कर पाऊंगी, यह सब सोच कर दिल घबरा उठता था. फिर एक दिन पिताजी को हार्ट अटैक आया. मां के अकेले होने के बाद भी मुझे रुकने की परमिशन नहीं दी गई क्योंकि कोई विदेशी क्लाइंट आने वाला था जिस के लिए मेरा वहां रहना जरूरी था. इस स्थिति में मां को अकेला छोड़ कर जाने से मैं ने मना कर दिया तो मेरे पति ने गुस्से से कहा कि फिर दोबारा घर आना भी मत.
‘उस के बाद मेरा जाने का भी मन नहीं किया और जब मेरे मातापिता को सच्चाई का पता चला तो उन्होंने कहा, ‘अब तुम्हें भी वहां जाने की जरूरत नहीं है, ऐसे घर में जीवन नहीं काटा जा सकता जहां इंसान की भावनाओं की कोई कीमत न हो. उस के बाद सर, मैं ने पोस्टग्रेजुएट किया, फिर एक तरफ नैट की परीक्षा दी और दूसरी तरफ पति को तलाक का नोटिस. सर, मैं भी ऐसा कलहपूर्ण जीवन नहीं जीना चाहती थी क्योंकि मुझे हमेशा लगता है कि जिंदगी जीने के लिए है न कि ढोने के लिए. नैट में मेरा पहली बार में ही चयन हो गया था और पीएचडी कर के अब आप के जैसे विद्वान प्रोफैसर के अंडर में काम कर रही हूं,’ कह कर विशाखा चुप हो गई.
‘ओह, यू कैन कौल मी एनी टाइम.’ अब तक विशाखा का घर भी आ चुका था. सो, मैं ने उसे उतारा और आगे गाड़ी बढ़ा दी. विशाखा की दास्तान सुनने के बाद मेरी उस के प्रति सहानुभूति बढ़ गई थी. इस के बाद तो विशाखा भी मुझ से काफी खुल गई थी और मैं भी. अकसर लोग एक स्त्रीपुरुष की मित्रता को संदेहास्पद नजरों से देखने लगते हैं पर मुझे हमेशा लगता है कि तन की भूख से अधिक आवश्यक है इंसान की दिमागी भूख का शांत होना.
शुभी एक बहुत अच्छी पत्नी है, इस में कोई शक नहीं है लेकिन उस की दुनिया घरपरिवार, बच्चे, किटी पार्टियों, साड़ीगहनों तक सीमित है. यह सही है कि जिंदगी के हर मोड़ पर उस ने मेरा खुशीखुशी साथ दिया है लेकिन फिर भी कुछ है जो विशाखा में शुभी से अलग है, कुछ है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. आम महिलाओं से उस में कुछ अलग है जिस से मुझे उस से बात करना अच्छा लगता है. विशाखा एकदम खुले विचारों वाली महिला थी. हां, कभी भी मेरे मन में उस के प्रति गलत भाव या आसक्ति के भाव नहीं आए. हमारी दोस्ती थी गंगा की तरह निर्मल, पवित्र, सरल और सहज जिसे जीना अच्छा लगता था. जो बोरिंग जिंदगी में रंग भर देती थी. वह मुझ से बहुत छोटी लेकिन फिर भी कुछ साम्य था जो हमें किसी मोड़ पर नजदीक ला देता था, जो मुझे अच्छा लगता था पर अब शुभी को समझना सब से बड़ी समस्या थी.
जिंदगी अपने तरीके से अपने ही ढर्रे पर चल रही थी पर कहते हैं न कि जिंदगी हर दिन नए सवाल और नए चैलेंज ले कर आती है. सो, एक दिन रात को शुभी के पेट में भयंकर दर्द उठा. मैं तुरंत उसे हौस्पिटल ले कर पहुंचा. 2 दिन तक तमाम टैस्ट होने के बाद डाक्टर ने उस के यूट्रस की लेयर के काफी मोटी होने के कारण कैंसर की आशंका जताई. कैंसर नाम सुनते ही मेरे होश उड़ गए. मेरे चेहरे के उड़े रंग को देख कर डाक्टर बोले, ‘नथिंग अबाउट वरी. वी विल रिमूव यूट्रस एंड आफ्टर देन वी सेंट इट फौर कैंसर डायग्नोसिस. मे बी इट इज नौट कैंसरस.’
अपनी मां के बारे में जान कर दोनों बच्चों ने इंडिया आने की इच्छा जताई पर मैं ने कहा, ‘अभी तो सारा काम हौस्पिटल का ही रहेगा. आजकल बहुत अच्छे हौस्पिटल होते हैं जहां केवल पैसा देना होता है. जब तुम्हारी मां ठीक हो कर घर आ जाए तब आना तो उस के साथ रहोगे तो उसे अच्छा लगेगा.’
बच्चों को भी मेरी बात समझ आ गई और उन्होंने अगले माह का आने का टिकट करवा लिया. 3 दिन से मैं कालेज नहीं गया था और इस बीच व्यस्तता के कारण आने वाले फोन कौल्स का जवाब भी नहीं दिया था. विशाखा के 10 फोन कौल्स देख कर मैं ने उसे फोन लगाया तो वह लगभग मुझे डांटती हुई बोली, ‘क्या सर, फोन आप रखते किसलिए हैं जब उठाना नहीं होता. कितने कौल्स किए मैं ने आप को.’
‘‘अरे, वह शुभी को…’’ कहते हुए मैं ने पूरी दास्तान उसे सुना दी.
‘‘अरे, इतनी बड़ी बात हो गई और आप ने मुझे बताया तक नहीं. एक फोन तो करना था,’’ कह कर उस ने फोन रख दिया.
इस के एक घंटे बाद ही विशाखा मेरे सामने थी. ‘अरे सर, दीदी को इतनी परेशानी थी, आप अकेले थे पर बताया क्यों नहीं?’
इस के बाद तो विशाखा ने शुभी की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी. उस के औपरेशन होने से ले कर घर आने तक विशाखा उस के साथ छाया की तरह रही. उस की हर छोटीछोटी बात का ध्यान रखती थी विशाखा. ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर आदि भी अकसर वह अपने घर से ले कर आती या फिर हमारे घर आ कर बना देती थी. धीरेधीरे शुभी और विशाखा की बढ़ती नजदीकी मुझे बड़ा सुकून दे रही थी कि शायद अब शुभी के मन का संदेह दूर हो पाए. लगभग एक माह बाद शुभी पूरी तरह ठीक हो गई थी और सब से बड़ी संतोषजनक बात यह थी कि शुभी के यूट्रस की रिपोर्ट भी कैंसरस नहीं थी.
ठीक होने के लगभग एक सप्ताह बाद शुभी ने एक दिन सुबह मुझ से कहा, ‘आज शाम को कुछ गेस्ट डिनर पर आने वाले हैं. आते समय रसमलाई और बटरस्कौच आइसक्रीम लेते आना. यह मत पूछना कि कौन आ रहा है. यह मेरी तरफ से तुम्हारे लिए सरप्राइज है.’ मैं ने सोचा कि शायद शुभी की कुछ फ्रैंड्स आ रही होंगी और ज्यादा दिमाग न लगा कर मैं कालेज चला गया.
शाम को जब मैं कालेज से लौटा तो देखा, शुभी ने घर को बहुत खूबसूरती से सजा रखा था. मैं कुछ समझ पाता, उस से पहले ही कौलबेल बजी और किचन में से शुभी ने मुझ से दरवाजा खोलने को कहा. मैं ने जैसे ही दरवाजा खोला तो विशाखा को अपने मातापिता के साथ देख कर हैरान रह गया. तभी शुभी मेरे पीछे से आई और बोली, ‘मिश्राजी, चौंकिए मत, मिलिए मेरी छोटी बहन विशाखा और उस के मम्मीपापा यानी मेरे अंकलआंटीजी.’
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. सो, यंत्रवत मैं ने अपने दोनों हाथ नमस्ते की मुद्रा में उन के सामने जोड़ दिए थे. शुभी का बदला स्वरूप मुझे सुकून देने वाला भी था और हैरत करने वाला भी. उस दिन जब वे लोग खाना खा कर चले गए तो कुछ अंतरंग क्षणों में शुभी ने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथ में ले लिया और बोली, ‘मुझे माफ कर दो, मिश्राजी. मुझे आज खुद अपनी छोटी सोच पर शर्म आ रही है. विशाखा बहुत अच्छी लड़की है.’
‘मुझे अच्छा लगा कि तुम ने शक किया, आखिर मुझे पता तो चला कि इस उम्र में भी तुम मेरे ऊपर अपना पूरा अधिकार समझती हो,’ कहते हुए मैं ने शुभी को अपनी तरफ खींच कर बांहों में कैद कर लिया. उस दिन शुभी भी बिलकुल नवविवाहिता की तरह मेरे सीने से चिपक गई.
मेरे रिटायरमैंट के 3 साल बाद तक भी विशाखा आगरा में ही रही. इन 3 सालों में अकसर वह मेरे पास आती रहती थी कालेज के किसी न किसी काम से और यदि कभी वह नहीं आ पाती थी तो मैं ही इतिहास विभाग में जा कर बैठ जाता था जिस से विशाखा के साथसाथ अन्य लोगों से भी मुलाकात हो जाया करती थी. 6 साल तक आगरा में रहने के बाद विशाखा का ट्रांसफर आगरा से दिल्ली हो गया था.
रिटायर्ड हैड औफ द डिपार्टमैंट होने के कारण मुझे भी उस की फेयरवेल में बुलाया गया था. उस दिन जब मैं घर आया था तो मेरा उदास चेहरा देख कर शुभी कुछ व्यंग्य सा करते हुए बोली, ‘‘आज आप बहुत दुखी लग रहे हो. चिंता मत करो, विशाखा मुझे दीदी कहती है, कभी भी बुला लूंगी.’’
कुछ दिनों बाद वहीं पर उस ने अपने एक सहकर्मी के साथ विवाह कर लिया था. उस के जाने के बाद सच कहूं तो मैं बहुत अकेला सा हो गया था. अब कोई ऐसा नहीं था जिस से मैं खुल कर बातें कर सकूं. एक दिन मेरा बहुत मन कर रहा था कि उस से बात करूं पर वह क्या सोचेगी, यह सोच कर रुक गया. फिर मन नहीं माना तो मैं ने विवाह की बधाई देने के बहाने मोबाइल पर उस का नंबर घुमा दिया था.
इस तरह किसी महिला को मैं पहली बार फोन कर रहा था, सो, न जाने क्यों मेरी आवाज उस दिन कांप सी गई थी पर जैसे ही उस ने उधर से फोन उठाया, ‘‘हैलो सर, कैसे हैं आप? और शुभी दी कैसी हैं?’’
वही जानीपहचानी खिलखिलाहट सुन कर दिल खुश हो गया. यही नहीं, उस की आवाज कानों में पड़ते ही मानो मेरे दिल की अनेक घंटियां बजने लगी थीं. दिल बाघबाघ हो गया था. दिल के सोए तार झंकृत होने लगे थे. खुद को कुछ संभालते हुए मैं ने कहा, ‘‘विशाखा, बहुतबहुत बधाई. मैं ने सोचा, मैसेज की जगह फोन पर ही बधाई दी जाए ताकि आप की आवाज भी सुनने को मिल जाए.’’
यह सुनते ही वह खिलखिला कर हंस पड़ी थी और मैं उस की खिलखिलाहट में खो सा गया था. अभी मैं उस की खिलखिलाहट में खोया ही था कि विशाखा ने अपने पति से बात करवाई. काफी खुश लग रही थी वह. मुझे इस से कोई फर्क ही नहीं था कि वह अब शादीशुदा है पर मुझे उस का साथ अच्छा लगता था और वह भी खुले विचारों वाली थी और हमारी दोस्ती को सम्मानजनक नजरिए से देखती थी.
मेरा और उस का बौद्धिक स्तर कुछ हद तक एक था, जिस से मुझे उस से बातें करना अच्छा लगता था. यही कारण था कि जब 3 दिनों पहले उस का फोन आया, ‘‘सर, परसों कालेज में एक सैमिनार है, मैं और सोमेश आ रहे
हैं आगरा.’’
‘‘अरेअरे, मोस्ट वैलकम. बताओ कौन सी ट्रेन से आ रही हो, मैं लेने स्टेशन पर आ जाऊंगा. रुकना घर पर ही है. तुम से मिल कर शुभी बहुत खुश होगी,’’ मैं ने खुश होते हुए कहा तो वह बोली, ‘‘सर, आप और दीदी परेशान क्यों होते हैं, कालेज वालों ने रुकने का इंतजाम ताज होटल में किया है.’’
‘‘अरे नहींनहीं, कोई परेशानी नहीं है. हां, ताज होटल जैसा तो नहीं है मेरा घर.’’
‘‘नहीं सर, वह बात नहीं है. ठीक है, सर, परसों मिलते हैं. मुझे भी आप लोगों से मिलना बहुत अच्छा लगता है.’’
और तब से ही मेरी खुशी का ठिकाना नहीं है. मैं तो अभी भी विशाखा के खयालों में खोया था तभी शुभी की आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘देखो न, घंटी कब से बज रही है. तुम भी न, कानों में रुई लगाए हो क्या.’’
शुभी की आवाज सुन कर मैं ने झट दौड़ लगाई और पट से दरवाजा खोल दिया. सामने वही वैल ड्रैस्ड, हंसता हुआ चेहरा लिए विशाखा खड़ी थी.
‘‘आओआओ,’’ कह कर मैं ने उन्हें अंदर बुलाया.
विशाखा का पति सोमेश भी बहुत हैंडसम था. विशाखा जहां शुभी से बातें करने में व्यस्त थी वहीं मैं सोमेश से. विशाखा अब पहले से और भी अधिक खूबसूरत हो गई थी. शादी के बाद उस का रूप निखर गया था. मैं भले ही सोमेश से बातें कर रहा था पर कनखियों से विशाखा को भी जीभर कर देख लेता था. 2 दिनों तक विशाखा हमारे साथ रही. आज विशाखा के जाने का दिन था. जाते समय मैं ने भारी मन से उस से कहा कि ऐसे ही आती रहना. मिलनाजुलना होता रहेगा तो अच्छा रहेगा.