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कहानी: काहे को ब्याहे बिदेस

‘‘मैं तो भूल चली बाबुल का देश पिया का घर प्यारा लगे।‘‘ इस मशहूर गीत से एक विवाहिता यही संदेश देना चाहती है कि उसे अपने ससुराल मे इतना प्यार दुलार मिल रहा है कि उसे मायके की याद कम ही आती है। पर क्या यही सच है? “शायद“ नहीं। एक लड़की का मायका उसका स्वाभिमान होता है और जब तक जीवित रहती है वह सब बर्दाशत कर लेती है मगर अपने मायके का भूले से भी अपमान बर्दाशत नहीं करती। चाहे पति ही क्यों न हो।
मायका वह आंगन होता है जहां अपने मां-बाप के आंचल तले पलती बढती है। आंचल उस छांव की तरह होता हेै जो उसे हर दुख गम से कोसो दूर रखता हैं। मायके के यादों से बिसूर पाना एक लडकी के लिए आसान नहीं होता। मां-बाप, भाई बहन, सखी-सहेलियां, पास पडोस और न जाने कितने रिश्ते नाते से जुडी यादें उसके लिए उस थाती की तरह होती है जिसे वह मरते दम तक सहेज कर रखती है।
मायका में विवाहिता बेटी की तरह रहती है जहां उसे वह सब सुख सुविधा ओैर स्वछंदता मिलती है जो ससुराल में संभव नहीं हेाता। इसलिए उसे जब मायके जाने का अवसर मिलता है तो वह खुशी से चहकने लगती है। उसके चेहरे की ताजगी देखते बनती है। कुंवारेपन की अल्हडता, ओैर बेफ्रिकी फिर से लौट आती है। उम्र चाहे कुछ भी हो मायके की कशिश उसे बिन डोर खींच लाती है। मायके में न किसी की टोका टिप्पणी होती है न ही सबसे पहले उठने की जल्दी।
पता लगा सूरज सिर पर चढने वाला है वही मां पहले की तरह चिल्लाती रहती है,’’कब उठोगी। क्या ऐसे ही ससुराल में भी सेायी रहती हो? भगवान जाने वे लेाग क्या सोचते होंगे कि हमने बेटी केा कुछ सिखा पढाकर नहीं भेजा।’’ तभी पापा की आवाज आती है। ‘‘तुम्हारे चिल्लाने की आदत गयी नहीं। सोने दो। अपने बाप के घर नहीं सोयेगी तो क्या ससुराल में सोयेगी?’’ इतना कहना भर था कि मम्मी पापा में बहस होनी “शुरू हो जाती। ‘‘आप ही के लाड-प्यार ने इसे बिगाड रखा है।’’ तभी अंगडाई लेते हुए बेटी की नींद खुलती है। अलसाई कदमों से चलकर फ्रेश हेाती है फिर सीधे नाश्ते के टेबुल पर बैठकर नाश्ता करने लगती है।
‘‘मम्मी, चाय ठंडी हेा गयी हैं। फिर से गरम कर देा,‘‘बेटी आवाज लगाती है।
‘‘दस बजे उठोगी तो क्या तब तक चाय तुम्हारा इंतजार करेगी।’’
‘‘चाय गर्म करने के लिए ही तो कह रही है। कर देा।’’पापा किचिंत नाराज होेते है। उन्हे अपनी बेटी की जरा भी तकलीफ बर्दाशत नहीं होती।

न चाहते हुए भी मां देाबारा चाय गर्म करके बेटी को देती है। इतनी आजादी मिलती है एक लडकी को अपने मायके में। कोई अपने जडों को नहीं छोडना चाहता। मायका ऐसा ही होता है। मायके के कोने कोने में एक लडकी की असंख्य यादें जुडी रहती है। इसलिए जब वह मायके आती है तो उसे लगता हेेै वह अपनेा के बीच आ गयी है। जो प्यार और अपनत्व उसे मायके में मिलता है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।

मायके का बिछोह एक बेटी के लिए मर्मांतक पीड़ा से कम नहीं होता। बेटी मायके की देहरी लांघकर अपने पति के साथ विदा होती है तब उसका करूण क्रंदन कानों को विदीर्ण कर देता हैंं। उसका रूदन सुनकर सभी की आंखे नम हो जाती हैं।
तभी तो वह बिलखते हुए कहती है,‘‘ काहे को ब्याहे बिदेश, अरे लखिय बाबुल मोरे, भैया को दियो बाबुल महले दो महले हमको दियो परदेस।’’ इस पीड़ा का ”शब्दों” में बखान करना आसान नहीं होता। यह तो बेटी ही जान सकती है जब वह मायका हमेशा के लिए छोडकर अपनी दुनिया बसाने के लिए जाती है।
 
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