कहानी: एक प्रेम जो कभी पूरा न हुआ
गांव की गलियों में आज भी उस नीम के पेड़ की खुशबू रची-बसी है, जिसके नीचे बैठकर आरव और अदिति ने अपने बचपन के सैकड़ों सपने बुने थे। सरयू नदी के शांत किनारे पर बसा 'रामपुर' कोई साधारण गांव नहीं था। यह कहानियों का गांव था, जहां हर सुबह सूरज की सुनहरी किरणें, खेतों में काम करते किसानों के चेहरों पर एक नई उम्मीद लिखती थीं। और इसी उम्मीद की धरती पर, आरव और अदिति के बीच एक ऐसी कहानी आकार ले रही थी, जो शायद वक्त की रेत पर लिखी जानी थी, लेकिन कभी पूरी न हो सकी।
आरव, शांत स्वभाव का, कला प्रेमी लड़का था। उसकी आँखें अक्सर उन रंगों में खोई रहती थीं, जिन्हें वह अपनी कल्पना में देखता था। उसके हाथ में मिट्टी का एक टुकड़ा आते ही, वह उसमें जान डाल देता था। वहीं, अदिति, किसी चंचल तितली-सी थी। उसकी हंसी गांव की सबसे मधुर धुन थी, और उसकी आँखें उतनी ही गहरी थीं, जितनी सरयू की धारा। वह हर किसी से खुलकर बात करती थी, लेकिन आरव के सामने आते ही, उसकी चंचलता एक शांत नदी में बदल जाती थी।
उनका रिश्ता बचपन की शरारतों से शुरू हुआ था। स्कूल जाते वक्त नीम के पत्तों से खेलना, दोपहर में आम के बाग में छिपन-छिपाई खेलना, और शाम को सरयू किनारे घंटों बैठे रहना, लहरों को देखकर अपने मन की बातें कहना। आरव अक्सर अदिति के लिए मिट्टी के छोटे-छोटे खिलौने बनाता था—कभी एक छोटी गुड़िया, कभी कोई पक्षी। अदिति उन्हें अपने सबसे कीमती खजाने की तरह सहेज कर रखती थी। एक बार आरव ने मिट्टी का एक छोटा सा हृदय बनाया था, जिस पर उसने अपना और अदिति का नाम लिखा था। अदिति ने उसे अपनी पुरानी बक्से में छुपा लिया था, यह नहीं जानती थी कि वह मिट्टी का हृदय उनके भविष्य की कहानी का एक प्रतीक बन जाएगा—एक ऐसा हृदय जो हमेशा टूटा हुआ, पर हमेशा प्रेम से भरा रहेगा।
जैसे-जैसे वे बड़े हुए, उनका रिश्ता दोस्ती से कुछ और गहरा होने लगा। वह स्पर्श, जो पहले सिर्फ खेल का हिस्सा था, अब एक एहसास बन गया था। जब आरव का हाथ गलती से अदिति के हाथ से छू जाता, तो एक हल्की सिहरन दोनों के दिलों में दौड़ जाती। उनकी आँखों में अब एक नई चमक थी, एक ऐसी भाषा जो केवल वे दोनों समझते थे। आरव अक्सर अदिति के घर के सामने से गुजरता, बस एक झलक पाने को। और अदिति, खिड़की पर खड़ी, उसके इंतजार में रहती। उनकी बातचीत कम होती गई, लेकिन खामोशियाँ बहुत कुछ कहने लगीं।
एक दिन, अदिति के पैर में खेलते वक्त चोट लग गई। वह दर्द से कराह रही थी। आरव ने बिना सोचे-समझे, अपनी शर्ट फाड़कर उसके घाव को बांधा। उसकी आँखों में चिंता साफ झलक रही थी। उसने अदिति को सहारा दिया और धीरे-धीरे उसके घर तक पहुंचाया। अदिति ने पहली बार आरव की आँखों में अपने लिए इतनी गहरी फिक्र देखी थी। उस दिन उसे एहसास हुआ कि आरव उसके लिए सिर्फ एक दोस्त नहीं, बल्कि उससे कहीं बढ़कर था। और आरव के लिए, अदिति का दर्द उसके अपने दर्द से भी ज़्यादा था। उस रात, चांदनी में भीगा नीम का पेड़ गवाह था उनके उस अनकहे प्रेम का, जो अब उनकी नसों में रक्त की तरह दौड़ने लगा था।
पनपता प्यार और तकदीर का खेल
समय पंखों पर उड़ता रहा, और आरव और अदिति अब युवा हो चुके थे। आरव ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी और मिट्टी के बर्तनों के अपने पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा था, लेकिन उसका सपना अभी भी कला की दुनिया में नाम कमाना था। अदिति गांव के सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने लगी थी। उसका सादापन और उसकी मुस्कान, गांव के हर छोटे-बड़े व्यक्ति को प्रिय थी। उनका प्रेम अब गांव की खुली हवा में सांस ले रहा था, जिसे हर आने-जाने वाली हवा महसूस करती थी, लेकिन शब्दों में बयां करने की हिम्मत किसी में न थी।
आरव के घर की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही थी। उसके पिता एक गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे, और इलाज का सारा खर्च आरव पर आ गया था। उसे अपनी कला के सपनों को पीछे छोड़कर, सिर्फ पैसे कमाने की चिंता सताने लगी थी। वहीं, अदिति का परिवार गांव के प्रतिष्ठित परिवारों में से था। उनके पास खेत थे, व्यापार था, और गांव में उनकी अच्छी इज्जत थी। अदिति के माता-पिता उसकी शादी के लिए चिंतित थे, और वे चाहते थे कि उसकी शादी एक ऐसे लड़के से हो जो उसके रुतबे के बराबर हो।
एक शाम, जब पूरा गांव रामलीला देखने गया था, आरव और अदिति नीम के पेड़ के नीचे मिले। चाँदनी रात थी और हवा में मोगरे की धीमी खुशबू थी। दोनों चुप थे, लेकिन उनके दिल धड़क रहे थे। आरव ने हिम्मत जुटाई, "अदिति... मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।" उसकी आवाज़ कांप रही थी। अदिति ने अपनी निगाहें उठाईं और आरव की आँखों में देखा। उसकी आँखें उम्मीद से भरी थीं। "बोलो, आरव," उसने धीमे से कहा।
आरव ने एक गहरी साँस ली। "मैं... मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, अदिति। जब से होश संभाला है, बस तुम ही मेरी हर सोच, हर सांस में हो।" उसके हाथ काँप रहे थे। उसने अदिति का हाथ थाम लिया। अदिति ने कोई जवाब नहीं दिया, बस उसकी आँखों से दो आँसू लुढ़क गए। यह आँसू खुशी के थे, राहत के थे, क्योंकि जिस एहसास को वह बरसों से अपने दिल में छुपाए थी, आज उसे आरव ने शब्दों में ढाल दिया था। उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया—यह उनका पहला और अंतिम आलिंगन था, जिसमें भविष्य की सारी खुशियाँ और आने वाले सारे दुख समाहित थे। उस रात, नीम का पेड़, चाँद और सरयू की लहरें उनकी प्रेम कहानी की साक्षी बनीं।
लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। अगले ही हफ्ते, अदिति के घर एक रिश्ता आया—शहर के एक बड़े व्यापारी का लड़का, राहुल। राहुल पढ़ा-लिखा था, धनाढ्य था, और उसका परिवार गांव में भी अच्छा नाम रखता था। अदिति के माता-पिता इस रिश्ते से बहुत खुश थे। उन्होंने तुरंत हां कर दी। अदिति ने लाख मना किया, लेकिन उसके पिता के सामने उसकी एक न चली। "यह रिश्ता तुम्हारे लिए भगवान का भेजा हुआ है, बेटी। ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते," उसकी माँ ने कहा। अदिति अंदर ही अंदर टूट चुकी थी। वह आरव से मिलना चाहती थी, उसे सब बताना चाहती थी, लेकिन उसके घर पर पहरा लग गया था।
आरव को यह खबर गांव में फैलने वाली फुसफुसाहटों से मिली। उसका दिल टूटकर बिखर गया। वह भागा-भागा अदिति के घर गया, लेकिन उसे अंदर जाने नहीं दिया गया। उसने खिड़की से अदिति को देखा। उसकी आँखें सूजी हुई थीं, और उसके चेहरे पर बेबसी साफ झलक रही थी। अदिति ने उसे देखा और इशारे से उसे नीम के पेड़ के पास बुलाया।
उनकी आखिरी मुलाकात उस नीम के पेड़ के नीचे हुई। अदिति की आँखें लाल थीं, और आरव का चेहरा सफेद पड़ चुका था। "आरव, मेरे माता-पिता नहीं मान रहे। वे चाहते हैं कि मैं राहुल से शादी करूं।" उसकी आवाज़ टूट रही थी। "और मैं... मैं तुम्हें इस हाल में नहीं देख सकती। मैं जानती हूँ, तुम्हारे पिता बीमार हैं, और तुम्हारे पास अभी कुछ नहीं है। मैं तुम्हें बोझ नहीं बनाना चाहती।"
आरव ने उसका हाथ पकड़ लिया। "बोझ? अदिति, तुम मेरी जान हो। मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूँगा?"
"आरव," अदिति ने उसके हाथ को कसकर पकड़ा, "मैं भी तुम्हारे बिना नहीं रह पा सकती, लेकिन मुझे अपने परिवार के लिए यह करना होगा। मेरी शादी तय हो चुकी है।"
"पर हमारा प्यार?" आरव की आँखों में आँसू छलक आए।
"हमारा प्यार... वह हमेशा मेरे दिल में रहेगा, आरव। अनकहा, अनजाना। मेरी अनकही दास्तान बनकर," अदिति ने कहा।
आरव ने उसे गले लगाना चाहा, लेकिन अदिति ने खुद को पीछे कर लिया। "नहीं, आरव। यह अब सही नहीं है। मुझे जाना होगा।"
वह मुड़ी और भागने लगी। आरव उसे जाते हुए देखता रहा, उसकी आँखों में उस दिन का मंज़र घूम रहा था जब उसने मिट्टी का दिल बनाया था। आज वह दिल, उसके सामने ही टूट रहा था। उसने चिल्लाना चाहा, उसे रोकना चाहा, लेकिन उसकी आवाज़ उसके गले में ही घुटकर रह गई। उस रात, नीम का पेड़ खामोश था, और सरयू की लहरें भी शायद उनके दर्द को महसूस कर रही थीं।
बिछड़ने का दर्द और नई राहें
अदिति की शादी एक भव्य समारोह में हुई। गांव भर में जश्न था, लेकिन अदिति के दिल में मातम। उसने रेशमी जोड़े पहने थे, हाथों में मेहंदी रची थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सी उदासी थी। आरव, गांव से दूर एक पहाड़ी पर बैठा, दूर से जलती उन रोशनीयों को देख रहा था, जो उसके प्यार के जनाज़े की गवाह बन रही थीं। उसके हाथ में मिट्टी का वह आधा टूटा हुआ दिल था, जिसे उसने और अदिति ने बचपन में बनाया था। उसने उसे अपनी हथेली में कसकर भींच लिया, मानो अपने दर्द को उसमें समा लेना चाहता हो।
शादी के बाद, अदिति अपने पति राहुल के साथ शहर चली गई। राहुल एक अच्छा इंसान था—समझदार, दयालु और अपनी पत्नी की हर खुशी का ध्यान रखने वाला। उसने अदिति को हर वो सुख दिया जो एक पत्नी को मिल सकता था। उन्हें एक प्यारी सी बेटी हुई, जिसका नाम उन्होंने 'अहाना' रखा। अदिति ने एक अच्छी पत्नी और माँ की भूमिका निभाई। उसने अपने परिवार को पूरा समय दिया, जिम्मेदारियाँ निभाईं। उसके चेहरे पर मुस्कान रहती थी, लेकिन उसकी आँखों की गहराई में एक खालीपन था, एक ऐसी जगह जो कभी भर नहीं पाई। जब भी राहुल उसे प्यार से देखता, तो उसे आरव की आँखें याद आ जातीं, उसकी आँखों में बसी वो अटूट मोहब्बत। वह जानती थी कि राहुल उसे प्यार करता है, लेकिन वह प्यार उसकी आत्मा को छू नहीं पाया था, जैसे आरव का प्यार छूता था।
आरव के लिए भी जीवन आसान नहीं था। अदिति के जाने के बाद, उसने गांव छोड़ दिया। वह शहर चला गया, जहाँ उसने दिन-रात मेहनत की। उसने छोटे-मोटे काम किए, फिर अपनी कला को फिर से जीवित करने का प्रयास किया। उसने मिट्टी के बर्तनों के बजाय मूर्तियों पर काम करना शुरू किया। उसकी मूर्तियों में एक अजीब-सी उदासी और गहराई होती थी—वह अपने अंदर के दर्द को कला में ढालता था। उसकी बनाई हर मूर्ति में अदिति की छवि दिखती थी, उसके अनकहे प्यार की दास्तान। उसने कभी किसी और से प्यार करने की कोशिश नहीं की। उसके दिल में अदिति के लिए एक स्थायी जगह बन चुकी थी, जिसे कोई और भर नहीं सकता था। उसने सोचा था कि शहर की भीड़ में, वह अदिति की यादों से भाग जाएगा, लेकिन यादें तो परछाईं थीं, जो उसका पीछा करती थीं।
वर्षों बीत गए। आरव एक सफल मूर्तिकार बन चुका था। उसकी कला को सराहना मिलने लगी थी। उसका नाम दूर-दूर तक फैल गया था, लेकिन उसके दिल का खालीपन जस का तस था। वह अक्सर अपनी पुरानी डायरी खोलता, जिसमें उसने अपने और अदिति के पल लिखे थे। वह उन्हें पढ़ता, मुस्कुराता और फिर आँसुओं में डूब जाता। उसने कभी शादी नहीं की। लोगों ने पूछा, "आरव, इतनी सफलता के बाद भी अकेले क्यों हो?" वह बस मुस्कुरा देता—वह क्या बताता कि उसका दिल किसी और का था, हमेशा के लिए।
कई बार ऐसा हुआ कि वे शहर की किसी भीड़भाड़ वाली जगह पर एक-दूसरे के करीब आ गए, लेकिन कभी मिल नहीं पाए। एक बार, आरव एक आर्ट गैलरी में अपनी प्रदर्शनी लगा रहा था। अदिति भी अपनी बेटी अहाना के साथ वहां आई थी। वे एक ही हॉल में थे, एक ही मूर्ति को देख रहे थे। आरव ने अपनी पीठ अदिति की तरफ़ की हुई थी, और अदिति अपनी बेटी को कुछ समझा रही थी। आरव को अचानक एक जानी-पहचानी खुशबू महसूस हुई—मोगरे की खुशबू। उसका दिल ज़ोर से धड़का। उसने मुड़कर देखा, लेकिन अदिति अपनी बेटी का हाथ पकड़े, भीड़ में कहीं खो चुकी थी। वह जानता था, वह अदिति ही थी। उसने उसे आवाज़ देना चाहा, लेकिन उसके कदम थम गए। वह अब किसी और की थी। नियति ने फिर उन्हें एक साथ होते-होते रोक दिया था। यह दूरी, यह बिछड़न, उनके प्रेम की परीक्षा थी, जिसमें वे दोनों, चुपचाप, अकेले ही जल रहे थे।
यादों की दस्तक
समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा। आरव को अपने गांव रामपुर से खबर मिली कि उसके पिता की तबीयत बहुत बिगड़ गई है। वह तुरंत अपना सारा काम छोड़कर गांव लौट आया। सालों बाद अपने पुराने घर में कदम रखते ही, उसे अपने बचपन की यादें घेरने लगीं। नीम का पेड़, सरयू नदी, और अदिति... हर कोने से उसकी यादें झाँक रही थीं।
गांव में आरव के आगमन की खबर जंगल की आग की तरह फैली। वह अब एक जाना-माना मूर्तिकार था। गांव के लोग उसे सम्मान की दृष्टि से देखते थे। आरव अपने पिता की देखभाल में लगा था, लेकिन उसके मन का एक कोना अभी भी अदिति की तलाश में था। उसे पता था कि अदिति अभी भी शहर में ही रहती है, पर उसके मन में एक हिचक थी—उसे मिलना चाहिए या नहीं? क्या वह उसे पहचान पाएगी? क्या उसके दिल में भी अब भी वो टीस होगी?
एक सुबह, आरव अपने पिता के लिए दवा लेने गांव के छोटे से बाज़ार गया। गलियों में चहल-पहल थी। अचानक, उसकी नज़र एक दुकान पर पड़ी, जहाँ एक महिला अपने हाथों से बुने हुए ऊनी शॉल बेच रही थी। उसकी पीठ आरव की तरफ़ थी। उसके बालों में आज भी वहीं मोगरे का गजरा था, जिसकी खुशबू आरव को सालों से सता रही थी। आरव के कदम वहीं थम गए। उसका दिल ज़ोर से धड़का। वह जानता था, यह अदिति ही थी।
उसने हिम्मत की और धीरे-धीरे उसके करीब गया। "अदिति?" उसकी आवाज़ कांप रही थी।
अदिति ने आवाज़ सुनी और धीरे से मुड़ी। उसकी आँखें आरव पर टिकीं। पल भर के लिए समय ठहर गया। उसकी आँखों में वही चमक थी, वही गहराई, जो आरव को याद थी। उम्र के साथ उसके चेहरे पर कुछ रेखाएं आ गई थीं, लेकिन उसकी मुस्कान आज भी उतनी ही निश्छल थी।
"आरव?" अदिति की आवाज़ फुसफुसाहट में बदल गई। उसकी आँखें नम हो गईं।
दोनों एक-दूसरे को देखते रहे, जैसे बरसों की प्यास बुझा रहे हों। कितनी बातें थीं कहने को, कितने सवाल थे पूछने को, लेकिन शब्दों ने साथ छोड़ दिया था।
"तुम... तुम यहाँ?" आरव ने पूछा, उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी कंपन थी।
"हाँ, मेरी माँ बीमार हैं, इसलिए मैं उनसे मिलने आई हूँ," अदिति ने जवाब दिया। उसकी आवाज़ में थोड़ा ठहराव आ गया था।
"तुम ठीक हो?" आरव ने फिर पूछा, उसकी नज़र अदिति के हाथों पर पड़ी, जहाँ आज भी वही लाल चूड़ियाँ थीं, जो उसने शादी के दिन पहनी होंगी।
अदिति ने एक फीकी मुस्कान दी। "हाँ, मैं ठीक हूँ। तुम कैसे हो? सुना है तुम बड़े कलाकार बन गए हो।"
"बस... चल रहा है," आरव ने कहा।
दोनों के बीच एक अजीब-सी खामोशी छा गई—एक ऐसी खामोशी जो बरसों के अनकहे दर्द को समेटे हुए थी। उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में झाँका, और उन आँखों ने एक-दूसरे के दिल की हर अनकही दास्तान पढ़ ली। उन्हें एक-दूसरे से और कुछ जानने की ज़रूरत नहीं थी। वे समझ चुके थे कि वक्त ने उनके शरीर को भले ही बदल दिया हो, लेकिन उनके दिलों में आज भी एक-दूसरे के लिए वही जगह थी। यह एक ऐसा पल था, जब यादें दरवाज़ा खटखटा कर वापस आ गई थीं, और उन्हें पता चला कि वे कभी दूर गई ही नहीं थीं।
अधूरा मिलन
बाजार में उस पहली मुलाकात के बाद, आरव और अदिति के बीच एक नया, नाजुक रिश्ता कायम हुआ। वे अब गांव में थे, और मिलने के बहाने आसानी से मिल जाते थे। कभी आरव अदिति की माँ का हालचाल पूछने उसके घर चला जाता, तो कभी अदिति आरव के पिता से मिलने आ जाती। वे जानते थे कि ये सिर्फ बहाने थे, असल में तो उनके दिल एक-दूसरे से मिलने को तरसते थे।
उनकी मुलाकातें अक्सर गांव के मंदिर के पास होतीं, या फिर उसी नीम के पेड़ के नीचे, जहाँ उनकी प्रेम कहानी ने जन्म लिया था। वे घंटों बैठे रहते, चुपचाप, एक-दूसरे को निहारते, और कभी-कभी कुछ बातें भी करते। उनकी बातचीत बहुत संभलकर होती थी, सतही बातों तक सीमित, ताकि कोई उनके बीच के गहरे संबंध को न समझ पाए।
"राहुल कैसे हैं? और अहाना?" आरव ने एक दिन पूछा, उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी ईर्ष्या थी, जिसे वह छुपाने की कोशिश कर रहा था।
अदिति ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "सब ठीक हैं। राहुल बहुत अच्छे हैं, और अहाना तो मेरी जान है।" उसकी आवाज़ में कृतज्ञता थी, पर वह खुशी नहीं थी जिसकी आरव को उम्मीद थी। "और तुम? तुमने शादी क्यों नहीं की, आरव?"
आरव ने सरयू नदी की ओर देखा। "मैं... मैं नहीं कर पाया, अदिति। मेरा दिल किसी और का था, हमेशा के लिए।"
अदिति की आँखों में आँसू भर आए। वह जानती थी कि वह किसकी बात कर रहा है।
उन्होंने अपने बीते हुए जीवन के बारे में बात की— आरव ने बताया कि कैसे उसने अपनी कला के माध्यम से खुद को संभाला, और अदिति ने अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों के बारे में बताया। लेकिन उनकी बातों के बीच, बहुत कुछ अनकहा रह जाता था। आरव महसूस करता था कि अदिति की आँखों में एक दर्द छुपा है, एक बोझ है जिसे वह अकेले ढो रही है। अदिति भी आरव के अकेलेपन को महसूस करती थी। उन्हें यह आभास हो गया था कि भले ही वे अलग-अलग जीवन जी रहे हों, लेकिन उनकी आत्माएं अभी भी एक-दूसरे से जुड़ी हुई थीं।
एक दिन, अदिति ने आरव को एक गहरी बात बताई। "आरव, तुम्हें शायद नहीं पता, लेकिन मेरी शादी के बाद, राहुल को व्यापार में बहुत बड़ा घाटा हुआ था। हम सब कुछ खोने की कगार पर थे। मैंने तब अपने पिता से मदद मांगी, और उन्होंने मदद की, लेकिन बदले में एक शर्त रखी—कि मैं राहुल को छोड़कर किसी और से रिश्ता न रखूं, और अपने परिवार की इज्जत का पूरा ध्यान रखूं। मैंने उनके सामने कोई और रास्ता नहीं देखा।"
आरव को यह सुनकर गहरा सदमा लगा। उसे पहली बार अदिति के त्याग की पूरी गहराई समझ में आई। उसने उसे गलत समझा था, उसे लगा था कि उसने अपनी खुशी के लिए उसे छोड़ दिया, लेकिन वह तो अपने परिवार के लिए कुर्बान हुई थी। उसकी आँखें नम हो गईं। "अदिति... मैं तुम्हें कभी समझ ही नहीं पाया।"
"तुम अकेले नहीं थे, आरव। मुझे भी तुम्हें नहीं छोड़ना चाहिए था। शायद हमें लड़ना चाहिए था," अदिति ने कहा, और उसकी आवाज़ में सालों का अफ़सोस था।
उस पल, उनके बीच की सारी दीवारें गिर गईं। वे एक-दूसरे के सामने बिल्कुल नग्न थे—अपनी भावनाओं, अपने दर्द, और अपने अनकहे प्यार के साथ। आरव ने धीरे से अदिति का हाथ पकड़ा। वह हाथ आज भी उतना ही कोमल था, जितना बचपन में था। दोनों ने एक-दूसरे की आँखों में देखा। उनके दिलों में एक-दूसरे के लिए अथाह प्रेम उमड़ रहा था। वे दोनों एक-दूसरे की बाहों में समा जाना चाहते थे, लेकिन एक अदृश्य दीवार उन्हें रोके हुए थी—उनकी जिम्मेदारियाँ, उनके वादे, उनका अतीत। वे जानते थे कि अब वे एक-दूसरे के नहीं हो सकते, लेकिन वे एक-दूसरे के बिना भी नहीं रह सकते थे। यह मिलन अधूरा था, लेकिन इसमें प्रेम की पूरी गहराई समाई हुई थी।
अंतिम विदाई और प्रेम की अमरता
अदिति की माँ की तबीयत ज़्यादा बिगड़ गई थी। डॉक्टर ने जवाब दे दिया था। अदिति और उसका परिवार उनकी सेवा में लगा था। आरव भी हर दिन अदिति के घर आता, मदद करता और दूर से ही अदिति को देखता। उसके दिल में एक अजीब-सी बेचैनी थी। वह जानता था कि अदिति के जाने का समय नज़दीक आ रहा है— उसकी माँ का भी, और शायद उसका खुद का भी।
एक शाम, जब अदिति की माँ आखिरी साँसें ले रही थीं, अदिति ने आरव को पास बुलाया। "आरव, माँ तुम्हें कुछ बताना चाहती हैं," अदिति ने कहा।
अदिति की माँ ने आरव का हाथ पकड़ा। उनकी आवाज़ बहुत धीमी थी। "आरव... मुझे माफ़ कर देना। मैंने अदिति पर दबाव डाला था। मैं जानती थी कि तुम दोनों एक-दूसरे को कितना प्यार करते थे, लेकिन मैं अदिति के भविष्य को लेकर चिंतित थी। मैंने सोचा था कि पैसा और रुतबा ही सब कुछ होता है... मुझे माफ़ कर देना, मेरे बच्चे।"
आरव की आँखों में आँसू आ गए। उसने उनकी बात पूरी होने से पहले ही कहा, "नहीं, आंटी। आप ऐसा मत कहिए। आपने जो भी किया, अदिति के भले के लिए किया। मुझे कोई शिकायत नहीं।"
अदिति की माँ ने एक गहरी साँस ली और आँखें बंद कर लीं। कुछ देर बाद, उनकी साँसें थम गईं।
माँ के जाने के बाद, अदिति को शहर वापस जाना पड़ा। इस बार, वह अकेली नहीं थी। उसके कंधों पर उसकी बेटी अहाना और परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ था। जाने से एक दिन पहले, उसने आरव को नीम के पेड़ के नीचे बुलाया। रात गहरी थी और चाँद की रोशनी पत्तों के बीच से छनकर आ रही थी।
"आरव... मुझे जाना होगा," अदिति ने कहा। उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी शांति थी, जैसे उसने नियति को स्वीकार कर लिया हो।
"मैं जानता हूँ," आरव ने कहा।
"हमेशा याद रखना," अदिति ने कहा, "हमारा प्यार अधूरा नहीं है। वह पूरा है, क्योंकि वह मेरे दिल में है, तुम्हारी साँसों में है। यह कभी खत्म नहीं होगा।"
आरव ने उसकी आँखों में देखा। "मुझे अफ़सोस है, अदिति। मैं तुम्हें कभी वो खुशी नहीं दे पाया, जिसके तुम हकदार थी।"
"तुमने मुझे सबसे बड़ी खुशी दी है, आरव—प्यार। सच्चा प्यार," अदिति ने जवाब दिया। उसने धीरे से आरव का हाथ थामा, और उसकी हथेली पर एक छोटा, पुराना, मिट्टी का आधा टूटा हुआ दिल रखा। "यह... यह मैंने संभाल कर रखा था। मुझे पता था कि एक दिन तुम इसे पहचान जाओगे।"
आरव ने उस मिट्टी के दिल को देखा—वही दिल जिसे उन्होंने बचपन में बनाया था। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। उसने अदिति का हाथ पकड़ा और उसे कसकर अपनी ओर खींचा। इस बार, अदिति ने उसे रोका नहीं। दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया—यह उनका आखिरी आलिंगन था। एक ऐसा आलिंगन जिसमें बरसों का इंतजार, बरसों का दर्द, और बरसों का अनकहा प्यार समाया हुआ था।
"अलविदा, आरव," अदिति ने फुसफुसाते हुए कहा, और उसने खुद को आरव की बाहों से छुड़ा लिया।
"अलविदा, अदिति," आरव ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में केवल एक दर्द भरी सिसकी थी।
अदिति मुड़ी और अँधेरे में घुल गई। आरव वहीं खड़ा रहा, उस मिट्टी के दिल को अपनी हथेली में लिए। उसने महसूस किया कि वह दिल उसके अपने दिल की तरह धड़क रहा था, या शायद वह उसके अपने दिल की ही धड़कन थी जो अब बस उस मिट्टी के टुकड़े में सिमट गई थी।
कुछ दिनों बाद, आरव भी शहर लौट आया। उसने अपनी मूर्तियों में और भी ज़्यादा गहराई डाल दी। उसकी हर कलाकृति में एक उदासी थी, एक टीस थी, लेकिन उसके साथ एक अजीब-सी शांति भी थी। उसने कभी शादी नहीं की। वह जानता था कि अदिति का प्यार उसके लिए अमर था, भले ही उनकी कहानी अधूरी रह गई हो।
आरव अक्सर नीम के पेड़ के नीचे बैठकर सरयू नदी की ओर देखता रहता। वह महसूस करता कि अदिति की आत्मा उस नदी की हर लहर में, नीम की हर पत्ती में, और हवा की हर साँस में मौजूद है। उनका प्रेम एक ऐसी दास्तान थी जो कभी पूरी न हुई, लेकिन जिसने उन्हें जीवन भर एक-दूसरे से जोड़े रखा। यह एक ऐसा प्यार था, जो शब्दों से परे था, जो समाज की बंदिशों से ऊपर था, जो सिर्फ दो दिलों की अनकही दास्तान बनकर हमेशा जीवित रहा। और शायद, यही प्यार की सबसे सच्ची परिभाषा है—अधूरा होकर भी पूर्ण, अनकहा होकर भी शाश्वत।