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यह सरकारी स्कूल निजी स्कूलों को दे रहा टक्कर, कंप्यूटर की पढ़ाई करते हैं बच्चे

गाजीपुर। सरकारी स्कूल की चर्चा होती है तो तस्वीर यही उभरती है कि गरीब-मजदूर के बच्चे होंगे। उन्हें अपने लिए निर्धारित विषयों का ज्ञान तो दूर अक्षर ज्ञान भी नहीं होगा। उनके तन पर स्कूल से मिली ड्रेस, जूते-मोजे होंगे। बस्ते में मिली किताब होगी और स्कूल का ही भोजन कर वह घर लौट जाते होंगे। टीचर भी अपनी मर्जी से आते-जाते होंगे लेकिन गाजीपुर के सैदपुर क्षेत्र का प्राथमिक विद्यालय बलिहारी इस धारणा के बिल्कुल विपरीत है। जी हां। वहां की सुव्यवस्था से आसपास के कई निजी स्कूल बंद हो चुके हैं। 

इस सबके लिए सरकार की ओर से उस स्कूल को विशेष सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। बल्कि यह स्कूल के स्टाफ और बच्चों के अभिभावकों के संयुक्त प्रयास का परिणाम है। उनका यह प्रयास साबित करता है कि स्कूल का स्टाफ तथा अभिभावक अगर ऐसा करें तो जिले क्या प्रदेश भर के सरकारी स्कूलों की दिशा और दशा बदल जाएगी। स्कूल के बच्चे निजी स्कूलों की तरह क्लास रूम में फर्नीचर पर बैठते हैं। इसका इंतजाम प्रधानाध्यापक रमेश सिंह यादव तथा सहयोगी अध्यापकों ने अपने वेतन और अभिभावकों के सहयोग से हुआ। इसमें करीब दो लाख रुपये के खर्च आए। फिलहाल कक्षा एक के बच्चों को फर्नीचर नहीं है। इसके लिए अध्यापक प्रयासरत हैं। बच्चों को कंप्यूटर की पढ़ाई की भी सुविधा उपलब्ध है। 

इसकी जिम्मेदारी एमबीए की भी पढ़ाई करने वाली स्कूल की अध्यापक वंदना पांडेय, एमएस-सी फिजिक्स करने वाली अर्चना पांडेय तथा अर्पिता ने संभाली है। खुद के संसाधनों से उन्होंने कंप्यूटर लैब बनाया है। स्कूल कैंपस में शौचालय के लिए विभाग से मात्र 24 हजार रुपये मिले थे लेकिन अध्यापकों तथा अभिभावकों ने उसके निर्माण में कुल 62 हजार रुपये खर्च किए। स्कूल में उपलब्ध अतिरिक्त संसाधनों की पहरेदारी अभिभावक करते हैं। अभिभावकों की बैठक में उपस्थिति शत प्रतिशत होती है। 

प्ले ग्रुप के बच्चे भी स्कूल में आते हैं। बच्चों को अध्यापकों ने अपने खर्चे से बकायदा आई कार्ड भी उपलब्ध कराया है। स्कूल की यह व्यवस्था की जानकारी मिलने पर समाजसेवी संस्था समग्र विकास इंडिया के चेयरमैन ब्रजभूषण दूबे अपने सहयोगियों संग वहां खुद को पहुंचने से रोक नहीं पाए। बच्चों, अध्यापकों से मिले। हालांकि स्कूल में उन्हें दो बड़ी खामियां खटकीं। पहला जर्जर भवन और दूसरा पेयजल के नाम पर मात्र एक हैंडपंप जबकि बच्चों की कुल संख्या 300 है। कैंपस की चाहरदीवारी भी नहीं बनी है। श्री दूबे ने इस सिलसिले में शासन-प्रशासन को रिपोर्ट भेजी है। वह चाहते हैं कि स्कूल के अध्यापकों को सम्मानित किया जाए। साथ ही इस स्कूल को एक मिसाल के तौर पर पेश कर गाजीपुर के दूसरे सरकारी स्कूलों में ऐसे इंतजामात कराए जाएं।
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