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कहानी: चुनाव लड़ने का आनंद-क्यों जबरदस्ती मुस्कुराने लगा रोहरानंद?

रोहरानंद भारी असमंजस में दिन व्यतीत कर रहा है. एक मन कहता है- हारेगा .एक मन कहता जीतेगा एक मन कहता अरे हार भी गया तो क्या.
रोहरानंद भी लोकतंत्र में हिस्सेदारी कर रहा है. अर्थात् चुनाव में एक प्रत्याशी बतौर  मुश्के तान कर खड़ा हो गया है. शहर में अधिवक्ता संघ की सरगर्मी थी . दुर्भाग्य से रोहरानंद एडव्होकेट भी है .सोचा,संबंधों का रिनिवल हो जाएगा. लोग जो सक्रिय होते हैं उन्हें ही स्मरण रखते हैं, बाकी को यह बेदर्द जमाना भूल जाता है.

मैं भी एक ऐसा ही इंसान हूं , जिसे लोग नोटिस में ही नहीं लेते .चुनाव एक ऐसा मेला है, जिसमें शिरकत करने वाला रातों-रात चर्चा में आ जाता है.

यही अनमोल विचार,सोचते, गुनते  रोहरानंद ने नामांकन भरने का साहस पूर्ण निर्णय लिया और इस निर्णय को बरकरार रखने में बड़ी हिम्मत जुटाई.

इसका सिर्फ और सिर्फ एक कारण है, आपका साथी रोहरानंद दरअसल एकांतजीवी है. समस्या यह है कि  चुनाव लड़ने के खातिर आदमी में भदेसपन के साथ चंचल होने का गुण निरापद है.

तो, रोहरानंद ने साहस जुटाया और नामांकन पत्र खरीदा और यह सोच कर कि मेने नामांकन पत्र खरीद लिया है, भयभीत होने लगा .सोचा, मैं भला क्या चुनाव जीतूगां. बेकार है, छोड़ो यह धंधा  . फिर स्मरण आया बच्चू! भूल गया, तेरा उद्देश्य क्या है ? चुनाव तो तू क्या जीतेगा, तेरा उद्देश्य तो चुनावी वैतरणी में स्वयं को नामचीन बनाना है.

पाठकों ! दरअसल,रोहरानंद को यह प्रतीत होता है कि चुनाव लड़ने से आदमी को खुशी मिलती है .लोग चर्चा करते हैं… अरे! सुना, फलां भी चुनाव लड़ रहा है ? कोई कहता है- अच्छा !!

कोई कहता है- यार ! अध्यक्ष पद के कितने दावेदार हैं ?

प्रतिउत्तर में आठ-दस नाम गिनाए जाते हैं. शहर में आदमी चर्चा का सबब  बन जाता है. रोहरानंद को लगता है, क्या यह कम उपलब्धि है ?

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पांच सौ रूपये में, सप्ताह भर चर्चा में रहना .अखबारों में छाये रहना, कम बड़ी विजय है ? सो, रोहरानंद ने डर को दूर भगाया और नामांकन पत्र भर ही दिया. सच, इसके साथ ही हृदय में ऐसे ऐसे विचार उठने लगे कि मत पूछिए.

एक मन कहता- रोहरानंद ! अगरचे तू जीत गया तो ?

मन में बैठा समझदार अंश कहता- रोहरानंद ! तू भला कैसे जीतेगा ? तू हारेगा यह तय है.

मन कहता- कम से कम चर्चा में तो रहेगा ? चल…फिर हृदय में भाव उठता- अगर नामांकन रद्द हो गया तो ? आखिर कुछ के नामांकन रद्द भी होते हैं . हो सकता है रोहरानंद तुम्हारा ही नामांकन रद्द हो जाए.

आंखों के सामने भय आकर खड़ा हो गया. मैंने अपने परम मित्र रामानंद के समक्ष अपनी चिंता को व्यक्त किया.

उन्होंने कहा- रोहरानंद ऐसा नहीं होगा ?

मैं- भला क्यों नहीं होगा ? हर चुनाव में कुछ नामांकन तो रद्द होते ही हैं.

रामानंद- होता होगा मगर अधिवक्ता का नामांकन भला कैसे रद्द होगा ? दूसरे चुनाव में लोग अधिवक्ताओं से नामांकन भरवाते हैं यह सोच कर कि अधिवक्ता ने भरा है ,अब अगर अधिवक्ताओं का नामांकन रद्द हो गया तो यह एक बड़ी खबर होगी.

रोहरानंद गंभीर हो गया . उसका चेहरा और भी सुर्ख हो चला था. वह मन ही मन सोच रहा था- अगर उसका नामांकन रद्द हो गया तो ? उसे उसकी संभावना सौ फीसदी लग रही थी .गला सूख रहा  था.

रामानंद ने अधिकारपूर्वक कहा- सच ! यह एक बड़ी खबर होगी . और यह छपना चाहिए कि जब वकील होकर अपना नामांकन नहीं भर सकते तो दूसरों का केस क्या लडेंगे.

रोहरानंद जबरदस्ती मुस्कुराने लगा .मगर हृदय की गति तेज हो गई थी. कहा- हां ! इस पर विशेष बुलेटिन भी बनाया जा सकता है .लोकल न्यूज़ ऐसा कर सकते हैं . वकील के फुटेज दिखाए जाएंगे फिर व्हाईस होगी- यही है वह अधिवक्ता जिसने बडे जोर शोर से  नामांकन भरा था .दोस्तों ! इनका नामांकन त्रुटि पाए जाने पर रद्द हो गया… यह इनकी  योग्यता है….

रामानंद हंसने लगा .रोहरानंद ने कहा- मित्र ! हो सकता है जो वकील कभी एक रूपया किसी पत्रकार को नहीं देता ऐसी स्थिति में देने को मजबूर हो जाये. रामानंद पुनः हंसने लगा.

रोहरानंद- और जैसे ही वकील साहब कुछ रूपये पत्रकार को देंगे न्यूज़ रुक जाएगी.

रामानंद जो कि स्वयं भी वरिष्ठ पत्रकार है,मुंह में जीभ चुभलाने लगे थे .

रोहरानंद ने कहा- मित्र ! मानो पैसे लेने के बाद भी न्यूज़ प्रसारित हो गई तो ? पैसा भी गया और इज्जत भी.

खैर ! राम-राम कर वह दिन भी व्यतीत हुआ जब क्लियर हो गया कि रोहरानंद का नामांकन रद्द नहीं हुआ है. जान में जान आई .

मगर जैसा कि होता है एक समस्या गई दूसरी मुंह बाएं आकर खड़ी हो गई.

एक मित्र का फोन आया- भाई साहब ! आप भी चुनाव लड़ रहे हैं ?

रोहरानंद- हां, दुर्भाग्य से मेरा नामांकन रद्द नहीं हुआ, सो मैदान में हूं.

मित्र ने कहा- मैं आपकी मदद करूंगा.

रोहरानंद- हां, मैं आपकी मदद का इंतजार ही कर रहा हूं .क्या है मुझे लगता है मैं चुनाव बुरी तरह हार रहा हूं. मित्र ने आश्वस्त भाव से कहा- क्यों डरते हैं, में हू न. 25 वोट तो मैं दिलाऊंगा .

रोहरानंद के उदास चेहरे पर खुशी  विस्तारित हुई- ऐसा है तो भला मैं कहां हारने वाला . फिर तो मैं आसानी से जीत जाऊंगा.

मित्रों! रोहरानंद भारी असमंजस में दिन व्यतीत कर रहा है. एक मन कहता है- हारेगा .एक मन कहता जीतेगा  एक मन कहता अरे हार भी गया तो क्या ? क्योंकि तू कौन सा चुनाव जीत सका है .कौन सा चुनाव जीत सकता है ? तू तो बस खडा है क्या यही कम है… चुनाव अर्थात लोकतंत्र और चुनाव डेमोक्रेसी में भागीदारी का अपना आनंद है जिसमें भागीदारी करना ही तेरे लिए गर्व का विषय होना चाहिए. सो मित्रों ! आपका अदद दोस्त, यह रोहरानंद हारने के लिए एक चुनाव में शिरकत कर रहा है.
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