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टूटेगी 800 वर्ष पुरानी परंपरा, दरगाह में नहीं आएंगी बाले मियां की बरातें

गाजीपुर न्यूज़ टीम, बहराइच, विश्व प्रसिद्ध सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह में 800 वर्षों से जेठ मेले का आयोजन होता है। इसमें देश-विदेश से बाले मियां की बरातें आती हैं। गाजे-बाजे के साथ दरगाह में एक माह रुककर जायरीन पूरी शिद्दत के साथ नजरों नियाज करते हैं। 800 साल पुरानी यह परंपरा लॉकडाउन के चलते टूट रही है। इस बार बरातें आएंगी न ही जायरीन, सिर्फ रस्में निभाई जाएगी।

बहराइच जिला गंधर्व वन के रूप में वेदों में वर्णित है। शहर के एक छोर पर प्रसिद्ध सैयद सालार मसऊद गाजी की दरगाह है। मान्यता है कि गाजी सरकार से मुहब्बत करने वालों की झोली खाली नहीं जाती। यही विश्वास पिछले 800 वर्षों से हिंदू व मुस्लिमों में एकता की डोर को मजबूत किए हुए हैं। प्रबंध समिति के अध्यक्ष शमशाद अहमद बताते हैं कि जेठ मेले में कलकत्ता, बंगाल, महाराष्ट्र, दिल्ली, पूर्वी व पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों के अलावा नेपाल व अन्य मुस्लिम बाहुल्य देशों से बड़ी संख्या में जायरीन बाले मियां की बरात लेकर आते हैं। इस बरात में एक अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है, जिसमें सिर्फ मुस्लिम ही नहीं, बल्कि हिंदू भी डालियां, पलंग पीढ़ी, चादर चढ़ाते हैं। 14 मई से शुरू होने वाले जेठ मेले के आयोजन पर रोक लगा दिया गया है, ताकि इंसान व इंसानियत महफूज रहे।

यहां के नीर से निर्मल होती काया
मौलाना अर्सदुल कादरी बताते हैं कि गाजी मियां की सरजमीं से मांगी गई दुआ कभी खाली नहीं जाती है। तमाम मजाहिबों व धर्मों के लोग यहां मत्था टेकने के लिए आते हैं। दरगाह के पानी से कोढ़ की बीमारी दूर होती है, अंधों के आंखों को रोशनी मिलती है।

करोड़ों रुपये का होगा नुकसान
दरगाह मेला जहां आस्था का केंद्र है, वहीं स्थानीय लोगों के रोजी-रोटी का भी बड़ा हिस्सा रहा है। मेले का आयोजन न हो पाने से करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान होगा। साथ ही घरेलू उत्पादों की बिक्री को झटका लगेगा। लगभग चार से पांच करोड़ रुपये की आय दरगाह मेले से हो रही थी।

दरगाह प्रबंध समिति के अध्यक्ष शमशाद अहमद ने बताया कि लॉकडाउन के मद्देनजर मेले के आयोजन को टाल दिया गया है। सरकार के फैसले के साथ ही कदम उठाया जाएगा। सिर्फ खादिम परंपराओं को निर्वहन करेंगे।
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