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उल्लास के शिखर पर रामनगरी, सादियों बाद मिला है मौका

गाजीपुर न्यूज़ टीम, अयोध्या. ‘बंदउँ बालरूप सोई रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसू नामू।। मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी।।’ हिंदुओं के बीच रामलला का महात्‍म्‍य क्‍या है, गोस्वामी तुलसी दास की यह चौपाई बता देती है। जिसकी वंदना से सारी सिद्धियां सहज मिल जाती हैं, उस मंगल के धाम, अमंगल को हरने वाले और दशरथ के आंगन में खेलने वाले रामलला के भव्‍यतम मंदिर के भूमिपूजन की तैयारी इन दिनों उनकी जन्‍मभूमि पर जारी है। उस पुण्‍य बेला के पावन अहसास से पूरे विश्‍व के सनातन धर्मावलंबी पुलकित हैं, लेकिन उल्‍लास और हर्ष के इस अवसर को लेकर रामनगरी, मिथिला और कौशलपुरी का उत्‍साह देखते ही बनता है। अयोध्‍या के लोगों के लिए यह मौका सदियों बाद आया है।

भूमिपूजन की शाम को आम-ओ-खास ने नगरी को घी के दीपों से जगमग करने की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। मिथिला के सीतामढ़ी में पाहुन (जमाता) के भव्‍य मंदिर के भूमिपूजन पर होली-दिवाली एक साथ मनाने की तैयारी है, तो वहीं श्रीराम की ननिहाल रायपुर के चंदखुरी में लोगों का उत्‍साह सातवें आसमान पर है। संत समाज हो या गृहस्‍थ, हर किसी को उस घड़ी का बेसब्री से इंतजार है। धर्म-जाति-संप्रदाय से ऊपर उठकर हर कोई इस ऐतिहासिक दिन को अविस्‍मरणीय बनाने की कोशिशों में जुटा है। यह सब देखकर लग रहा है कि अयोध्‍या में पांच अगस्‍त को जो होने जा रहा है, उसके आलोक में विश्‍व गुरु भारत का हर नागरिक दुनिया को संदेश देने की तैयारी में है... ‘सब नर करहिं परस्‍पर प्रीती। चलहि स्‍वधर्म निरत श्रुति नीती।।’
सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में अग्रणी, धर्म-अध्यात्म की राजधानी अयोध्या को 492 वर्ष पूर्व तब त्रासदी का सामना करना पड़ा, जब 21 मार्च 1528 को आक्रांता बाबर के सेनापति मीरबाकी ने रामजन्मभूमि पर बने भव्य-दिव्य मंदिर तोप से ध्वस्त करा दिया। इसके बाद रामनगरी ने खोया गौरव पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। कई पीढ़ियों को बलिदान देना पड़ा। कहते हैं, घाव जितना गहरा होता है, उसके भरने का सुख उतना ही बड़ा होता है। 70 एकड़ के रामजन्मभूमि परिसर में मंदिर के भूमिपूजन की तैयारी के बीच रामनगरी में इन दिनों कुछ ऐसे ही सुख में डूबी है।

बाईपास मार्ग की ओर से रामनगरी में प्रवेश करने से पहले रेलवे के जिस ओवरब्रिज के नीचे से गुजरना होता है, उसकी दरो-दीवार किसी मंदिर की तरह सजी है। कुछ आगे बढ़ने पर शीर्ष पीठ मणिरामदास जी की छावनी दिखती है। पीठ के उत्तराधिकारी महंत कमलनयनदास सहयोगी संतों के साथ आह्लादित दिखते हैं। वो कहते हैं, भूमिपूजन की प्रतीक्षा के बीच आस्था से जुड़ी प्रत्येक गतिविधियां राममंदिर के उच्च शिखर को छूती प्रतीत होती हैं। कुछ ऐसा ही उल्‍लास बजरंगबली की प्रधानतम पीठ और अखाड़मल नागा साधुओं की साधना स्थली हनुमानगढ़ी में भी है। 
युवा नागा साधु एवं रामकोट वार्ड के पार्षद रमेशदास कहते हैं, यह हमारे लिए महान विजयोल्लास है। इस में किसी को पराभूत करने का नहीं, बल्कि मानवता के महान आदर्श की विरासत को उनके भव्यतम मंदिर के साथ सहेजने का गौरवबोध है। रामादल के अध्यक्ष पं. कल्किराम भूमिपूजन की शाम रामनगरी को घी के दीपों से रोशन करने में तैयारी में हैं। वहीं रामवल्लभाकुंज, लक्ष्मणकिला, रंगमहल, सियारामकिला जैसे मंदिरों में सज रही संगीत संध्या भी इस गौरव बोध के इजहार में चार-चांद लगा रही है।
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