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गाजीपुर: घर-घर पूजे गए नाग देवता, चढ़ाया दूध और लावा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर। जिले में शनिवार को श्रद्धा व भक्ति भावना से नागपंचमी मनाया गया। घर-घर नाग देवता व महादेव की पूजा-अर्चना की गई। साथ ही लोगों ने नागदेवता से सुख-समृद्धि की कामना की। इसकी तैयारी लोगों ने एक दिन पहले ही कर ली थी। सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हस्त नक्षत्र के संयोग में शनिवार को नाग पंचमी मनाई गई। श्रद्धालु नागदेवता की पूजा कर दुग्धाभिषेक किए। कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए पंडितों ने श्रद्धालुओं से घर पर ही पूजा करने का आह्वान किया था।

मुहम्मदाबाद : नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में शनिवार को नागपंचमी का पर्व काफी सामान्य ढंग से मनाया गया। इस मौके पर लोगों ने नाग देवता को दूध लावा चढ़ाया। कोरोना संक्रमण के चलते टड़वा में होने वाली कुश्ती व परसा महावीर जी मंदिर के पास खेलकूद कार्यक्रम नहीं हो सका। ग्रामीण इलाकों में कहीं-कहीं युवकों ने दौड़, लंबी कूद आदि का आयोजन किया गया।

देवकली : आसपास क्षेत्रों मे नागपंचमी का पर्व परंपरागत ढंग से मनाया गया। इस अवसर पर श्रदांलुओं ने दूध लावा नागदेवता को चढ़ाकर पूजन-अर्चन किया। कोरोना के कारण सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए। कजरी सुनने के लिए लोग कान तरस गए व झूला भी नहीं पड़े। विलुप्त हो गया नागपंचमी का महुअर खेल

खानपुर : नागपंचमी के अवसर पर सपेरे, खिलाड़ी, मदारी और उस्ताद के बीच खेले जाने वाला महुअर के ना तो अब कोई खिलाड़ी हैं और ना ही महुअर का खेल होता हैं। खेल के अंत में लोग विजेता को पुरस्कार स्वरूप रुपये-अनाज और घरेलू सामान भी देते थे। अलीमापुर के पूर्व महुअर खिलाड़ी लालजी राम कहते हैं कि अब न तो पहले की तरह इस खेल के खिलाड़ी रहे ना ही मंत्रों को साधने वाले उस्ताद रहे। खतरनाक अंदाज में खेले जाने वाले इस खेल को देखकर लोग अपनी दांतों तले अंगुली दबा लेते थे। आधुनिकता के इस दौर में लोगों के बदलते मनोरंजन के साधन ने इस खेल को विलुप्त कर दिया।

भांवरकोल : कोरोना संक्रमण के चलते लाकडाउन का असर नागपंचमी के त्यौहार पर भी देखने को मिला। घरों पर तो दूध लावा चढ़ाकर

नाग देवता की पूजा कर परिवार में सुख समृद्धि और मंगल की कामना की गई, लेकिन इस अवसर पर सीवानों में बालक से लेकर बूढ़ों तक कुस्ती, कबड्डी बरगत्ता खेलने वालों की कमी रही। लाकडाउन और शारीरिक दूरी बनाए रखने का पालन करते हुए जसदेवपुर, घरजूड़ी, लोचाइन, सुखडेहरी कला सहित कुछ गांवों में इसकी मात्र औपचारिकता देखी गई।
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