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योगी जी देख रहे हो ना...श्मशान के बाहर 'वेटिंग में स्वर्गवासी, इंतजार में परिजनों के सूख रहे हैं आंसू

गाजीपुर न्यूज़ टीम, लखनऊ। रविवार को शाम पांच बज रहा था। तभी भैसाकुंड बिजली शवदाह गृह के पास एक एंबुलेंस आकर खड़ी हो जाती है। उसे लाइन में लग जाने का इशारा शव को जलाने वाला मुन्ना करता है। यह क्रम देर तक चलता रहा। एंबुलेंस के पीछे एक एंबुलेंस। रात नौ बजे के करीब अंतिम शव को मशीन पर ले जाया गया था और उसका नंबर तेरह था। उन परिजनों के आंसू सूख गए, जो पहले ही आकर श्मशान घाट पर खड़े हो गए और नंबर का इंतजार करते रहे।

श्मशान घाट पर कोरोना संक्रमित शव की वेटिंग चल रही है। भैसाकुंड बैकुंठधाम में दो बिजली शवदाह गृह हैं, जबकि हर दिन आठ से दस शव यहां पहुंच रहे हैं। रविवार को यह संख्या तेरह पहुंच गई, जिसमे अधिकांश शव उनके थेे, जो बाहरी जिलों से यहां इलाज कराने आए थे।


वैसे तो सामान्य शव पर 45 मिनट ही लगता है लेकिन कोरोना संक्रमित शव में डेढ़ घंटा तक लग रहा है। यह अतिरिक्त समय इसलिए जिससे संक्रमण की मात्रा शून्य हो जाए।

ऐसे हो रहा अंतिम संस्कार
शव को एंबुलेंस से उतारने के बाद सैनिटाइज किया जाता है। शव एक पीपी किट में पैक होता है। वैसे तो शव को बिजली शवदाह गृह तक ले जाने का जिम्मा सीएमओ टीम का है लेकिन हकीकत यह है कि शोकाकुल परिजनों को ही पीपी किट पहनकर उसे अंदर पहुंचाना पड़ता है। बिजली शवदाह में पहुंचने से पहले अगर परिजन चाहते हैं तो शव पर रामनामी चादर उड़ा दी जाती है और पृजन सामग्री को ऊपर से डाल दिया जाता है। शव मशीन के अंदर जाने के बाद मशीन चालू हो जाती है। करीब सवा घंटे बाद मशीन को बंद करने के बाद मशीन को फिर से सैनिटाइज किया जाता है। पीपी किट को भी जला दिया जाता है। थोड़ी राख को एक डिब्बे में रख दिया जाता है, जिससे अगर कोई उसे विसर्जित करना चाहे तो कर सकता है और लोग राख को ले भी जा रहे हैं। राख को सुरक्षित रखने से पहले सैनिटाइज किया जाता है।

सामान्य शव नहीं आ रहे है
कोरोना शव की ही वेटिंग होने से सामान्य शव बिजली शवदाह गृह पर नहीं आ रहे हैं। सामान्य शव के साथ करीब बीस लोग भी रहते हैं और जब उन्हें यह पता चलता है कि कोरोना संक्रमित का अंतिम संस्कार किया गया है तो लोग लकड़ी से ही अंतिम संस्कार कर देते हैं।


कफ्र्यू लग जाता है
कोरोना शव आने की सूचना एक घंटे पहले ही श्मशान घाट पर पहुंच जाती है। कभी-कभी पुलिस भी सतर्क हो जाती है तो श्मशानघाट मार्ग पर सन्नाटा पसर जाता है। पुलिस वाले भी दूर ही खड़े दिखते हैं तो वहां से गुजरने वालों के वाहन भी यह सुनकर थम जाते हैं कि कोरोना संक्रमित मरीज का शव आया है।

सौ शव की उधारी
कुल तीन लोगों के ऊपर ही कोरोना शव को जलाने की जिम्मेदारी है। अन्य कर्मचारी तो भाग खड़े हुए। हर माह साढ़े छह हजार के मानदेय पर काम करने वाले मुन्ना कहते हैं कि उन लोगों ने कोरोना शव को जलाने से मना कर दिया था लेकिन अधिकारियों ने नौकरी देने और हर शव का 3500 भुगतान करने का आश्वासन दिया था। बीमा कराने की बात हुई थी। सौ से अधिक कोरोना शव को फूंक चुका हूं लेकिन अभी तक एक पैसा नहीं मिला।

नगर आयुक्त डा. इंद्रमणि त्रिपाठी ने कहा कि 'जल्द ही गुलाला घाट पर ही बिजली शवदाह काम करने लगेगा। तब तीन मशीन हो जाएगी। नगर निगम की टीम दो बिजली शवदाह गृृहों पर काम कर रही है। समय लग रहा है, क्योंकि बाहरी जिलों से इलाज कराने आए कोरोना संक्रमित मरीज का शव का अंतिम संस्कार यहीं पर ही हो रहा है। कर्मचारियों को कोरोना संक्रमित शव जलाने पर अलग से मानदेय देने पर विचार चल रहा है।

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