उत्तर प्रदेश के कालानमक चावल को मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान, इन चार जिलों से विदेश भेजा जाएगा चावल
गाजीपुर न्यूज़ टीम, गोरखपुर। सिंगापुर, जर्मनी, दुबई के लोग भी कालानमक चावल के स्वाद व सुगंध के कायल हैं। प्रतिवर्ष यहां से दो टन कालानमक पिछले दो वर्षों से सिंगापुर भेजा जा रहा है। पहली बार यहां से दो क्विंटल कालानमक चावल जर्मनी भेजी गई है। इसकी मांग अधिक है, लेकिन मांग के सापेक्ष आपूर्ति हो ही नहीं पा रही है। इसलिए विदेशों में कालानमक के लिए अलग से कोई स्टोरेज नहीं बन पा रहा है। वहां मांग के अनुरूप यह चावल जाएगा तो वहां भी इसके लिए अलग से भंडार गृह बनाया जाएगा और फिर यहां के किसानों को 800 रुपये से लेकर 1000 रुपये किलो तक इस चावल की कीमत मिल सकेगी। अर्थात इस खेती के जरिये पूर्वांचल के किसान न सिर्फ अपने अधूरे सपने पूरे करेंगे, बल्कि मालामाल हो जाएंगे।
अब सिद्धार्थनगर ही नहीं, गोरखपुर, महराजगंज का भी ओडीओपी उत्पाद कालानमक
किसानों का यह सपना जल्द पूरा होगा। इसकी अहम वजह है कि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि उत्पादों को बीते 7 अगस्त को एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) के रूप में चयनित किया है। इसमें गोरखपुर, महराजगंज, संतकबीनरनगर व सिद्धार्थनगर का चयन कालानमक के लिए हुआ है। हालांकि प्रदेश सरकार ने दो वर्ष पूर्व ही सिद्धार्थनगर जिले का ओडीओपी के लिए कालानमक का चयन किया है। वहां कालानमक की खेती को प्रमोट किया जा रहा है।
कृषि वैज्ञानिक डॉ राम चेत चौधरी पिछले 20 वर्षों से कालानमक का बीज विकसित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। वह यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम में भी कृषि कार्य को लेकर शोध कर रहे थे और वहीं से सेवानिवृत्त हुए हैं। उनके द्वारा दो वर्षों से सिंगापुर कालानमक चावल भेजा जाता है। वह कहते हैं कि इस पर अपेडा (एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस डेवलमेंट एजेंसी) भी कार्य कर रही है। इस बार उन्होंने थोड़ा कालानमक जर्मनी भी भेजा है। अब दुबई भेजने की तैयारी कर रहे हैं। कालानमक की खेती गोरखपुर, बस्ती व देवीपाटन मंडल के 11 जिलों में हो रही है। कालानमक के लिए इन जिलों की जियोग्रैफिकल इंडीकेशन (जीआई) उन्हीं के द्वारा कराई गई है।
जुलाई में ही भेजा गया था ओडीओपी के लिए प्रस्ताव
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के प्रभारी डॉ एसके तोमर का कहना है कि उनके द्वारा बीते जुलाई माह में ही कालानमक का नाम ओडीओपी के प्रस्ताव के लिए भेजा गया था। इसमें कालानमक की प्रजाति केएन-3, केएन-102 और कालानमक किरन का जिक्र था। मंत्रालय ने इन्हीं तीन प्रजाजियों को ओडीओपी के स्वीकृति दी है। प्रस्ताव में कालानमक के स्वाद, सुगंध के साथ उसमें पाये जाने वाले जिंक, आयरन व प्रोटीन के कैल्कुलेटिव वैल्यु का जिक्र किया था। साथ ही उसके ग्लाइसेमिक इंडेक्स का जिक्र किया था कि इसमें शुगर की मात्रा बहुत कम होती है। इसलिए मधुमेह रोगी भी इसका आसानी से सेवन कर सकता है।
जानिए क्या होगा ओडीओपी का लाभ
- बाजार की समस्या का समाधान हो जाएगा।
- एक साथ समूह से जुड़ने पर किसानों को खाद-बीज सीधे कंपनी के जरिये कम दर पर और अधिक मात्रा में उपलब्ध हो सकेगी।
- उत्पाद की ब्रांडिंग हो सकेगी।
- कामन फैसिलटी सेंटर के जरिये पैकेजिंग व ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा मिल सकेगी।
किस जिले में कितनी होती है कालानमक की खेती
जिला क्षेत्रफल (हेक्टेयर में)
गोरखपुर 9000
सिद्धार्थनगर 10000
महराजगंज 3000
संतकबीनर 3000
इन गांवों का कालानमक माना जाता है खास
कालानमक के लिए गोरखपुर, बस्ती, देवीपाटन मंडल के सभी जिलों की जलवायु व मिट्टी कालानमक के अनुकूल है, लेकिन इनमें सिद्धार्थनगर जिले के बर्डपुर विकासखंड अंतर्गत ग्राम अलीदापुर, सिसहनियां, गौरा परैया, बजहां, जमुहवां, बसंतपुर का कालानमक सबसे बेहतर माना जाता है। स्वाद, सुंगध के साथ इसमें जिंक, आयरन प्रोटीन की मात्रा प्रचुर मात्रा में होती है। इसलिए सेहत के लिए भी यह उपयोगी है।
