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Ghazipur: रामजी पांडेय ने करइल की साढ़े चार बीघा मिट्टी में लगा दिया बगीचा

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. लौवाडीह करइल की काली मिट्टी अनाज के लिए सोना तो है लेकिन पेड़ पौधों विशेषरूप से आम और इमारती लकड़ियों के लिए उतनी मुफीद नहीं है। इसके बावजूद अगर कोई बड़े पैमाने पर बगीचा लगा रहा है तो एक बड़ी बात है। करइल के मध्य भाग में स्थित आराजी बुड़ैला उर्फ पांडेय का पूरा गांव के रामजी पांडेय का पेड़-पौधे ही जीवन हैं। साढ़े चार बीघे में वे 13 सौ विभिन्न किस्म के अमरूद, साढ़े चार सौ आम के देशी विदेशी किस्म के पौधे लगाए हैं। 

खेत के मेड़ पर चारों तरफ इमारती लकड़ी विशेषकर महोगनी के पौधे लगाए हैं। रामजी पांडेय का कहना है कि इस क्षेत्र में व्यावसायिक खेती होने के कारण मजदूर की समस्या होती थी खेती में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता भी घट रही थी। ऐसे में पेड़-पौधे लगाने से पर्यावरण की रक्षा तो होगी ही कम पूंजी में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। केवल जरूरत है पौधों की देखभाल की। काली मिट्टी में बगीचा लगाना थोड़ा चुनौती वाला काम होता है। शुरू में विशेष देखभाल की जरूरत होती है। जब पौधे बड़े हो जाते हैं तो गर्मी में सिचाई करनी पड़ती है नहीं तो पौधे सूख जाते हैं। अगर पौधे परिपक्व हो गए तो उत्पादन अत्यधिक होता है। 


इमारती लकड़ियों में इस क्षेत्र के लिए महोगनी सबसे उपयुक्त है। उन्होंने कहा कि आम की दो पंक्तियों के बीच अमरूद लगाए हैं जिससे आम के तैयार होने से पहले अमरूद फल देने लगेगा और आमदनी समय से पहले शुरू हो जाएगी। मेड़ पर इमारती लकड़ी के पौधे लगाने से कुछ वर्षों बाद फिक्स डिपॉजिट की तरह आय का जरिया बनेंगे। इनके बगीचे में लगे काले आम और काले अमरूद कौतूहल का विषय हैं। रामजी पांडेय की आगे की योजना है कि अपने सभी खेत मे बगीचा लगाएंगे जिससे पर्यावरण की रक्षा तो होगी ही बिना किसी विशेष लागत के एक निश्चित आमदनी हो जाएगी। उनका कहना है कि सबको पेड़-पौधों व बाग-बगीचों को लेकर सोचना चाहिए।

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