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Ghazipur: तीन हजार वर्ष पहले के मिले अवशेषों पर बीएचयू पुरातत्व विभाग की टीम कर रही है शोध

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. सादात क्षेत्र के मिर्जापुर गांव में एक सप्ताह पूर्व प्रारंभिक खोज में मिले महत्वपूर्ण अवशेषों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग नई दिल्ली की भी नजर है। फिलहाल बीएचयू पुरातत्व विभाग की टीम शोध कर रही है। शोध के बाद यहां की पूरी रिपोर्ट वह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भेजेगी।

बीएचयू के प्रोफेसर डा. विनय कुमार ने बताया कि मिर्जापुर गांव में मिले करीब तीन हजार वर्ष पहले के वैदिक काल के मूर्तियों, महत्वपूर्ण सामानों पर बहुत ही बारीकी से शोध कार्य चल रहा है। शोध के बाद ही सारी रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व को सौंपी जाएगी। वैसे तो मौखिक रूप से भारतीय पुरातत्व विभाग को जानकारी दे दी गई है। यहां के मिले सामानों को देखकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक व अयोध्या पुरास्थल के उत्खननकर्ता रहे डा. बीआर मणि भी खुद आश्चर्यचकित हैं। वह भी मिर्जापुर गांव में आकर इस महत्वपूर्ण स्थान को देखना चाहते हैं।


1973 में ही पुरातत्व विभाग को लिखा गया है पत्र

सादात नगर के समता पीजी कालेज के राजनीति शास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर व मिर्जापुर गांव के वयोवृद्ध निवासी डा. विजय बहादुर सिंह ने बताया कि उनके गांव में भले ही अब बीएचयू पुरातत्व टीम की निगाह पड़ी हो लेकिन उन्होंने 1973 में जब बीएचयू के रिसर्च स्कालर थे तभी उन्होंने अपने गांव के भूगर्भ में छिपे पौराणिक सामानों के लिए बीएचयू के पुरातत्व विभाग को पत्र लिखा था लेकिन विभाग ने उस समय ध्यान नहीं दिया था। बताया कि खुद उनके खेत में भी उनके पुरखों पुरनियों को एक कई मुख वाली काफी वजनी मूर्ति मिली थी। जिसे वहीं पर स्थापित करा दिया गया। बताया कि उनके पास खेत में मिले पत्थरों के सील लोढ़ा आज भी मौजूद है।

पहले धनतूर था मिर्जापुर का नाम

डा. विजयबहादुर सिंह ने बताया कि मिर्जापुर का मतलब होता है राजाओं का गांव। बताया कि हमारे गांव का पहले नाम धनतूर गांव था। धनतूर का मतलब धन का गांव होता हैं। गाजीपुर गजेटियर में इस गांव का पहले नाम धनतूर था, लेकिन अंग्रेजों ने बाद में चलकर इसका नाम बदलकर मिर्जापुर कर दिया। पूर्व में यहां पर शिवरी जाति के लोग रहते थे। जो बाद में यहां से जाकर गोरखपुर क्षेत्र में बस गए। 40-50 वर्ष पहले तक वहां के लोग यहां अपने कुल देवी को पूजने के लिए भी आते थे।

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