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जो रंग देख भड़कते हों जैसे बीजेपी नेताओं से ममता बनर्जी..., वे आगे न पढ़ें...

गाजीपुर न्यूज़ टीम, गाजीपुर. क्या आप होली के उन मुरीदों में हैं जो नल और नाली के पानी में भेद नहीं करते या फिर आप उस परंपरा के हो चुके हैं जो हर्बल रंगों की वकालत तो करती है, साथ में यह छौंक भी लगा देती है कि हम तो भई होली के दिन शाम का प्रबंध दिन में करके टीवी देखते हैं और फिर सो जाते हैं। जिनके लिए होली महज एक छुट्टी है, वे कृपया सो जाएं और 30 मार्च को उठें। जिन्हें गीले रंगों से एलर्जी हो, शोर न अच्छा लगता हो और जो होली को केवल तमाशा मानते हों, वे यह न पढ़ें। जो रंग देखकर वैसे ही भड़कते हों जैसे भाजपा नेताओं को देखकर ममता बनर्जी...वे भी कृपा करके आगे न पढ़ें।

हां, जो मानते हों कि जैसे लोक के सबसे बड़े देव गणेश हैं ठीक वैसे ही होली से बड़ा सामाजिक पर्व दूसरा नहीं, वे पढ़ें। जो सड़क पर निकलें तो जहां-तहां नाचने वालों के साथ थिरके बिना आगे न बढ़ें, वे पढ़ें। जिन्हें सूखे रंग से उबकाई आती हो, लेकिन हौदिया में पटककर रंगने में मजा आता हो, वे भी पढ़ें। मौका है होली का, मूड है होली का, तो माहौल भी बनाना है होली का। सबकी होती हैं अपनी यादें, अपनी शरारतें। कौन है जो बचा इससे..तो इस बार उन्हें सबसे करें साझा ताकि सब हंसें, फगुनाहट में सब मगन हों और जोर से बोलें...जय हो होली की।


पता नहीं कैसे और कब होली को हुड़दंग से जोड़ दिया गया जबकि होली का मूल स्वर मिलन और एकता का है। होली तो पर्वों त्योहारों में फुटबाल की तरह है। बिना तामझाम और खर्चे वाली उमंग है होली। राह चलते को रोककर गले मिलने का उल्लास है होली। चौराहों पर रतजगा करके फाग गाने-सुनने का आनंद है होली। जाति, वर्ग और धन-धर्म की बाड़ें तोड़ने का नाम है होली। ऋतु परिवर्तन के कारण हिलोरें लेते मन की उड़ान का नाम भी है होली। आंगन और छतों पर चिप्स-पापड़ डालने की कला का नाम है होली और गुजिया में खोए और शक्कर की मात्र का अनुपात सिद्ध कर लेने के कौशल का नाम भी है होली। यादों को जवां कर देने की हसरत का नाम है होली और हसरत-ए-दीदार की पाकीजगी का नाम भी है होली।


सात दिन पास-पड़ोस और रिश्तेदारी में जाने और उन्हें घर बुलाने की परंपरा का नाम है होली और आठवें दिन बसेवड़ा जीमने की अदा का नाम भी है होली। रूठों से मिलने और प्यारों के साथ हंसने का नाम है होली। दिन में रंग खेलने और शाम को नए कपड़े पहन इठलाने का बांकपन भी है होली। अरे! है कौन कमबख्त जो कहे कि अराजक है होली। न! गले लगने और पांव छूने की संस्कृति का नाम है होली। भावज, सरहज और ननदोई की ही नहीं है होली, मां के पैरों में गुलाल की लाली भरने का नाम भी है होली।


इस बार कोरोना संक्रमण की लहर है। इस चीनी वायरस की दूसरी लहर चारों तरफ से चढ़ी आ रही है लिहाजा हमें शारीरिक दूरी का ध्यान रखना है। गले नहीं मिलना है, लेकिन दो गज से नमस्ते तो की ही जा सकती है। पास न जाएं, लेकिन दूर से दुआ तो की ही जा सकती है। कोरोना संक्रमण से बचाव के सारे नियमों का हमें पालन करना है और अपने लिए खुशियां भी जुटानी हैं। पर्व अपने साथ हजारों-लाखों लोगों के लिए खुशियां लाते हैं। होली जैसे पर्व हमें सीख देते हैं सामूहिकता की। परिवार के साथ उनकी भी चिंता करना सिखाते हैं जो हमसे जुड़े हुए हैं!

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