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कहानी: दो राहें

वह मुस्कराई और दोनों पटेल रोड पर चल पड़े. फिर एक कैफे में बैठ कर दोनों ने काफी पी. और हंसते हुए उठकर चलने लगे, पर फिर एक बार मौन दोनों ‌‌‌के बीच था.तभी एकाएक रमेश, पूनम का पुराना मित्र दिखा "हेलो पूनम .

वसन्त खाडिलकर पटेल रोड पर चला जा रहा था. एक ही विचार उसके मस्तिष्क में कौंध रहा था कि किसी भी तरह से उसे इस अपमान का बदला लेना है, परंन्तु क्यो? एका एक उसके मस्तिष्क में यह प्रश्न कौंध गया.वह ठिठक गया , अरे ये क्या सोचने लगा वह , पूनम का करता कसूर ?”नहीं आखिर पूनम ने ही तो उसे बुलाया,उसका ही अपराध है “, लेकिन वह इतना नीचे क्यो गिरा ,; वह फिर से सोचने लगा.इस तरह सभी घटनाएं उसके सामने स्पष्ट होने लगी. एलीट पार्क में बैठे हुए वह फिर सिगरेट के छल्ले बना रहा था; आज से दो वर्ष पहले वह इसी स्थान पर पूनम से मिला था.


“आजकल तुम इतना खोए क्यो रहते हो ”


” ‌‌‌  कुछ नही ” ‌‌‌वह बुदबुदाता


” पर मुझसे ‌‌‌क्या छिपाना ”


” नहीं ऐसी कोई बात नहीं है ”


वह मुस्कराई और दोनों पटेल रोड पर चल पड़े. फिर एक कैफे में बैठ कर दोनों ने काफी पी. और हंसते हुए उठकर चलने लगे, पर फिर एक बार मौन दोनों ‌‌‌के बीच था.तभी एकाएक रमेश, पूनम का पुराना मित्र दिखा “हेलो पूनम ”


“हेलो रमेश”


“अरे भाई तुम तो दूज की चांद हो गयी हो पूनम , दिखाई ही नहीं देती ”


“नहीं ,ऐसी कोई बात नहीं है मेरी तबियत ठीक नहीं रहती” पूनम ने कहा


“अरे तो मुझे खबर क्यो नही दिया ” रमेश बोला “अरे नहीं अब ठीक हूं ” पूनम ने बात को खत्म करने ‌की कोशिश की.


“अच्छा तो यही है आपके——–“रमेश ने बसन्त की ओर इशारा करते हुए कहा”अरे नहीं ये तो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं ” पूनम ने बसन्त की ओर कनखियो से देखते हुए कहा.


“चलो ठीक है वरना मैं भी सोचूं इतना बेमेल तो नहीं ही होना चाहिए “रमेश ने हंसते हुए कहा.


“और———–” आगे बसन्त सुन न पाया क्योंकि वह पूनम से अलग हो कर दूसरी तरफ़ चला गया था.उसका मन विद्वेष ‌‌‌से भर गया” ये पूनम भी ‌‌‌क्याहै; जहरीली फूल,—तो क्या‌उसे मुझसे प्रेम नहीं है,मात्र दिखावा करती है, उसे सिर्फ धन से प्यार है” इसी तरह सोचते हुए वह चलता रहा, कि फिर उसे ऐसा लगने लगा कि शायद वह कुछ ग़लत सोच रहा है, आखिर इसमें पूनम का करता कसूर, उसने अपने आप से प्रश्न किया.”नहीं नहीं, पूनम तो सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझसे ही ‌‌‌प्रेम करती है ,—तब दोष किसका? उसका –”


” हां यही ठीक है ‌‌‌इसी तरह से उधेड़बुन में सोचते हुए ‌‌‌कब घर आगया पता ही नहीं चला. तभी नौकर ने खाना लगा दिया उसे खाने में तनिक भी स्वाद नहीं आ रहा ‌था , उसके दिमाग में रह रह कर रमेश केकहे शब्द गूंज रहे थे.इसके लिए वह खुद को जिम्मेदार मान रहा था.तनाव से उसके मस्तिष्क की शिराओं में दर्द होने लगा था. उसे लगा कि अब वह आगे कुछ भी सोचने की स्थति में नहीं है अब वह सोने की तैयारी कर रहा था तभी अचानक दरवाजे की ‌‌‌‌‌‌‌‌‌घंटी बज उठी उसने सोचा कि इतनी रात में कौन हो सकता है फिर भी उसने दरवाजा खोला तो देखा कि पूनम ‌‌‌सामने खड़ी थी. “तुम !”आश्चर्य से उसने कहा


“हां मैं “पूनम ने कहा ” तुम इतनी ‌‌‌रात में, लौट जाओ मेरे जख्मों पर नमक न लगाओ “” नहीं मैं तुमसे क्षमा मांगने आती हूं” पूनम ने विनम्रता से कहा ” नहीं, नहीं पूनम , तुम मुझे माफ़ कर दो ‌‌‌मेरी औकात ही नहीं मेरी वजह से तुम्हें नीचा दिखाना पड़ा “उसने कातर स्वर में कहा ‌


“ऐसा क्यो ,क्या तुम नहीं चाहते कि समाज में मेरा कोई स्थान न हो ?””ऐसा नहीं है पूनम ,तुम एक ऐसे पिता की‌ बेटी हो जो सिर्फ पैसे वाले ही‌नही है उनका समाज में बहुत बड़ा स्थान है और मैं एक बिन बाप मां का अनाथ कोई भी


कुछ कह सकता है।”बसन्त ने कटाक्षपूर्ण तरीके से कहा”अच्छा,तो क्या मुझे इस रात में थोड़ी सी जगह भी न दोगे .जगह तो मेरा सब कुछ है लेकिन मेरा समाज मुझे इसकी इजाजत नहीं देता है और मैं अनाथ हूं मुझे अपनी हैसियत का अंदाजा हो चुका है.”बसन्त ने बेबसी में कहा


” कुछ लोग कहें कहते रहे, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ” पूनम ने चेयर पर‌बैठते हुए कहा.”हो सकता है कि तुम्हें कुछ कहने की हिम्मत किसी में नहीं हो पर मेरे साथ ऐसा नहीं है “बसन्त ने लगभग हारकर कहा


“ठीक है, मैं जा रही हूं पर एक बात याद रखना ,मैं निर्दोष हूं और तुमने मुझे समझने में बहुत भूल की है” पूनम चली आती ,बसन्त अवाक सा तकता रहता रह गया.


न जाने कब तक वह सोया रहता अगर नौकर उसे न जगाता ,आंख खुली तो उसनेे पाया कि नौकर उसे जगा रहा था”, मालिक अभी अभी एक आदमी यह ख़त दे गया है.


बसन्तअवाक सा ख़त पढ़ने लगा, “मेरे देवता, मेरे सर्वस्व,


आशा है आपको रात भर सुख की नींद आती होगी,मैं कल कुछ आपसे कहने आती थी, क्योंकि मुझे ‌‌‌‌कल ऐसा लगा‌कि प्यार दुनियाका वह  अनमोल सच है जिसके लिए कोई मूल्य नहीं लगाया जा सकता. नारी समाज के लिए एक खिलौना है जिसके बारे में पुरुषों ने कभी यह सोचा ही नहीं कि नारी के अंदर भावनाओं का एक सागर होता है लेकिन हया और बहुत कुछ ऐसा भी होता है कि वह खुद को जाहिर नही‌कर‌पाती संवेदनाओं को भी भीतर ही भीतर मरना पड़ता है.मैं सारी दुनियां छोड़ कर आयीथी यह बताने‌ की कोशिश कर रही थी कि‌रमेश एक‌गुन्डा किस्म आदमी है उसने मेरे पिता को ब्लेकमेल कर के मुझसे जबरदस्ती शादी करना चाहता है मैं इस जीवन में सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करती हूं लेकिन आपने मुझे ठुकराया अब मेरे जीवित रहने का कोई मतलब‌ही नहीं है.मैं जा रही हूं यह पत्र जब तक आप तक पहुंचेगा तब तक मैं जा चुकी होगी अनन्त की ओर

आपकी पूनम


पत्र आंसुओं से भीग चुका था. बसन्त पागलों की तरह पूनम के घर की ओर भागा जैसे उड़ते हुए पक्षी को पकड़ने की कोशिश कर रहा हो.


“बेटा बड़ी देर कर दी आने में, पूनम ने तुम्हारा बहुत इंतजार किया अब तो सब खत्म हो गया.” पूनम के पिता ने रोते हुए कहा । बसन्त की पथराई आंखें अनन्त मे‌ पूनम को ढूंढ रही थी.

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