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कहानी: जरा सी बात

प्रथा को बार- बार यह एहसास हो रहा था कि वह उसकी शायद अपनी बहन होती तो कभी ऐसा नहीं करती.

प्रथा नहीं जानती थी कि जरा सी बात का बतंगड़ बन जाएगा. हालांकि अपने क्षणिक आवेश का उसे भी बहुत दुख है लेकिन अब तो बात काफी बिगङ चुकी है. वैसे भी विवाहित ननदों के तेवर सास से कम नहीं होते. फिर रजनी तो इस घर की लाड़ली छोटी बेटी थी. सब के स्नेह की इकलौती अधिकारी… उस के लिए ही नहीं बल्कि पूरे परिवार के लिए यह जरा सी बात भी बहुत बड़ी बात थी.


“हां, जरा सी बात ही तो थी… क्या हुआ जो आवेश में रजनी को एक थप्पड़ लग गया. उसे इतना तूल देने की कहां जरूरत थी?

“वैसे भी मैं ने किसी द्वेष से तो उसे थप्पड़ मारा नहीं था. मैं तो रजनी को अपनी छोटी बहन सा मान देती हूं. रजनी की जगह मेरी अपनी बहन होती तो क्या इसे पी नहीं जाती? लेकिन रजनी लाख बहन जैसी होगी, बहन तो नहीं है न इसीलिए परेशान कर रखा है,” प्रथा जितना सोचती उतना ही उलझती जाती, लेकिन मामले को सुलझाने का कोई सिरा उस के हाथ में नहीं आ रहा था.


दूसरा कोई मसला होता तो प्रथा पति भावेश को अपनी बगल में खड़ा पाती लेकिन यहां तो मामला उस की अपनी छोटी बहन का है, जिसे रजनी ने अपने स्वाभिमान से जोड़ लिया है. अब तो भावेश भी उस से नाराज है. किसकिस को मनाए… किसकिस को सफाई दे… प्रथा समझ नहीं पा रही थी.


हालांकि भावावेश में ननद पर हाथ उठते ही तो प्रथा को अपनी गलती का एहसास हो गया था लेकिन वह जली हुई साड़ी बारबार उसे अपनी गलती नहीं मानने के लिए उकसा रही थी.


दरअसल, प्रथा को अपनी सहेली की शादी की सालगिरह पार्टी में जाना था. भावेश पहले ही तैयार हो कर उसे देर करने का ताना मार रहा था ऊपर से जो साड़ी वह पहनने की सोच रही थी वह आयरन नहीं की हुई थी.

छुट्टियों में मायके आई हुई ननद ने लाड़ दिखाते हुए भाभी की साड़ी को आयरन करने की जिम्मेदारी ले ली. प्रथा ननद पर रीझती हुई बाथरूम में घुस गई. इधर ननदोई जी का फोन आ गया और उधर रजनी बातों में डूब गई. बतरस में खोई रजनी आयरन को साड़ी पर से उठाना भूल गई और जब प्रथा बाथरूम से निकली तो अपनी साड़ी को जलती हुई देख कर वह होश खो बैठी. उस ने ननद को उस की गलती का एहसास कराने के लिए गुस्से में उस से मोबाइल छीनने की कोशिश की लेकिन आसन्न खतरे से अनजान रजनी के अचानक मुंह घुमा लेने से प्रथा का हाथ उस के गाल पर लग गया जिसे उस ने ‘थप्पड़’ कह कर पूरे घर को सिर पर उठा लिया.


देखते ही देखते घर में ऐसा भूचाल आया जिसे किसी भी रिक्टर पैमाने पर नापा नहीं जा सकता. घर भर की लाड़ली बहू अचानक किसी खलनायिका सी अप्रिय हो गई.

मनहूसियत के सायों में भी कभी रूमानियत खिली है भला? प्रथा का पार्टी में जाना तो कैंसिल होना ही था, अब सासननद तो रसोई में घुसने से रही, क्योंकि वह तो पीड़ित पक्ष था. लिहाजा, प्रथा को ही रात के खाने में जुटना पड़ा.


खाने की मेज पर सब के मुंह चपातियों की तरह फूले हुए थे. ननद ने खाने की तरफ देखना तो दूर खाने की मेज पर आने तक से इनकार कर दिया. सास ने बहुत मनाया कि किसी तरह 2 कौर हलक से नीचे उतार ले लेकिन रूठी हुई रानियां भी भला वनवास से कम मानी हैं कभी?


रजनी की जिद थी कि भाभी उस से माफी मांगे. सिर्फ दिखावे भर की नहीं बल्कि पश्चाताप के आंसुओं से तर माफी. उधर प्रथा इसे अपनी गलती ही नहीं मान रही थी तो माफी और पश्चाताप का तो प्रश्न ही नहीं उठता. बल्कि वह तो चाह रही थी कि रजनी को उस की कीमती साड़ी जलाने का अफसोस करते हुए स्वयं उस से माफी मांगनी चाहिए.


जिस तरह से एक घर में 2 महत्त्वाकांक्षाएं नहीं रह सकतीं, उसी तरह से यहां भी यह जरा सी बात अब प्रतिष्ठा का सवाल बनने लगी थी. रजनी अब यहां एक पल रुकने को तैयार नहीं थी. वहीं सास को डर था कि बात समधियाने तक जाएगी तो बेकार ही धूल उड़ेगी. किसी तरह सास उसे मामला सुलटने तक रुकने के लिए मना सकी. एक उम्मीद भी थी कि हो सकता है 1-2 दिनों में प्रथा को अपनी गलती का एहसास ही हो जाए.


ससुरजी का कमरा और सास की अध्यक्षता… देर रात तक चारों की मीटिंग चलती रही. प्रथा इस मीटिंग से बहिष्कृत थी. अपने कमरे में विचारों की तरह उथलपुथल हो रही प्रथा के लिए पति को अपने पक्ष में करना कठिन नहीं था. पुरुष की नाराजगी भला होती ही कितनी देर तक है… कामिनी स्त्री की पहल जितनी ही न… एक रति शस्त्र में ही पुरुष घुटनों पर आ जाता है लेकिन आज प्रथा इस अमोघबाण को चलाने के मूड में भी तो नहीं थी. वह भी देखना चाहती थी कि ससुरजी के कमरे में होने वाले मंथन से उस के हिस्से में क्या आता है? जानती थी कि हलाहल ही होगा लेकिन बस आधिकारिक घोषणा का इंतजार कर रही थी.


ढलती रात भावेश ने कमरे में प्रवेश किया. प्रथा जागते हुए भी सोने का नाटक करती रही. भावेश ने उस की कमर के गिर्द घेरा डाल दिया. प्रथा ने कसमसा कर अपना मुंह उस की तरफ घुमाया.


“प्रथा, तुम सुबह रजनी से माफी मांग लेना. बड़ी मुश्किल से उसे इस बात के लिए राजी कर पाए हैं कि वह इस बात को यहीं ख़त्म कर दे,” भावेश ने अपनी आवाज को यथासंभव धीरे रखा ताकि बात बैडरूम से बाहर न जाए.


सुबह प्रथा ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए सब को चाय थमाई लेकिन आज इस चाय में किसी को कोई मिठास महसूस नहीं हुई.


पति का प्रस्ताव सुनते ही प्रथा के सीने में जलन होने लगी.


“भावेश तुम भी… जिस ने गलती की उसी का पक्ष ले रहे हो? एक तो तुम्हारी उस नकचढ़ी बहन ने मेरी इतनी कीमती साड़ी का सत्यानाश कर दिया ऊपर से तुम चाहते हो कि मैं नाराजगी जाहिर करने का अपना अधिकार भी खो दूं? गिर जाऊं उस के पैरों में? नहीं, मुझ से यह नहीं होगा. किसी सूरत नहीं,” प्रथा फुंफकारी.


“एक साड़ी ही तो थी न, जाने दो. मैं वैसी 5 नई ला दूंगा. तुम प्लीज उस से माफ़ी मांग लो,” भावेश ने फिर खुशामद की लेकिन प्रथा ने कोई जवाब नहीं दिया और पीठ फेर कर सो गई.


भावेश ने उसे मजबूत बांहों से पकड़ कर जबरदस्ती अपनी तरफ फेरा. प्रथा को उस की यह हरकत बहुत ही नागवार लगी.


“एक थप्पड़ ही तो मारा था न… वह भी उस की गलती पर. यदि वह तुम्हारी बहन न हो कर मेरी बहन होती तब भी क्या ऐसा ही बवाल मचता? बात आईगई हो जाती. तुम बहनभाई कभी आपस में लड़े नहीं क्या? क्या तुम ने या तुम्हारे मांपापा ने आजतक कभी उस पर हाथ नहीं उठाया? फिर आज यह महाभारत क्यों छिड़ गई?” प्रथा ने उसका हाथ झटकते हुए कहा.


भावेश ने बात आगे न बढ़ाना ही उचित समझा.


उस रात शायद घर का कोई भी सदस्य नहीं सोया होगा. सब अपनेअपने मन को मथ रहे थे. विचारों की झड़ी लगी थी. रजनी अपनी मां के आंचल को भिगो रही थी तो प्रथा तकिए को.


सुबह प्रथा ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए सब को चाय थमाई लेकिन आज इस चाय में किसी को कोई मिठास महसूस नहीं हुई. रजनी और सास ने तो कप को छुआ तक नहीं. बस, घूरती ही रही. हरकोई बातचीत शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा था.


“भाई, तुम किसे ज्यादा प्यार करते हो? मुझे या अपनी बीवी को?” अचानक रजनी का अटपटा प्रश्न सुन कर भावेश चौंक गया. उस ने अपनी मां की तरफ देखा. मां ने कन्नी काट ली. पिता ने अपना सर अखबार में घुसा लिया. प्रथा की निगाहें भी भावेश के चेहरे पर टिक गईं.


“यह कैसा बेतुका प्रश्न है?” भावेश ने धर्मसंकट से बचना चाहा लेकिन यह इतना आसान कहां था.

“अटपटाचटपटा मैं नहीं जानती… आप तो जवाब दो कि यदि आप को बहन और बीवी में से एक को चुनना पड़े तो आप किसे चुनेंगे?” रजनी ने उसे रणछोड़ नहीं बनने दिया.


भावेश ने देखा कि प्रथा बिना उस के जवाब की प्रतीक्षा किए ही बाथरूम में घुस गई. उस ने राहत की सांस ली. वह रजनी की बगल वाली कुरसी पर आ कर बैठ गया. भावेश ने स्नेह से बहन के गले में अपने हाथ डाल दिए. धीरे से गुनगुनाया,“फूलों का तारों का… सबका कहना है… एक हजारों में… मेरी बहना है… “ दृश्य देख कर मां मुसकराई. पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. रजनी को अपने प्रश्न का जवाब मिल गया था.


“भाई, यदि आप मुझे सचमुच प्यार करते हो तो भाभी को तलाक दे दो,” रजनी ने भाई के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे.


बहन की बात सुनते ही भावेश को सांप सूंघ गया. उस ने रजनी का मुंह अपने हाथों में ले लिया.

“यह क्या कह रही हो तुम? जरा सी बात पर इतना बड़ा फैसला? तलाक का मतलब जानती हो न? एक बार फिर से सोच कर देखो. मेरे खयाल से प्रथा की गलती इतनी बड़ी तो नहीं थी जितनी बड़ी तुम सजा तय कर रही हो,” भावेश ने रजनी को समझाने की कोशिश की.


अपनी बात के समर्थन में उस ने मांपापा की तरफ देखा लेकिन मां ने अनसुना कर दिया और पापा तो पहले से ही अखबार में घुसे हुए थे. भावेश निराश हो गया.


“जरा सी बात? क्या बहन के स्वाभिमान पर चोट भाई के लिए जरा सी बात हो सकती है? हम बहनें इसी दिन के लिए राखियां बांधती हैं क्या?” रजनी ने गुस्से से कहा.


“रजनी ठीक ही कहती है. वह 2 साल की ब्याही लड़की तुम्हें अपनी सगी बहन से ज्यादा प्यारी हो गई? आज उस ने रजनी से माफी मांगने से मना किया है कल को सासससुर की इज्जत को भी फूंक मार देगी,” भाईबहन की बहस को नतीजे पर पहुंचाने की मंशा से मां बोलीं.


“मनरेगा में बरसात से पहले ही नदीनालों पर बांध बनवाए जा रहे हैं ताकि तबाही रोने से रोकी जा सके. सरकार का यह फैसला प्रशंसनीय है,” पापा ने अखबार की खबर पढ़ कर सुनाई. भावेश समझ गया कि इन का पलड़ा भी बेटी की तरफ ही झुका हुआ है.


कहां तो भावेश सोच रहा था कि इस बार बहन के प्यार को रिश्तों के पलड़े पर रख कर मकान पर उस के हिस्से वाले आधे भाग को भी अपने नाम करवा लेगा लेकिन यहां तो खुद उस का प्यार ही पलड़े पर रखा जा रहा है. प्रथा का थप्पड़ उस के मनसूबों की लिखावट पर पानी फेर रहा है. वैभव ने प्रथा को शीशे में उतारना तय कर लिया. वह इस जरा सी बात के लिए अपना इतना बड़ा नुकसान नहीं कर सकता. और वैसे भी यदि वह नुकसान में होगा तो प्रथा भी कहां फायदे में रहेगी?


रजनी दिन भर अपने कमरे में पड़ी रही. सब ने कोशिश कर देख ली लेकिन वह तो प्रथा को तलाक देने की बात पर अड़ ही गई. हालांकि सब को उस की यह जिद बचकानी ही लग रही थी लेकिन मन में कहीं न कहीं यह भय भी सिर उठा रहा था कि इस बार की जीत कहीं प्रथा के सिर पर सींग न उगा दे. कहीं ऐसा न हो कि वह छोटेबड़े का लिहाज ही बिसरा दे. जिस पर चाहे हाथ उठाने या सामने बोलने लगे.


कहावत के अनुसार उस में रजनी के पात्र की कल्पना कर के अनायास प्रथा के चेहरे पर मुसकान आ गई. भावेश को लगा मानो अब उस के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं.

झाड़ियों को बेतरतीब होने से पहले ही कतर देना ठीक रहता है. इसलिए प्रथा को एक सबक सिखाने के पक्ष में तो सभी थे.


“प्रथा, सुनो न…” रात को सोने से पहले भावेश ने स्वर पर चाशनी चढ़ाई. प्रथा ने सिर्फ आंखों से पूछा, “क्या है?”

“रजनी को सौरी बोल भी दो न, उस का बालहठ समझ कर. जरा सोचो, यदि यह बात उस की ससुराल चली गई तो वे लोग हमारे बारे में क्या सोचेंगे? खासकर तुम्हारे बारे में. तुम जानती हो न कि रजनी के ससुरजी तुम्हें कितना मान देते हैं,” भावेश ने निशाना साध कर चोट की.


निशाना लगा भी सही जगह पर लेकिन प्रहार अधिक दमदार न होने के कारण अपने लक्ष्य को बेध नहीं सका.


“इसे बालहठ नहीं इसे तिरिया हठ कहते हैं,” प्रथा ने ननद पर व्यंग्य कसते हुए पति के कमजोर ज्ञान पर तीर चला दिया. भावेश को पत्नी की बात खली तो बहुत लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए उस ने इसे खुशीखुशी सह लिया.


“अरे हां, तुम तो साहित्य में मास्टर हो. एक कहावत सुनी ही होगी कि जरूरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है. समझ लो कि आज अपनी जरूरतु है और हमें रजनी को मनाना है,” भावेश ने आवेश में प्रथा के हाथ पकड़ लिए.


कहावत के अनुसार उस में रजनी के पात्र की कल्पना कर के अनायास प्रथा के चेहरे पर मुसकान आ गई. भावेश को लगा मानो अब उस के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं. उस ने प्रथा को सारी बात बताते हुए उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया.


रूठे हुए पतिपत्नी के मिलन के बीच एक प्यार भरी मनुहार की ही तो दूरी होती है. अभिसार के एक इसरार के साथ ही यह दूरी खत्म हो गई. शक्कर के दूध में घुलते ही उस की मिठास कई गुणा बढ़ जाती है.


अगली सुबह प्रथा को सब को गुनगुनाते हुए चाय बनाते देखा तो इस परिवर्तन पर किसी को यकीन नहीं हुआ. भावेश जरूर राजभरी पुलक के साथ मेज पर हाथों से तबला बजा रहा था. मांपापा उठ कर कमरे से बाहर आ चुके थे. रजनी अभी भी भीतर ही थी.


प्रथा ने 3 कप चाय बाहर रखे और 2 कप ले कर रजनी को उठाने चल दी. मांपापा की आंखें लगातार उस का पीछा कर रही थीं.


“आई एम सौरी रजनी… मुझे इस तरह व्यवहारीं नहीं करना चाहिए था. प्लीज मुझे माफ कर दो,” प्रथा ने बिस्तर में गुमसुम बैठी ननद के पास बैठते हुए कहा.


रजनी को सुबहसुबह इस माफीनामे की उम्मीद नहीं थी. वह अचकचा गई.


“कल तक मैं इसे जरा सी बात ही समझ रही थी और तुम्हारी जिद को तुम्हारा बचपना. लेकिन कल रात जब से मैं ने थप्पड़ मूवी देखी है तब से तुम्हारे दर्द को बहुत नजदीक से महसूस कर पा रही हूं. मैं इस बात से शर्मिंदा हूं कि एक स्त्री हो कर मैं तुम्हारे स्वाभिमान की रक्षा नहीं कर पाई. मैं सचमुच तुम से माफ़ी मांगती हूं… दिल से.”


रजनी ने देखा प्रथा की पलकें सचमुच नम थीं. उस ने एक पल सोचा और भाभी के गले में बांहें डाल दीं.


भावेश खुश था कि वह अपनी योजना को अमलीजामा पहनाने में कामयाब हुआ. मांपापा खुश थे क्योंकि बेटी खुश थी और रजनी खुश थी क्योंकि एक स्त्री ने दूसरी स्त्री के स्वाभिमान को पोषित किया था.

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