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कहानी: किस्तों में बंटती जिंदगी

द्रोपा स्वयं कमाते हुए भी सपनों को पूरा करने के लिए आजाद नहीं हो पाई. सच तो यह था कि उस को सपने देखने की इजाजत भी न मिली क्योंकि घरगृहस्थी की आमदनी और खर्च की किस्तों में सपनों के लिए कोई किस्त रखी ही नहीं.

एक पखवाड़े से द्रोपा अपनी बेटी अवनी के साथ मायके में रह रही है. अवनी को नानी का घर बहुत पसंद है. अवनी ने मां द्रोपा से प्रौमिस लिया था, ‘मम्मा, गरमी की छुट्टियों में हम नानी के घर जरूर जाएंगे.’


‘तुम तो हर गरमी में वहां जाती हो, अब की कोई खास बात है?’ द्रोपा के यह पूछने पर अवनी बोली थी, ‘हां, नानू ने दीवार वाला बड़ा टीवी लिया है. बड़े टीवी में प्रोग्राम देखने का मजा कुछ और है.’


द्रोपा इतने दिन वहां रुकना नहीं चाहती. वहां से उस का औफिस काफी दूर पड़ता. आनेजाने में 2 घंटे बरबाद होते. परंतु बच्चे की जिद के आगे वह क्या कह सकती है? यहां आने के बाद बेटी की हर जिद नानीनानू पूरी करते हैं. यहां टीवी सारा दिन चलता है और अवनी उस से चिपकी रहती है.


आज संडे है. अवनी अपने नानानानी के साथ हौल में टीवी देख रही है. द्रोपा रसोई में रोटियां सेंक रही है. हौल से आती तीनों की आवाजें उस के कानों में पड़ रही हैं. जानती है, कोई डांस प्रोग्राम टीवी पर चल रहा होगा. अवनी को डांस का बड़ा शौक है. हूबहू नकल करती है चाहे कोई भी डांसर हो या डांस हो. उस के लिए कोई भी पोज मुश्किल नहीं है. जैसे ही डांस शुरू होता है उस का भी डांस शुरू हो जाता है. उस का डांस देख कर नानीनानू उत्साह बढ़ाते हैं, ‘‘शाबाश बेटा, एकदम सही पोज लिया है. यह तो पक्की नृत्यांगना है. माधुरी-रेखा तो इस के आगे पानी भरती हैं…’’


द्रोपा सबकुछ सुन रही है. मां ने कई बार उसे कहा भी है, ‘इसे किसी अच्छी एकैडमी में डाल दे. अभी से सीखना शुरू करेगी तो दोचार साल में स्टेज परफौर्मैंस देने लगेगी. फिर टीवी प्रोग्राम में भी सलैक्शन आसानी से हो जाएगा.’


अवनी के नाना तो एक ही राग अलापते हैं, ‘‘शहर में कितने नामीगिरामी कोरियोग्राफर हैं. किसी एक को चुन ले. उसी की शागिर्दी में यह सब सीख जाएगी.’’ यह सुन कर अवनी उत्साहित होती है. अकसर पूछती है, ‘‘मम्मी, डांस स्कूल में कब एडमिशन कराओगी? मु?ो तो डांस सीखना है और मैं जरूर सीखूंगी. नानू, आप मम्मी को सम?ाते क्यों नहीं? मेरी तो कितनी सारी सहेलियां राजीव सर से डांस सीखती हैं. मु?ो भी राजीव सर से डांस सीखना है.’’


बेटी की बात सुन कर द्रोपा कोई जवाब नहीं देती. लगता है वह कुछ सुन ही नहीं रही, सबकुछ उस के सिर के ऊपर से निकलता जा रहा है.


एकदो बार उस ने मांपापा को फुसफुसाते सुना है, ‘यह द्रोपा को क्या हो गया है, हमारा बारबार डांस सिखाने के लिए स्कूल में भेजने के लिए कहना इसे बुरा लगता है. ठीक है भई, बेटी उस की है जो चाहे करे.’ परंतु द्रोपा के पिता जीवालाल मन ही मन पत्नी से कहते हैं, ‘नहीं रश्मि, तुम कुछ नहीं सम?ागी, छोड़ो सब.


‘चुपचाप तो वह शुरू से ही रहती थी परंतु पिछले 2-3 महीने से यों गुमसुम रहना अब सब को अखरता है. औफिस में सभी उस के स्वभाव पर टोकते हैं. कई बार उस के देवर और पति भी कह देते हैं, ‘तुम्हें देख कर लगता है जैसे तुम्हें चुपचाप काम करने के लिए बनाया गया है. न बोलना, न बतियाना और न किसी से कोई सवाल पूछना.’


औफिस में उस की दोस्ती सिर्फ शिप्रा से है. बस, उसी से बातें कर लेती है. गरमी की छुट्टियां खत्म होने वाली हैं. पति अनूप 2-4 दिनों में उसे और अवनी को ले जाएंगे. द्रोपा के लिए तो जैसा मायका वैसा ससुराल. पर जब से अवनी को पता लगा है कि पापा ने नई गाड़ी ली है, खूब खुश है.


‘‘हम तो अपनी नई गाड़ी में दादी के घर जाएंगे.’’ सारा दिन उस के लिए डांस या नई गाड़ी के अलावा कोई बात करने को विषय ही नहीं है. और द्रोपा सारा दिन बोर होती है, खासकर, जिस दिन छुट्टी हो.


रोटियां सेंक कर वह बालकनी में आ खड़ी हुई. दीवार पर उस के बचपन की एक फोटो लगी है जिस में वह कत्थक की ड्रैस में डांस कर रही है. तसवीर देखते ही यादों के पन्ने पलट गए. अपनी बेटी की तरह द्रोपा को भी डांस का बहुत शौक था. तब वह सिर्फ 6 वर्ष की थी. घर के सामने एक डांस स्कूल था जो आज भी है. यह बात दूसरी है कि वह एक बहुत बड़ी एकैडमी में बदल गया है. प्रसिद्ध कोरियोग्राफर आज इस के डायरैक्टर हैं. यहां रोज बड़ीबड़ी गाडि़यों से सजीधजी लड़कियां उतरती हैं. उन के साथ उन की आया या मांएं होती हैं.


इसी स्कूल में 25 साल पहले भारती मैडम होती थीं. द्रोपा उन्हीं से डांस सीखती थी. फीस थी सिर्फ सौ रुपए. एक रोज भारती मैडम ने द्रोपा की मां को बुलाया और कहा था, ‘मैडम आप की बेटी बड़ी टैलेंटेड है. इसे एक अच्छे कोरियोग्राफर की एकैडमी में एडमिशन दिला दीजिए. इस क्षेत्र में यह बहुत आगे जा सकती है. सिविल लाइंस में प्रदीप नाम के एक कोरियोग्राफर की एकैडमी है. यह उस एकैडमी के लिए सही रहेगी. हां, उन की फीस कुछ ज्यादा है.’


‘कितनी फीस होगी?’ ‘2 हजार रुपए महीना.’ ‘2 हजार…?’ रश्मि के लिए 2 हजार रुपए हर महीने देना असंभव था. पास खड़ी द्रोपा ने मां के चेहरे के आतेजाते भाव देखे. भारती मैडम से 3 साल कत्थक सीखा और स्टेज शो में कितने ही इनाम पाए, याद नहीं. हां, मां का उस दिन का चेहरा आज तक याद है.


मां के चेहरे को देख कर वह सम?ा गई. यह सपना देखना भी गलत है. परंतु सपने तो सपने हैं, उन्हें देखने से कोई नहीं रोक सकता. क्योंकि एक आस होती है, शायद कि कभी पूरे भी हो जाएं.


घर आ कर मां ने मौका देख पापा से बात की थी. सुनते ही पापा क्रोध में चिल्लाए थे, ‘रश्मि, तुम्हारा तो दिमाग खराब है. 2 हजार रुपए. मैं इतने पैसे कहां से लाऊंगा, कभी सोचा भी है. अरे, इस फ्लैट की मासिक किस्त 7 हजार रुपए है, विजय की पढ़ाई के लिए बैंक से लोन लिया है, 4 हजार रुपए महीना उस का कटता है. ये दोनों लोन की किस्तें तो सैलरी हाथ में आने से पहले ही कट जाती हैं. पिछले महीने फ्रिज खरीदा, उस की भी किस्त 5 सौ रुपए है. अभी जो बोनस मिला था, उसे चुपचाप रख दिया कि जब दुकानों पर सेल लगेगी तो अपने लिए एक स्वैटर और बच्चों के लिए गरम कपड़े खरीदूंगा.


‘रसोई में मिक्सी नहीं है, तुम कई बार कह चुकी हो, घर में मेहमान आते हैं तो पड़ोसियों से मिक्सी मांग कर लाती हो. सब की रसोई में नएनए गैजेट्स हैं. उन की कमी के बारे में तुम ने कई बार कहा है. इन सब के लिए पैसा कहां से लाऊं? जबकि तनख्वाह सिर्फ 25 हजार रुपए है. जोड़तोड़ कर हमारी रोटी का इंतजाम होता है और तुम कहती हो, बेटी को डांस सिखाने के लिए 2 हजार रुपए फूंक दूं. परे मारो इस शौक को. देखो, सीधेसीधे इसे पढ़ने दो. इस के दिमाग में डांस सीखने का फुतूर मत डालो.’


परदे के पीछे खड़ी द्रोपा चुपचाप सबकुछ सुन रही थी. पापा का क्रोध कम नहीं हुआ था. ‘याद है, 10 साल से हम दिल्ली से बाहर घूमने कहीं नहीं गए. फिर इतनी महंगाई… लगता है घर का खर्च और किस्तों में सारा जीवन यों ही निकल जाएगा.’


पापा की आवाज भर्रा रही थी. परदे के पीछे खड़ी द्रोपा को यह सब सुन कर अच्छा नहीं लगा था. वह छोटी थी, परंतु सब सम?ाती थी. वह पापा को परेशान देख नहीं सकती. उस ने कस कर आंखें बंद कर ली थीं. मन कड़ा कर के निश्चय किया कि अब कभी डांस सीखने की जिद नहीं करेगी. लेकिन कोई यह तो बताए इन किस्तों में सपनों के लिए कोई किस्त क्यों शामिल नहीं है? उन को पूरा करने का जिम्मा किस का है. पता नहीं क्यों जी चाहा कि सामने टेबल पर रखा कांच का गिलास उठा कर किसी कोने में जोर से मारे. शायद सपने टूटने का दर्द थोड़ा कम हो जाए. सपने तो टूट ही गए, दर्द भी हौलेहौले चला जाएगा.


द्रोपा चुप और शांत रहने लगी थी. यह बात कोई नहीं जानता था सिवा पापा के. वही एक थे जो उस के चुप रहने का कारण जानते थे. जीवन जीने के लिए साधन जुटाने की इस होड़ में उस के सपनों को किस ने सेंध लगाई है. यह अपराधभाव जीवालाल के अंदर था लेकिन मजबूर थे कि जीविका पहले है, सपने बाद में आते हैं.


द्रोपा ने बीए, एमए किया और एक नौकरी पा ली. वह संतुष्ट थी. औफिस में काम करते हुए एक कलीग से दोस्ती हो गई. पहले थोड़ा घूमनाफिरना और फिर प्यारइकरार. कुछ दिनों बाद दोनों के परिवारों को पता चला और फिर बातचीत हुई. दोनों परिवारों को शादी से कोई गुरेज न था.


अनूप व द्रोपा की शादी का आयोजन एक हौल में हुआ था. दोनों परिवारों ने मिल कर एक पार्टी दे दी थी. वह खुश थी कि उसे मनचाहा वर मिल गया है.

‘हमारे पास देने को दहेज के नाम पर कुछ भी नहीं है,’ द्रोपा के पिता जीवालाल ने साफ शब्दों में अनूप के पिता को बता दिया था.


अनूप के पिता ने भी कहा था, ‘भाईसाहब, हम भी पूरेसूरे हैं. हमारी माली हालत आप जैसी ही होगी. हमें सुंदर, सुशील व घर को संभालने वाली बहू चाहिए. ये गुण आप की बेटी में जरूर होंगे.’


शादी से पहले अनूप कई बार द्रोपा को अपने घर ले गया था. वह अपने सासससुर से मिली थी, सब अच्छे लगे. सब अपने घर जैसा लगा. लगा ही नहीं कि यह उस की होने वाली ससुराल है.


घर में 2 देवर, दोनों इंजीनियरिंग कर रहे थे और अनूप के मांबाप थे. घर के नाम पर 2 कमरों का फ्लैट था ठीक उस के घर की तरह. ससुर अकाउंटैंट थे. सास उस की मां की तरह हाउसवाइफ थी. भाइयों में अनूप सब से बड़ा था.


अनूप व द्रोपा की शादी का आयोजन एक हौल में हुआ था. दोनों परिवारों ने मिल कर एक पार्टी दे दी थी. वह खुश थी कि उसे मनचाहा वर मिल गया है. शादी से पहले अकसर दोनों में बहस होती थी. ‘हम हनीमून के लिए कहां जाएंगे?’


‘मैं ने तो आज तक कोई हिल स्टेशन नहीं देखा.’ ‘मैं भी कौन सा घूमने गया हूं. दिल्ली से इलाहाबाद और इलाहाबाद से दिल्ली. मुल्ला की दौड़ मसजिद तक. हां, हम कहीं भी जाएं पर इलाहाबाद नहीं जाएंगे, बोर हो गया हूं.’ ‘पर मैं तो दिल्ली छोड़ कर कहीं नहीं गई. मेरे लिए तो हर शहर नया होगा.’


‘तो फिर हम आगरा चलते हैं, वहां ताजमहल पर हनीमून मनाएंगे. सुबह चलेंगे, दूसरे दिन सुबह दिल्ली वापस.’ अनूप अपने प्रस्ताव पर खुद ही हंस पड़ता. द्रोपा मुंह फुला कर बैठ जाती. फिर मानमनौअल, प्यारभरी चुहल और हंसनाखिलखिलाना. जब वह हंसती तो अनूप द्रोपा को एकटक देखता.


‘जानती हो, जब तुम हंसती हो तो ऐसा लगता है समुद्र की लहरें ठाठें मार रही हैं.’ ‘अच्छा, ऐसा क्या?’


‘हां, तुम, बस, यों ही हंसती रहा करो. बड़ी प्यारी लगती हो.’ अनूप उसे बांहों में भर लेता और हनीमून की बात वहीं की वहीं. शादी के बीच का वह हादसा कभी नहीं भुलाया जा सकता. अचानक द्रोपा के ससुर को दिल का दौरा पड़ा. अफरातफरी मच गई. अनूप पिता को ले कर अस्पताल भागा और अनूप की मां द्रोपा को ले कर घर आ गई. घर का माहौल एकदम से बदल गया था. ससुर की तबीयत थोड़ी संभली, तो सब को चैन आया. पर वे इस लायक नहीं थे कि नौकरी पर जा सकें. काफी कमजोर हालत में थे.


एक दिन अनूप ने बताया, ‘पापा ने इस फ्लैट के लिए बैंक से लोन लिया था जिस की हर महीने किस्त जाती है. भाई के लिए भी एलआईसी से लोन लिया था जिस की किस्तें जा रही हैं. घर की किस्त 10 हजार रुपए महीना है और भाई की पढ़ाई की लोन किस्त 5 हजार रुपए महीना. ये दोनों पापा की तनख्वाह से कट रही थीं. पापा की हालत देख कर नहीं लगता कि पापा नौकरी पर जा सकेंगे. अब इस की भरपाई की जिम्मेदारी हम पर है. आशा है, तुम मेरा साथ दोगी. घर का खर्च व पापा की दवाइयों का खर्च तुम संभालो और मैं एलआईसी और बैंक से लिए गए लोन की किस्तों को चुकाऊंगा. बात सिर्फ 4 साल की है. 4 साल बाद दोनों छोटे भाइयों की नौकरी लग जाएगी. तब वे दोनों हमारी मदद करेंगे. देखना, सब ठीक हो जाएगा.’


वह अवाक थी. सास ने सही कहा था, हम दोनों की माली हालत एक सी है. वहां भी किस्तों का बो?ा अकेले पापा ढो रहे हैं. वे भी यही कहते थे, बस, थोड़े दिनों की बात है, बाद में सब ठीक हो जाएगा. यहां पति भी यही सम?ा रहे थे. आखिर कब तक यह चलेगा? शायद सारी जिंदगी? शादी से पहले द्रोपा की जिंदगी नीरस, बेनूर थी. शादी के बाद सोचा था, यहां खुल कर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जिएगी. यहां तो कमाने वाले 3 हैं और अब तो


2 जन हैं, फिर भी सबकुछ पहले जैसा है- वही किस्तों का बो?ा, वैसी ही सोच. मेरा जीवन तो किस्तों की गणित के बीच ही बीत जाएगा. ससुर बिस्तर पर है. सासुमां बिलकुल मम्मी की तरह सारा दिन घरपरिवार के लिए कोल्हू के बैल की तरह जुटी रहती हैं.


जल्दी ही सम?ा में आ गया था कि यहां सब को परिवार की जरूरत के हिसाब से चलना पड़ता है. यहां अपनी लीक से हट कर सोचना गुनाह है, खासकर, खर्च के मामले में सब को हाथ खींच कर चलना पड़ता है. पापा के घर की तरह यहां भी कोई नया सपना देखना मना है. इसीलिए द्रोपा चुपचाप सारा कुछ ढोती जा रही है. कभी नहीं कहा कि ‘हनीमून न सही, कहीं और घूमने चलें?’


घूमने का प्लान बनातेबनाते 2 वर्ष गुजर गए. फिर अवनी का जन्म हुआ. बहुत खुश थी वह नन्ही सी, प्यारी सी परी को पा कर. एक दिन उस ने अनूप से कहा, ‘क्यों न हम बेटी के आने की खुशी में अच्छी सी पार्टी दें?’ पहली बार द्रोपा की खुशियों ने उछाल मारी थी. वह मन ही मन में मेहमानों की लिस्ट भी तैयार कर चुकी थी.‘बढि़या सी पार्टी का मतलब है एक लाख रुपए का खर्चा. कहां से आएंगे इतने पैसे?’ उत्तर सुन कर मन बु?ा गया. लगा सामने पति अनूप नहीं, बल्कि पिता जीवालाल खड़े हैं.


अभी पापा की तरह किस्तों की लिस्ट पढ़ी जाने लगेगी और कुछ सुनने से अच्छा है यहां से चुपचाप खिसक लो. ठीक भी है अवनी के आने से घर का खर्च बढ़ गया है. उसे पूरा करें या फिर पार्टी पर खर्च करें.


इस बीच दोनों भाइयों की पढ़ाई भी खत्म हो गई है. दोनों ने नौकरी के साथसाथ शादी भी कर ली है. दोनों ढाईढाई हजार रुपए घरखर्च में डाल कर जिम्मेदारी से पल्ला ?ाड़ लेते हैं. जो पैसा बैंक में लोन की किस्त अदा करने में जाता था, वह अवनी पर खर्च हो जाता है, बाबूजी की दवाओं पर खर्च हो जाता है. न कोई कुल्लू गया, न मनाली, न आगरा. दोनों मियांबीवी एक ही जगह बैठे कर्जों,  आमदनी और खर्चों के हिसाब में उल?ो हुए हैं. दोनों खूंटे से बंधी गाय की तरह हैं जो सुबह से शाम तक घूम कर एक घेरे में सिमटे हुए हैं.


एक दिन अनूप ने बताया, ‘मैं ने कार  लोन के लिए अप्लाई किया है. अगले महीने कार आ जाएगी.’ ‘क्यों? स्कूटर से काम चल रहा है न.’ ‘नहीं, स्कूटर भी खटारा हो गया है. हमें अपना स्टैंडर्ड भी तो ऊंचा करना है,’ अनूप ने ऐसे कहा जैसे वह आगरा का ताजमहल खरीदने जा रहा है.


द्रोपा को अनूप पर बड़ा गुस्सा आया. 2 बरस से अवनी दीवार वाला बड़ा टीवी खरीदने के लिए जिद कर रही है, तो अनूप ने यह कह कर बच्ची को बहला दिया, ‘बेटा, अब की बोनस मिलेगा, तो पक्का बड़ा टीवी खरीदेंगे. फिर हम मुंबई भी जाएंगे. तुम्हें वहां डांस शो भी दिखाएंगे. स्टेज शो देखने का तुम्हें बहुत शौक है न.’


पापा की बात सुन कर अवनी खुशी से तालियां बजाती है. लेकिन द्रोपा गुस्से में कहती है, ‘क्यों बच्ची से ?ाठा वादा करते हो. कभी सोचा है तुम ने, इन्हीं ?ाठी बातों से बच्ची का तुम पर से विश्वास उठ जाएगा.’


अनूप को अंजाम की परवा नहीं है, ‘छोड़ो, वह तो बच्ची है, थोड़ी देर में सब भूल जाएगी. तुम यह सब मेरे ऊपर छोड़ो. रही बात गाड़ी लेने की, वह तो मैं जरूर लूंगा.’ लेकिन द्रोपा जानती है अवनी की आंखों में चमकते तारों से टिमटिमाते सपनों का क्या होगा?


यह बात उस ने अपनी सहेली सुप्रिया को बताई थी. बताते समय उस की आंखें भरी हुई थीं, ‘मेरे जीवन के सारे सपने पैसों की कमी के कारण दफन होते रहे तो क्या अवनी के साथ भी वही होगा? शायद, उस के जीवन का पहला अध्याय भी मेरी तरह लिखा जाएगा और शायद आगे भी यों ही होगा.’


शिप्रा ने उसे दिलासा दी, ‘नहीं, ऐसा नहीं होगा. वक्त बदलेगा. तेरी बेटी के सपने जरूर पूरे होंगे.’ घर की बालकनी में खड़ी द्रोपा यह सब याद कर रही थी कि अवनी की आवाज उस के कानों में पड़ी. ‘‘मम्मी, आप बालकनी में खड़ी हो कर बाजार की रौनक का मजा ले रही हो और मैं आप को आवाजें दे कर थक गई.’’‘‘क्या हुआ बेटा?’’


द्रोपा की भी आंखें छलक रही थीं. सब के पीछे मां खड़ी थी, उस के हाथ में घुंघरू थे जो 20 साल पहले किसी डांस शो में द्रोपा को इनाम में मिले थे. सब ने देखा,

सच में उस ने बेटी की आवाज नहीं सुनी. ‘‘अंदर आओ, नानू बुला रहे हैं,’’ अवनी की आवाज आज खुशी से भरी थी. शायद टीवी पर कोई नया बढि़या प्रोग्राम आ रहा होगा, इसी को ले कर उत्साहित है. जबकि द्रोपा को इन प्रोग्रामों में कोई दिलचस्पी नहीं है.


‘‘आती हूं,’’ कह कर वह वहीं कुरसी पर बैठ गई. वह फिर से वही सब सोच रही थी. तो क्या महिलाओं और बच्चियों को सपना देखना मना है? नहीं, शायद यह सोचना गलत है. याद है, विनय भाई 12वीं में पढ़ रहा था. उसे रचनाएं लिख कर छपवाने का शौक जागा. हाथ से लिखी रचनाओं में काफी गलतियां होती थीं. किसी ने सु?ाया, कंप्यूटर पर लिख कर प्रिंट निकाल कर भेज सकते हो और उस में तो एडिट की व्यवस्था होती है, गलती होने की संभावना ही नहीं है.


विनय ने पापा से कंप्यूटर की फरमाइश की. पापा ने छूटते ही कहा, ‘पहले पढ़ाई करो. तुम्हारे इस छोटे से शौक के लिए 60 हजार रुपए खर्च करने की बेवकूफी नहीं करूंगा.’


बात यह नहीं कि महिलाओं और स्त्रियों के सपने टूटते हैं, बात यह है कि उन जैसे मध्यवर्ग परिवारों में पुरुष जब कमाने लग जाते हैं तो पुरुषों को पहले अपने सपने पूरे करने की आजादी हो जाती है. स्त्री स्वयं कमाते हुए भी सपनों को पूरा करने के लिए आजाद नहीं है. सच तो यह है कि उस को तो सपने देखने की इजाजत भी नहीं है क्योंकि आमदनी और खर्च की किस्तों में सपनों के लिए कोई किस्त रखी ही नहीं है.


लेकिन चाहे कुछ भी हो जाए, वह पैसा इकट्ठा कर के अवनी को डांस स्कूल में जरूर डालेगी. जानती हूं, अनूप तो जरा भी सहयोग नहीं देगा. उस की सोच में यह सब है ही नहीं कि पत्नी व बच्ची की इच्छाओं को भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए. वह तो पापा की तरह दुनिया की होड़ में लगा है. यह सब सोच कर आज मन काफी विचलित था.


‘‘ओह मम्मी, आप तो फिर वहीं बैठ गईं. नानू कब से बुला रहे हैं,’’ अवनी का स्वर एक बार फिर कानों में पड़ा. वह उठ कर हौल में पहुंची. ‘‘बेटा आओ, यहां मेरे पास बैठो.’’


पापा ने बड़े लाड़ से द्रोपा को पास बैठाया. उन के हाथ में पिंक रंग का कोई कागज था. उन्होंने हौले से उस की हथेली पर उस कागज को रखा. ‘‘पापा, यह क्या है? यह तो चैक है… नहीं, यह तो डिमांड ड्राफ्ट है और वह भी मेरे नाम?’’ वह कभी पापा तो कभी मां का चेहरा देख रही थी. लिखी रकम पढ़ कर चौंक पड़ी, ‘‘10 लाख रुपए…’’


‘‘हां बेटा, ये 10 लाख रुपए तेरे हैं. सुन, 10 बरस पहले मैं ने बैंक में पीपीएफ खाता खोला था. सोचा था जो पैसा डालूंगा, तेरी शादी के समय काम आएगा. साल का एक लाख डालता था. तेरी शादी में तो सिर्फ 20 हजार रुपया लगा था. यह पैसा जमा होता गया. कल यह पैसा 10 लाख रुपया बन गया. सो, वही निकाल कर तेरे को दे रहा हूं,’’ कहते हुए पापा का गला भर आया.


‘‘आई एम सौरी, बेटा. जीवनभर किस्तें ही चुकाता रहा हूं. उस वक्त तुम्हारी इच्छाओं और सपनों को दफन करता गया. दुख तो होता था पर क्या करता. तुम्हारी व विनय की पढ़ाई, घर का सामान, फ्लैट सब के लिए लोन लेना पड़ा था. तू सब जानती है. आज तुम और अनूप उसी जगह पर खड़े हो. जानता हूं, तुम दोनों का जीवन भी मेरी तरह बीतेगा, किंतु इस बिटिया के सपनों का क्या होगा?


‘‘अब इस पैसे से बेटी को किसी अच्छी सी डांस एकैडमी में एडमिशन दिला दे. बच्ची होनहार है. देखना, बहुत आगे जाएगी.’’ पापा की आंखें छलक आई थीं. वे आगे बोले, ‘‘एक बात और, इन पैसों से मकान की किस्तें मत भरना, सम?ां. तेरे न सही, इस बच्ची के सपने तो पूरे हो जाएंगे.’’


द्रोपा की भी आंखें छलक रही थीं. सब के पीछे मां खड़ी थी, उस के हाथ में घुंघरू थे जो 20 साल पहले किसी डांस शो में द्रोपा को इनाम में मिले थे. सब ने देखा, मां घुंघरू छन… छन… बजा रही थी.


अवनी हैरान थी, जो मम्मी चुपचुप रहती थी, आज खुशी से नाच रही थी. अवनी ने भी मां का साथ दिया.

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