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कहानी: अफसोस

मैं हमेशा चाहता था कि कभी किसी जवान लड़की से प्यार करूं लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि मुझे किसी से मन की गहराइयों से प्यार हुआ और मैं ने उस का प्यारभरा दिल तोड़ दिया?

मैं औफिस में काफी रंगीनतबीयत माना जाता था और खुशमिजाज भी. हर रोज किसी को सुनाने के लिए मेरे पास नया व मौलिक लतीफा तैयार रहता था. मैं हाजिरजवाब भी गजब का था. कोई गंदा सा जोक अपने साथियों को सुना कर मैं इतनी बेशर्मी से आंख मारता और सारी बात इतनी गंभीरता से कहता कि हर कोई सच में मेरी बात मान लेता था.


वैसे तो मेरी कहानी सब लोगों के सामने एक खुली किताब रही है. मैं ने जिंदगी में जीभर कर ऐश की है. घर अच्छा था. मेरी बीवी भी कमाती थी. मैं ने सबकुछ खायापीया, घूमाफिरा. इतनी सारी औरतों से यारी की, रोमांस भी किया. वह मजेदार जिंदगी जी कर मजा आ गया.


मगर जनाब, असली बात तो यह है कि मैं ने गफलतभरी जिंदगी जी है. कोई ऐसा काम नहीं किया कि जिसे याद कर के दिल को कोई सुकून मिले. किसी ने मेरे अंदर की बात को कभी संजीदगी से नहीं लिया.


सभी सोचते रहे कि यह आदमी कितना मिलनसार और खुशमिजाज है. चलो, इस के पास चलते हैं. कुछ घड़ी बैठ कर गपें मारते हैं. मैं उन्हें ऐसी बातें बताता जो असल में सच नहीं थीं. कोरी कल्पनाएं थीं, वे सुन कर खुश हो जाते, ठहाके मार कर हंसते.


उन के जाने के बाद मैं उदास हो जाता. एक बलात्कार की सी स्थिति थी मेरे साथ. लगता था मानो इस बलात्कार को मैं ने खुद ही अरेंज करवाया है. रोजरोज मैं अपने अंतर्मन के साथ बलात ढोंग करता.


यह आदत मुझे बचपन से ही थी. लोग बताते हैं कि मेरे पिताजी को भी यही सनक थी, हरेक बात को बढ़ाचढ़ा कर बताना. अगर उन के पास हजार रुपए होते तो वे लोगों को बताते कि उन के पास 10 हजार रुपए हैं. मुझ में यह शेखी एक सनक की हद तक विकसित हो चुकी थी. अगर मैं कभी सच बोलता भी तो लोगों को यकीन न होता.


इस से बहुत नुकसान उठाए हैं, साहब, मैं ने. कई अधेड़ स्त्रियां तो मेरी अच्छी दोस्त बनीं मगर मेरी हमउम्र जवान औरतें मुझ से परहेज करतीं. कालेज में मुझे अपनी उम्र से बड़ी स्त्रियां भाती थीं जिन्हें हम दोस्त लोग आंटीज कह कर मजे लेते थे. एकदो तो मेरी चिकनी, हंसोड़ बातों में आ भी गई थीं. उन की गहरी जिस्मानी अंतरंगता भी मिली मुझे. वे मेरी शेखी भरी बातें सुन कर प्रभावित हो जाती थीं.


मगर ज्योंज्यों मेरी शादी पुरानी हुई, मुझे कच्ची उम्र की जवान, शोख लड़कियां अच्छी लगने लगीं. मगर मेरी बढ़ती हुई उम्र, आगे निकलती हुई तोंद और पकते जा रहे बालों ने उन्हें हमेशा मुझ से दूर ही रखा.


ऐसे में एक बार मुझे लगा कि मैं जिंदगी के सही अर्थ पा गया हूं. बात उन दिनों की है जब मैं अपने औफिस के स्टाफ टे्रनिंग कालेज में प्रशिक्षण अधिकारी था. एक बैच में एक लड़की थी जो मेरी हंसोड़, लच्छेदार तथा चुटीली बातों में आ गई थी. वह थोड़ी सांवली थी मगर हम हिंदुस्तानी लोग गोरे रंग पर टूट कर पड़ते हैं. अब मैं सोचता हूं कि मुझे उस का दिल दुखाना नहीं चाहिए था.


हां, तो जनाब, विजया, यही नाम था उस का. प्रशिक्षण पीरियड खत्म होने के बाद वह मुझ से मिलने मेरे सैक्शन में आई. वह 21 बरस की जवान लड़की थी और मैं 38 बरस का था. इतना अधेड़ तो न था मगर बाल जरूर पकने लगे थे मेरे और शरीर भी फूलने लगा था.


सारा सैक्शन हैरान नजरों से उसे देख रहा था. विजया को मैं ने साथ पड़ी कुरसी पर बिठाया. औपचारिकतावश चाय मंगवाई. हमारे बीच उम्र का बहुत बड़ा फासला था. वह कमसिन थी, जवानी की दहलीज पर अभी उस ने कदम रखा था मगर मैं उम्र की सीढि़यां उतर रहा था.


वह उस दिन मजाक के मूड में थी. मेरी नेमप्लेट देख कर बोली, ‘सर, आप का नाम तो लड़कियों जैसा है.’ मैं असंयत हो गया, जवाब में कुछ नहीं सूझा. मैं ने बस यही कहा, ‘तुम्हारा नाम भी तो लड़कों जैसा है.’


वह हंस पड़ी. अपने सैक्शन वालों के सामने मुझे पहली बार बेहद झिझक महसूस हुई. इसलिए नहीं कि वह लड़की थी बल्कि इसलिए कि वह उम्र में मुझ से बहुत छोटी थी. मेरी बगल वाली सीट पर हमेशा एक औरत बैठी रहती थी क्योंकि मैं इस बातकी कम ही परवा करता था कि लोग क्या कहेंगे.


लोग मुझे ठरकी कहते थे. यह बात मुझे पता थी. मेरी बगल में बैठने वाली तमाम औरतें लगभग संवेदनशून्य थीं, जो चाहे घटिया बात उन्हें कह लो, हाथवाथ लगा लो, कुछ बुरा नहीं मानती थीं. कुछ तो कोई न कोई बहाना लगा कर मेरी बगल वाली सीट पर विराजमान होने के लिए लालायित रहती थीं.


हां, तो विजया दूसरी बार आई, वह भी एक सप्ताह के अंदर. सैक्शन की बाकी औरतों को बहुत झुंझलाहट हुई. मन ही मन मैं खुश तो था मगर घबरा रहा था, डर रहा था. विजया की गलती यही थी कि जब वह मुझ से मिली थी तो मैं काफी उम्र जी चुका था. मैं 40 की तरफ जा रहा था और वह 20 पार कर रही थी. उस की बातें बेहद दिलचस्प होती थीं. मैं साफ देख रहा था कि यह लड़की मेरे प्रति कितना गहरा मोह पाले बैठी है.


एक जवान लड़की का साथ पाने की एक प्रकार की मेरी दिली इच्छा पूरी होने जा रही थी मगर मैं बेहद डर गया था, बुरी तरह हांफ रहा था, घबरा रहा था कि कहीं कुछ हो न जाए या लोग क्या सोचेंगे.


विजया सांवली थी, उस का शरीर गोलमटोल और गुदाज था. आंखें छोटी मगर बेहद कटीली और नशीली थीं. चुस्त, आधुनिक कपड़े पहनती थी. विचारों से वह काफी बोल्ड और साहसी थी. एमए इंगलिश कर रही थी. साहित्य में काफी शौक रखती थी. मैं ने भी बी ए औनर्स अंगरेजी साहित्य के साथ किया था. इसलिए लारैंस, कीट्स, बैकन और हक्सले की बहुत सी बातें मुझे अभी तक याद थीं.


सो, काफी देर तक हमारा वार्त्तालाप चलता. विजया के साथ मेरी कैफियत उस बच्चे के समान थी जो नंगे हाथों से दहकता हुआ गरम अंगारा उठा ले. विजया ने मेरे विश्वासों, मेरी मान्यताओं और मेरे विचारों को उलटपलट कर रख दिया था जैसे बरसात के बाद गलियों में बहने वाले पानी का पहला रेला अपने साथ तमाम बिखरे कागज, तिनके आदि बहा ले जाता है.


वह एक पहाड़ी नदी की तरह पगली थी, आतुर थी. उसे बह निकलने की बहुत जल्दी थी. उसे कई रास्ते, कई मोड़ पार करने थे. मैं एक सपाट मैदानी नाला था. मैं ने काफीकुछ देखा था.


इसी झिझक के मारे मैं ने कभी उस के सामने बाहर घूमने का प्रस्ताव नहीं रखा. विजया ने कई बार कहा, ‘सर, चलिए, कहीं चलते हैं, शिमला या मनाली, हिल स्टेशन पर मस्ती मारते हैं. चलो, बाहर नहीं तो यहीं अपने शहर के लेक व रौक गार्डन पर तो चलो.’ मगर मैं कोई न कोई बहाना लगा कर उसे टालता रहता.


3-4 बार मैं उस के साथ शहर के आसपास गया भी मगर कहीं उस से इत्मीनान से बात करने के लिए सुरक्षित जगह नजर नहीं आई. हर जगह मुझे कोई न कोई परिचित खड़ा नजर आया.


उस के साथ चल कर मुझे लगा कि मैं फिर से जवान हो गया हूं. मेरी उम्र कम हो गई है. फिर विजया की उम्र देख कर मुझे यह बोध होता कि मैं ठीक नहीं कर रहा हूं. अपराधबोध के बिना सच्चा प्यार क्यों नहीं होता. प्यार तो समाज की धारा के खिलाफ चल कर ही किया जा सकता है.


मैं डर गया था लोगों से, समाज से, अपनेआप से. कहीं फंस गया तो? हालांकि मैं विजया के प्यार में फंसना चाहता था मगर इतना गहरा फंसने का मेरा इरादा नहीं था.


मैं तो बस उसे छू कर, महसूस कर के देखना चाहता था. मगर विजया तो दीवानगी की हद तक पागल थी. मैं उस की कमसिन उम्र से डर कर अजीब परस्परविरोधी फैसले करता था. कभी सोचता था कि आगे बढ़ूं तो कभी बिलकुल पीछे हट जाने की ठान लेता था. उसे कहीं मिलने का समय दे कर उस से मिलने नहीं जाता था.


फिर मैं ने विजया के साथ एक रात किसी होटल में गुजारने की सोची. मगर उस से पहले मैं उस के प्यार की परीक्षा लेना चाहता था कि क्या वह मेरे सामने समर्पण करेगी या वैसे ही कोरी भावुकता में बह कर वह ऐसी बातें करती है. अपने औफिस की कई औरतों के साथ मुझे उन के घर पर ही उन के साथ अंतरंग संबंध बना लेने में कोई दिक्कत पेश नहीं आई. मगर विजया के केस में मुझे 1 साल लग गया यह सब सोचने में कि शुरुआत कहां से करूं.


सच बात तो यह थी कि मैं उस के साथ सिर्फ प्यार का खेल ही खेलना चाहता था मगर वह दीवानी लड़की अपनी जवानी के आवेगों को रोक नहीं पा रही थी. हर रोज मुझे यही लगता कि वह मेरे सम्मुख समर्पण करने के लिए बेकरार है.


एक दिन जी कड़ा कर के मैं ने शिमला के ग्रैंड होटल में 2 लोगों के लिए एक कमरे की बुकिंग करवा ही दी. वोल्वो बस से शिमला जाने का प्लान बन गया मगर उस सुबह जिस दिन मुझे विजया के साथ निकलना था उस दिन मेरे मन में पता नहीं कैसे नैतिकता की ओछी सनक सवार हो गई कि इस तरह तो मैं उस का भविष्य खराब कर दूंगा. विजया बस स्टैंड से मोबाइल पर रिंग करती रही मगर मैं मोबाइल बंद कर के अपने रूम में सिरदर्द का बहाना कर के पड़ा रहा.


अब मेरी बात बहुत लंबी हो चली है. मैं अपनी बात यहीं खत्म करता हूं कि एक मौका जब मैं सच में किसी को दिल की गहराइयों से प्रेम करने लगा था, मैं ने जानबूझ कर गंवा दिया.


विजया को अपमानित किया, उसे बुला कर मिलने नहीं गया. वह मेरे पास आई तो मैं अधेड़ उम्र की सुरक्षित किस्म की खांटी व अधेड़ औरतों से बतियाने में मशगूल रहा. मैं ने विजया को भूल जाना चाहा. वह बारबार मेरे पास आई तो मैं ने जी कड़ाकर के उस की उपेक्षा की, अपनेआप को ऐसा दिखाया कि मैं औफिस के काम में बुरी तरह मसरूफ हूं.


आखिरकार, मैं ने अपनेआप को एक खोल में बंद कर लिया जैसे गृहिणियां अचार या मुरब्बे को एअरटाइट कंटेनरों में भर कर कस कर बंद कर देती हैं. अब मेरी कैफियत ऐसी थी कि जैसे मैं विजया के काबिल नहीं हूं और यह कि उस के साथ और कुछ दिन चला तो फिर संभलना मुश्किल था. मैं यह खेल बस इसी खूबसूरत मोड़ पर ला कर बंद कर देना चाहता था. उस के साथ जिस्मानी दलदल में धंसने का मेरा कोई इरादा न था.


इस तरह विजया धीरेधीरे मुझ से दूर होती गई. मगर अब इस उम्र में जब मैं 55 के काफी करीब जा रहा हूं, मुझे उन मधुर क्षणों की याद आती है कि जब मुझ में और विजया में जबरदस्त दीवानगी थी तो मैं बेहद मायूस हो जाता हूं. मैं सोचता हूं कि मैं ने कभी किसी से प्यार नहीं किया और एक प्यारभरा दिल तोड़ दिया. सचमुच सिर्फ एक लड़की जिस से मैं ने पहली और आखिरी बार मन की गहराइयों से प्यार किया था, उस का प्यार गंवा दिया, उस से निष्ठुरता दिखा कर बहुत बड़ा अपराध किया था.

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