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कहानी: गृहिणी

मीरा परेशान थी समीर के उखड़े व्यवहार से. एक ही छत के नीचे रहते हुए भी दोनों अपनेअपने हृदय में उमड़तेघुमड़ते तूफान से घिरे थे, दूसरे के भीतर चलने वाली हलचल से सर्वथा अनभिज्ञ.

समीर को फिर गुस्सा आने लगा. घर के दरवाजे पर मुसकराती मीरा को देख कर उस का मन किया कि झापड़ लगा दे, पर खीजा सा, सिर झुकाए सीधा शयनकक्ष में घुस गया. मीरा का आगे बढ़ा हाथ धीरेधीरे झुकता चला गया. पति का इस तरह नजरअंदाज कर भीतर चले जाना उसे बहुत चुभा पर मन को तसल्ली दी कि शायद अस्पताल में काम बहुत होगा.


वह सोचने लगी कि नौकरी के अंदरूनी व बाहरी तनाव समीर को आजकल इतना थका देते हैं कि सारी मस्ती धीरेधीरे खत्म होती जा रही है. हर वक्त झल्लाया सा रहता है. वे दोनों जब से दिल्ली आए हैं, दिनोंदिन समीर बदलता जा रहा है. जाने कितना काम करवाते हैं ये अस्पताल वाले.


डाक्टर की पत्नी होने के एहसास से सराबोर पति की थकान को कम करने के विचार से मीरा माथे पर जरा सी भी शिकन लाए बिना रसोई में जा कर चाय बनाने लगी. छोटी इलायची वाली समीर की पसंद की चाय नए प्यालों में डाल, उस की प्रिय बीकानेरी भुजिया के साथ टे्र में लिए केवल 5 मिनट में शयनकक्ष में हाजिर थी.


बिना कोई आवाज किए चाय ला कर उस ने मेज पर रख दी और इंतजार करने लगी कि समीर चाय देख कर अपनी सारी बोरियत और परेशानी भूल उसे प्यारभरी नजरों से देखेगा. फिर उस का हाथ थाम चाय के घूंट भरता हुआ दिनभर के तनाव से मुक्त हो जाएगा.


समीर आंखें बंद किए चुपचाप लेटा था. उसे मालूम था कि मीरा चाय लिए उस का इंतजार कर रही है. पर वह फिर खीज उठा, ‘दो मिनट हुए नहीं, चाय बना लाई. जरा इंतजार नहीं कर सकती. बिना मांगे हर चीज पहले से हाजिर, फरमाइश करने का तो कभी मौका ही नहीं देती.


‘आखिर साधारण गृहिणी है न, और काम ही क्या है. चाय बनाना, खाना बनाना, घर में बैठेबैठे झाड़पोंछ करना. जब आओ मुसकराती हुई दरवाजे पर खड़ी मिलेगी. किसी दूसरे की बीवी तो यों खड़ी नहीं होती. सब दिनभर काम कर के थकीमांदी लौटती हैं, बुझीबुझी. एक यह है कि जब देखो, तरोताजा, ओस भीगी कली सी मुसकराती मिलेगी.


‘डा. मदन बस में मजाक कर रहे थे, भई, मजे तो सिर्फ समीर के हैं. घर पहुंचते ही गुलदस्ते सी सजीधजी बीवी मुसकराती हुई हाथ से बैग ले लेगी और फिर परोसेगी मीठे चुंबनों सी गरमागरम चाय. एक हम हैं कि घर पहुंचते ही बच्चों को गृहकार्य कराओ, फिर चाय के लिए बीवी का इंतजार करो कि क्लिनिक से आ कर अपनी थकान उतारे. हम भी थके हैं, यह तो घर जाते ही भूल जाना पड़ता है. यार, रोज अकेलेअकेले चाय पीता है, कभी तो दोस्तों को भी भाभी के हाथ की चाय पिलवा दिया कर.’


समीर आगे सोचने लगा, ‘सब के सब मतलबी हैं. वह डा. बसंत रात को 10 बजे लौटता है. कई बार तो क्लिनिक में ही रात गुजारता है. फिर भी पट्ठे को मस्ती चढ़ी रहती है. कल रात को जब हम घूम कर लौटे तो मिल गया. क्या बकवास कर रहा था. सभी के बीच कह रहा था, भई, मजे तो समीर के हैं, बाकी सब तो बेकार जिंदगी गुजार रहे हैं. अपन ने तो बीवी के आगे समर्पण कर रखा है.


‘कल बोला, आज बच्चों में बहस चल रही थी कि हमारे कैंपस में कौनकौन से अंकल आंटियों से डरते हैं. शीना, मीना का विचार था कि यहां तो सभी अंकल आंटियों से डरते हैं. हां, चिरा के पापा के मजे हैं. रुचिरा की मम्मी उन्हें कभी डांटती नहीं. बस, समीर अंकल ही एक बहादुर और मर्द अंकल हैं.


‘उस के बाद डा. विमल की खिंचाई करने लगा, क्यों, तू अकेला खड़ा है इतनी रात में…क्या बीवी से डरना छोड़ दिया? जा, जल्दी जा, नहीं तो आज फिर घंटी बजाते रहना, दरवाजा नहीं खुलेगा सारी रात. मैडम को नींद आ रही होगी और तू डबलरोटी लाने के बहाने यारों से गपशप कर रहा है.


‘बसंत हमेशा थोड़ीबहुत तो पीए ही होता है. किसी को भी नहीं छोड़ता. सभी से छेड़खानी करता है. डा. अशोक से कह रहा था, डाक्टर साहब, आप के हिस्से में तो बम का गोला ही आया है. हमारी छत पर तो रोज ही बम विस्फोट होता है, भूकंप आता है, बिजली गिरती है और अंत में बारिश.


‘डा. देवेश और विनय को ही देखो, रोज ही रात का खाना खाने बाहर जाते हैं. दोनों की बीवियां प्राइवेट प्रैक्टिस में हैं. कमाती भी अंधाधुंध हैं और उसी हिसाब से खर्च भी हाथ खोल कर करती हैं. एक यह मीरा है, कभी कहो भी कहीं चलने के लिए तो कहेगी कि आज तो उस ने बहुत बढि़या खाना बना रखा है, फिर कभी चलेंगे. तंग आ गए रोजरोज घर का खाना खातेखाते.


‘उधर विमल को देखो, दोपहर को रोज मेरे कमरे में चला आता है और मेरे गोभी के परांठे खा जाता है. कहता है, यार समीर, कबाब तू खा, सैंडविच के साथ, परांठे इधर सरका दे. अपनी बीवी को परांठे बनाने की फुरसत भला कहां. मीरा भाभी के हाथ के परांठों में जादू है जादू.


‘हुंह, सब को दूसरे की बीवी में अप्सरा और हाथों में जादू नजर आता है.’


अंदर ही अंदर खदबदाता समीर मुंह ढक कर लेटा था. उसे उन दिनों मीरा की हर बात पर गुस्सा आता था. वे सब बातें या चीजें, जो उस की विशेषता थीं और पहले उसे अच्छी लगती थीं, अब आंखों में खटकने लगी थीं.


10 साल हो गए उन की शादी हुए. बेटी रुचिरा भी इस वर्ष 8 की हो गई थी. मीरा के साथ समीर ने एक भरपूर और सुखद वैवाहिक जीवन बिताया था. वह तो यही मानता रहा था कि वे दोनों जैसे बने ही एकदूसरे के लिए हैं.


मीरा सुंदर तो थी ही, उस का स्वभाव इतना मधुर और सरल था कि प्यार करने को दिल हो आता. परिवार के सभी सदस्यों की वह दुलारी थी. मातापिता, भैयाभाभी की तो वह आंखों की पुतली ही थी.


यों वास्तव में मीरा का कोई दोष नहीं था. बस, दोष था इस दिल्ली का, यहां की पहियों पर भागती तूफानी जिंदगी का.


2 साल से यानी जब से वह यहां के एक अस्पताल में काम करने दिल्ली आया था और मैडिकल कैंपस में रहने लगा था, सब कुछ गड़बड़ाने लगा था. वह पहले जैसा सहज नहीं रहा, सबकुछ जैसे टूटफूट गया था. चरमराने लगी थी जिंदगी और उस की सोच भी कितनी बदल गई थी.


यहां सभी महिलाएं नौकरी करती थीं. एक मीरा को छोड़ कर अन्य सभी की बीवियां डाक्टर थीं. सभी जबतब ‘फैलोशिप’ ले कर विदेश जाती रहती थीं. अस्पताल के काम के अलावा, कभी सेमिनार तो कभी कौन्फ्रैंस में व्यस्त रहतीं. कुछ प्राइवेट प्रैक्टिस करती थीं और अच्छा कमाती थीं.


सभी के घर में दोदो एअरकंडीशनर थे या हर कमरे में कूलर था. 2-3 साल में फर्नीचर या परदे बदल जाते. मियांबीवी दोनों डट कर काम करते थे, घर और बच्चे नौकरनौकरानियां संभालते.


समीर फिर सोच में डूब गया, ‘एक हम हैं, जब देखो, मीरा रुचिरा को पढ़ा रही है, सुला रही है, खिला रही है अथवा घर के काम में व्यस्त है. एक भी चीज खरीदनी हो तो चार बार सोचना पड़ता है. होटल में खाना तो हमारे लिए सपना ही है. रोजरोज दालरोटी खातेखाते तो अब ऊब होने लगती है.


‘यह ठीक है कि मीरा खाना बहुत अच्छा बनाती है, सभी तारीफ करते हैं. घर भी अच्छी तरह रखती है. लेकिन डा. मदन का घर देखो, विदेशी चीजों से भरा है. उस की बीवी साल में दोदो बार विदेश जाती रहती है. हेमंत का टैरेस गार्डन देखते ही बनता है. डा. सुनील के कैक्टस दूरदूर तक मशहूर हैं.


‘सब के बच्चे रातदिन केबल टीवी देखते हैं और एक हम हैं कि रुचिरा वीडियो देखने के लिए भी टीना के घर जाती है. चेतन के पास कितनी बढि़या नस्ल के 5 कुत्ते हैं, हमारे पास क्या है?


‘जो आता है, वही मीरा को अपने घर की चाबियां थमा जाता है. कभी अपने बच्चों को छोड़ जाता है. और कुछ नहीं हो तो कौफी या चाय पीने ही चला आता है वक्तबेवक्त. कैंपस का कोई काम हो, बस एक ही जवाब है कि मीराजी देख लेंगी. वही है न पूरे कैंपस में फालतू. अपनी बीवियों से तो कराओ नौकरी और फालतू कामों के लिए है मीरा. ये भी तो खूब है, कभी किसी काम के लिए मना नहीं करती.


‘अब तो रुचिरा भी पूछने लगी है, मम्मी, तुम अस्पताल क्यों नहीं जातीं? सब की मम्मी ड्यूटी पर जाती हैं, आप क्यों नहीं जातीं? कितनी बार कहा, कोई कोर्स ही कर लो, कुछ भी छोटामोटा, आखिर पढ़ीलिखी तो हो ही. पर शौक ही नहीं है. घर में घुसे रहना ही अच्छा लगता है.


‘सब की बीवियां कितने सलीके से रहती हैं. हमेशा टिपटौप. शक्लसूरत कुछ नहीं, पर सजीधजी रहती हैं हर समय. भई, नौकरी पर जाने वालों की बात ही कुछ और होती है, व्यक्तित्व अपनेआप ही निखर आता है.


‘मीरा आजकल मोटी भी होने लगी है. अपना ध्यान ही नहीं रखती. बाल कटाने को भी तैयार नहीं. बस, सीधी सी चोटी कर लेगी या कभी कस कर जूड़ा बांध लेगी. चेहरा कितना आकर्षक है, अगर ढंग से रहे तो सभी को मात दे सकती है.


‘समझ में नहीं आता कि मुझे क्या हो गया है? क्या चाहता हूं मैं, यह भी पता नहीं. मीरा की वे सब बातें या आदतें, जिन की दूसरे तारीफ करते हैं, मुझे जहर लगने लगी हैं. इलाहाबाद में सब कितना ठीकठाक चलता था पर दिल्ली आते ही सब जैसे गड़बड़ा गया है.


‘भई, आज की दुनिया में अन्नपूर्णा बनने की आखिर जरूरत ही क्या है? यह ठीक है कि तुम में सारे गुण हैं, पर क्या तुम बीसवीं सदी की रफ्तार के साथ नहीं चल सकतीं? आप भारतीय संस्कृति नहीं छोड़ेंगी. कितना समझाया कि मेरी चिंता करना छोड़ो, मैं अपनी देखभाल खुद कर लूंगा, लूलालंगड़ा या अपाहिज तो हूं नहीं. जरा तेजतर्रार और स्मार्ट बनो.


‘यह तो है नहीं कि मुझे दूसरों की परेशानियों का पता नहीं है. नौकरीपेशा महिलाओं की अपनी परेशानियां हैं, विवशताएं हैं. उन के घरों की हालत का भी मैं चश्मदीद गवाह हूं. किंतु जब सभी एक तरह से जी रहे हों तब कितना अजीब सा लगता है अलग ढंग से जीना.


‘डा. चेतन और उस की बीवी के शयनकक्ष अलगअलग हैं. अभी पिछले हफ्ते ही तो डा. अशोक का अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ था. गुरदीप की बीवी रोज नाइट ड्यूटी करती है और जब वह अस्पताल जा रहा होता है तब वह घर में घुसती है.


‘डा. मनोज के बच्चे रातदिन नौकरों के बच्चों के बीच खेलते हैं. डा. विनय की आया ने चोरी करवा दी थी पिछले साल. मनोज के नौकर ने गाड़ी साफ करतेकरते जाने कब गाड़ी चला दी और डा. कुमार की गाड़ी में दे मारी. दोनों का कितना नुकसान हुआ था.


‘मीरा रुचिरा का कितना खयाल रखती है. कितनी शिष्ट और शालीन है रुचिरा, लेकिन कितनी सीधी है, कहीं मीरा जैसी ही न बन जाए.


‘इस में कोई संदेह नहीं कि पत्नी तो बस एक मीरा ही है, बाकी सब कामकाजी महिलाएं हैं, जो थोड़ाबहुत पत्नीधर्म शौकिया निबाह लेती हैं. पर मीरा अगर डाक्टर होती तो वह भी शान से कहता कि उस की पत्नी डाक्टर है.


‘शादी के समय मैं ने तो जिद की थी कि मुझे डाक्टर बीवी नहीं चाहिए. पत्नी घर में हो, जब मैं थकामांदा लौट कर आऊं. यही तो चाहता था मैं. मीरा मुझे पहली बार देखते ही पसंद आ गई थी. बिना नखरे दिखाए उस ने झट से हां कर दी थी. कैसी शांत, सुंदर, मधुर और सौम्य है मीरा. फिर मैं परेशान क्यों हूं, आखिर क्यों?’


समीर को सोया देख मीरा चाय ले कर रसोई में रख आई. वह यह सोच कर दुखी थी कि आज जरूर ज्यादा आपरेशन करने के कारण समीर का सिरदर्द बढ़ गया होगा. थोड़ी देर चुपचाप सोने से शायद तबीयत सुधर जाएगी.


वह रुचिरा की फ्रौक में गोटा टांकने लगी. बहुत दिनों से वह समीर में एक परिवर्तन देख रही थी. वह बातबात में खीजता था. हर वक्त झल्लाया रहता था.


मीरा अच्छी तरह जानती थी कि आज की महंगाई में एक आदमी की तनख्वाह में गुजारा करना कितना कठिन है. आएदिन किसी न किसी चीज की किल्लत पड़ी रहती थी. वह कितनी समझदारी और किफायत से घर चलाती थी पर किफायत भी तो एक सीमा तक ही संभव थी.


कई बार उस का मन होता कि एमए की परीक्षा उत्तीर्ण कर ले या कोई कोर्स वगैरह कर के नौकरी कर ले, पर समीर और रुचिरा को असुविधा होगी, यह सोच कर वह घर में ही अपने लिए नएनए काम निकालती रहती. वह सभी की मदद करने की कोशिश करती.


सभी उसे प्यार करते थे. छोटे बच्चे तो उसे घेरे ही रहते. वह दिनभर कुछ न कुछ करती ही रहती. फिर भी जब समीर का मुरझाया चेहरा देखती तो भीतर ही भीतर उदास हो जाती. तरहतरह से पूछने की कोशिश वह कर चुकी थी, पर बहुत कुरेदने पर भी समीर खुलता ही नहीं था. न जाने कौन सा घुन उस की सुखी गृहस्थी में घुस आया था.


उस ने तो समीर की खुशी में ही अपनी खुशी, अपनी जिंदगी समाहित कर दी. अब क्या कारण है कि समीर दुखी है, परेशान है? अपने कैरियर के बारे में उस ने कभी सोचा ही नहीं. चारों ओर होने वाली भागदौड़ देख कर तो वह नौकरी के बारे में कभी सोचती भी नहीं थी.


मीरा सोचने लगी, ‘कितनी शांति है उस के छोटे से घर में. कोई तूफान नहीं, जैसा कि आसपास आएदिन उठता ही रहता है. दिनभर पहियों पर सवार ये सब भागते ही रहते हैं. पर समीर को पूरी स्वतंत्रता है, चाहे जितनी देर तक अस्पताल में काम करे. वह कितना खयाल रखती है उस की पसंदनापसंद का. सभी उस से रश्क करते हैं पर फिर उस का समीर उदास क्यों रहता है?


‘क्या कारण हो सकता है समीर की उदासी का? विभाग में शायद किसी से अनबन हो गई होगी.’


इसी तरह अनापशनाप सोचतेसोचते सूई उस की उंगली में चुभ गई. खून की बूंद छलछला आई. फ्रौक वहीं छोड़ उस ने हाथ धोया पर खून रुक ही नहीं रहा था.


उस ने कस कर उंगली दबाई और ‘डेटाल’ की शीशी उठाई. तभी रुचिरा आ कर अपने नन्हेनन्हे हाथों से उस की उंगली पर पट्टी बांधने लगी. रुचिरा को प्यार कर वह रसोई में आ गई क्योंकि समीर अभी तक सोया हुआ था.


मीरा ने खाना तैयार कर के मेज सजा दी. वह इस बात से बेखबर थी कि समीर के भीतर कौन सा तूफान चल रहा है. एक ही छत के नीचे, एकसाथ रहते हुए भी दोनों अपनेअपने हृदय में घुमड़ते तूफान से घिरे थे, दूसरे के भीतर चलने वाली हलचल से सर्वथा अनभिज्ञ. समीर की बेचैनी का कारण न जानते हुए भी मीरा को उस का आभास था और वह प्राणपण से उस की परेशानी दूर करने के लिए प्रयासरत थी. अब वह पति का पहले से भी ज्यादा ध्यान रखती. हर जरूरत की चीज उस के कहने से पहले ही जुटा देती. वह कहां जानती थी कि उस की यही तत्परता समीर की व्याकुलता का मूल कारण है.

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